जस्टिस हेमा कमेटी कहती है कि दस-पंद्रह प्रभावशाली लोग हैं जिनका पूरी मलयालम फ़िल्म इंडस्ट्री पर नियंत्रण है और ये सब पुरुष हैं। वे किसी पर भी प्रतिबंध लगा सकते हैं और जब कोई महिला अपनो शोषण की शिकायत लेकर उनके पास आती है तो वे उसे अनसुना कर देते हैं। जैसा कि हाईकोर्ट ने निर्देश दिया था, रिपोर्ट में इन प्रभावशाली लोगों के नाम नहीं हैं। मगर इसमें दर्जनों बार इस ‘पॉवर ग्रुप’ का ज़िक्र है जिसके किसी सदस्य के खिलाफ कोई बोल नहीं सकता।
परदे से उलझती ज़िंदगी
वह कुल बारह लोगों की एक नाटक मंडली थी। इनमें ग्यारह पुरुष थे और अंजलि अकेली महिला थी। एक सफल मंचन के बाद मंडली के एक सदस्य के दो दोस्त पूरी मंडली को अपने रिसॉर्ट पर पार्टी करने और रात गुज़ारने का न्योता देते हैं। सब लोग वहां पहुंचते हैं, खाते-पीते हैं और फिर सो जाते हैं। अंजलि एक कमरे में खिड़की के बिलकुल करीब एक सोफे पर सो रही थी। आधी रात को खुली खिड़की के बाहर से ही कोई उसे गलत तरीके से छूता है। वह हड़बड़ा कर उठती है और वह व्यक्ति भाग जाता है। अंजलि को इससे ऐसा शॉक लगता है कि वह दूसरों के सोकर उठने से पहले ही रिसॉर्ट से चली जाती है।
मंडली के सभी सदस्य कुछ और काम भी करते हैं। जैसे अंजलि एक आर्किटेक्ट है। बाकी सदस्यों में कोई पूर्व संपादक है, कोई प्लंबर है तो कोई शेफ है। इसलिए इसे आप शौकिया नाटक मंडली भी कह सकते हैं। कुछ दिन बाद अंजलि मंडली के एक सदस्य विनय को, जिसे वह चाहती भी है, अपने साथ घटी घटना बताती है। विनय से धीरे-धीरे सबको पता लग जाता है। सब उत्तेजित हैं। गुस्से में हैं। फिर मीटिंग बैठती है कि क्या किया जाए। उसमें उस व्यक्ति को नहीं बुलाया जाता जिस पर शक है। मीटिंग लंबी चलती है जिसमें अनेक प्रश्न और प्रति-प्रश्न उठते हैं जिनसे मंडली के सदस्यों के बीच के मसले, अनबन, गुटबाज़ी और राजनीति प्रकट होती है। एक के बाद एक ऐसी जानकारियां सामने आती हैं जो कई पात्रों के बारे में आपकी धारणा बदल देती हैं।
यह एक मलयाली फ़िल्म ‘अट्टम’ की कहानी है जिसे कुछ ही दिन पहले पिछले साल की सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म का राष्ट्रीय पुरस्कार मिला है। ‘अट्टम’ मतलब नाटक। अंजलि इस नाटक मंडली में काफ़ी सहज थी और उसमें खुद को सुरक्षित समझती थी। यहां उसने बहुत कुछ सीखा था। सब उसके साथ मित्रवत भी थे। मगर उन्हीं लोगों में से कोई उसके साथ गलत हरकत करता है। वह पुलिस में नहीं जाना चाहती, लेकिन दूसरे कई लोग पूरे जोश में हैं कि जिसने ऐसा किया है उसे मंडली से निकाल बाहर करेंगे। मगर धीरे-धीरे, अलग-अलग कारणों से या किसी लालच वश हर किसी की राय बदलती दिखती है। तब हमें लगता है कि ये पात्र किस कदर जीवंत हैं। हर पात्र का मुखौटा हटता है और वह निर्वस्त्र सा लगता है। उनकी असंवेदनशीलता, उनकी चुप्पी और उनका पाखंड सब सामने आता है। स्त्री-द्वेष और लैंगिक भेदभाव की उनकी मानसिकता भी। यहां तक कि व्यक्तिगत लाभ के लिए वे यौन शोषण के समर्थक बन जाते हैं।
