भोपाल। भाजपा का कभी सूत्र वाक्य रहा चाल. चरित्र. चेहरा राजनीतिक दल और उसके नेतृत्व खासतौर से भाजपा के नेताओं की परीक्षा लेता रहा..बदलती भाजपा में बड़ा सवाल चेहरे. वही.. चाल. नई .. तो क्या चुनाव में कसौटी पर उम्मीदवारों की पुण्याई और उनका चरित्र..! या फिर अपने नेता मोदी जी के नाम पर सभी चुनावी नैया पार कर लेंगे.. या फिर क्षेत्र विशेष की जनता अपना हिसाब किताब पूरा करने के लिए इनके लिए पहले ही अपना मानस बन चुकी है..2023 विधानसभा चुनाव के लिए भाजपा और कांग्रेस की मैदानी दावेदारी और उम्मीदवारी पर यदि गौर किया जाए तो भाजपा की चाल.. जरूर बदली.. क्यों कि मध्य प्रदेश जिसका संगठन एक उदाहरण प्रस्तुत करता रहा वहां चुनाव का पूरा कंट्रोल हाई कमान के पास शिफ्ट हो चुका है.. लेकिन चाह कर भी वह पीढ़ी परिवर्तन के दौर के बावजूद अपने उन चेहरों को दरकार नहीं कर पाई.. जिनमे वर्तमान विधायकों के साथ खासतौर से अधिकांश मंत्रियों के खिलाफ 3 साल एंटी इंकमेंसी बड़ी समस्या बन गई थी..
किसी की वजह कंट्रोवर्सी चाहे फिर उपचुनाव में भितरघात का आरोप हो किसी के ऊपर अनियमितता और भ्रष्टाचार के आरोप, संगठन और कार्यकर्ताओं की अनदेखी ही नहीं कोई ऐसा भी इसमें शामिल जिनके चरित्र पर कथित तौर पर भी सवाल उठाए गए.. यही नहीं कई विधानसभा क्षेत्र में नया नेतृत्व ही सामने नहीं आ अब तो परिवारवाद और नेता पुत्रों की राजनीति पर भी नए सवाल खड़े हो गए.. मध्य प्रदेश की 230 विधानसभा सीटों में भाजपा ने गुना विदिशा को छोड़कर सारे उम्मीदवारों का ऐलान कर दिया है.. भाजपा ने पुराने 94 मंत्री विधायक पर फिर विश्वास जताया है .. भाजपा सिर्फ अपने 32 विधायकों का टिकट काट पाई .. 6 सीटों पर विधायकों की जगह उनके परिजनों को टिकट देकर नवाजा गया.. 47 को पहली बार टिकट मिला तो पहले भी चुनाव लड़ घर बैठ चुके चेहरों को नए सिरे से उम्मीदवार बनाया गया.. महिला और ओबीसी आरक्षण की पैरवी करने वाली भाजपा क्राइटेरिया पूरा नहीं कर पाई तो उसके नेता पुत्रों की सख्त लाइन को मंत्री गौरीशंकर बिसेन की पुत्री मौसम बिसेन ने उम्मीदवार बन कर धता बताया.. पूर्व मंत्री रिटायरमेंट ले चुके नागेंद्र सिंह, माया सिंह जयंत मलैया, ही नहीं अर्चना चिटनिस , अंतर सिंह आर्य के साथ 27 वर्तमान मंत्रियों को भाजपा ने जिताऊ उम्मीदवार माना..
