Mandir Masjid Controversy: बाबरी मस्जिद को ध्वंस करके राम मंदिर के निर्माण के बाद भी भारत के बहुसंख्यकों के एक प्रतिशत भक्त शायद देश में शांति – सौहार्द के इच्छुक नहीं हंै।
इसीलिए अब अजमेर के ख्वाजा की दरगाह हो या सम्भल की सदियों पुरानी मस्जिद हो उसके नीचे देवताओं की मूर्तियों की खोज के लिए सर्वे किए जा रहे हैं।
ताज्जुब है कि सुप्रीम कोर्ट ने भी संसद द्वारा पारित विधि को मंजूर किया है जिसमंे कहा गया है कि आजादी मिलने के समय जिस उपासना स्थल का जो स्वरूप था उसे वैसा ही कानूनी रूप से माना जाएगा.!
हालांकि अयोध्या मंदिर के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने साफ साफ रूप से लिखा था कि इस मामले को अपवाद के रूप में माना जाएगा।
परंतु जिस प्रकार मथुरा – काशी और उत्तर प्रदेश के अन्य स्थानों पर पुरातत्व सर्वेक्षण के नाम पर जिस प्रकार कार्रवाई की जा रही है वह अदालती फैसले का सम्मान तो नहीं हैं।
हाँ उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ का बुलडोजर न्याय और उनका अलपसंख्यकों के प्रति दुराव ही प्रदेश में हो रही इन गैर कानूनी कार्रवाई को हवा दे रहा हैं।
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बांग्लादेश में भी लोकतंत्र और कानून राज(Mandir Masjid Controversy)
एक तरफ अल्पसंख्यकों के उपासना स्थलों को गैर कानूनी बताने की शासकीय कोशिश हो रही है वहीं बांग्ला देश में वहां के अल्पसंख्यकों हिन्दू समुदाय पर बहुसंख्यक मुस्लिम समुदाय की प्रताड़ना का विरोध लगभग एक जैसा ही है।
अर्थात जो जहां बहुमत में है वह अपने से कमजोर को दबा रहा हैं। कहने को तो बांग्ला देश में भी लोकतंत्र और कानून का राज है, जैसा की भारत में, परंतु धार्मिक अतिरेक दोनों ही जगहों पर अत्याचार सा बन गया है।Mandir Masjid Controversy)
उदाहरण के तौर पर उत्तर प्रदेश और राजस्थान में अगर मस्जिदों और दरगाहों को हिन्दू उपासना स्थल पर निर्मित किए जाने का दावा किया जाता है, वहीं बांग्ला देश में इस्कॉन मंदिरों की भूमि को मुस्लिमों से छीने जाने का आरोप लगाया जाता हैं।
अल्पसंख्यकों के प्रति सद्भाव
ऐसा नहीं है कि गैर हिन्दू देश में, खासकर मुस्लिम राष्ट्रों में भी वहां के शासकों ने मंदिर निर्माण के लिए न केवल इजाजत दी वरन अन्य प्रकार से भी मदद दी है।
यूनाइटेड अरब अमीरात, कतार आदि ऐसे ही मुस्लिम राष्ट्र है जहां हिन्दुओं ने मंदिरों का निर्माण किया हैं। अब अगर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पदाधिकारी श्री होसबोले बांग्ला देश में हिन्दुओं पर हो रहे अत्याचार के लिए देश में आवाज उठाने की हांक लगा रहे हैं, तब उन्हें पहले अपने योगी जी से कहना चाहिए कि वे अल्पसंख्यकों के प्रति सद्भाव बनाए।
अन्यथा बांग्ला देश के हिन्दुओं की रक्षा का आरएसएस का आवाहन निरुदेश ही साबित होगा -यानि मीडिया में एक और बयान ! बस उससे ज्यादा कुछ भी नहीं।
सदा भक्तवत्सले मतरभूमि
आरएसएस की कट्टरता का एक उद्धरण झांसी रेलवे स्टेशन के प्लेटफ़ॉर्म पर लगभग 500 से अधिक यात्रियों संघ की प्रार्थना कराई “सदा भक्तवत्सले मतरभूमि” अब यह कोई धार्मिक प्रार्थना नहीं है, लेकिन यह एक ऐसे संगठन का गढ़ है जो अन्य धर्मावलंबियों के प्रति असहिष्णु है।
अब प्लेटफ़ॉर्म में कोच में नमाज अदा करने पर इस संगठन द्वारा आपत्ति जताई गई थी। तब ट्रेनों के कैंसिल होने के कारण प्रतीक्षारत यात्रियों को सीट दिलाने का आश्वासन देकर पंक्तिबद्ध खड़े करवाना और संघ के गान को आयोजित करना, गैर कानूनी नहीं पर उचित तो तनिक भी नहीं है।(Mandir Masjid Controversy)
आरएसएस और उसके आनुसंगिक संगठनों द्वारा धर्म को लेकर जिस प्रकार कट्टरता का भाव सार्वजनिक क्षेत्रों में अभिव्यक्त होता है, वह भारत जैसे बहु धरमी और विभिन्न आस्थाओं वाले देश के लिए उचित नहीं है।
अब हमें आजादी मिले हुए सात दशक हो गए हैं इसलिए लोकतंत्र को बनाए रखने के लिए सभी को भारतवासी बनकर देश के संविधान के प्रति निष्ठावान रहना होगा।
अन्यथा अफ्रीका में अनेक देश है जहां पर जातीय अथवा नस्लीय कारणों वहां सतत लड़ाई हिंसा जारी है। कुछ नेताओ के अहंकार के कारण लाखों लोगों का जीवन वहां नरक बन चुका है।
भूख, बेरोजगारी, बलात्कार और सामूहिक हत्या वहां दिनचर्या बन गई है। येमान सूडान और मलावी आदि देशों में धार्मिक नस्लीय कट्टरता ने आम जनों का जीवन नरक कर दिया हैं।
अगर हमने इसे वक्त रहते नहीं रोका तो भारत भी पाकिस्तान येमान और सूडान बन सकता है।