भोपाल। 2023 फतेह करने के लिए कांग्रेस को कमलनाथ के निर्विवाद स्वीकार्य नेतृत्व और दिग्विजय सिंह की रणनीति के साथ राहुल गांधी और प्रियंका गांधी की सभाओं पर भरोसा..सवाल क्या गारंटी यही जोड़ियां चुनाव में जीत की गारंटी साबित हो सकती है..वह भी तब जब इंडिया गठबंधन का हिस्सा बने दल आम आदमी पार्टी समाजवादी पार्टी जेडीयू अब कांग्रेस को न सिर्फ सीधी चुनौती दे रहे बल्कि बागियों के लिए सम्मान और टिकिट का नया ठिकाना बन गए..अखिलेश यादव और कमलनाथ का विवाद राहुल गांधी के हस्तक्षेप के बाद भले ही खत्म हो गया लेकिन और दूसरे सहयोगी दलों ने मध्य प्रदेश में मोर्चा खोल दिया है..तब नया सवाल बीजेपी के सामने खुद को ज्यादा मजबूत मान कर चल रही कांग्रेस को क्या इस बार उनके अपने जो अब पराए हो गए ये ही सबक सिखाएंगे..
ये बागी20 से 30 सीटों पर चुनावी गणित बिगड़ने की सामर्थ रखते हैं.. उधर एक नई मुसीबत टिकट वितरण पर बवाल के बीच जब छत्रप लगभग दरकिनार कर दिए गए या भविष्य के लिए उनका सफाया ही कर दिया गया.. तब खबर टीकमगढ़, शाजापुर जैसी कुछ सीटों पर दिग्विजय सिंह के कमलनाथ से फिर न चाहते हुए मतभेद की खबरें भी सामने आने लगी है.. इसके संकेत सज्जन सिंह वर्मा की दौड़ भाग के साथ राजा का झाबुआ दौरा निरस्त होने से सामने आए.. ऐसे में कांग्रेस का भार कमलनाथ के कंधों पर आ चुका है.. इस अनुभवी नेता ने गलतियों से सीख लेकर शायद विधानसभा के गणित को ही नहीं बल्कि उसमें अपने समर्थकों के वर्चस्व की बिसात बिछी है.. तो नाथ की नजर भविष्य की कांग्रेस पर भी लगी हुई है..ऐसे में नया सवाल नाथ का रास्ता जब पार्टी के अंदर से साफ हो चुका है और भाजपा पर वह खुद को भारी समझ रहे तब मध्य प्रदेश में उन्हें किसकी क्यों जरूरत पड़ेगी.. जो जन आक्रोश के भरोसे भाजपा को सत्ता से बाहर करने का सपना देख रहे..यह सच है अनुभवी समर्थकों के साथ नए चेहरों को टिकट दिलवाकर कमलनाथ ने अपने वर्चस्व का लोहा बनवाया..
तो दूसरे नंबर पर दिग्विजय सिंह की चली.. कांग्रेस ने अपने 90 विधायकों पर भरोसा जताते हुए टिकिट रिपीट कर दिए..इनमें 16 पूर्व मंत्री शामिल है..2 पूर्व मंत्रियों के परिजनआरिफ अकील और ब्रजेंद्र सिंह के बेटे.. जो उप चुनाव लड़ चुके..को एक बार फिर टिकिट दिया गया..आयातित नेताओं में शामिल 5 दल बदलू को भी टिकिट दिया गया..कांग्रेस में कमलनाथ और दिग्विजय का बोलबाला साफ देखा जा सकता.. जन आक्रोश यात्रा का नेतृत्व जिन क्षत्रपों के चेहरे सामने रखकर भाजपा की जन आशीर्वाद यात्रा की पोल खोलने की कोशिश की गई थी..जिसे फीडबैक लिया गया था..उनमें से अधिकांश या तो चुनाव लड़ रहे या अपने क्षेत्र विशेष तक सीमित होकर रह गए.. चुनाव अजय सिंह, गोविंद सिंह, जीतू पटवारी, कमलेश्वर पटेल लड़ रहे तो सुरेश पचौरी ,अरुण यादव मैदान से बाहर कांतिलाल के पुत्र विक्रांत भूरिया को टिकिट दिया गया.. खबर यह भी है कि अरुण यादव बुंदेलखंड में अपने समर्थकों को टिकट नहीं दिलवा पाए..नामांकन दाखिल करने की प्रक्रिया के बीच जब कांग्रेस के लिए बगावत करने वाले उसके बागी उम्मीदवार समस्या साबित हो रहे.. तब डैमेज कंट्रोल नाथ –