पूर्व सांसद चिंतामणि मालवीय के अलावा सीएम इन वेटिंग केंद्रीय मंत्री और सांसद प्रहलाद पटेल, नरेंद्र सिंह तोमर फग्गन सिंह कुलस्तस्ते के अलावा सांसद उदय प्रताप सिंह राकेश सिंह ही नहीं शिवराज सरकार में मंत्री रह चुके भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय भी शामिल है.. संघ ही नहीं भाजपा की शिवराज सरकार और विष्णु दत्त के संगठन संगठन के प्रदेश और राष्ट्रीय नेतृत्व द्वारा कराए गए सर्वे सर्वेक्षण अंतिम सूची सामने आने तक नए चेहरों की दरकार की योजना धरी की धरी रह गई.. दूसरी सूची में शामिल सांसद जिनमें तीन केंद्रीय मंत्री शामिल को जब चुनाव मैदान में उतार कर भाजपा ने जिस धमक का एहसास कराया था.. तब एक नई बहस के साथ माहौल बना था लेकिन उसके बाद.. अंतिम सूची आने तक मामला एडजस्टमेंट और अपनों को नवाजने तक सिमिट कर रह गया.. या यूं कहें कि राष्ट्रीय नेतृत्व ने राजधानी भोपाल से लेकर दूरस्थ अंचलों में जारी विरोध प्रदर्शन और मचे बवाल के बीच अंतिम फैसला प्रदेश नेतृत्व पर छोड़ना ही मुनासिब समझा गया.. विदिशा गुना छोड़कर सामने आई अंतिम सूची के वक्त मुख्यमंत्री प्रदेश अध्यक्ष और चुनाव प्रबंधन की कमान संभालने वाले नेताओं के बीच गजब का समन्वय नजर आया..वह बात और है कि कार्यकर्ताओं और नेताओं का आक्रोश चाह कर भी पार्टी नेतृत्व नहीं रोक पाई.. टिकट वितरण की लगभग प्रक्रिया पूरी होने के साथ डैमेज कंट्रोल एक बड़ी चुनौती..
वह भी तब जब कांग्रेस मुख्यमंत्री के अपने चेहरे कमलनाथ के जवाब में भाजपा को नेतृत्व विहीन ठहरा कर एक बना चुनावी मुद्दा बनाने जा रही है.. नरेंद्र तोमर और प्रहलाद पटेल जैसे सीएम पद के दावेदारों को छोड़ दिया जाए तो अधिकांश दिग्गज नेता अपनी विधानसभा सीट तक सीमित हो कर रह गए.. इनमें से कई के अपने विधानसभा क्षेत्र में कांटे की टक्कर की स्थिति निर्मित हो गई है.. भाजपा के कई दावेदारों ने बसपा ,सपा ,आम आदमी पार्टी और निर्दलीय मैदान में उतरकर चुनाव को उस वक्त रोचक बना दिया जब नामांकन दाखिल करने का सिलसिला शुरू हो चुका है.. जबलपुर से मचे बवाल ने 30 से ज्यादा विधानसभा क्षेत्र में भाजपा की समस्या में इजाफा किया.. मुख्यमंत्री शिवराज और प्रदेश अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा ने संभालने की कोशिश की.. लेकिन चुनाव प्रभारी भूपेंद्र यादव के सीधे हस्तक्षेप के बावजूद समस्या का समाधान अभी तक नहीं निकाला जा सका है.. राष्ट्रीय नेतृत्व की हस्तक्षेप का जो एहसास अमित शाह ने दिलाया था उसके बाद प्रदेश नेतृत्व की भूमिका मानो सीमित होकर रह गई है.. भाजपा संगठन को भरोसा है कि नामांकन दाखिल होने के बाद नाम वापसी तक डैमेज कंट्रोल की चुनौती से वह अच्छी तरह निपट लेगी.. इस बीच खबर आ रही है की मध्य प्रदेश भाजपा की कमान संभालने वाले केंद्रीय मंत्री अमित शाह एक बार फिर मध्य प्रदेश में डेरा जमाने वाले है..
