भोपाल। कल तक सफाई में नम्बर वन रहने वाला मध्यप्रदेश इन दिनों पूरा मध्यप्रदेश मौसमी बीमारियों की चपेट में है। पहले हफ्ते भर में ठीक होने वाली सर्दी खांसी, जुकाम और फिर बुखार विदा लेने में अब 15 दिन से लेकर महीना भर तक का समय ले रहा है। जिस स्वच्छता अभियान की दम पर कोरोना से मुकाबला किया था अब उसी अभियान के फिसड्डी होने पर बीमारियों ने हमला कर रखा है। इस बीच थोड़ी अच्छी खबर यह है कि सीएम डॉ मोहन यादव डेढ़ लाख झुग्गियों वाले भोपाल को तीन महीने में झुग्गी मुक्त करने का अभियान चलाने वाले हैं। यदि इसमें वे कामयाब होते हैं तो तत्कालीन मुख्यमंत्री सुंदरलाल पटवा के बाद वे दूसरे मुख्यमंत्री होंगे। पटवा जी के कार्यकाल में नगरीय प्रशासन मंत्री बाबूलाल गौर हुआ करते थे जो बाद में बुलडोजर लाल गौर के नाम से जाने गए।
यादव सरकार में नगरीय विकास महकमे का जिम्मा कैलाश विजयवर्गीय संभाले हुए हैं। लेकिन पहले का जमाना ओर था तब पटवा जी जैसे चुस्त चालाक, चतुर सुजान मुख्यमंत्री अपने से ज्यादा प्रसिद्धि पा रहे अपने मंत्री बाबूलाल गौर से ईर्ष्या द्वेष रखने के बजाए उन्हें सहन कर जाते थे। कुल मिलाकर एकदूसरे को निभाने की परंपरा थी। सियासत में इसी तहजीब और तासीर के चलते नेता बड़े दिल के हुआ करते थे। खैर, अब ऐसे नेता होना और इस तरह की बातों का जिक्र करना भी गुनाह समझा जाए तो हैरत न मानिए। नेताओं की एक जमात सम्भावनाओं से भरे नेताओं को बीमारियों का वायरस-बेक्टेरिया की भांति समाप्त करने में जुट जाती है फिर भले ही इधर डेंगू, चिकनगुनिया, मलेरिया व वाइरल फीवर आधी आबादी को अपनी चपेट में ले ले। अभी तो हो भी यही रहा है। ग्राम पंचायत से लेकर नगर पालिका, नगर निगमों तक के बुरे हाल हैं। स्थानीय निकायों में फॉगिंग मशीनो, केमिकल्स की कमी,बजट व संसाधनों का अभाव, मेन पावर की तंगी के चलते स्वच्छता अभियान ठप्प सा पड़ा हुआ है।
बहरहाल, पिछले दिनों सीएम यादव भोपाल में आयोजित पटवा जन्मशती कार्यक्रम में शरीक हुए थे लगता है उन्ही से प्रेरणा लेकर वे झुग्गी मुक्त मिशन पर काम करते दिखाई दे रहे हैं। कोरोना काल के पहले से लेकर उसके बाद तक पीएम नरेंद्र मोदी के स्वच्छता अभियान ने देश भर में आम से लेकर खास लोगों के बीमारी के खर्च को काफी कम कर दिया था। सड़कों से लेकर नाले नालियों और सीवेज सिस्टम की गंदगी काफी काबू में आ गई थी । स्वच्छता अभियान ने शहरों से लेकर गांव देहात और झुग्गी बस्तियों को साफ सुथरा कर दिया था।
प्रदेश में जहां तक झुग्गियों की बात है उनके तूफान की गति से फैलाव शुरू हुआ था तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह जी के 1980-85 के कार्यकाल में। इसके जरिए वे सियासत में सबसे संवेदनशील नेता व गरीबों के मसीहा के रूप में लोगों के दिल दिमाग छाए रहे। मगर इससे राजधानी भोपाल समेत सूबे के तमाम छोटे बड़े शहर और ग्राम पंचायतें तक मे झुग्गियों की भरमार हो गई। लाख कोशिशों के बावजूद राज्य झुग्गियों से मुक्त नही हो पा रहा है। एक अनुमान के मुताबिक प्रदेश भर में दस लाख से भी अधिक झुग्गियां हो सकती है। झुग्गी बस्तियों का गन्दगी और बीमारियों से चोली दामन का रिश्ता बन गया है। इसके चलते मलेरिया, डेंगू और मौसमी बुखार साल दर साल विकराल रूप अख्तियार करता जा रहे हैं। इस साल ही यह आंकड़ा कई जगह 300 गुना बढ़ा हुआ दर्ज किया गया।
कोरोना काल के बाद इस बरस बुखार उतरने की मियाद हफ्ते भर को भी पार कर गई है। बुखार के साथ खांसी और मरीज को जबरदस्त कमजोरी महसूस हो रही है। आमतौर से बुखार के बाद कमजोरी एक एक महीने तक मरीज को अपनी गिरफ्त में लिए हुए है। मरीजों में विटामिन डी और कैल्शियम की कमी के साथ विटामिन बी 1,2,6 और बी12 की कमी ने शरीर को तोड़ सा दिया है। पूरे मामले में सबसे ज्यादा चिंता की बात यह है कि सरकारी अमला आम जनता की इन तकलीफों से बेफिक्र सा है। सफाई के विशेष अभियान बंद पड़े हैं । मोहल्ले मोहल्ले हेल्थ केम्प नदारद हैं। नगरीय प्रशासन व मेडिकल हेल्थ महकमें की सुस्ती ने संकट को और भी बढ़ा दिया है। घर घर पंहुची बीमारियों ने जीना दूभर कर रखा है। जिम्मेदारों की नींद खोलने के लिए सीएम डॉ मोहन यादव के दिशा निर्देश की प्रतीक्षा की जा रही है। अभी तो धंधा बनी झुग्गियों की कतारों के बीच गंदगी के अंबार और बीमारियों की भरमार है…