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संघ की पसंद सर्वोपरी, मोदी की कसौटी पर खरे उतरे मोहन.!

भोपाल। सबको चौंकाने वाले फैसले सुनाने वाले प्रधानमंत्री नरेन्द्र भाई मोदी ने इस बार अपने फैसले से पूरे मध्यप्रदेश को चौका दिया है, उन्होंने मध्यप्रदेश की राजनीतिक चुनौतियों से सक्षम मुकाबले के लिए एक ऐसे राजनेता को चुना है, जिसका अभी तक कहीं भी अता-पता नहीं था, ये शख्स है- उज्जैन दक्षिण के विधायक मोहन यादव, जो मध्यप्रदेश के अगले मुख्यमंत्री होगें तथा 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को करिश्माई जीत दिलाने का प्रयास करेगंे।

मोदी की पसंद मोहन यादव 2013 से विधायक है तथा उज्जैन में अगले सिंहस्थ (2028) की तैयारियों में व्यस्त है। अचानक उनका नाम मुख्यमंत्री पद के सामने आने से राज्य की राजधानी में बड़ा धमाका हुआ है, क्योंकि अभी तक जिन महान नेताओं के नाम मुख्यमंत्री पद के लिए चल रहे थे, उनमें मोहन यादव का नाम दूर तक भी नजर नहीं आ रहा था, किंतु अब तक अपने चौंका देने वाले फैसलों के लिए विख्यात नरेन्द्र भाई मोदी ने मध्यप्रदेश को चौंका दिया है, मोहन यादव अब तक न तो मध्यप्रदेश के प्रथम श्रेणी के नेताओं में शामिल रहे और न ही संगठन में किसी पद पर, वे शिवराज की कैबीनेट में उच्च शिक्षामंत्री अवश्य रहे। उनकी राज्यस्तरीय भाजपा में कोई विशेष पहचान भी नहीं रही है फिर भी उन्हें एकदम इतना महत्वपूर्ण सर्वोच्च पद सौंपना और इस वर्ष 2024 के आम चुनावों की चुनौतिपूर्ण जिम्मेदारी सौंपना काफी आश्चर्यजनक प्रतीत होता है। अब तक राज्य के इस सर्वोच्च प्रशासनिक राजनीतिक पद के लिए जिन राजनेताओं के नाम चल रहे थे, उनमें से नरेन्द्र तोमर को ही नई जिम्मेदारी विधानसभाध्यक्ष के रूप में सौंपी गई, शेष अभी अपनी बारी का इंतजार कर रहे है, साथ ही राज्य में चौबीस वर्षों बाद दो उप-मुख्यमंत्रियों के नामों की भी घोषणा की गई है।

वैसे यह तो राजनीति का आम चलन है कि जब कोई बड़ा फैसला लिया जाता है तो कई अटकलें भी लगाई जाती है, वैसा ही अभी इस फैसले को लेकर भी हो रहा है कहा जा रहा है कि चूंकि मध्यप्रदेश में यादव वोट दस फीसदी से ज्यादा है, इसलिए इन वोटर्स को प्रसन्न करने के लिए मोहन यादव का चयन किया गया है, अब जो भी हो, स्व. प्रकाशचंद सेठी के बाद मुख्यमंत्री का ताज महाकाल की नगरी को फिर एक बार समर्पित हो गया, साथ ही मोदी के चमत्कारी फैसलों का एक चौंकाने वाला उदाहरण भी सामने आ गया।

अब जो भी हो यह तो सुनिश्चित है कि मोहन यादव पर मोदी जी ने चुनावी विजय के साथ कई अहम् जिम्मेदारियों का बोझ रख दिया है, अब देखना यही होगा कि वे प्रदेश व पार्टी की वैतरणी पार कैसे लगाते है? और इस राजनीतिक अग्निपरीक्षा में कहां तक खरे उतरते है? साथ ही मोदी का भरोसा भी कहां तक कायम रखते है?
अब जो भी हो, मध्यप्रदेश को मोदी जी और उनकी पसंद पर पूरा भरोसा है, समूचा मध्यप्रदेश मोदी जी व उनकी पसंद का मद्दगार रहा है और आगे भी रहेगा।

‘सर्वोच्च’ फैसला
जम्मू-कश्मीर देश के अन्य राज्यों से अलग नहीं

देश की सर्वोच्च न्यायालय ने आज अपने एक अहम् फैसले में जम्मू-कश्मीर के भाग्य का फैसला सुनाते हुए मोदी सरकार द्वारा चार साल पहले लिए गए फैसले पर अपनी मंजूरी की मोहर लगा दी। पांच अगस्त 2019 को केन्द्र सरकार ने अनुच्छेद-370 हटाकर जम्मू-कश्मीर के विशेष राज्य के दर्जे को खत्म कर दिया था, जिसका जम्मू-कश्मीर की स्थानीय सियासत ने काफी विरोध करके केन्द्र के फैसले के खिलाफ न्यायालय की शरण ली थी, सर्वोच्च न्यायालय ने आज केन्द्र के फैसले को अपनी मंजूरी देते हुए जम्मू-कश्मीर को पृथक राज्य का दर्जा देते हुए तीस सितम्बर 2024 तक वहां चुनाव कराने के निर्देश दिए, सर्वोच्च न्यायालय के इस फैसले से जहां जम्मू-कश्मीर की सियासत में मायूसी छाई है, वहीं मोदी सरकार के हौसले काफी बुलंद हुए है।

एक लम्बे अर्से से यह मामला सर्वोच्च न्यायालय में चल रहा था, जिस पर दोनो पक्षों की कई महीनों की लम्बी जिरह के बाद पिछली पांच सितम्बर को इस पर फैसला सुरक्षित रख लिया था, जिसे आज सुनाया गया आज से करीब पांच दशक पहले देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू और जम्मू-कश्मीर के तत्कालीन नेता व गुलाम मोहम्मद ने जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देकर अनुच्छेद-370 के तहत अनेक विशेष सुविधाएं प्रदान की थी, जो देश के अन्य राज्यों के पास नही थी, तब मोदी सरकार ने पांच अगस्त 2019 को अपने अहम् फैसले में जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद-370 हटाकर इसे अन्य राज्यों के समान दर्जा प्रदान किया था, जिसका जम्मू-कश्मीर के स्थानीय नेताओं ने तीखा विरोध कर सर्वोच्च न्यायालय की शरण ली थी, आज सर्वोच्च न्यायालय अपना अहम् फैसला सुनाकर जम्मू-कश्मीर को अन्य राज्यों के समान दर्जा दे दिया और साथ ही इसे एक राज्य का दर्जा देकर अगले साल 30 सितम्बर तक राज्य विधानसभा के चुनाव कराने के निर्देश दे दिए, साथ ही केन्द्र के पांच अगस्त 2019 के फैसले को पूरी तरह वैध और कानूनी माना।

यद्यपि सुप्रीम कोर्ट के पांच न्यायाधीशों ने इस मसले पर तीन अलग-अलग फैसले सुनाए, किंतु इन तीनों फैसलों के सुर एक ही थे और इस फैसले को दृष्टिगत रखते हुए जम्मू-कश्मीर में सुरक्षा बढ़ा दी गई थी। कुल मिलाकर अब जम्मू-कश्मीर भी अन्य राज्यों की तरह ही केन्द्र के अधीन एक राज्य है, जहां संविधान के तहत् ही पूरा शासकीय कारोबार चलेगा। इस फैसले से जम्मू-कश्मीर की सियासत गरमा गई है, जिसे लेकर केन्द्र सरकार व उप-राज्यपाल काफी सतर्क हो गए है।

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