हम अभी भी यह स्वीकार नहीं कर पा रहे कि संघ और भाजपा देश को तोड़ने की स्थिति तक जा सकते हैं। ऐसा भी नहीं है कि हम संघ परिवार की राजनीति को नहीं जानते है। हमारे भी संघ के कई लोग, भाजपा के नेता नजदीकी दोस्त रहे है। कुछ अभी भी हैं।उनके मन औरकाम से परिचित हैं। मगर अब तो नफरत को बेलगाम बहाने लगे हैं तभी लगने लगा है कि या तो चीजें या हाथ में नहीं रही हैं या ये दिल सेयही मानते हैं कि एक बार जो होना है हो जाए और देश में फिर से मनुवादलागू करेंगे। और अल्पसंख्यकों को पूरी तरह अलग थलग कर देंगे।
क्या इनका यह उद्देश्य संभव हैं? देश के पिछड़े, दलित, आदिवासी क्या अब संविधान में दी गई सामाजिक समानता को भुलाकर फिर उस मनुवाद को स्वीकार करलेंगे जहां आदिवासी के सिर पर पेशाब किया जाता है और ब्राह्मण महासभा केद्वारा पूछा जाता है कि सिर पर पेशाब करना किस कानून में अपराध है? दलितों का दुल्हा बन कर घोड़ी पर चढ़ना तो बर्दाश्त है ही नहीं अभी वहींजिस मध्य प्रदेश के छतरपुर में यह हुआ था वहीं दलित आदमी, औरत और उसकीदुधमुहीं बच्ची को इसलिए मारा गया कि वे मोटर साइकल से एक दबंग सवर्ण केघर से सामने से निकल रहे थे। उनसे कहा गया कि सिर पर जूते चप्पल रखकरनिकला करो।
हाल में मणिपुर पर संसद में केन्द्रीय मंत्री स्मृति ईरानी का रौद रूप दिखलाई दिया। मगर यह पहली बार नहीं था। दलित छात्र रोहितवेमुला की आत्महत्या के समय भी स्मृति ईरानी ऐसे ही विपक्ष के उपर हिंसकशब्दावली और वीभत्स हाव भाव के साथ संसद में दिखलाई दी थीं। सो एक नया ट्रेंड सामने आया है। पीडितों पर और उनके साथ सहानुभूति रखनेवालों पर ही उल्टा हमला करना। नौ साल पहले निर्भया के समय पूरी सरकार,केन्द्र और राज्य दोनों की, सत्तारुढ़ कांग्रेस पार्टी सब पीड़िता और
उसके परिवार के साथ खड़े थे। आज मणिपुर की महिलाओं को दोषी बताने वालीखबरों की बाढ़ आई हुई हैं। आरोपियों को बचाने के लिए जुलूस निकाले जा रहेहैं। मेसेंजर को ही अपराधी घोषित कर दिया। वीडियो बनाने वाले को पकड़लिया।
शेक्सपियर ने कहा था डोंट किल द मैसेंजर! मगर जैसे नाट्य शास्त्र का वहसिद्धांत बदल दिया कि वीभत्स रस का प्रदर्शन न करें। वैसे ही विश्व केसबसे बड़े नाटककार शेक्सपियर की इस बात को भी गलत साबित कर दिया किमैसेंजर ( संदेश वाहक) के मारने से खराब होती स्थिति का संदेश नहीं बदलजाएगा।
सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस चन्द्रचूड़ ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदीपर बहुत तीखा कमेंट किया है कि मणिपुर की घटना की किसी दूसरे राज्य कीघटना से तुलना नहीं की जा सकती। निर्भया के समय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंहने जो संदेश दिया था उसमें किसी को दोषी ठहराने या तुलना करने का सवालही नहीं था। उल्टे अपना बेटियों का पिता होने का हवाला देते हुए पीड़िताऔर उसके परिवार के साथ एकजुटता प्रदर्शित की गई थी।
मगर मणिपुर जैसा शर्मनाक कांड, जहां महिलाओं की नग्न परेड निकली जा रही हो और उस दौरान उनके साथ भयावह घृणित हरकतें की जा रही थी, के बाद भी नफरत औरविभाजन फैलाने वालों ने अपनी राजनीति पर पुनर्विचार की जरूरत नहींसमझी।
तभी दुनिया भर में हमारी थू थू हो रही है। घटना के कारण तो हो ही रहीहै। मगर उससे ज्यादा घटना को जस्टिफाई करने, उसकी तुलना दूसरे राज्यों सेकरने और मणिपुर के मुख्यमंत्री वीरेन सिंह को नहीं हटाने, प्रधानमंत्रीके इस पर संसद में बयान न देने के कारण हो रही है।
भाषणों में तो हम अपनेआप को खुद ही विश्व गुरु घोषित कर देते हैं। मगर व्यवहार से जो पतनशील संस्कृतिहम फैला रहे हैं वह दुनिया में घृणा की नजर से देखी जा रहीहै। महिलाओं के साथ सड़क पर ऐसा घृणित व्यवहार इससे पहले किसी ने नहींदेखा, सुना था। द्रोपदी के तो सिर्फ कपड़ों को हाथ लगाया था, शरीर कोनहीं। मगर उसका जो परिणाम दुर्योधन, दुशासन और भीष्म पितामह से लेकरकर्ण, द्रोणाचार्य सबको भुगतना पड़ा था वह सबको पता है। उसे दोहराने सेकोई फायदा नहीं। जो पढ़ सकते हैं फिर से महाभारत के अठाहरवें सर्ग में पढ़ लें। और वैसे खुद मोदी सरकार ने अभी कोराना के समय महाभारत कापुर्नप्रसारण करके सबको दिखा ही दिया।
मैं यह सब इसलिए लिख रहा हूं कि स्थिति लगातार काबू के बाहर होती जा रही है।मणिपुर में दो महीने पहले वहां गए कांग्रेस के फैक्ट फाइंडिंग दल नेलौटकर प्रेस कान्फ्रेंस में कहा कि वहां गृह युद्ध की स्थिति पैदा हो गईहै। मगर किसी ने नहीं सुना। आज सब मान रहे हैं। मगर इलाज कोई नहीं कररहा। आग मिजोरम और दूसरे पड़ोसी राज्यों तक फैल गई है। मगर सरकार पतानहीं किस को सबक सिखाना चाहती है कि चुप है। डबल इंजन की सरकार! इससे तोबिना इंजन की गाड़ी अच्छी। खड़ी तो रहती है। दो दो इंजन एक साथ जनता कोटक्कर तो नहीं मारते! कुचलते तो नहीं हैं!
