भोपाल। भाजपा की चार सूची से उम्मीदवार मैदान में आने के बाद अब नीति निर्धारकों और रणनीतिकारों की नजर बची हुई हारी हुई सीट के साथ वर्तमान गिने चुने विधायक की सीट पर टिक गई है.. जहां भाजपा अपनी जीत सुनिश्चित करने के लिए आखिर किस हद तक जोखिम मोल ले क्या नया प्रयोग करेगी.. फिलहाल दिग्गज छत्रप हों या केंद्र के साथ प्रदेश के अनुभवी मंत्री जीत की गारंटी के साथ मैदान में उतर चुके हैं.. यानी नए चेहरों को अभी भी अपनी नई पारी का भाजपा में इंतजार है ..
अभी तक कांग्रेस के उम्मीदवारों की परवाह न करते हुए हाई कमान ने माहौल बनाने के लिए एक साथ कई संदेश दिए.. तो वह 2018 की चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए सतर्क और सजग जरूर लेकिन सहमी और सोचने को भी मजबूर नजर आई.. हारी हुई सीटों की पहली सूची ने सारे क्राइटेरिया तोड़कर चौंकाया.. तो दूसरी सूची आते ही बड़ा धमाका जब दिल्ली में दखल रखने वाले सांसद और मंत्रियों ने मैदान में मोर्चा खोलकर एक नई बहस छोड़ दी.. जिसमें अधिकांश ने अपने परिजनों के टिकट काटे और सभी सीएम इन वेटिंग की दौड़ में एक साथ शामिल हो गए.. तो इकलौती तीसरी सूची जरूरत के मुताबिक एडजस्टमेंट अपने से ज्यादा दूसरे पर भरोसा के बाद..अब चुनाव की तारीख के ऐलान के साथ चौथी सूची में शिवराज और उनके समर्थकों के दबदबे ने भी स्पष्ट कर दिया.. कि बचे हुए उम्मीदवार ही यह साबित करेंगे की पीढ़ी परिवर्तन के दौर में बदलती बीजेपी आखिर नए चेहरे सामने लाने का जोखिम किस हद तक मोल ले सकेगी..
केंद्रीय मंत्री और सांसद जो सिर्फ विधायक का चुनाव लड़ने के लिए मध्य प्रदेश नहीं लौटे… इन सभी को सीएम इन वेटिंग मान लिया गया है.. तो अब जब सारी अटकलों पर विराम लगाते हुए शिवराज को भी उम्मीदवार बना दिया गया.. तो सवाल क्या सीएम इन वेटिंग अब सीधे सीएम बनने के लिए दौड़ में आगे निकल जायेंगे.. तो आखिर इनमे से किसकी लॉटरी खुलेगी ..या फिर इनमें से अधिकांश को डिप्टी सीएम के लिए नए सिरे से पैरवी भी करना पड़ेगी.. या फिर प्रदेश की राजनीति से दूर एक बार फिर लोकसभा चुनाव के लिए ये टिकट मांगेंगे.. जो चुनाव हार गए उनकी फिलहाल पार्टी को जरूर ना लगे..ऐसे में सवाल सामूहिक नेतृत्व में चुनाव मैदान में जा चुकी भाजपा के सीएम शिवराज क्या भाजपा के लिए अभी भी मजबूरी से ज्यादा जरूरी बने हुए हैं.. या फिर शिवराज की लोकप्रियता और स्वीकार्यता पर अभी भी संदेह खड़ा किया जा सकता है.. क्या गारंटी इन सभी की एकजुटता मोदी और शाह के लिए जीत की गारंटी साबित होने वाली है..
भाजपा जब ओबीसी पर कांग्रेस की घेराबंदी कर एक बड़े वोट बैंक को लुभाना चाहती है.. तो क्या मध्यप्रदेश में महाराष्ट्र की तर्ज पर शिवराज को देवेंद्र फडनवीस बनाने की कोई गुंजाइश रह जाती है.. यह सवाल सिर्फ शिवराज के मैदान में उतरने तक सीमित नहीं रह जाता.. क्योंकि अधिकांश मंत्री इस चौथी सूची में एक बार फिर टिकट पाने में सफल रहे.. इनमें से कई मंत्री के खिलाफ एंटी इंकमबेंसी की बड़ी शिकायतें सामने आती रही.. जो 3 से 6 चुनाव लड़ चुके हैं और इनमें से कई मंत्रियों के पुत्र टिकट की दावेदारी भी करते रहे.. तो सवाल क्या बीजेपी संभल कर कदम आगे बढ़ाने को मजबूर हुई है.. अनुभवी और क्षेत्र में पकड़ रखने वाले मंत्री हो या फिर विधायक चाह कर भी गुजरात फार्मूले के तहत उनके टिकट नहीं काट पाई है.. क्या इसकी एक वजह है पिछले दो माह में पार्टी छोड़ने वाले नेताओं का दबाव माना जाए.. या फिर टिकट काटने पर इनमें से कई मंत्री बगावत कर विरोधी को ताकत दे सकते थे.. चौथी सूची में मुख्यमंत्री शिवराज के सहयोगी मंत्री जिन्हें पिछली बार भी टिकट दिलवाने में मुख्यमंत्री ने उस वक्त बड़ी भूमिका निभाई थी एक बार फिर अपना टिकट पाने में सफल रहे..
