कांग्रेस, श्री उद्धव ठाकरे और श्री शरद पवार का गठबंधन यानी महा विकास अघाड़ी लोकसभा चुनाव के नतीजों के आधार पर इस उम्मीद में है कि उसकी जीत हो जाएगी। लेकिन लोकसभा चुनाव का नतीजा एक अपवाद था। उसमें भी अगर वोट के आंकड़े देखें तो भाजपा के नेतृत्व वाले गठबंधन यानी महायुति को कांग्रेस गठबंधन के मुकाबले सिर्फ तीन फीसदी कम वोट मिले हैं। यानी वोट का अंतर सिर्फ तीन फीसदी है और उतने पर ही तकनीकी कारणों से सीटों का अंतर दोगुने का हो गया।
प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने हरियाणा के चुनाव प्रचार में कहा था कि हरियाणा कांग्रेस के लिए मध्य प्रदेश साबित होगा। उनकी बात सौ फीसदी सही साबित हुई। जिस तरह से मध्य प्रदेश में कांग्रेस हारी वैसे ही हरियाणा में जीत का पूरा माहौल बनाने और नैरेटिव सेट करने के बावजूद कांग्रेस हार गई क्योंकि वह न तो हरियाणा की 10 साल की डबल इंजन सरकार के प्रति बने प्रो इन्कम्बैंसी को समझ पाई और न कांग्रेस विरोध की अंतर्धारा को समझ पाई। जम्मू कश्मीर में भी नेशनल कॉन्फ्रेंस की जीत हुई है, कांग्रेस तो बुरी तरह से हारी ही है। उसकी सीटें 12 से घट कर छह रह गईं और भाजपा की 25 से बढ़ कर 29 हो गईं। असल में इस वास्तविकता को ज्यादातर राजनीतिक विश्लेषक नजरअंदाज कर रहे हैं कि भाजपा और उसकी सहयोगी पार्टियों की सरकारों के खिलाफ अपवाद के तौर पर ही कहीं एंटी इन्कम्बैंसी यानी सत्ता विरोधी माहौल पैदा हो रहा है। ज्यादातर जगहों पर प्रो इन्कम्बैंसी यानी सत्ता समर्थन की लहर पैदा हो रही है, जिससे एनडीए की सरकारें बार बार सत्ता में वापसी करती हैं।
इस बात को आंकड़ों के आधार पर भी समझा जा सकता है। केंद्र में ही देखिए तो 50 साल के बाद ऐसा हुआ कि कोई सरकार लगातार तीसरी बार जीती। श्री नरेंद्र मोदी ने लगातार तीन बार प्रधानमंत्री बनने के पंडित नेहरू के रिकॉर्ड की बराबरी की। 1977 में कांग्रेस जब पहली बार हार कर सत्ता बाहर हुई तो उसके बाद किसी भी पार्टी की सरकार लगातार तीसरी बार नहीं लौटी। वह रिकॉर्ड श्री नरेंद्र मोदी ने तोड़ा। इसी तरह अनेक राज्यों में देखा जा सकता है। हरियाणा में लगातार तीसरी बार भाजपा की ज्यादा बहुमत और ज्यादा वोट के साथ सरकार बनी। उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, गुजरात, असम, त्रिपुरा, गोवा, मध्य प्रदेश, बिहार, अरुणाचल प्रदेश, सिक्किम, मेघालय, नगालैंड यानी 12 राज्यों में भाजपा और उसकी सहयोगी पार्टियों ने लगातार दो बार या उससे ज्यादा बार सरकार बनाई। इसके मुकाबले कुछ प्रादेशिक पार्टियों की तो सरकारें वापस लौटी हैं लेकिन कांग्रेस ने पिछले 10 साल में किस भी राज्य में लगातार दो बार सरकार नहीं बनाई है। इसका मतलब है कि कांग्रेस की जहां भी सरकार बनती है वहां पांच साल में उसके खिलाफ सत्ता विरोधी माहौल बन जाता है और लोग उसे हरा देते हैं। एक दिलचस्प आंकड़ा यह भी है कि दिल्ली जैसे अपवाद को छोड़ दें तो भाजपा लगातार 10 साल तक किसी भी राज्य में मुख्य विपक्षी पार्टी नहीं रही है। यानी वह जहां एक बार मुख्य विपक्षी पार्टी बनती है वहां वह पांच साल में सत्ता में वापसी करती है। राजस्थान, छत्तीसगढ़ आदि इसकी मिसाल हैं।
