भोपाल। मध्य प्रदेश में भाजपा कांग्रेस के दावों पर यकीन किया जाए तो सरकार वही बनाएंगे.. यानी सरकार में रहते भाजपा की सत्ता में वापसी का दावा तो 15 महीने की सरकार चला चुके नाथ कांग्रेस का मध्य प्रदेश की जनता से वादा नहीं गारंटी सरकार में वो लौट रही हैं.. कांग्रेस में मुख्यमंत्री का चेहरा कमलनाथ तो भाजपा के कई सीएम इन वेटिंग होने के बावजूद चुनाव में सामूहिक नेतृत्व.. इसलिए प्रदेश नेतृत्व सत्ता और संगठन दोनों अपना फैसला हाई कमान पर छोड़ चुके है.. मिशन 2023 में दोनों पार्टियों के राष्ट्रीय नेतृत्व के दखल और शीर्ष नेतृत्व की पैनी नजर से इनकार नहीं किया जा सकता.. बहुमत के अभाव और अतिरिक्त समर्थन के बावजूद यदि जरूरी आंकड़े तक दोनों दल नहीं पहुंचते हैं तो फिर यहीं पर सवाल हाइपोथेटिकल लेकिन भविष्य की राजनीति को लेकर इसे नजरअंदाज भी नहीं किया जा सकता.. 2024 लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा और कांग्रेस के मुख्यमंत्री ही नहीं उसके प्रदेश अध्यक्ष के साथ विपरीत परिस्थितियों में नेता प्रतिपक्ष के दावेदारों से इनकार नहीं किया जा सकता..
कांग्रेस हो या बीजेपी दोनों के लिए पार्टी नेतृत्व का बड़ा मिशन 2024 बड़ी चुनौती और इसी बड़े लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए विधानसभा चुनाव 2023 की जमावट की गई है.. कांग्रेस और भाजपा ने कई समझौते किए तो दिल्ली का बढ़ता हुआ दखल साफ देखा जा सकता है.. मध्य प्रदेश में कमलनाथ के इर्द-गिर्द कांग्रेस लेकिन राहुल प्रियंका के नए तेवर और नई सोच को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता.. उधर भाजपा में मोदी शाही की जोड़ी ने कमांडिंग पोजीशन पर प्रदेश के कई दिग्गज नेताओं को सिर्फ अपनी जीत नहीं बल्कि और दूसरी सीट जीतने की जिम्मेदारी देकर आपसी प्रतिस्पर्धा में लाकर खड़ा कर दिया.. चुनाव प्रचार में शिवराज और उनकी लाडली बहना फैक्टर को राष्ट्रीय नेतृत्व और छत्रप कोई नजरअंदाज नहीं कर पा रहा.. फिर भी बदलता भाजपा में नए नेतृत्व और उसकी प्राथमिकता में ओबीसी के प्रति न्याय एक नई चुनौती बनकर सामने है.. कांग्रेस हो या बीजेपी पिछड़े वर्ग की राजनीति के दम पर सरकार हासिल करना चाहती है तो सवाल यही पर खड़ा होता है यदि सत्ता की दौड़ से जो भी दूर रहेगा तो क्या वह नेता प्रतिपक्ष के लिए या जरूरत पड़ने पर प्रदेश अध्यक्ष के लिए पिछड़े वर्ग की गारंटी लेकर सामने आएगा.. जातीय समीकरण पर छिड़ी इस सियासी जंग के बीच क्या लोकसभा चुनाव 2024 में भी ओबीसी वर्ग के नेतृत्व को राजनीतिक दल चाह कर भी नजरअंदाज कर पाएंगे.. फिलहाल कांग्रेस और भाजपा ने अधिकांश पुराने विधायकों पर दाव लगाया है तो सवाल लोकसभा चुनाव में भी क्या प्रेशर पॉलिटिक्स के चलते इसी लाइन पर दोनों दल आगे बढ़ाने को मजबूर होंगे..