तो क्या विधानसभा चुनाव में शिवराज फेक्टर निर्णायक भूमिका निभाने वाला है.. इनमें से एक पूर्व नेता प्रतिपक्ष पंडित गोपाल भार्गव ने इस बार गुरु आदेश पर मुख्यमंत्री बनने की संभावनाओं को तलाशना भी शुरू कर दिया है.. जिन्हें भाजपा ने टिकट भी दिया.. टिकट गृहमंत्री और शिवराज कैबिनेट में नंबर दो माने जाने वाले नरोत्तम मिश्रा को भी उनकी दतिया सीट से उम्मीदवार घोषित कर दिया गया है.. नरोत्तम मिश्रा भी सीएम के दावेदार रहे ..वह बात और है कि डिप्टी सीएम का बहुप्रतीक्षित फार्मूला भी सामने नहीं आ सका.. सवाल सांसदों में शामिल तीन केंद्रीय मंत्री प्रहलाद सिंह पटेल फग्गन सिंह कुलस्ते और नरेंद्र सिंह तोमर के अलावा राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय की बड़ी दावेदारी के क्या अब मायने बदल जाएंगे.. शिवराज और दूसरे मुख्यमंत्री के दावेदार मैदान में होने का क्या बीजेपी को फायदा मिलेगा..
या फिर अंदरखाने ही सही महत्वाकांक्षाओं की टकराहट गुटबाजी में तब्दील हो जाएगी..क्योंकि शिवराज हो या सीएम इन वेटिंग के दावेदार मुख्यमंत्री की शपथ तो कोई एक ही लेगा.. भाजपा ने जीत के लिए जो जोखिम मोल लिया या दिग्गजों पर दांव लगा माहौल बनाया यानि सारे सितारे जब जमीन पर.. तब बदलती भाजपा के युवा और नए चेहरों के लिए क्या संभावनाएं खत्म हो रही है.. या फिर जिन वर्तमान मंत्री और विधायकों के टिकट अभी रोक दिए गए हैं उनकी सीट पर कमल खिलाने के लिए नए चेहरे जीत की नई चुनौती के लिए सामने आएंगे..चौथी लिस्ट के बाद अगर भाजपा के विधायक और समर्थन देने वाले अन्य दलों और निर्दलीय विधायकों की बात की जाए तो उनमें अभी सिवनी सीट से दिनेश राय मुनमुन ही टिकट पाने में सफल हुए..जो कांग्रेस में थे लेकिन 2013 में निर्दलीय जीते और भाजपा में शामिल होकर टिकट पा चुके हैं..वहीं बड़वाह वाले सचिन विधायक भी फाइनली भाजपा में शामिल हो गए..उधर सपा से आए राजेश शुक्ला और बसपा से आए संजीव विधायक भी टिकट की दौड़ में बने हैं..सुसनेर से निर्दलीय विधायक राणा विक्रम सिंह ने भी भाजपा को समर्थन दिया..
इस तरह मूल भाजपा के 127 और बाहर से आए 5 विधायकों को मिलाकर भाजपा के कुल 132 विधायक हैं..इनमें से 57 वर्तमान विधायकों को टिकट और दूसरी लिस्ट में तीन विधायकों नारायण त्रिपाठी, केदारनाथ शुक्ल और जालम सिंह पटेल के टिकट काटकर भाजपा ने 60 विधायकों का हिसाब कर दिया..अब बाकी बचे 67 विधायकों के साथ उसे हारी हुई 27 सीटों पर भी प्रत्याशियों को उतारना है..यानि कुल 94 सीटों पर भाजपा को टिकट अभी भी तय करने हैं..जिनमें 9 मंत्रियों की सीटें भी शामिल हैं..हालांकि यशोधरा राजे चुनाव लड़ने से इंकार कर चुकी हैं..तो वहीं कुछ मंत्रियों की सर्वे रिपोर्ट निगेटिव आने से पार्टी ने इन सीटों को होल्ड कर लिया है..इसके अलावा भाजपा कुछ और सीटों पर सांसदों को उतारना चाहती है..लेकिन केन्द्रीय मंत्री वीरेन्द्र कुमार ने जता दिया कि वो चुनाव नहीं लड़ना चाहते..
कुछ ऐसा ही जवाब गुना-शिवपुरी सांसद केपी यादव का है जिन्हें पार्टी मुंगावली या अशोक नगर से उतारकर लोकसभा सीट खाली करवाना चाहती थी..इसी तरह महू से मंत्री उषा ठाकुर की सीट भी इसी पसोपेश में तय नहीं हो पाई क्योंकि वो चुनाव इंदौर-1 से लड़ना चाहती थीं..और अब इंदौर-3, महू या इंदौर 5 में से किसी एक सीट पर उन्हें जाना होगा.फिलहाल मंथन इन्हीं सीटों पर करना है..और इन्हीं सीटों पर भाजपा नये चेहरों को मौका दे सकती है..कुल मिलाकर भाजपा की असली चुनौती यही 94 सीटें है…जहां हो सकता है भाजपा को वर्तमान विधायकों के टिकट काटना पड़े या मंत्रियों को आराम देना पड़े…लेकिन अभी तक की सूचियों से ये लग रहा है कि भाजपा बहुत ज्यादा रिस्क लेने के मूड में नहीं है..लिहाजा सांमजस्य, समन्वय के साथ ही वो टिकट फायनल करना चाहती है ताकि चुनाव के दौरान बगावत और भीतरघात से न जूझना पड़े..