पुलिस में जाने की बजाय अंजलि बस इतना चाहती थी कि यह घटना उसकी स्मृति से पुंछ जाए। मगर यही तो है जो कभी संभव नहीं हो पाता। हमारा समाज ऐसा होने नहीं देता। यह फ़िल्म बताती है कि कैसे किसी महिला के लिए जो स्थान सर्वाधिक दोस्ताना है वहां भी कोई उसे शिकार बनाने की ताक में हो सकता है। यह भी कि जो महिलाएं अपने लिए खड़े होने की हिम्मत करती हैं, अचानक उनके पिछले आचरण, उनके पहनावे और कभी पहले कही गई उनकी बातों पर सवाल उठने लगते हैं। उन सबके नए और मनमाफ़िक अर्थ निकाले जाने लगते हैं।
विडंबना देखिए कि इस फ़िल्म को राष्ट्रीय पुरस्कार मिलने के कुछ ही दिन बाद केरल सरकार की बनाई जस्टिस के. हेमा कमेटी की वह रिपोर्ट सामने आ गई जिसमें इसी मुद्दे पर मलयालम सिनेमा उद्योग की पोल खोली गई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि इस उद्योग में महिलाओं को बड़े पैमाने पर भेदभाव और शोषण का सामना करना पड़ता है। वैसे यह रिपोर्ट साढ़े चार साल पहले मुख्यमंत्री पिनरायी विजयन को सौंपी गई थी। और 233 पेज की जो रिपोर्ट जारी की गई है उसे भी कई जगह हाईकोर्ट के निर्देश के मुताबिक संशोधित किया गया है।
इस मामले की शुरूआत हुई फरवरी 2017 में, जब कोच्चि में एक अभिनेत्री का अपहरण करके चलती कार में उससे जोर-ज़बरदस्ती की गई। इस मामले में अभिनेता दिलीप को भी गिरफ्तार किया गया। उस समय बनी एसआईटी ने कहा कि यह सब दिलीप ने ही करवाया क्योंकि वह इस अभिनेत्री को सबक सिखाना चाहता था। इससे मलयाली सिनेमा में महिलाओं की दुर्दशा का मुद्दा भड़का जिस पर विजयन सरकार ने जुलाई 2017 में हाईकोर्ट की रिटायर्ड जस्टिस के. हेमा की अगुआई में एक जांच कमेटी बना दी।
कमेटी ने मलयाली सिनेमा के अनेक लोगों से बात की। बड़ी संख्या में महिलाओं ने कमेटी को अपनी आपबीती सुनाई। बताया जाता है कि कमेटी ने इनकी रिकॉर्डिंग भी रिपोर्ट के साथ सरकार को सौंपी है। उसने पाया कि यौन उत्पीड़न और शोषण तो यहां आम बात है। महिलाओं को वेतन भी कम मिलता है और उनके लिए टॉयलेट तक की व्यवस्था नहीं होती। इस रिपोर्ट से मलयाली सिनेमा उद्योग में हंगामा मच गया है। मी-टू अभियान की तरह कई मौजूदा और पूर्व अभिनेत्रियों ने कई बड़े फ़िल्मकारों पर सीधे आरोप लगाए हैं। शायद रिपोर्ट जारी होने से पहले राज्य सरकार ने इसकी तैयारी कर ली थी। इसलिए हर मामले में एफआईआर दर्ज की जा रही है और इन सबकी जांच के लिए एसआईटी बना दी गई है।
मलयाली सिनेमा के कई मठाधीशों को अपने पदों से हटना पड़ा है। एएमएमए यानी एसोसिएशन ऑफ मलयालम मूवी आर्टिस्ट्स भंग कर दी गई है और उसके अध्यक्ष मोहनलाल सहित सत्रह सदस्यों ने इस्तीफा दे दिया है। ऐसा इसलिए हुआ कि कई अभिनेत्रियों ने एसोसिएशन के कुछ सदस्यों पर भी आरोप लगाए। जाने-माने अभिनेता सिद्दीकी व बाबूराज और निर्देशक रंजीत के खिलाफ भी केस दर्ज हो गए हैं। ये तीनों इस एसोसिएशन के सदस्य थे। कई अभिनेत्रियां सोशल मीडिया पर वह सब लिख रही हैं जो कभी उनके साथ बीता था। इससे स्थिति और विकट हो गई है।
