लोगों का जीवन स्तर बेहतर बनाने का लक्ष्य तभी प्राप्त हो सकेगाजब सरकार आर्थिक सुधारों की गाड़ी को तेजी से आगे बढ़ाएगी। बैंकिंग से लेकर पूरी वित्तीय व्यवस्था में कई छोटे बड़े सुधारों की जरुरत है। इन सुधारों या ऐसे कहें कि नियमों को तर्कसंगत बनाने से कामकाज में सुगमता होगी, सरकार के राजस्व में बढ़ोतरी होगी और कारोबारियों व आम लोगों को भी राहत मिलेगी। कुछ जरूरी सुधार करने और नियमों को तर्कसंगत बनाने का सबसे बड़ा लाभ यह होगा कि विवादों में कमी आएगी।
प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी की सरकार का तीसरा कार्यकाल आरंभ हो गया है और खुद प्रधानमंत्री ने कहा है कि यह कार्यकाल ऐतिहासिक होगा। इसमें बड़े और कुछ कठोर निर्णय भी होंगे। ऐसे निर्णय, जिनसे अगले 23 साल में यानी आजादी की सौवीं वर्षगांठ तक भारत को विकसित बनाने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य पूरा होगा और देश के करोड़ों लोगों का जीवन स्तर बेहतर बनाने का लक्ष्य भी प्राप्त किया जा सकेगा। यह तभी होगा, जब सरकार आर्थिक सुधारों की गाड़ी को तेजी से आगे बढ़ाएगी। बैंकिंग से लेकर पूरी वित्तीय व्यवस्था में कई छोटे बड़े सुधारों की जरुरत है। इन सुधारों या ऐसे कहें कि नियमों को तर्कसंगत बनाने से कामकाज में सुगमता होगी, सरकार के राजस्व में बढ़ोतरी होगी और कारोबारियों व आम लोगों को भी राहत मिलेगी। कुछ जरूरी सुधार करने और नियमों को तर्कसंगत बनाने का सबसे बड़ा लाभ यह होगा कि विवादों में कमी आएगी। ध्यान रहे अभी नियमों की जटिलता से उनके अनुपालन में समस्या आती है और उससे कानूनी विवाद बढ़ते हैं। इसका असर सरकार के कामकाज पर भी पड़ता है और न्यायपालिक पर काम का गैरजरूरी दबाव बढ़ता है। बदलावों की शुरुआत छोटी छोटी चीजों से हो सकती है।
बैंकिंग
बैंकिग सेक्टर में सुधारों की चर्चा लंबे अरसे से चल रही है। सरकार को कई नीतिगत सुधार करने हैं। लेकिन अगर आम लोगों के हितों और उनकी सुविधाओं को देखते हुए कुछ छोटे छोटे सुधार कर दिए जाएं तो उससे लोगों को बड़ी राहत मिलेगी, खासतौर से निम्न और मध्य आय वर्ग के लोगों को। जो छोटे बदलाव तत्काल किए जा सकते हैं वो इस प्रकार हैं-
- देश का लगभग हर व्यक्ति बैंकों द्वारा अलग अलग सेवाओं के बदले मनमाने तरीके से कुछ न कुछ शुल्क काटने से त्रस्त और दुखी है। अलग अलग सेवाओं के नाम पर बैंक 25 रुपए, 50 रुपए या सौ रुपए तक खाते से काट लेते हैं। ये पैसे ऐसी सेवाओं के बदले लिए जाते हैं, जो अनिवार्य होते हैं और निश्चित रूप से निःशुल्क होने चाहिए। आम लोग अपने रोजमर्रा की जिंदगी में इतने व्यस्त होते हैं कि वे इसकी शिकायत करने या कानूनी लड़ाई लड़ने के बारे में सोच भी नही सकते हैं। यह बुनियादी रूप से लूट है, जिसे तुरंत बंद करना चाहिए।