इन दोनों आंकड़ों को प्रकट करने का उद्देश्य यह बताना था कि झारखंड में भाजपा पांच साल से मुख्य विपक्षी पार्टी है और इस बार उसके वहां सत्ता में वापसी करने का समय है तो महाराष्ट्र में भाजपा के गठबंधन की सरकार है, जिसके खिलाफ कोई सत्ता विरोधी माहौल नहीं है क्योंकि आमतौर पर एनडीए सरकारों के खिलाफ एंटी इन्कम्बैंसी नहीं होती है। इसलिए वहां भाजपा और उसकी सहयोगी पार्टियां लगातार तीसरी बार सरकार बनाएंगी। यह ध्यान रखने की जरुरत है कि 2019 में भी भाजपा चुनाव नहीं हारी थी। पांच साल तक यानी 2014 से 2019 तक सरकार चलाने के बाद जब भाजपा और शिव सेना गठबंधन चुनाव में गया तब कहा जा रहा था कि एंटी इन्कम्बैंसी है और एनडीए चुनाव हार जाएगा। लेकिन इसका उलटा हुआ। एनडीए को 161 सीटें मिलीं, जिसमें भाजपा ने 105 और शिव सेना ने 56 सीटें जीतीं। दोनों को मिला कर 42 फीसदी से ज्यादा वोट मिले। लेकिन चुनाव के बाद श्री उद्धव ठाकरे ढाई ढाई साल की सत्ता के लिए अड़ गए, जिसकी वजह से गठबंधन टूटा और कांग्रेस, एनसीपी ने जनादेश को धोखा देकर श्री उद्धव ठाकरे के साथ सरकार बनाई। महाराष्ट्र की जनता उस धोखे का भी इस बार बदला लेगी।
कांग्रेस, श्री उद्धव ठाकरे और श्री शरद पवार का गठबंधन यानी महा विकास अघाड़ी लोकसभा चुनाव के नतीजों के आधार पर इस उम्मीद में है कि उसकी जीत हो जाएगी। लेकिन लोकसभा चुनाव का नतीजा एक अपवाद था। उसमें भी अगर वोट के आंकड़े देखें तो भाजपा के नेतृत्व वाले गठबंधन यानी महायुति को कांग्रेस गठबंधन के मुकाबले सिर्फ तीन फीसदी कम वोट मिले हैं। यानी वोट का अंतर सिर्फ तीन फीसदी है और उतने पर ही तकनीकी कारणों से सीटों का अंतर दोगुने का हो गया। अगर आंकड़ों की बात करें तो लोकसभा में भाजपा को सिर्फ नौ सीटें मिलीं, जबकि पिछली बार उसे 23 सीटें मिली थीं। यानी उसकी 14 सीटें कम हो गईं लेकिन उसको वोट का नुकसान सिर्फ 1.66 फीसदी का हुआ था। 2019 में भाजपा को 27.84 फीसदी वोट मिले थे और 2024 में 26.18 फीसदी वोट मिले। ध्यान रहे भाजपा ने पिछले चार चुनावों में 25 से 27 फीसदी का अपना वोट प्रतिशत बचाए रखा है।
जहां तक शिव सेना की बात है तो वह भी महाराष्ट्र के लोगों ने दिखा दिया कि असली शिव सेना श्री एकनाथ शिंदे की है। लोकसभा चुनाव में श्री उद्धव ठाकरे की शिव सेना 21 सीटों पर लड़ कर सिर्फ नौ सीट जीत पाई, जबकि एकनाथ शिंदे की शिव सेना ने 15 सीटें लड़ कर सात पर जीत हासिल की। ठाकरे के मुकाबले शिंदे की शिव सेना का स्ट्राइक रेट बेहतर रहा। शिव सैनिक पूरी तरह से उनके साथ रहे। उद्धव ठाकरे को कांग्रेस और एनसीपी का वोट मिला, जिसमें एक बड़ा हिस्सा उनके मुस्लिम वोट आधार का है। तभी हैरानी नहीं है कि श्री उद्धव ठाकरे और उनकी पार्टी के नेता स्वर्गीय बाला साहेब ठाकरे के हिंदुत्व का रास्ता छोड़ कर मुस्लिम तुष्टिकरण के रास्ते पर चल रहे हैं। जैसा केंद्रीय गृह मंत्री श्री अमित शाह ने कहा कि श्री उद्धव ठाकरे कांग्रेस और एनसीपी की सोहबत में औरंगजेब को अपना नायक बना रहे हैं। सो, तुष्टिकरण की राजनीति चाहे उद्धव ठाकरे करें या शरद पवार करें या कांग्रेस करे उसका कोई फायदा महाराष्ट्र में नहीं होना है। महाराष्ट्र में श्री एकनाथ शिंदे की भाजपा समर्थित सरकार ने ‘माझी लड़की बहिन योजना’ के तहत महिलाओं को डेढ़ हजार रुपया महीना देना शुरू किया है। लाड़ला भाई योजना के तहत युवाओं को छह से 10 हजार रुपए महीना दिए जा रहे हैं। केंद्र सरकार ने आयुष्मान भारत योजना के तहत 70 साल से ज्यादा उम्र के बुजुर्गों को पांच लाख रुपए तक की मुफ्त चिकित्सा की घोषणा की है। किसानों के लिए रबी की फसलों पर एमएसपी में बढ़ोतरी हुई है। एकीकृत पेंशन की योजना आई है। ऐसी तमाम सकारात्मक योजनाओं के दम पर भाजपा और उसकी सहयोगी पार्टियों ने सत्ता के समर्थन की अंतर्धारा पैदा की है।