कांग्रेस में मुख्यमंत्री कमलनाथ.. हारे तो कौन बनेगा नेता प्रतिपक्ष
कांग्रेस में पूर्व मुक्यमंत्री कमलनाथ वर्तमान में प्रदेश अध्यक्ष जो मुख्यमंत्री का घोषित चेहरा जिन्होंने नेता प्रतिपक्ष की कुर्सी बहुत पहले छोड़कर पार्टी के सारे सूत्र अपने हाथों में रखें.. यदि कमलनाथ मुख्यमंत्री की कुर्सी से दूर रहते हैं तो क्या फिर नेता प्रतिपक्ष ही नहीं प्रदेश कांग्रेस के नए अध्यक्ष की एक साथ तलाश शुरू हो जाएगी .. कमलनाथ एक बार फिर मुख्यमंत्री बनने के बाद संगठन की कमान जरूर 2024 लोकसभा तक अपने पास रखना चाहेंगे.. लेकिन यदि मुख्यमंत्री की शपथ नहीं ले पाए तो फिर राहुल गांधी के मिशन 2024 के लिए क्या नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी निभाने का मन बना पाएंगे.. हार के बाद नीतिकता की बहस के बीच क्या गारंटी है कि कांग्रेस संगठन की जिम्मेदारी उनके पास ही रहेगी.. उधर 2018 में सत्ता से दूर रहने के बाद भाजपा को काफी जद्दो जहद के बाद सीनियर विधायक पंडित गोपाल भार्गव नेता प्रतिपक्ष के तौर पर मिल गए थे.. उसे वक्त तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष राकेश सिंह ने बाद में संसद का एक और चुनाव लड़ा और जीता था.. मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़ने के बाद शिवराज ने नेता प्रतिपक्ष के अपने दावे से खुद को दूर रख कर लिया था.. जबकि मुख्यमंत्री रह चुके कमलनाथ ने कांग्रेस में कुछ समय के लिए ही सही नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी निभाई थी.. जिन्होंने एक व्यक्ति एक पद के दबाव के चलते या दूरगामी रणनीति के तहत संगठन की जवाबदेयी निभाते हुए नेता प्रतिपक्ष की कुर्सी छोड़ दी थी.. सवाल इस चुनाव में जिस तरह ओबीसी एक बड़ा मुद्दा बन चुका है.. राहुल गांधी जो खुद तीन ओबीसी मुख्यमंत्री कांग्रेस के होने का दावा कर भाजपा को घेरते आ रहे हैं..
कमलनाथ ना सही यदि बहुमत नहीं मिला तो क्या किसी ओबीसी को नेता प्रतिपक्ष बनाने में दखल देंगे.. यदि कमलनाथ को भविष्य में प्रदेश अध्यक्ष का पद भी छोड़ना पड़ा तो सवाल क्या संगठन की कमान किसी ओबीसी को सौंपीं जाएगी… कमलनाथ ने अपने उत्तराधिकारी के तौर पर नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी दिग्विजय सिंह समर्थक गोविंद सिंह को सौंप थी.. जो एक बार फिर विधानसभा का चुनाव लड़ रहे हैं.. तो कई दूसरे नेताओं में अजय सिंह भी शामिल है जो सदन में नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी निभा चुके हैं.. नेता प्रतिपक्ष के पुराने दावेदारों में आदिवासी चेहरा उपनेता प्रतिपक्ष वाला बच्चन और कमलनाथ की व्यक्तिगत पसंद दलित चेहरा सज्जन सिंह वर्मा के नाम भी खूब उछाले जाते थे.. सवाल वही हाइपोथेटिकल क्या ओबीसी आदिवासी और दलित चेहरों के बीच इस नए फॉर्मेट और फार्मूले में कमलनाथ का उत्तराधिकारी कौन होगा.. क्या दिग्विजय सिंह पुत्र पूर्व मंत्री जो कमलनाथ को 5 साल मुख्यमंत्री के दिए जाने की जबरदस्त पैरोकार हैं.. क्या बहुमत नहीं मिलने पर नेता प्रतिपक्ष या प्रदेश अध्यक्ष के बड़े और स्वीकार्य दावेदार बनकर जयवर्धन