- खाता खोलते समय बैंक के कर्मचारी एसएमएस भेजने या डेबिट कार्ड देने आदि के लिए दबाव बना कर शुल्क के भुगतान पर हां लिखवा लेते हैं और उसके बाद हर महीने या तीन महीने पर शुल्क कटता रहता है। इसी तरह बैंक खाते में लेन देन की जानकारी यानी स्टेटमेंट लेने या पासबुक लेने पर भी शुल्क लगता है। चेक बुक लेने पर तो शुल्क लिया ही जाता है।
- केवाईसी यानी नो यूअर कस्टमर का मामला भी आम उपभोक्ताओं के लिए सिरदर्द है। इस बारे में कोई स्पष्ट दिशा निर्देश नहीं है कि कितने समय के अंतराल पर ग्राहकों को कौन कौन से कागजात जमा कराने होंगे। अलग अलग बैंक अलग अलग मापदंड बनाए हुए हैं, जिनसे आम खाताधारकों को कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
- बैंक में खातेदार का चाहे जितना भी रुपया बचत खाते में या चालू खाते में या फिक्स्ड डिपॉजिट योजना में जमा हो, सबका कुल मिला कर सिर्फ पांच लाख रुपए का ही बीमा होता है। अगर बैंक किसी कारण से बंद हो जाता है तो डिपॉजिट इंश्योरेंस एंड क्रेडिट एश्योरेंस गारंटी कॉरपोरेशन यानी डीआईसीजीसी द्वारा सब मिला कर अधिकतम पांच लाख रुपए ही मिलेंगे। यह गलत है। खातेदार को उसकी पूरी रकम की गारंटी होनी चाहिए। इसमें किसी भी तरह की काट छांट नहीं होनी चाहिए। यह सरकार की विश्वसनीयता का सवाल है। यह अच्छी बात है कि श्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने इस रकम को एक लाख से बढ़ा कर पांच लाख किया। लेकिन आज के समय में वित्तीय अनिश्चितताओं के कारण लोग आशंकित रहते हैं। इसलिए सरकार को पूरी रकम की गारंटी देनी चाहिए।
- खाताधारकों की निजता और उसके लेन देन की गोपनीयता के अधिकार को सुरक्षित रखने की जरुरत है। अफसोस की बात है कि बैंक अधिकारी आजकल आयकर अधिकारी भी बन गए हैं। खाताधारक कोई लेन देन कर रहा है या नहीं, इस पर नजर रखना तो ठीक है लेकिन वह कोई लेन देन क्यों कर रहा है इसका जवाब बैंक द्वारा पूछा जाना अनुचित है। इस विषय पर स्पष्ट दिशा निर्देश होना चाहिए।
- ऐसा माना जाने लगा है कि भारतीय रिजर्व बैंक यानी आरबीआई के तहत बैंकिंग ओम्बुड्समैन बैंकों का ही प्रतिनिधि है, और उनसे बैंकों के खिलाफ फैसला लेना असंभव है। इस धारणा को बदलने की जरुरत है।
- केंद्र की श्री नरेंद्र मोदी सरकार ने अनेक बैंकों के विलय का कार्य पूरा कर लिया है। फिर भी कई राष्ट्रीयकृत बैंकों का विलय होना है। इस दिशा में भी कदम उठाने चाहिए ताकि अगले आम चुनाव तक यह कार्य पूरा हो जाए।
आयकर
बजट में आम लोगों की सबसे ज्यादा दिलचस्पी आयकर के प्रावधानों को लेकर रहती है। लोग इसकी जटिल प्रक्रिया से छुटकारा पाना चाहते हैं तो साथ ही आयकर की ऊंची दर से भी राहत चाहते हैं। लोग चाहते हैं कि उन्हें आयकर रिटर्न दाखिल करने में सहूलियत हो और बेवजह उसमें खामी निकाल कर उन्हें परेशान न किया जाए। इस लिहाज से कुछ बदलाव जरूरी दिखते हैं, जो इस प्रकार हैं –