उधर झारखंड में पांच साल के जेएमएम, कांग्रेस और राजद के भ्रष्ट और परिवारवादी शासन से लोग ऊबे हुए हैं। वहां लोकसभा चुनाव में भाजपा को पिछली बार के मुकाबले तीन सीटों का नुकसान जरूर हुआ लेकिन अगर विधानसभा सीटों के हिसाब से देखें तो वह 50 से ज्यादा सीटों पर जीती थी। यानी लोकसभा चुनाव की तरह भी भाजपा गठबंधन का प्रदर्शन हो तो उसे 50 से ज्यादा सीटें मिलेंगी। झारखंड का विश्लेषण जो लोग भी 2019 के विधानसभा चुनाव के नतीजों के आधार पर कर रहे हैं उनको समझदारी का नया चश्मा लगाने की जरुरत है। 2019 में भी भाजपा हारी नहीं थी। पांच साल के शासन के बाद भी कोई एंटी इन्कम्बैंसी की लहर नहीं थी। उलटे श्री रघुवर दास के नेतृत्व में भाजपा का वोट 2.11 फीसदी बढ़ा था, जबकि जेएमएम के वोट में 1.71 फीसदी की कमी आई थी। इसके बावजूद जेएमएम को ज्यादा सीटें इसलिए मिल गईं क्योंकि भाजपा की गठबंधन की पुरानी सहयोगी आजसू अलग चुनाव लड़ी थी। उसने 53 सीटों पर उम्मीदवार उतार दिए और उसे आठ फीसदी से ज्यादा वोट मिले। इस बार का चुनाव पिछली बार से अलग इसलिए है क्योंकि आठ फीसदी की वोट पूंजी वाली आजसू भाजपा के साथ है और साढ़े पांच फीसदी वोट की पूंजी वाले श्री बाबूलाल मरांडी की भाजपा में वापसी हो गई है। यानी भाजपा के खाते में 13 फीसदी से ज्यादा वोट जुड़ा है। तभी लोकसभा में एनडीए का वोट 47 फीसदी पहुंच गया था।
यह जरूर है कि भाजपा आदिवासी सीटों पर नहीं जीत पाई लेकिन इसका यह कतई मतलब नहीं है कि आदिवासी भाजपा के विरोधी हैं। अगर सबसे बड़े वोट समूह यानी आदिवासी का वोट भाजपा को नहीं मिलता तो उसका वोट प्रतिशत 47 तक कैसे पहुंचता? भाजपा ने झारखंड के सबसे बड़े आदिवासी नेता और विकास पुरुष की छवि वाले श्री बाबूलाल मरांडी को प्रदेश अध्यक्ष बनाया है और दोनों पड़ोसी राज्यों छत्तीसगढ़ व ओडिशा में आदिवासी मुख्यमंत्री बनाया है। यह भी ध्यान रखने की जरुरत है कि झारखंड में आदिवासियों के सामने अस्तित्व का संकट है। बांग्लादेशी घुसपैठ से आदिवासी बहुल झारखंड की जनसंख्या संरचना बदल रही है। आदिवासियों की आबादी कम हो रही है। रोटी, बेटी और माटी का संकट खड़ा हो गया है। इसलिए भी आदिवासी समाज तुष्टिकरण की राजनीति करने वालों से पीछा छुड़ा कर भाजपा का साथ देगा। आदिवासी हों या पिछड़े या सदान या सामान्य जाति के लोग पांच साल के जेएमएम, कांग्रेस और राजद के राज में सबने किसी न किसी तरह की मुश्किल झेली है। सरकार का पूरा कार्यकाल भ्रष्टाचार के आरोपों और लूट पाट वाला रहा है। चुनाव से ठीक पहले राज्य सरकार ने खजाना खोल कर अनेक सेवाएं और वस्तुएं मुफ्त देने का वादा किया है लेकिन इस मामले में भी भाजपा का रिकॉर्ड बाकी पार्टियों से बहुत बेहतर है। (लेखक सिक्किम के मुख्यमंत्री प्रेम सिंह तमांग (गोले) के दिल्ली स्थित विशेष कार्यवाहक अधिकारी) हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)