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‘अग्नि’: झुलसते सपने ऑन ड्यूटी

movie agniImage Source: ANI

movie agni: राहुल ढोलकिया ने फायर फाइटर्स के जीवन को वास्तविकता के साथ प्रस्तुत करने में सफलता हासिल की है। आग लगने के दृश्यों में वीएफएक्स का उत्कृष्ट उपयोग किया गया है, जो दर्शकों को घटनाओं की गंभीरता का अनुभव कराता है। फ़िल्म की सिनेमैटोग्राफी शहर की भीड़भाड़ और अव्यवस्था को प्रभावी ढंग से कैद करती है, जो कहानी के मूड को बढ़ाती है।

इस बार सिने-सोहबत में एक ऐसी ज़रूरी फ़िल्म, जो देश में लगातार बढ़ते शहरीकरण और कॉन्क्रीट जंगलों के विस्तार के बीच रहने वालों के लिए कई अहम् सवाल खड़ी करती है।

फ़िल्म का नाम है ‘अग्नि’ और इसके लेखक, निर्देशक हैं राहुल ढोलकिया। हिंदी में फायर फाइटर्स को केंद्र में रखकर इतनी दमदार फ़िल्म शायद ही बनी हो।

मुख्य भूमिका में हैं प्रतीक गांधी और दिव्येंदु। इस फ़िल्म के निर्माता हैं फ़रहान अख्तर और रितेश सिधवानी की फिल्म कंपनी एक्सेल एंटरटेनमेंट।(movie agni)

‘अग्नि’ एक लगातार देखी जाने वाली थ्रिलर है, जो अग्निशामकों को उनका हक़ और आत्मसम्मान तो दिलाती ही है, साथ ही सिटी स्पेस में आए उस ट्रेंड को कटघरे में खड़ा करती है, जहा बिल्डर्स रेसिडेंट्स की सुरक्षा को ताक पर रख धड़ल्ले से ऐसे अपार्टमेंट्स बनाते हैं, जहा आए दिन तरह तरह के हादसे होते रहते हैं।

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निर्देशक राहुल ढोलकिया की पटकथा में उन लोगों पर ख़ासा ध्यान दिया गया है जो कर्तव्य निभाते हुए लोगों की जान बचाते हैं या अपनी जान कुर्बान करते हैं।

‘अग्नि’ में निर्देशन और परफॉर्मेंस के अलावा जिस पक्ष ने बहुत ज़्यादा ध्यान खींचा वो है इसके बेहद संवेदनशील संवाद। संवाद लिखे हैं विजय मौर्य ने, जिन्होंने एक्सेल की ही दूसरी फ़िल्म ‘गली बॉय’ में भी अपनी लेखनी का जादू बिखेरा है।

‘अग्नि’ के एक संवाद में फायर फ़ाइटर्स का एक दर्द बखूबी उभरता है जब नायक अपने सहकर्मी से कहता है, “मेडल तो छोड़ अपने को तो मेडिकल भी नसीब नहीं होती”।(movie agni)

एक दूसरे सीन में एक फायर फाइटर किसी स्कूल में बच्चों की फायर ड्रिल के दौरान बताता है कि “फायर ब्रिगेड में सबसे ज़रूरी शब्द है, ‘पागल’ (पानी, गैस और लाइट)। कभी भी घर से बाहर निकलना हो तो सबसे पहले ये तीनों चीज़ें अच्छी तरह से चेक कर लेना कि ये बंद हैं या नहीं”।

यह है कहानी…

फ़िल्म में प्रतीक गांधी ने विट्ठल राव, एक समर्पित फायर फाइटर, की भूमिका निभाई है, जबकि दिव्येंदु शर्मा ने उनके साले समित सावंत, एक तेज़तर्रार पुलिस अधिकारी, का किरदार निभाया है।

इन दोनों कलाकारों ने अपने अपने पात्रों को जीवंत किया है, जो फ़िल्म की कहानी को मज़बूती प्रदान करता है।

कहानी मुंबई शहर में सेट है, जहां विट्ठल राव फायर स्टेशन के प्रमुख हैं। उनका परिवार पत्नी रुक्मिणी (सई ताम्हणकर) और बेटे अम्या से मिलकर बना है।

शहर में अचानक आग लगने की घटनाओं में बढ़ोतरी होती है, जिनकी जांच में विट्ठल और समित दोनों शामिल होते हैं।

विट्ठल का मानना है कि फायर फाइटर्स के ज़रूरी काम को नज़रअंदाज किया जाता है, जबकि पुलिस विभाग सारी वाहवाही लूट ले जाता है।(movie agni)

जांच के दौरान, उन्हें इन घटनाओं के पीछे एक बड़े षड्यंत्र का पता चलता है, जो अवैध निर्माण, खराब शहरी योजना और नागरिकों की लापरवाही से जुड़ा है। कहानी आगे बढ़ते हुए विट्ठल और समित के व्यक्तिगत और पेशेवर संघर्षों को उजागर करती है।

किस पर आधारित है अग्नि (movie agni)

यह फिल्म अग्निशमन कर्मियों की उन भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक प्रभावों से भी संबंधित है जो ऐसे हादसों की आग से जूझ रहे लोगों और उनके परिवारों पर पड़ते हैं।