- आयकर छूट को एक बार में बढ़ा कर 12 लाख रुपए सालाना कर दिया जाना चाहिए। इसके ऊपर की सारी आय पर एक 20 फीसदी कर का स्लैब होना चाहिए। साथ ही कैपिटल गेन, लॉन्ग टर्म, शॉर्ट टर्म गेन पर कर के प्रावधान खत्म कर देने चाहिए। हां, वृद्ध, दिव्यांग, गंभीर रूप से बीमार या गौशाला आदि के लिए कर छूट का प्रावधान रखना चाहिए।
- कर से संबंधित विवादों के निपटारे से जुड़े कुछ जरूरी सुधार भी होने चाहिए। जैसे सीआईटी (अपील) एक विभागीय अधिकारी होता है, जो आमतौर पर अपने से नीचे के अधिकारी द्वारा किए गए निर्णय को ही मान लेता है। इसमें बदलाव करने की जरुरत है। अपील का दूसरा मंच इनकम टैक्स अपीलेट ट्रिब्यूनल (आईटीएटी) है, जिसका दायरा बढ़ाने की जरुरत है और साथ ही वहां जिन वरिष्ठ अधिकारियों को नियुक्त किया जाए उनके लिए यह प्रावधान कर दिया जाए कि वे विभाग में नहीं लौटेंगे। यानी रिटायरमेंट तक वहीं काम करेंगे।
- अपील का निपटारा छह महीने के भीतर होना चाहिए।
- निर्णय करने वाला उच्च प्राधिकार ज्यादा प्रभावी होना चाहिए और आम लोगों के लिए उन तक पहुंचना आसान होना चाहिए।
- सेंट्रल सर्किल (असेसमेंट एंड अपील) को अनिवार्य रूप से डायरेक्टर जनरल (इन्वेस्टिगेशन) के नियंत्रण से अलग होना चाहिए। यह हितों का टकराव है। इससे भी ज्यादा हैरानी की बात यह है कि इन्वेस्टिगेशन विंग के कामकाज का कोई ऑडिट नहीं होता है।
- आयकर की टीम सर्च और सर्वे के लिए जाए तो पूरी प्रक्रिया की वीडियोग्राफी होनी चाहिए। अभी उलटा होता है। आयकर की टीम जिसके यहां भी सर्च या सर्वे के लिए जाती है उसके परिसर में लगे सीसीटीवी कैमरा बंद कर दिए जाते हैं और उन्हें जब्त कर लिया जाता है।
- जिस भी व्यक्ति के आय का असेसमेंट हो उसके खिलाफ सबूत प्लांट करने या आंकड़ों से छेड़छाड़ को अपराध बनाया जाना चाहिए।
- सकारात्मकता लाने और अतीत को पीछे छोड़ने के लिए एक ‘सनसेट’ क्लॉज लाने की जरुरत है, जिसमें यह प्रावधान किया जाए कि एक निश्चित अवधि से पहले के मामले किसी हाल में नहीं खोले जाएंगे।
- फाइनेंशियल ईयर और असेसमेंट ईयर का कांसेप्ट बेकार हो चुका है। सिर्फ एक कैलेंडर ईयर होना चाहिए और सारे बैलेंस शीट वगैरह 31 दिसंबर को बंद हो जाने चाहिए।
वस्तु व सेवा कर
जब से वस्तु व सेवा कर यानी जीएसटी लागू हुआ है तब से कारोबारियों को किसी न किसी तरह की परेशानी आती रहती है। उनकी परेशानियों को दूर करने के लिए कुछ जरूरी बदलाव किए जा सकते हैं। जो इस प्रकार हैं –
- वस्तु व सेवा कर यानी जीएसटी का सिंगल रेट 12 फीसदी तय किया जाना चाहिए और सबको इनपुट टैक्स क्रेडिट मिलना चाहिए।