जिन लोगों पर केस दर्ज हुए हैं उनमें अभिनेता जयसूर्या, मनियनपिल्ला राजू, इदावेला बाबू और एम. मुकेश शामिल हैं। मुकेश अभिनेता के साथ ही सीपीएम के विधायक भी हैं। केरल के सत्तारूढ़ वाम गठबंधन के भीतर भी इस रिपोर्ट से कुछ खटपट पैदा हुई है। वायनाड में कांग्रेस नेता राहुल गांधी के खिलाफ जिन ऐनी राजा ने लोकसभा का चुनाव लड़ा था, उन्होंने मांग की है कि एम. मुकेश को विधानसभा से इस्तीफा देना चाहिए। मगर ऐनी राजा की अपनी पार्टी सीपीआई की प्रदेश कमेटी ने कहा है कि यह उसके स्तर का मुद्दा है और ऐनी को इस पर इसलिए नहीं बोलना चाहिए क्योंकि वे राष्ट्रीय कमेटी में हैं।
जस्टिस हेमा कमेटी कहती है कि दस-पंद्रह प्रभावशाली लोग हैं जिनका पूरी मलयालम फ़िल्म इंडस्ट्री पर नियंत्रण है और ये सब पुरुष हैं। वे किसी पर भी प्रतिबंध लगा सकते हैं और जब कोई महिला अपनो शोषण की शिकायत लेकर उनके पास आती है तो वे उसे अनसुना कर देते हैं। जैसा कि हाईकोर्ट ने निर्देश दिया था, रिपोर्ट में इन प्रभावशाली लोगों के नाम नहीं हैं। मगर इसमें दर्जनों बार इस ‘पॉवर ग्रुप’ का ज़िक्र है जिसके किसी सदस्य के खिलाफ कोई बोल नहीं सकता। इस ‘पॉवर ग्रुप’ का कोई सदस्य किसी से निजी वजहों से भी नाखुश हो तो ग्रुप के सभी सदस्य एक हो जाएंगे और उस व्यक्ति का फिल्मों में काम करना मुश्किल हो जाएगा। इस ‘बैन’ की बात कभी कही नहीं जाती, पर लागू हो जाती है। रिपोर्ट कहती है कि ऐसी स्थितियों में अगर इंटरनल कंप्लेंट्स कमेटी बनाई जाए जो कि कानूनन ज़रूरी है तो वह भी कारगर नहीं होगी। जस्टिस हेमा के अलावा कमेटी में दो सदस्य और थे – केबी वल्सलाकुमारी और टी. शारदा।
अभिनेत्री माला पार्वती थिरुवोथु ने तो इसी वजह से एएमएमए की सदस्यता त्याग दी थी कि उनके कहने के बाद भी यौन उत्पीड़न के मामलों में एसोसिएशन कुछ नहीं करती थी। एसोसिएशन के इस रवैये के विरोध में ही डब्लूसीसी यानी वीमेन इन सिनेमा का गठन हुआ था जिसके दबाव डालने पर विजयन सरकार ने जस्टिस हेमा कमेटी बनाई। वैसे अभी भी कुछ लोग कह रहे हैं कि सरकार को इस रिपोर्ट को जारी करने में चार साल से ज्यादा समय लगा, इससे भी इस ‘पॉवर ग्रुप’ की ताकत का अंदाजा लगाया जा सकता है। और यह भी हो सकता है कि सरकार के पास इसे जारी करने के अलावा कोई रास्ता ही न बचा हो।
पार्वती कहती हैं कि जब उन्हें अनेक सवालों के जवाब देने थे तब एसोसिएशन के सदस्य इस्तीफ़ा देकर भाग रहे हैं। बेहतर होता कि वे सरकार के साथ इस समस्या को सुलझाने को लिए काम करते। पार्वती राज्य सरकार के बरताव को भी ठीक नहीं मानतीं। विजयन सरकार कह रही है कि जिन महिलाओं को शिकायत है वे सामने आएं और एफ़आईआर करवाएं। पार्वती पूछती हैं कि ऐसा करने पर क्या आप जिम्मेदारी लेते हैं कि आप हमें न्याय दिलाएंगे? आप हमसे सामने आने को कह रहे हैं, मगर उसके बाद हमारे करियर और हमारी निजी ज़िंदगी का क्या होगा। क्या किसी को उन मानसिक और भावनात्मक समस्याओं की चिंता है जिनसे हमें गुज़रना पड़ेगा?