राजा की जोड़ी के लिए बड़ी चुनौती बनकर सामने है..दोनों ने बहुत संभाल विवाद को ठंडा करने की कोशिश की पार्टी में ऑल इज वेल नजर नहीं आ रहा.. 7 टिकट बदले जाने के बाद बागियों के हौसले और दूसरे विधानसभा क्षेत्र में बुलंद है.. सुमावली से कुलदीप सिकरवार, धार से गजेंद्र सिंह राजू खेड़ी , नागौद से यादवेंद्र सिंह, त्यौंथर से सिद्धार्थ तिवारी, आलोट प्रेमचंद गुड्डू, कांग्रेस की सबसे सुरक्षित सीटों में से एक भोपाल उत्तर नासिर इस्लाम यही से वर्तमान विधायक के भाई आमिर अकील,खरगापुर से अजय यादव, झाबुआ जेवियर मेंढा ,बड़नगर राजवीर सिंह, हुजूर जितेंद्र डागा,अशोक नगर से मलकीत सिंह सिंधु, देव तालाब से सीमा जयवीर सिंह रीवा से कविता पांडे यह चेहरे टिकट की चाहत में बगावत का मूड बनाते हुए देखे जा सकते हैं..ऐसे में राहुल के मुकाबले प्रियंका गांधी की लगातार सभाएं मध्य प्रदेश में हो रही जो अब वो बुंदेलखंड पहुंच रही..तब राष्ट्रीय नेतृत्व की चिंता बढ़ाना भी लाजमी है..
यदि अरुण यादव और सुरेश पचौरी की तरह अब दिग्विजय सिंह के नाराज होने की खबरों में यदि दम है तो समझा जा सकता है कि सत्ता के बहुत करीब खुद को मान बैठी कांग्रेस के लिए चुनौती आखिर कितनी बड़ी सामने आकर खड़ी हो गई है.. कांग्रेस ने चुनाव को जनता और भाजपा खासतौर से शिवराज सरकार के बीच केंद्रित रखने की रणनीति पर काम किया है.. चाहे फिर वह प्रियंका गांधी राहुल गांधी की सभा में उठवाए गए मुद्दे हो या फिर सोशल मीडिया के साथ नेताओं के वक्तव्य और बयान.. प्रदेश प्रभारी रणदीप सिंह सुरजेवाला ने रागिनी नायक और मीडिया की दूसरी टीम ने मुद्दा आधारित भाजपा खासतौर से शिवराज सरकार की उपलब्धियां पर सवाल खड़ा कर कि जिस रणनीति को आगे बढ़ाया वह चर्चा में है.. जिसकी वजह आंकड़े, तर्क के साथ आक्रमक रुख अख्तियार कर भाजपा के खिलाफ आक्रोश पैदा करना माना जा रहा है.. सवाल कांग्रेस के अंदर स्टार प्रचारक को खासतौर से जनता से कनेक्ट होकर संवाद करने वाले नेताओं का टोटा कमजोर कड़ी बनकर सामने है.. कमलनाथ जिन्होंने पहले प्रदेश के कई क्षेत्रों का दौरा किया अब प्रतिदिन दो सभाओं तक सीमित होकर रह गए हैं…
मौसम हुआ ठंडा सियासत गर्म
मप्र में एक ओर जहां गिरते पारे के साथ मौसम में ठंडक का एहसास होने लगा तो चुनावी पारे ने सियासी गर्मी भी बढ़ा दी है…मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान,भाजपा प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा सहित केंद्रीय नेताओं के ताबड़तोड़ दौरे मप्र में शुरू हो चुके हैं तो भाजपा के 40 स्टार प्रचारकों की सूची भी जारी हो गई…लेकिन बात कांग्रेस की करें तो कमलनाथ के अलावा दिग्विजय सिंह ही दो रोज पूर्व तक चुनावी मैदान में ज्यादा सक्रिय नज़र आ रहे थे..पर बीते दो दिन से वो भी शांत दिखाई दे रहे हैं..