- हर कमिश्नरी में अपीलीय ट्रिब्यूनल स्थापित किया जाना चाहिए।
- अपील का फैसला छह महीने में होना चाहिए।
- निर्णय करने वाला उच्च प्राधिकार ज्यादा प्रभावी होने चाहिए और वहां तक लोगों की पहुंच सुगम होनी चाहिए।
- जीएसटी की टीम सर्च और सर्वे के लिए जाए तो पूरी प्रक्रिया की वीडियोग्राफी होनी चाहिए। अभी उलटा होता है। जीएसटी की टीम जिसके यहां भी सर्च या सर्वे के लिए जाती है उसके परिसर में लगे सीसीटीवी कैमरा बंद कर दिए जाते हैं और उन्हें जब्त कर लिया जाता है।
- जिस भी व्यक्ति के जीएसटी रिटर्न का असेसमेंट हो उसके खिलाफ सबूत प्लांट करने या आंकड़ों से छेड़छाड़ को अपराध बनाया जाना चाहिए।
सामान्य सुझाव
बैंकिंग, आयकर और वस्तु व सेवा कर से इतर कुछ अन्य बदलावों की भी जरुरत है, जो निम्नलिखित हैं-
- आधार, पैन और मतदाता पहचान पत्र को एक साथ मिल कर एक नया नंबर दिया जाना चाहिए, जो हर जगह काम आए।
- बैलेंस शीट के परफॉर्मा में एकरूपता लानी चाहिए और आयकर, जीएसटी, आरओसी, एमसीए आदि के लिए एक ही फाइलिंग पोर्टल होना चाहिए।
- कई जरूरी जानकारी या आंकड़े प्रॉपराइटरशिप, पार्टनरशिप, एसोसिएशन ऑफ पर्सन्स और ट्रस्ट के नाम पर छिपाए जाते हैं क्योंकि कंपनियों के मामले में आम लोगों के देखने और छानबीन के लिए कोई भी ऑनलाइन डाटा उपलब्ध नहीं कराया जाता है।
- एलएलपी और कंपनी के विलय का प्रावधान होना चाहिए। ऐसा पहले होता था, परंतु किसी मामले में माननीय उच्चतम न्यायालय में सुनवाई लंबित है। इस प्रावधान का कानून तुरंत लागू करना चाहिए।
- पुलिस की भाषा देवनागरी लिपि में लिखी उर्दू शब्दावली वाली होती है, जो आम लोगों के लिए दुरूह है और मौजूदा समय में अव्यावहारिक भी है। इसे समझना मुश्किल होता है। इसमें बदलाव होना चाहिए।
सरकार इन सुधारों या बदलावों को सिर्फ तीन साल के लिए यानी 2024 से 2027 तक के लिए प्रायोगिक तौर पर करे तो इससे सकारात्मक बदलाव तुरंत दिखने लगेंगे। सरकार यह फैसला करती है तो तीन कैलेंडर ईयर यानी 2025, 2026 और 2027 में ये सारे बदलाव सिस्टम में एडजस्ट हो जाएंगे। इससे कारोबार सुगमता सुनिश्चित हो जाएगी और साथ ही आम लोगों को राहत मिलने लगेगी। तभी सरकार को इस दिशा में त्वरित गति से सुधार करने की आवश्यकता है। नौ दिन चले अढ़ाई कोस वाली एप्रोच से काम नहीं चलने वाला है। विपक्ष को भी चाहिए की वो सिर्फ राजनीतिक कारणों से आवश्यक और सकारात्मक सुधारों का विरोध न करे। उसे देश की अर्थव्यवस्था के हित में काम करना चाहिए और हर सुझाव पर अड़ंगेबाजी नहीं करनी चाहिए। परंतु क्या सरकारी तंत्र ये जरूरी सुधार होने देगा? यह लाख टके का सवाल है।(लेखक सिक्किम के मुख्यमंत्री प्रेम सिंह तमांग (गोले) के प्रतिनिधि हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)