मलयाली फिल्मों के सुपरस्टार और केंद्रीय मंत्री सुरेश गोपी से पत्रकारों ने जब सीपीएम विधायक व अभिनेता एम. मुकेश पर हुए केस की बाबत सवाल किए तो उन्होंने भड़क कर पूछा कि ‘क्या अदालत ने मुकेश के बारे में कुछ कहा है? शिकायतें तो सिर्फ़ आरोप हैं। कोर्ट का फैसला आने दीजिए।‘ लेकिन अभिनेता पृथ्वीराज सुकुमारन ने यौन उत्पीड़न की शिकायतों पर जांच नहीं करने के लिए एएमएमए की आलोचना की और उम्मीद जताई कि इस रिपोर्ट के बाद जो अपराध साबित होंगे, उनमें कार्रवाई की जाएगी। वरिष्ठ अभिनेत्री रेवती ने यकीन जताया कि ममुटि और मोहनलाल जैसे बड़े कलाकार यह सब सुन कर हमारी तरह ही सदमे में होंगे। फर्क बस इतना है कि हम बोल रहे हैं और वे चुप हैं। असल में, हर कोई जिसकी निंदा कर रहा है उस एएमएमए से मोहनलाल शुरू से ही जुड़े रहे हैं। वे पिछले छह साल से इसके अध्यक्ष थे। ममूटी और सुरेश गोपी भी इसके सदस्य थे।
सवाल है कि क्या हमारे अन्य भाषाओं के सिनेमा में ऐसा जुलुम नहीं हो रहा होगा? हो सकता है कि हो रहा हो। हिंदी सिनेमा में कई बार ऐसी शिकायतें आई हैं। यह शिकायत तो अक्सर की जाती है कि बाहरी लोगों को घुसने नहीं दिया जाता और कुछ बड़े लोग किसी से नाराज हो जाएं तो उसे काम से महरूम कर देते हैं। बांग्ला सिनेमा की अभिनेत्री रिताभरी चक्रवर्ती ने तो साफ-साफ कहा है कि उनके यहां भी यौन शोषण बहुत है और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को इसकी जांच करानी चाहिए। मगर ममता का पिंड एक अस्पताल की जूनियर डॉक्टर के बलात्कार और हत्या के मामले से छूटे तब तो वे कुछ और सोचें। फिर भी, इतना तय है कि कश्मीर से कन्याकुमारी तक हम सब एक सी बयार में जीते हैं। इसलिए जो यहां है वह वहां नहीं होगा, ऐसा नहीं हो सकता।
‘अट्टम’ में अंजलि का पात्र निभाने वाली ज़रीन शिहाब कहती हैं कि फिल्म उद्योग काम की एक अनौपचारिक सी जगह है जहां कोई नियम-कायदे नहीं हैं। बहुत से लोगों को इसका एडवांटेज मिलता है। आज अचानक वही लोग कह रहे हैं कि यह सब नहीं होना चाहिए। ‘लेकिन’, शिहाब पूछती हैं, ‘क्या आपको मालूम है कि हमें कैसा लगता रहा होगा? जब तक आप उस दमित स्थिति में न हों, आप समझ ही नहीं सकते।‘