नाराजगी की बजह शुजालपुर का टिकट न बदलना बताया जा रहा है..हालांकि यहां अरुण यादव तो मानो घर से ही नहीं निकल रहे..टिकट वितरण से पहले वे बुंदेलखंड की जिम्मेदारी संभाले थे..अभी तक के चुनावी कंपैन में कांग्रेस मुख्यालय में प्रभारी सुरजेवाला और केंद्र से आये कांग्रेस के प्रवक्ताओं का दल ही प्रेस वार्ताओं के माध्यम से भाजपा सरकार पर हमलावर है..कमीशन, भ्रस्टाचार, महिलाओं पर अत्याचार, कुपोषण, जनजातीय अत्याचार ही कांग्रेस के मुद्दे हैं तो उनकी जनता की सुविधाओं की गारंटियां कांग्रेसी अपनी ताकत बताते हैं..जिन केंद्रीय प्रवक्ताओं ने मप्र सरकार पर आंकड़ों के साथ प्रहार करने की जिम्मेदारी संभाली है उनमें..रागिनी नायक,सुप्रिया श्रीनेत, अलका लांबा, सुरेंद्र राजपूत प्रमुख हैं..इधर कमलनाथ भी दिनभर में एक या दो ही स्थानों पर पहुंच पाते हैं..कुल मिलाकर ऐसा लगता है जैसे टिकट वितरण में कमलनाथ की एकला चलो नीति ही कारगर साबित रही..
पर विरोध के बाद हुए टिकट बदलाव से कांग्रेस के भीतर का सियासी माहौल एकदम बदला और अब कमलनाथ ही जितना हो सकता चुनावी मैदान में हैं..खैर हम यहां बात कर रहे भाजपा के मुकाबले मैदानी जमावट कसावट में भाजपा के नेताओं के मुकाबले कांग्रेस के कितने नेता कहाँ कहाँ मौर्चा संभाले हैं..तो हाल फिलहाल तो सभी कांग्रेस के बड़े नेता अपने अपने विधानसभा क्षेत्रों से ही बाहर नजर नहीं आ रहे..ऐसे में कांग्रेस की नैया कैसे पर लगाएंगे नाथ..या अभी कोई नई चाल दिखाएगी कांग्रेस..प्रियंका गांधी,राहुल गांधी का मप्र में दौरा जरूर हो रहा पर भाजपा के बड़े नेताओं के शायद तुलनात्मक ज्यादा दौरे नजर आ रहे..स्टार प्रचारकों में भाजपा ने 20 मप्र के नेताओं के नाम शामिल किए..जिनमें मुख्यमंत्री शिवराज सहित वे चेहरे भी अन्य जगह चुनावी प्रचार करते नजर आएंगे जो खुद चुनावी मैदान में हैं..ऐसे में कांग्रेस का कौन बड़ा चेहरा अन्य स्थानों पर चुनाव प्रचार करते नजर आएगा ये देखना बाकी है… ..
तो सवाल यही पर खड़ा होता है मुख्यमंत्री के घोषित उम्मीदवार कमलनाथ क्या अगले एक महीने में प्रदेश की हर विधानसभा क्षेत्र तक पहुंच पाएंगे.. चाहे वह जिन्हें कमलनाथ ने टिकट दिलवाया या दूसरे कोटे से टिकट लेकर आए नेट क्यों ना हो.. सवाल क्या गारंटी है कि कमलनाथ की इस कमी को पूरी करने के लिए खुलकर उनके जोड़ीदार दिग्गी राजा प्रचार की कमान संभाल कर अपना चेहरा जनता के बीच सामने लाएंगे.. जिनका वह डायलॉग अभी भी सुर्खियां बटोरता है, जिसमें राजा ने कहा था कि यदि वह जनता के बीच जाते हैं तो फिर कांग्रेस के वोट कट जाते हैं.. सवाल खड़ा कर भाजपा इसका इस्तेमाल करने से नहीं चूकती.. कांग्रेस को कहीं ना कहीं कुछ सवालों के जवाब समय रहते तलाशने होंगे.. सवाल क्या जन आक्रोश यात्रा के चेहरे बनाए गए दिग्गज नेताओं की अनुशंसा और सिफारिश को क्या टिकट वितरण में प्राथमिकता दी गई थी..क्या अजय सिंह , सुरेश पचौरी और अरुण यादव जैसे नेताओं की टिकट वितरण में चली..