सामने आएंगे.. या फिर या फिर मुख्यमंत्री की रेस से बाहर हो चुके प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के बड़े दावेदारों में से एक ओबीसी वर्ग के जुझारू तेज तर्रार नेता जीतू पटवारी.. या पिछला वर्ग के ही कमलनाथ की व्यक्तिगत पसंद कमलेश्वर पटेल सदन के अंदर नेता प्रतिपक्ष के बड़े दावेदार बनकर नाथ विरोधी को चुनौती देते हुए नजर आएंगे.. सवाल जीतू चुनाव जीतने पर यदि सरकार नहीं बन पाई तो क्या नेता प्रतिपक्ष या फिर संगठन के मुखिया पर उनकी नजर रहेगी.. राहुल गांधी की निजी पसंद जीतू पटवारी जिन्होंने युवा कांग्रेस के अध्यक्ष रहते पार्टी में अपनी एक अलग पहचान बनाई और कमलनाथ मंत्रिमंडल में मंत्री बनने के बाद एक नई पोजीशन लेते हुए नजर आ चुके.. वह बात और है कि कांग्रेस की इंटरनल पॉलिटिक्स में फिलहाल जीतू को किनारे लगा दिया गया.. यदि कांग्रेस सरकार में आती है तो कमलनाथ मुख्यमंत्री होंगे और यदि बहुमत नहीं जुटा पाए तो फिर सिर्फ नेता प्रतिपक्ष ही नहीं कमलनाथ के उत्तराधिकारी के तौर पर पार्टी को नया प्रदेश अध्यक्ष भी हर हाल में तलाशना ही होगा.. अजय सिंह राहुल भैया जो पूर्व में नेता प्रतिपक्ष रह चुके हैं एक बार फिर चुरहट से विधानसभा का चुनाव लड़ रहे जो अपनी जीत को लेकर पूरी तरह आश्वस्त है,.. सवाल क्या कांग्रेस की ओबीसी पॉलिटिक्स में फिट हो सकेंगे
. कांग्रेस के अंदर सवाल सिर्फ पिछड़े वर्ग के मोर्चे पर प्राथमिकता तक सीमित नहीं रह जाता.. सवाल कमलनाथ के वीटो और राष्ट्रीय नेतृत्व की रुचि तक सीमित नहीं रखा जा सकता.. क्योंकि यहीं पर नाथ के जोड़ीदार दिग्विजय सिंह की नई भूमिका नई जमावट से इनकार नहीं किया जा सकता.. कमलनाथ मुख्यमंत्री तो पूरी कांग्रेस अपने नाथ में समाहित.. यदि कमलनाथ ने मुख्यमंत्री की शपथ नहीं ली तो फिर कांग्रेस के अंदर पीढ़ी परिवर्तन को देखते हुए बड़े बदलाव की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता.. ऐसे में नेता प्रतिपक्ष और प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी के लिए राष्ट्रीय नेतृत्व खासतौर से राहुल गांधी की दिलचस्प को उनकी नई लाइन को ध्यान में रखते हुए नजरअंदाज नहीं किया जा सकता.. सवाल हाइपोथेटिकल लेकिन यदि जीतू पटवारी कमलेश्वर पटेल अजय सिंह राहुल भैया जयवर्धन सिंह सज्जन सिंह वर्मा जैसे अनुभवी चेहरे चुनाव जीत कर विधानसभा में पहुंचते हैं.. सरकार बनने पर मंत्रिमंडल में उनकी दावेदारी को मजबूत ही माना जाएगा.. लेकिन बहुमत नहीं मिल पाने की स्थिति में इन नेताओं में से ही नेता प्रतिपक्ष और कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष के दावेदार आमने-सामने खड़े नजर आ सकते हैं.. देखना दिलचस्प होगा मल्लिकार्जुन खड़गे राष्ट्रीय अध्यक्ष के चेहरे को सामने रखकर राहुल और प्रियंका की मध्य प्रदेश में नई जमावट और उनका हस्तक्षेप आखिर क्या गुल खिलाता है.. क्योंकि मध्य प्रदेश में विपक्ष में रहते कई प्रभारी बदल चुके हैं.. कांग्रेस की इंटरनल कपड़ा फाड़ पॉलिटिक्स किस साइड इफेक्ट से इनकार नहीं किया जा सकता..
सीएम के दावेदार क्या बनेंगे नेता प्रतिपक्ष..
