भोपाल। मध्यप्रदेश के विधानसभा चुनावों में अब बहुत ही कम अर्थात डेढ़ महीने का समय बचा है। प्रदेश में परंपरागत से प्रतिद्वंदी दोनों राजनीतिक दलों भाजपा तथा कांग्रेस ने चुनावी भाग-दौड़ शुरू कर दी है, किंतु इस बार यहां की राजनीतिक सोच कुछ बदली सी नजर आ रही है, उसका मुख्य कारण मध्य प्रदेश की आर्थिक सेहत है, यहां पिछले साढे सोलह सालों से भाजपा सत्तारूढ़ है और शिवराज सिंह चौहान मुख्यमंत्री है, राजनीतिक सोच में बदलाव का मुख्य कारण प्रदेश की आर्थिक सेहत है और इस सेहत को लेकर कांग्रेस की चिंता यह है कि यदि वह सत्तारूढ़ हो भी गई तो प्रदेश को भारी कर्ज से मुक्त कैसे करेगी और अपनी जनहितकरी प्रस्तावित योजनाएं लागू कैसे करेगी।
प्रदेश सरकार पर आज की तारीख में सात लाख अठत्तर हजार आठ सौ सैंतालीस (778847) करोड़ रुपए का कर्ज है, यह किसी राज्य तो क्या देश के भी सामान्य बजट राशि से अधिक है, विस्तृत विवरण के अनुसार प्रदेश सरकार पर 200817.97 करोड़ का बाजार का कर्ज है, इसके अलावा 6624 करोड़ बॉन्ड का, 14620 वित्तीय संस्थाओं का, 52617 केंद्र सरकार से कर्ज में अग्रिम राशि तथा 18472 करोड़ अन्य देनदारियां हंै, इसके अलावा राष्ट्रीय बचत कोष को विशेष सुरक्षा 38498 करोड़ की जारी की गई, इस प्रकार प्रदेश पर आज कुल मिलाकर 778847 करोड़ का कर्ज बाकी है, अब ऐसे में कांग्रेस यह सोच नहीं पा रही है कि यदि विधानसभा चुनाव में विजयी होकर सत्ता प्राप्त कर भी ली तो वह इस कर्ज का निपटारा कैसे करेगी। यह अहम सवाल इन दिनों कांग्रेस के राजनीतिक गलियारों में गूंज रहा है, इसलिए कांग्रेस का एक वर्ग यह चाहता है कि प्रदेश की जनता पर भारी टैक्स लादकर कर्ज का बोझ काम करके बदनाम होने की अपेक्षा फिलहाल प्रतिपक्ष में ही रहना ठीक है और कांग्रेस का यह वर्ग विशेष चाहता है कि अगले 5 साल और शिवराज के माध्यम से भाजपा ही सत्ता में रहे और वे ही कर्ज का निपटारा करें।
इधर शिवराज जी की सोच यह बताई जा रही है कि केंद्र में मोदी जी के प्रधानमंत्री रहते वह येन-केन-प्रकारेण उनके सहयोग से प्रदेश की कर्ज मुक्ति की राह खोजें और विधानसभा चुनावों के पहले आर्थिक दृष्टि से पाक साफ होकर प्रदेश के मतदाताओं के सामने जाए। आजकल प्रदेश का राजनीतिक क्षेत्रों में यही चर्चा का मुख्य विषय है।
यहां यह भी बताना जरूरी है कि चुनाव की चिंता में डूबी भाजपा सरकार ने इसी महीने पहले 1000 फिर 500 करोड़ का कर्ज हासिल किया है। अब चुनाव से पहले फिर 2000 करोड़ का कर्ज लेने की तैयारी है, अर्थात महज 4 दिन के अंतराल में प्रदेश सरकार की दोबारा कर्ज उठाने की तैयारी चल रही है। यह कर्ज चालू वित्तीय वर्ष के लगभग 6 महीनों में पांचवा कर्ज होगा। पिछले वित्तीय वर्ष की समाप्ति तक सरकार कर्ज लेने में तल्लीन रही। शुरुआत 30 मई से हुई थी, 15वीं विधानसभा में इस सरकार का यह आखिरी कार्यकाल है, इसलिए सरकार कर्ज बढ़ाने में हिचक भी नहीं रही है। बेख़ौफ़ कर्ज बढ़ाई जा रही है। ऐसे में भाजपा का भी एक वर्ग कांग्रेस की तरह सत्ता से मुक्ति चाहता है और अगले साल प्रतिपक्ष की ओर से सत्तारूढ़ कांग्रेस से कर्ज मुक्ति का हिसाब मांगने की तैयारी कर रहा है। अर्थात सत्तारूढ़ भाजपा तथा प्रतिपक्षी कांग्रेस दोनों ही प्रमुख दलों के एक वर्ग विशेष की प्रदेश की आर्थिक सेहत की बदहाली को लेकर एक जैसी सोच है। दोनों ही वर्गों का आर्थिक बोझ के कारण सत्ता से मोह भंग हो रहा है और दोनों दलों के आलाकमान भी इसी सोच को लेकर परेशान हैं। यदि प्रतिपक्षी कांग्रेस को सत्ता मिलती है तो भी वह परेशान और भाजपा की सत्ता कायम रहती है तो वह भी परेशान।