भोपाल। अगले महीने देश के जिन पांच राज्यों में विधानसभा के चुनाव होना है, उन राज्यों को भारतीय जनता पार्टी तथा कांग्रेस दोनों ही राजनीतिक दलों ने 200 दिन बाद होने वाले लोकसभा चुनावों का ‘सेमीफाइनल’ मान लिया है, भारतीय जनता पार्टी जहां इन पांच राज्यों में से केवल दो राज्यों पर सत्तारूढ़ है, वहीं कांग्रेस राजस्थान तथा छत्तीसगढ़ में शासनारूढ़ है, कांग्रेस जहां चुनाव वाले सभी पांच राज्यों पर कब्जा करने की जुगत में है, वहीं भाजपा अपनी सरकारें बचाए रखने की जुगत में है, इन राज्यों में से मध्य प्रदेश को दोनों ही प्रमुख दलों ने अहम माना है, इसलिए भाजपा मतदाताओं को नित नई विधाओं से प्रभावित करने में जुट गई है और उसने अपने भावी मुख्यमंत्रियों की फौज को टिकटें देकर मैदान में उतार दिया है, वहीं कांग्रेस राज्य के डेढ़ दशक से अधिक के भाजपा शासन काल के मुद्दे एकत्र कर अपना अभियान शुरू करने जा रही है, जिसकी कमान प्रदेशाध्यक्ष कमलनाथ ने ही संभाल रखी है।
अब यदि भाजपा व कांग्रेस की चुनाव प्रचार को मूल्यांकन की दृष्टि से देखा जाए तो थोड़ी जल्दबाजी होगी, वैसे इस दृष्टि से प्रदेश पर पिछले साढ़े 16 सालों से राज कर रही भाजपा कांग्रेस के मुकाबले ज्यादा गंभीर नजर आ रही है, उसने अपने उम्मीदवारों की दूसरी सूची में जहां तीन मौजूदा केंद्रीय मंत्री, पांच सांसदों और एक राष्ट्रीय महासचिव को टिकट देने की घोषणा कर दी है, जो भावी मुख्यमंत्री पद के प्रबल दावेदार हो सकते हैं, वहीं कांग्रेस ने अभी तक अपनी पहली सूची भी तैयार नहीं की है, यद्यपि विधानसभा की टिकट प्राप्त भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव जी चुनावी मैदान में उतरने के बिल्कुल भी उत्सुक नहीं है, उन्होंने तो विमान से पार्टी के चुनाव प्रचार के सपने संजो कर रखे थे, जिसे उन्होंने स्वयं इजहार भी किया लेकिन केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर को विधानसभा की टिकट देकर भाजपा ने अपने भावी मुख्यमंत्री के नाम की घोषणा जरूर कर दी है, इसी तरह केंद्रीय मंत्री प्रहलाद सिंह पटेल को भी विधानसभा की टिकट दी गई है, जबकि राज्यों में पिछले डेढ़ दशक से भी अधिक समय से मुख्यमंत्री की कुर्सी को सुशोभित करने वाले शिवराज सिंह जी को अभी तक यह भी नहीं बताया गया कि वह विधानसभा में पार्टी प्रत्याशी भी होंगे या नहीं? या उन्हें संगठन का काम सौंपा जाएगा, इसीलिए शिवराज इन दिनों कुछ अनमने से हैं और कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष कमलनाथ ने उन्हें कांग्रेस में आ जाने का निमंत्रण भी दे दिया है।
अर्थात, कुल मिलाकर मध्य प्रदेश में सत्तारूढ़ भाजपा की स्थिति अजीब हो गई है, चुनाव लड़ने से इनकार करने वालों को प्रत्याशी बनाया जा रहा है और चुनाव जीतकर सुनहरे भविष्य का सपना देखने वालों को टिकट देने तक के संकेत नहीं मिल पा रहे हैं। ….और अपनी सरकार के सपने संजोने वाली कांग्रेस के कार्यकर्ताओं में तो पार्टी की निष्क्रियता को लेकर रोष की स्थिति निर्मित हो रही है, बताया जा रहा है कि अक्टूबर के अंत में होने वाले चुनावों के लिए अक्टूबर के प्रथम सप्ताह में आचार संहिता लागू होने के बाद ही कांग्रेस अपनी पहली प्रत्याशी सूची जारी करेगी, अभी तो असरदार प्रत्याशियों की तलाश ही जा रही है, वैसे कांग्रेस आलाकमान भी मध्य प्रदेश के प्रति फिक्रमंद नजर नहीं आ रहा है, संभव है प्रियंका गांधी को मध्य प्रदेश में प्रचार की बागडोर सौंप दी जाए, जो भी हो फिलहाल तो कांग्रेस चुनाव वह अपने भविष्य के प्रति कुछ उदासीन हीं नजर आ रही है, जबकि भाजपा इसके ठीक विपरीत काफी सक्रियता से अपने चुनाव प्रचार में जुड़ गई है, भाजपा की एकमात्र आस प्रधानमंत्री नरेंद्र भाई मोदी दो बार तो पिछले दिनों मध्य प्रदेश आ चुके हैं और प्रचार की शुरुआत कर चुके हैं, अब पार्टी ने उन्हीं को अपनी मध्य प्रदेश की पतवार सौंप दी है, जबकि कांग्रेस की ओर से प्रियंका जी काफी सक्रिय हो गई, वे भी दौरें कर रही हैं।
इस प्रकार कुल मिलाकर देश में विधानसभा चुनावों के इस दौर में मध्य प्रदेश सभी के लिए ‘महत्वपूर्ण व प्रतिष्ठापूर्ण’ बन चुका है और देश की राजनीति यही केंद्रीत होती नजर आने लगी है, अब देखना यह दिलचस्प होगा कि इन पांच राज्यों में किसका ‘ऊंट’ किस करवट बैठता है? क्योंकि यह सुनिश्चित है कि यह चुनाव परिणाम देश की भावी राजनीति के संकेत अवश्य सिद्ध होंगे।