छिंदवाड़ा जबलपुर उज्जैन इंदौर भोपाल रीवा समेत अधिकांश संभागीय मुख्यालयों पर पार्टी के जिम्मेदार नेताओं उम्मीदवारों की बैठक लेकर डैमेज कंट्रोल की कोशिशें को वह अंजाम तक पहुंचाने की कोशिश करेंगे.. फिलहाल नामांकन दाखिल कर रहे उम्मीदवारों के समर्थन में मुख्यमंत्री और प्रदेश अध्यक्ष के दौर शुरू हो चुके हैं.. पर प्रचार की कमान एक बार फिर शिवराज के इर्द-गिर्द ही सीमित थी देखी जा सकती है.. नवरात्रि के मौके पर जनता खासतौर से महिलाओं के बीच अपनी मौजूदगी सुनिश्चित कर शिवराज ने जो माहौल बनाया उसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता.. खासतौर से जब कांग्रेस के घोषित सीएम पद के उम्मीदवार कमलनाथ के रिएक्शन सामने आए तो शिवराज जनता के बीच निकल गए.. भाजपा ने जिस तरह अपने पुराने चेहरों को मैदान में उतारा है.. उसके कारण नीचे तक चुनाव इन चेहरों के विरुद्ध सीमित कर रह गया है.. मोदी का चेहरा कमल के फूल कीरत भाजपा ने भले ही पूरे प्रदेश में रवाना कर दिए.. लेकिन इन पुराने चेहरों की अपने क्षेत्र में लोकप्रियता और उनके खिलाफ आक्रोश एक बड़ा चुनावी मुद्दा बनता जा रहा है.. जो जितना बड़ा चेहरा उससे उतनी ज्यादा उम्मीदें पार्टी ने लगा रखी है.. टिकट वितरण की प्रक्रिया भी यही संदेश दे चुकी है कि भाजपा कोई बड़ा जोखिम मोल लेने का मानस ही नहीं बन पाई.. यह कहना गलत नहीं होगा कि भाजपा के चेहरे जब अधिकांश पुराने मैदान में है.. और जब राष्ट्रीय नेतृत्व ने चुनाव प्रचार की कमान अपने हाथ में ले ली है तो पार्टी संगठन की चाल बदल चुकी है.. ऐसे में मंत्री हो या विधायक उनका चरित्र उनकी लोकप्रियता कसौटी पर है..
पार्टी के अंदर नेतृत्व का संकट किसी नई और बड़ी समस्या से काम नहीं है क्योंकि कांग्रेस और कमलनाथ लगातार सरकार में रहते शिवराज को डैमेज करने का कोई अवसर हाथ से नहीं जाने दे रहे.. भाजपा को अपने स्टार प्रचारकों का इंतजार है.. निश्चित तौर पर मोदी शाह के अलावा नितिन गडकरी, राजनाथ सिंह योगी आदित्यनाथ जैसे नेताओं की सक्रियता चुनाव प्रचार में नजर आएगी.. पर भाजपा के अंदर से मुख्यमंत्री शिवराज, ज्योतिरादित्य सिंधिया, उमा भारती की डिमांड पार्टी तक पहुंच रही है.. जन आशीर्वाद यात्रा के दौरान नजरअंदाज की गई उमा भारती ने बदलते राजनीतिक परिदृश्य में मुख्यमंत्री शिवराज को अपने प्रचार की जरूरत का हवाला देकर भरपूर सहयोग का भरोसा दिया है.. भाजपा की ओर से मुख्यमंत्री के दावेदार के तौर पर बड़ा चेहरा ज्योतिरादित सिंधिया और युवा चेहरा प्रदेश अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा को छोड़कर दूसरे दिग्गज विधानसभा का चुनाव लड़ रहे.. यानी प्रदेश के जिन नेताओं के ऊपर चुनाव प्रचार की बड़ी जिम्मेदारी होगी उसमें सिंधिया विष्णु दत्त और मुख्यमंत्री शिवराज प्रमुख होंगे.. भाजपा ने सोची समझी रणनीति के तहत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे के इर्द-गिर्द प्रचार को केंद्रित रखा है.. पर यह भी सच है कि चुनाव चेहरे के इर्द-गिर्द सिमित रहा है.. लेकिन जातीय समीकरणों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता.. वह भी तब जब भाजपा के कई हिंदुत्व के पुरोधा आम आदमी पार्टी की झाड़ू या साइकिल की सवारी के साथ हाथी के ऊपर बैठ चुके हैं.. देखना दिलचस्प होगा राष्ट्रीय नेतृत्व की दिलचस्पी और हस्तक्षेप के बाद क्या स्थानीय मुद्दों पर राष्ट्रीय मुद्दे भारी साबित होंगे.. राम मंदिर की तारीख के ऐलान के साथ जब दीपावली के बाद मतदान होना है तब हिंदुत्व और सनातनी जैसे मसले क्या बीजेपी को स्थानीय समस्या और चुनाव की दूसरी चुनौतियां से निजात दिला सकते हैं…