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महाराष्ट्र में राजनीति और समाज दोनों भंवर में!

महाराष्ट्र की राजनीति, सामाजिक स्थिति में अभूतपूर्व बदलाव हो रहे है। एक तरफ सत्ता की राजनीति है वही दूसरी तरफ समाज संक्रमण काल में है। ऐसे में पार्टियां, राजनैतिक दल और नेता बिरादरी समय के संकट में सूझबूझ और प्रदेश की चिंता करते हुए नहीं दिखलाई दे रहे है। शायद उनमें इस चुनौती से लड़ने, सुलझाने की क्षमता भी नहीं हैी मनोज जरंगे पाटीलने सरकारको अगले महीनेकी 24 तारीख तक सभी मराठोंको कुनबी प्रमाणपत्र दे कर उन्हें आरक्षण के दायरे में लाने का अल्टीमेटम दिए हुए है।उधर छगन भुजबलने ओबीसी का शक्ति प्रदर्शन करने के लिए घनसावंगी (जालना जिला ) और हिंगोली शहर को चुना है।

महाराष्ट्र मे अन्य पिछड़ी जातियां (ओबीसी) और मराठा के बीच तनाव बढ़ रहा है।वजह आरक्षण है। मराठोंने विशाल मोर्चे निकालके महाराष्ट्र में अपना शक्ति प्रदर्शन किया। अपनीताकत दिखाई और दबाव बना कर आरक्षण की सहमति करवा ली। इससे ओबीसी व अन्य पिछड़ी जातियां सावधान हो गई है।आखिरइनके बीच अगला संघर्ष अब शासन- प्रशासन -सत्ता में मिलनेवाली भागीदारी पर होगा।

ओबीसीके कद्दावर नेता और महाराष्ट्र के मंत्री छगन भुजबल इस सवालपर मराठोंको ललकार रहे है। उन्हें महाराष्ट्र भाजपा के अध्यक्ष चंद्रशेखर बावनकुले समर्थन दे रहे है। कांग्रेस के नेता विजय वडेट्टीवार भी उनका समर्थन कर रहे हैं. ध्यान रहे वडेट्टीवार महाराष्ट्र विधान सभा में विरोधी दल के नेता भी हैं।

सारे मराठा कुनबी है और कुनबी पिछड़ी जाती से आते  है, यह कहते हुए आरक्षण मांगा गया है। इसी आधार पर महाराष्ट्र में आंदोलन हो रहा है।हम मराठोको आरक्षण देने के खिलाफ नहीं लेकिन उन्हें ओबीसी वर्ग में शामिल किया गया तो उसका असर भविष्य में  ओबीसी आरक्षण के कोटे पर होगा, यह  तर्क दिया जा रहा है। पर असलियत में लड़ाई सत्तामे मराठोंको मिलनेवाली भागीदारी पर रोक लगानेके लिए हो रही है।

महाराष्ट्र में मराठोंकी आबादी कोई तीस प्रतिशत से अधिक है लेकिन मराठा आंदोलन के नायक मनोज जरंगे पाटिल यह आबादी पचास प्रतिशत से अधिक बताते है। ऐसे उनके बयान मीडिया में आए है।  तमिलनाडु की लाइन पर महाराष्ट्रमें ओबीसी और मराठा आरक्षण का विस्तार होने से इस जटिल समस्याका समाधान हो सकता है, यह भी कहा जा रहा है। लेकिन राजनैतिक रणनीति इस सबके बिलकुल विपरीत जाती हुई है।

आजादी के बाद महाराष्ट्र के शासन -प्रशासन में बहुत बदलाव हुए है। इसपर मराठोंकी पकड़ रही है। फिलहाल छगन भुजबल मंत्री रहते हुए भी सरकार की नीति और निर्णय के विरोध में खुले आम बोल रहे है।साथ ही कहते है कि मैं मंत्रिमंडलसे क्यों त्यागपत्र दूँ? जो मराठोंको कुनबी श्रेणी में ला कर आरक्षण देने की बात कर रहे है वे अन्ततोगत्वा सत्ता से किनारे हो जायँगे, उनका यह कथन मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के विरोध में जा रहा है।