इंजन और गाड़ी का जिक्र आया तो अभी सबने ट्रेन में उन कोल्ड ब्लड मर्डरका वीडियो देखा जहां रेल्वे पुलिस का सिपाही वर्दी में अपनी सरकारी रायफललिए हुए अभी हाल मारे हुए आदमी की लाश पर खड़ा होकर राजनीतिक भाषण दे रहा था। चेतन सिंह ने पहले अपने साथ ड्यूटि कर रहे एएसआई टीकाराम मीणा कोनफरती राजनीतिक बहस करते हुए गोली मारी फिर ढूंढ-ढूढ कर तीन मुसलमानोंको। मोदी और योगी दो ही नेता हैं,यह कहकर उसने बता दिया कि उसके दिल-दिमाग में यह सबकहां से आया।
टीवी के न्यूज चैनलों द्वारा दिन रात नफरत और विभाजन के कार्यक्रम दिखानेऔर व्हाटसएप मैसेजों द्वारा उन्हें और जहरीला बनाए का यह सब असर है जो अबकानून और व्यवस्था की जिम्मेदारी संभालने वाली फोर्स में भी पहुंचगया है। मणिपुर में तो पुलिस, प्रशासन, नेता सब जातीय आधार पर बंट गएहैं। अब पूरे देश में भी भयावह सीन घटते दिख रहे है।
हमने इसीलिए शुरू में यह लिखा कि क्या 9 साल से राज कर रही भाजपा को यहइल्म है कि वह देश को कहां ले जा रही है? और भाजपा जैसे कई संगठन चलानेवाली आरएसएस को यह समझ में आ रहा है कि अखंड भारत की बात करते करते उसनेदेश को किस तरह खंड खंड कर दिया।
भाजपा और संघ दोनों याद रखें कि चेतन सिंह ने तीन मुसलमानों को मारने सेपहले हिन्दू टीकाराम मीणा को मारा। मध्य प्रदेश के सीधी में जिस आदिवासीके सिर पर पेशाब किया गया वह भी हिन्दू था। और चलिए इन्हें अगर आप अपनेसामाजिक पैमानों पर निचले दर्जे का मान लेते हैं तो उत्तर प्रदेश मेंगोरक्षकों द्वारा मारा गया पुलिस इन्सपेक्टर सुबोध कुमार सिंह उच्च वर्णका राजपूत था। और जिन महिला पहलवानों के साथ इतना दुराचार हुआ, उन पर हीउल्टे केस बनाए गए। सड़कों पर मारा घसीटा गया वे भी हरियाणा की कृषिजातियों से आती है। उच्च वर्ग में ही मानी जाती हैं।
और अगर सबसे उच्चततमवर्ण ब्राह्मणों को मानते हैं। तो उसके बड़े पद पर आसीन आपकी अपनी पार्टीभाजपा के मध्य प्रदेश अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा सांसद की प्रोफेसर पत्नी डा. स्तुति शर्मा को आपकी अपनी ही पार्टी के नेताओं द्वारा प्रताड़ितकरना, अपमानित करना देख लें। उच्च शिक्षित स्तुति को अपना एक ट्वीट जिसमेंउन्होंने एक मेडिकल स्टोर वाले का सामान्य सा आभार जताया था न केवल डिलिटकरना पड़ा बल्कि ट्विटर भी छोड़ना पड़ा। क्यों? क्योंकि वह मेडिकल वालामुसलमान था। और उसने दवा देते हए यह कह दिया था कि दीदी इस दवा के इफेक्टयह हैं थोड़ा सावधानी रखिएगा।
तो समझ जाइए कि जहर कितना फैला दिया गया है। और जैसा कि राहुल गांधी नेएक साल पहले कहा कि पूरे देश में केरोसिन छिड़क दिया गया है। एक चिंगारी सब कुछ तबाह कर देगी। देश बहुत खतरनाक मोड़ पर आ चुका है। इसे वही बचा सकते हैं, जो इसे इसनफरती अंधी सुरंग के मुहाने तक लाए। राहुल क्या कर सकते हैं? सिवायचेतावनी देने के? जनता को जागरूक करने के? सरकार से मांग करने के?
सरकार उनकी है। नफरत और विभाजन का जहर उन्होंने फैलाया है। बस सवाल हमारायह है कि परिणाम वे पूरी तरह जानते हैं या नहीं? क्या उन्हें लगता है किदेश इसी तरह नफरत से चलता रहेगा? इतनी विविधताओं वाला देश अभी तक प्रेमऔर समन्वय से चला है। और खूब चला है। तरक्की की है। मगर अब यह नफरत का प्रयोग कहां ले जाएगा पता नहीं!