यदि उनके समर्थकों को टिकट नहीं मिली तो इन नेताओं की अपने क्षेत्र विशेष में चुनाव के दौरान क्या दिलचस्प रहेगी.. सवाल जब दिग्गज और छत्रप गिनी चुनी सीटों तक सीमित हो कर रहे गए..तब क्या कमलनाथ ने 23 के चुनाव की आड़ में कांग्रेस के लिए सदन और उसके बाहर संगठन की कोई नई पटकथा को आगे बढ़ना शुरू कर दिया है.. यदि इस बात में दम है तो दिग्विजय सिंह की रणनीति और जमावट आखिर क्या गुल खिलाएगी.. मध्य प्रदेश में ओबीसी जब एक बड़ा चुनावी मुद्दा खुद राहुल गांधी बना रहे.. तब इस पार्टी में जीतू पटवारी कमलेश्वर पटेल और अरुण यादव जैसे जाने पहचाने पिछड़ा वर्ग के नेताओं का आखिर भविष्य और दखल क्या होगा..यही नहीं मध्य प्रदेश से महिला नेतृत्व को कैसे मुख्य धारा से जोड़कर सामने लाया जाएगा.. यह वह चुनावी मुद्दे हैं जिन पर राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे के साथ सोनिया गांधी प्रियंका गांधी का फोकस बना हुआ है जो 2024 में बड़ी निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं.. बड़ा सवाल कांग्रेस के बागी जिन्होंने इंडिया गठबंधन की दूसरी पार्टियों के बैनर तले चुनाव लड़ने का मन बना लिया वो कांग्रेस की राह में क्या रोडा साबित होंगे.. 15 महीने सरकार में रह चुकी कांग्रेस को सत्ता में वापस लाने का भार जब कमलनाथ के कंधों पर नजर आ रहा.. तब देखना दिलचस्प होगा हाई कमान की कांग्रेस के नाथ से अपेक्षाएं किस हद तक पूरी होती है.
बागी और I.N.D.I.A गठबंधन कांग्रेस की मुसीबत?
इधर टिकट वितरण से नाराज कांग्रेसी कार्यकर्ताओं का अन्य दलों की ओर रुख कर मैदान में उतरना और विपक्षी गठबंधन I.N.D.I.A. में तालमेल न होना कांग्रेस की मुसीबत बढ़ा सकता है..सीट शेयरिंग को लेकर पहले समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कांग्रेस पर नाराजगी जताई..कांग्रेस को धोखेबाज पार्टी कहा पर अब जनता दल यूनाइटेड 10 प्रत्याशी उतारकर कांग्रेस को झटका दिया है..इसमें से चार सीटों पर कांग्रेस के विधायक हैं.JDU ने जिन 10 उम्मीदवारों की घोषणा की है, उनमें शिवपुरी की पिछोर सीट से चंद्रपाल यादव, छतरपुर की राजनगर से रामकुंवर (रानी) रैकवार, कटनी की विजय राघवगढ़ सीट से शिवनारायण सोनी, झाबुआ की थांदला सीट से तोलसिंह भूरिया और पेटलावद से रामेश्वर सिंघार को उम्मीदवार बनाया है..सागर जिले के नरियावली (एससी) से सीताराम अहिरवार, नरसिंहपुर जिले के गोटेगांव (एससी) से प्रमोद कुमार मेहरा, कटनी जिला के बहोरीबंद से पंकज मौर्या, जबलपुर उत्तर से संजय जैन और बालाघाट विधानसभा क्षेत्र से विजय कुमार पटेल को मैदान में उतारा है..वहीं समाजवादी पार्टी अब तक 45 सीटों पर उम्मीदवार घोषित कर चुकी है..इन सीटों पर वोटों के ध्रुवीकरण से कांग्रेस को नुकसान हो सकता है..इधर आम आदमी पार्टी ने भी अब तक 69 उम्मीदवार उतार दिए हैं..इनमें महाराजपुर,राजनगर,छतरपुर,बंडा,कालापीपल,मुरैना,ग्वालियर दक्षिण,सहित दो दर्जन स्थानों पर कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ाएंगे.अब देखना होगा कि नाथ इस डैमेज को कैसे मैनेज करते हैं.