तकनिकी तौर पर छगन भुजबल अभी राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (अजित पवार) में है लेकिन  अजित पवार उन्हें कंट्रोल कर नही सकते क्योंकि उनका कद बहुत छोटा है। भाजपा-शिवसेना का महाराष्ट्रमें जो विस्तार हुआ है उसका आधार अन्य पिछड़ी जातियां और हिंदुत्व रहा है। भाजपा को मराठोंका पूरा समर्थन भी नहीं चाहिए क्योंकि इसका गलत मैसेज अन्य पिछड़ी जातियों में जाएगा। शायद इसीलिए  भाजपाके नेता और उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस, मनोज जरंगे पाटीलसे दूरी रख रहे है जबकि मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे उनके करीबी हुए दिख रहे है।

मनोज जरंगे पाटीलने सरकारको अगले महीनेकी 24 तारीख तक सभी मराठोंको कुनबी प्रमाणपत्र दे कर उन्हें आरक्षण के दायरे में लाने का अल्टीमेटम दिए हुए है।उधर छगन भुजबलने ओबीसी का शक्ति प्रदर्शन करने के लिए घनसावंगी (जालना जिला ) और हिंगोली शहर को चुना है। ये दोनों जिले महाराष्ट्र के मराठवाड़ा इलाके में आते है। मराठवाड़ा महाराष्ट्र की राजनितिक प्रयोगशाला बन चुकी है। भुजबलका शक्ति प्रदर्शन दिवाली के बाद याने 17 और 19 नवंबर में होगe>

उधर कांग्रेस पार्टी जाति आधारित जनगणना के समर्थन के लिए राष्ट्रीय स्तरपर वायदे कर रही है।बिहार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पिछड़े,अति पिछड़े और अन्य पिछड़े का आरक्षण बढ़ा रहे है तो इस सबमें महाराष्ट्र में धारणा है कि पिछडोंका वक्त आया है मगर मराठा सब गडबड करते हुए है।

महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे ओबीसी और मराठोंको एकसाथ नहीं रख सकते। वे अजित पवार या शरद पवार जैसा सामर्थ्य नहीं रखते है। शरद पवार ने सामाजिक मुद्दोंपर पिछड़े, अति पिछड़े, दलित का सत्तामें रहते हुए साथ दिया।स्थानीय स्वशासनमें (लोकल सेल्फ गवर्नमेंट ) महिलाओं को आरक्षण मिला।अब मराठा आरक्षण से किसको कितना लाभ होगा यह तो आने वाल समय ही  बताएगा।

जिन छगन भुजबल को भाजपा शासनकालमें (जब देवेंद्र फडणवीस  मुख्यमंत्री थे)  जेल जाना पड़ा था उनकी वर्तमान राजनीति भाजपा को मजबूत बना रही है। वे ओबीसी के सवालपर अजित पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस छोड़ सकते है या तोड़ भी सकते है।उधर उद्धव ठाकरे की शिवसेना वैसे तो ओबीसी के पक्षधर है मगर मराठा को ले कर दुविधा में है। मराठा समाज आखिर में किस तरफ  जाएगा यहप्रदेश में अब सबसे बड़ा सवाल है

जो हो, महाराष्ट्र की राजनीति, सामाजिक स्थिति में अभूतपूर्व बदलाव हो रहे है। एक तरफ सत्ता की राजनीति है वही दूसरी तरफ समाज संक्रमण काल में है। ऐसे में पार्टियां, राजनैतिक दल और नेता बिरादरी समय के संकट में सूझबूझ और प्रदेश की चिंता करते हुए नहीं दिखलाई दे रहे है। शायद उनमें इस चुनौती से लड़ने, सुलझाने की क्षमता भी नहीं हैी

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