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भैया- मामा के बाद मोहन दादा की सरकार…

भाजपा

भोपाल। ­मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री चयन और सरकार के कामकाज को लेकर छाई अनिश्चितता डॉ मोहन यादव के मुख्यमंत्री शपथ विधि समारोह के साथ दूर हो गई। सरकार की चाल- चरित्र और मंत्रिपरिषद का चेहरा भी सोमवार की दोपहर बाद धूप ढलते ही कैबिनेट विस्तार के साथ साफ हो जाएगा। इतना तो तय माना जा रहा है कि मोहन दादा की सरकार भैया- मामा वाली भावुकता, लिहाज और उदारता वाली शिवराज सरकार से अलहदा रहने वाली है। प्रशासन में कड़े अनुशासन और कठोर कानून व्यवस्था की छाप दिखाई देगी। राम काज के बाद सरकार कृष्ण कार्य को विस्तार देगी। मालवा विशेषकर धार-उज्जैन इन सब कामों के केंद्र बनेंगे। लोग महसूस भी करेंगे कि शिवराज जी जिस बेकाबू नौकरशाही के लिए कहते थे ‘मैं डंडा लेकर निकला हूं ठीक कर दूंगा, जमीन में गाड़ दूंगा…’ ऐसा मानना चाहिए कि गुडगवर्नेन्स के लिए मामा के वचनों को पूरा करने मोहन दादा शपथ के साथ ही डंडा हाथ मे लेकर आए हैं।

इधर सोमवार को अपराह्न साढ़े तीन करीब बीस मंत्रियों का शपथ समारोह सम्पन्न हो जाएगा। इसके बाद शाम तक मंत्रियों को विभाग वितरित होने का अनुमान है। दो डिप्टी सीएम जगदीश देवड़ा और राजेंद्र शुक्ला और मंत्रियों के साथ सरकार कामकाज के हाइवे पर दौड़ना शुरू कर देगी। शुरुआत में शायद नए नवेले मंत्री अलबत्ता अपने क्षेत्र में स्वागत सत्कार करने जाएं लेकिन उन्हें उसके तुरंत बाद वल्लभ भवन में बैठकर काम का शुरू करना पड़ेगा और उम्मीद के मुताबिक परिणाम भी देने होंगे। शुरुआत में पूरा कंट्रोल दिल्ली से होगा ऐसे में जो टास्क दिया जाएगा उसे समय सीमा के भीतर सरकार को पूरा करके दिल्ली रिपोर्ट देनी पड़ेगी इस तरह ऐसा मान कर ही चला जाए कि अब हर तीन महीने में सरकार और उनके मंत्रियों का रिपोर्ट कार्ड जांच के लिए दिल्ली जाएगा और उसके हिसाब से मार्किंग होगी। मंत्री और अफसर सब के सब कसौटी पर रहने वाले हैं।

सीएम मोहन दादा को जो टास्क दिल्ली से मिलेगा उसे समय सीमा में पूरा करने की चुनौती हमेशा बनी रहेगी। सरकार और प्रशासन हमेशा ही परीक्षा देने की हालत में रहेंगे। एक तरह से यह कारपोरेट सेक्टर में होने वाला वर्क कल्चर होगा। इस कार्य संस्कृति के लाभ भी हैं और शुरू शुरू में इसके तनाव भी झेलने होंगे। खास तौर से शुरुआती दिन मंत्रियों के लिए मजे के कम मुश्किलों भरे ज्यादा होंगे। सरकार के टारगेट को पूरा करने का जिम्मा मुख्य सचिव से लेकर कलेक्टर तक रहने के आसार हैं। इसमें लापरवाही करने वालों की खैर नही होगी।

मुख्यमंत्री के एक्शन से तो साफ संकेत है कि आम जनता को जिन कामो के होने से सीधे राहत महसूस हो वैसे काम सर्वोच्च प्राथमिकता पर होंगे। धार्मिक स्थलों के लाउडस्पीकर हटाने, धर्मिक शहरों की पवित्रता, खुले में मांस और अवैध कसाई खानों पर रोक, अतिक्रमण हटाने, ट्रैफिक व्यवस्था दुरुस्त करने, खुले में घूम रहे गुंडे बदमाशों को जेल में डालने के लिए जमानत रद्द करने की कार्रवाई करने के निर्देश दिए हैं। खतरनाक गुंडों और आतंक से जुड़े तत्वों के खिलाफ उत्तर प्रदेश की तर्ज पर पुलिस के एनकाउंटर भी देखने सुनने को मिल सकते हैं। एमपी में विदेशी आतंकियों और उनके गिरोहों की गतिविधियों के इनपुट भी मिलते रहे हैं। आंतकी गिरोहों के स्लीपर सेल भी भोपाल, इंदौर, उज्जैन, जबलपुर के साथ निमाड़ व चंबल में फैल रहे हैं।इसके लिए प्रदेश में मजबूत खुफिया तंत्र तैयार करना बड़ी चुनौती होगा।

इस सबसे अलग सूबे का जो सियासी सीन है उसमें पीएम नरेंद्र मोदी- गृह मंत्री अमित शाह की धमक ज्यादा महसूस की जा रही है। जिस गोपनीय अंदाज में सीएम का चयन हुआ उस हिसाब से जब तक मंत्रिमंडल विस्तार के बाद महकमें न बंट जाए विधायकों और उनके समर्थकों को धुकधुकी लगी रहेगी। ये भी मोदी-शाह युग में बदलती भाजपा का बदलता निजाम है। इसकी जितने जल्दी आदत पड़ जाएगी भाजपाइयों और खबरियों को उतनी सुविधा रहेगी।

पटवारी ने माना लाडली बहनों ने हराया…
मध्य प्रदेश कांग्रेस के नव नियुक्तअध्यक्ष जीतू पटवारी ने कहा कि कोई कुछ भी कहे कांग्रेस को लाडली बहन योजना की वजह से हार का सामना करना पड़ा है। भाजपा में अलबत्ता लाडली बहन योजना से भारी विजय को लेकर बच रही है लेकिन कांग्रेस इस मामले में मुखर है और वह खुले मन से इस योजना को अपनी पराजय का बड़ा कारण मानती है। कांग्रेस के जिला अध्यक्षों ने भी हार के कारणों में लाडली बहन योजना को बड़ा मुद्दा बना बताया है। पार्टी हाईकमान ने नई टीम के रूप में प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी के साथ अगले दस के लिए लीडरशिप घोषित कर दी है। इसमे आदिवासी नेता उमंग सिंघार को विधानसभा सभा मे नेता प्रतिपक्ष बनाने के साथ ब्राह्मण नेता हेमंत कटारे को सदन में उपनेता प्रतिपक्ष बनाकर जाति व वर्ग के समीकरण भी साधने की कोशिश की है। लेकिन यह सब तब ही सफल होता दिखेगा जब तक वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह और कमलनाथ की सहमति रहेगी। इन युवा त्रिमूर्ति की सफलता के लिए दिग्विजयसिंह के मैदानी समर्थन बेहद जरूरी है। सदन से लेकर सड़क तक तीनो युवा नेताओं की एक गलती पार्टी को भारी पड़ सकती है। इसलिए दिग्विजयसिंह और नाथ का सहयोग सफलता के लिए आवश्यक है।

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