कांग्रेस के मुकाबले भाजपा में नेतृत्व खासतौर से मुख्यमंत्री के चेहरे को लेकर जो सस्पेंस बनाया गया है उसे पार्टी की रणनीति माना जा रहा.. पार्टी नेतृत्व को उम्मीद ही नहीं भरोसा है कि तमाम चुनौतियों के बावजूद मोदी के चेहरे में समाहित मध्य प्रदेश की सत्ता और संगठन और उसके नेताओं के लिए सत्ता नया द्वार खोलेगी.. भूल चूक हुई और 2018 की तरह यदि वह बहुमत नहीं जुटा पाई तो फिर पार्टी के अंदर एक नए नेता प्रतिपक्ष की तलाश नए सिरे से शुरू होने से इनकार नहीं किया सकता .. 2018 के चुनाव के बाद भाजपा को गोपाल भार्गव तो उसके बाद कांग्रेस को गोविंद सिंह के तौर पर तो नेता प्रतिपक्ष मिले थे.. इस बार भाजपा को न सिर्फ मुख्यमंत्री का चेहरा बल्कि बहुमत के अभाव में नए नेता प्रतिपक्ष की दरकार रहेगी.. कांग्रेस के मुकाबले भाजपा में भी अब ऐसे दिग्गज नेताओं की भरमार है जो सीएम इन वेटिंग में गिने जाते हैं,.. पूर्व नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव ने भी मुख्यमंत्री के लिए अपनी दावेदारी जताई है तो पूर्व संसदीय मंत्री नरोत्तम मिश्रा भी मुख्यमंत्री के दावेदार बने हुए हैं.. तो सवाल यही पर वही हाइपोथेटिकल सवाल खड़ा होता है पिछली बार नेता प्रतिपक्ष की कुर्सी से दूर रहे शिवराज सिंह चौहान यदि मुख्यमंत्री नहीं बन पाए तो क्या इस बार जीत के साथ विधायक रहते नेता प्रतिपक्ष की कुर्सी संभालने में रुचि लेंगे.. वह बात और है कि विधानसभा चुनाव के बाद मिशन मोदी लोकसभा चुनाव 24 भाजपा के लिए बड़ी चुनौती होगी.. सवाल तो ब्राह्मण नेता पंडित को गोपाल भार्गव और नरोत्तम के मुख्यमंत्री नहीं बन पानी की स्थिति में क्या फिर नेता प्रतिपक्ष में अपनी रुचि ले पाएंगे.. क्योंकि अधिकांश पुराने चेहरों को भाजपा ने चुनाव मैदान में उतारा है.. कौन किस पर कितना भारी इस बहस के बीच मुख्यमंत्री के दूसरे दावेदारों नरेंद्र सिंह तोमर, प्रहलाद पटेल ,फगन सिंह कुलस्ते और राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय क्या विधानसभा चुनाव जीतने और सरकार नहीं बन पाने की स्थिति में नेता प्रतिपक्ष की अपनी दावेदारी भी ठोकेंगे..
सवाल मुख्यमंत्री हो या नेता प्रतिपक्ष किसी एक के खाते में ही है कुर्सी जाएगी तो फिर दूसरे दावेदार क्या कैबिनेट के सदस्य और नेता प्रतिपक्ष के अंदर में सदन का हिस्सा बने रहना पसंद करेंगे.. सियासत में संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता ..इसलिए इन चुनाव जीतने या हरने वाले नेताओं के लिए क्या लोकसभा चुनाव का मार्ग विकल्प के तौर पर खोल दिया जाएगा.. हालांकि उस वक्त उपचुनाव का जोखिम मोल लेना भी भाजपा के लिए आसान नहीं होगा.. शिवराज के तौर पर उमा और गौर के बाद पिछड़ा वर्ग का मुख्यमंत्री देने वाली भाजपा.. जब राहुल गांधी के सवाल का जवाब यह कह कर देती है कि मध्य प्रदेश में रवि शंकर शुक्ला के बाद कांग्रेस ने और दिल्ली में जवाहरलाल नेहरू के बाद कितने पिछड़े वर्ग के नेताओं को राज्य और केंद्र की कमान सौंपी है,.. सवाल भाजपा क्या पिछड़े वर्ग को प्राथमिकता देगी.. तो फिर वह आखिर कौन हो सकता है.. पिछले वर्ग की ओर से प्रहलाद पटेल आदिवासी चेहरे के तौर पर फग्गन सिंह कुलस्ते बड़े चेहरे के तौर पर विधानसभा का चुनाव लड़ रहे.. लाख टके का सवाल संगठन में बड़े बदलाव और पीढ़ी परिवर्तन के नए चेहरे के तौर पर अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा के नेतृत्व में जब पार्टी चुनाव लड़ रही है.. तो क्या नए युवा नेतृत्व के तौर पर यह बदलाव सरकार बनाने और सरकार नहीं बन पाने की स्थिति में 2023 विधानसभा के अंदर देखने को मिलेगा.. भाजपा ने महिला आरक्षण संसद से पास करवा कर आधी आबादी के नेतृत्व को भी एक चुनावी मुद्दा बना रखा है.. पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती चुनाव प्रचार से दूरी बना चुकी है तो महामंत्री और सांसद कविता पाटीदार जरूर जन आशीर्वाद यात्रा का इकलौता महिला चेहरा बनकर सामने है.. मिशन मोदी के पहले भाजपा को पिछड़ा वर्ग और महिला नेतृत्व को लेकर संतुलन और सामंजस्य और स्वीकार्यता बनाना भी किसी चुनौती से काम नहीं होगा.. चुनौती इसलिए क्यों कि कई केंद्रीय मंत्री महासचिव और दूसरे बड़े पुराने अनुभवी चेहरे विधानसभा का चुनाव लड़ रहे.. जिनकी नजर मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बनी हुई है..