फ़िल्म में फायर फाइटर्स के समर्पण, उनकी व्यक्तिगत कुर्बानियों और समाज में उनकी उपेक्षित भूमिका को बेहद प्रभावी ढंग से दिखाया गया है।

विट्ठल राव के चरित्र के माध्यम से, दर्शक उनकी इंटरनल और एक्सटरनल, दोनों तरह के संघर्षों को महसूस कर सकते हैं।(movie agni)

कहानी में आग लगने की घटनाओं के पीछे अवैध निर्माण और खराब शहरी योजना को प्रमुख कारण बताया गया है, जो न केवल फायर फाइटर्स के लिए, बल्कि आम नागरिकों के लिए भी खतरा पैदा करता है।

‘अग्नि’ एक रियलिस्ट शोध पर आधारित कहानी में पूरी प्रामाणिकता के साथ उन भावनाओं, कुंठाओं और आशंकाओं की पड़ताल करती है, जो गंभीर रूप से तनावपूर्ण स्थितियों में सामने आती हैं, जिसमें फ़ौरन फ़ैसला करने की ज़रूरत होती है।

अग्निशामकों की बहादुरी भरी कार्रवाइयों के अक्सर दुखद परिणाम कहानी का एक अहम् हिस्सा है। फिल्म यह भी दिखाती है कि कैसे शहर के निवासी अपनी जिम्मेदारियों से अनजान हैं, जिससे आपदाओं की संभावना बढ़ती है।

प्रतीक गांधी फायर फाइटर 

प्रतीक गांधी ने विट्ठल राव के रूप में एक समर्पित फायर फाइटर की भूमिका को बखूबी निभाया है, जो अपने कर्तव्य और परिवार के बीच संतुलन बनाने की कोशिश करता है।

दिव्येंदु शर्मा ने समित सावंत के रूप में एक आत्मविश्वासी पुलिस अधिकारी की भूमिका में प्रभावी प्रदर्शन किया है। दोनों के बीच की केमिस्ट्री और टकराव को पर्दे पर अच्छी तरह से प्रस्तुत किया गया है।(movie agni)

विट्ठल और समित के बीच का तनावपूर्ण संबंध, जो पेशेवर प्रतिस्पर्धा और पारिवारिक संबंधों से जटिल है, कहानी को गहराई प्रदान करता है। फ़िल्म के अन्य कलाकारों में सैयामी खेर और जितेंद्र जोशी सबसे अलग हैं।

इस फ़िल्म का एक महत्वपूर्ण पहलू सुर्वे के बेटे अमर (कबीर शाह) के ईर्द गिर्द भी घूमता है, जो अपने मामा ‘सावंत’ को अपना आदर्श मानता है और अपने ‘अनग्लैमरस’ पिता के कामों के बारे में इंडिफरेंट रहता है। लड़के के लिए उसका उसका पुलिसवाला मशहूर मामा असली हीरो है।

पिता-पुत्र के रिश्ते और समित सावंत और विट्ठल सुर्वे के बीच के ठंडे रिश्तों से परे, यह फिल्म बड़े व्यक्तिगत और सार्वजनिक मुद्दों की पड़ताल करती है, जिनका सामना अग्निशमन कर्मी अपने जीवन और नौकरी के दौरान करते हैं।

जीवन और मृत्यु का खतरा

राहुल ढोलकिया ने फायर फाइटर्स के जीवन को वास्तविकता के साथ प्रस्तुत करने में सफलता हासिल की है। आग लगने के दृश्यों में वीएफएक्स का उत्कृष्ट उपयोग किया गया है, जो दर्शकों को घटनाओं की गंभीरता का अनुभव कराता है।

फ़िल्म की सिनेमैटोग्राफी शहर की भीड़भाड़ और अव्यवस्था को प्रभावी ढंग से कैद करती है, जो कहानी के मूड को बढ़ाती है।(movie agni)

फ़िल्म के बैकग्राउंड स्कोर के साथ साथ इसकी साउंड डिज़ाइनिंग फ़िल्म के दृश्यों की तीव्रता को और बढ़ाता है तो है ही, दर्शकों को भावनात्मक रूप से जोड़ भी लेता है।

राहुल ढोलकिया के संवेदनशील निर्देशन और तकनीकी उत्कृष्टता के साथ, यह फिल्म दर्शकों को बहुत से अहम् मुद्दों पर विचारने को मजबूर करती है। ‘अग्नि’ एक ऐसी दुनिया है, जहां हर दिन जीवन और मृत्यु का खतरा है।

हालांकि कहानी में कुछ स्थानों पर गति धीमी हो सकती है, लेकिन कुल मिलाकर यह एक महत्वपूर्ण विषय पर बनी सार्थक फिल्म है।

यदि आपको समाज के अनदेखे पहलुओं पर बनी एक कसी हुई विचारोत्तेजक फ़िल्म देखने में दिलचस्पी है, तो ‘अग्नि’ आपके लिए है। अमेज़न प्राइम वीडियो पर है। देख लीजिएगा। (पंकज दुबे मशहूर बाइलिंग्वल उपन्यासकार और चर्चित यूट्यूब चैट शो, “स्मॉल टाउन्स बिग स्टोरीज़” के होस्ट हैं।)

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