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“लो-स्पर्म काउंट” गम्भीर समस्या, आसान हल

गर्भाधान के लिये केवल एक शुक्राणु चाहिये, लेकिन परफेक्ट शेप में, पूरी तरह स्वस्थ। ताकि वह अंडे तक पहुंचकर, उसे निषेचित कर पाये। सम्भोग में स्खलित करोड़ों शुक्राणुओं में से कोई एक सफल होता है। लंबे समय तक एक मुद्रा में बैठना, मोटापा, स्ट्रेस, स्मोकिंग, शराब, ड्रग्स, प्लास्टिक(बिस्फेनॉल-बीपीए), प्रदूषण, कीटनाशकों/ औद्योगिक रसायनों से एक्सपोजर लो-स्पर्म काउंट के बड़े कारण हैं।

 लो-स्पर्म काउंट यानी ओलिगोस्पर्मिया, युवाओं में प्रजनन से जुड़ी आम समस्या है। वजह पुरूष जननांगों का गर्भाधान के लिये जरूरी शुक्राणु न बना पाना है। हालांकि, गर्भाधान के लिये केवल एक शुक्राणु चाहिये, लेकिन परफेक्ट शेप में, पूरी तरह स्वस्थ। ताकि वह अंडे तक पहुंचकर, उसे निषेचित कर पाये। सम्भोग में स्खलित करोड़ों शुक्राणुओं में से कोई एक सफल होता है। मेडिकल साइंस के मुताबिक, प्रजनन के लिये स्वस्थ पुरूष में प्रति स्खलन 2 से 5 मिलीलीटर सीमन और प्रति मिलीलीटर सीमन में 15 से 200 मिलियन शुक्राणु होने चाहिये। लो-स्पर्म काउंट में शुक्राणु संख्या घटकर 15 मिलियन से नीचे और सीमन मात्रा 1.5 मिलीलीटर से कम रह जाती है।

लंबे समय तक एक मुद्रा में बैठना, मोटापा, स्ट्रेस, स्मोकिंग, शराब, ड्रग्स, प्लास्टिक(बिस्फेनॉल-बीपीए), प्रदूषण, कीटनाशकों/ औद्योगिक रसायनों से एक्सपोजर लो-स्पर्म काउंट के बड़े कारण हैं। कुछ लोगों में शुक्राणु कम बनते हैं इंफेक्शन, टेस्टीकल्स में चोट, हारमोन असंतुलन, ट्यूमर, कैंसर, क्लाइनफेल्टर सिंड्रोम, सिस्टिक फाइब्रोसिस और जेनेटिक वजहों से।

कैसे दूर हो समस्या?

लो-स्पर्म काउंट कोई इतनी बड़ी समस्या नहीं जितना इसे समझा जाता है। इसके पीड़ित खुद को नपुंसक समझकर डिप्रेशन में चले जाते हैं। जबकि नपुंसकता से इसका कोई सम्बन्ध नहीं। नपुंसकता कहते हैं इरेक्टाइल डिस्फंक्शन को। लो-स्पर्म काउंट के 80 प्रतिशत मामले डाइट और लाइफस्टाइल बदलने से ठीक हो जाते हैं केवल 20 प्रतिशत में इलाज की जरूरत पड़ती है वह भी तब जब हारमोन असंतुलन या रिप्रोडक्टिव सिस्टम में कोई स्ट्रक्चरल खराबी हो। स्पर्म काउंट बढ़ाने में डाइट और लाइफ स्टाइल की अहम भूमिका है। इस सन्दर्भ में दो काम करने पड़ते हैं पहला कुछ चीजों से परहेज, दूसरा कुछ को डाइट में शामिल करना।

परहेज जरूरी  

परहेज में सबसे पहले मीठा बंद करें। चीनी, मीठे पेय, सोडा या इनर्जी ड्रिंक्स से इंसुलिन रजिस्टेंस बढ़ता है जिसका नकारात्मक असर होता है प्रजनन क्षमता पर। वजह इंसुलिन रजिस्टेंस से होने वाला ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस। बढ़े ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस से शुक्राणुओं की गतिशीलता कम होती है, वे गंतव्य यानी अंडे तक नहीं पहुंच पाते। इसके अलावा शुक्राणु बनाने वाली कोशिकाओं में सूजन बढ़ती है जिससे स्पर्म प्रोडक्शन घटता है।

यही असर है सोडा पेय और इनर्जी ड्रिंक्स का। सप्ताह में केवल 200 मिलीलीटर सोडा या इनर्जी ड्रिक्स पीने से सीमन सांद्रता और गुणवत्ता कम होती है। शुक्राणु जल्द मरने लगते हैं, इसका रिजल्ट सामने आता है औसतन 3.4 मिलियन प्रति मिलीलीटर शुक्राणु कम होने के रूप में। इसलिये पिता बनने तक सोडा या इनर्जी ड्रिंक्स के बजाय पानी, जूस, दूध या छाछ पर जोर दें।

पुरूष प्रजनन क्षमता के सन्दर्भ में दूध को लेकर हुए शोध से सामने आया कि फुल क्रीम दूध से शुक्राणुओं की संख्या और गतिशीलता में कमी आती है। इसके स्थान पर लो-फैट स्किम्ड मिल्क,  बादाम या नारियल के दूध का सेवन करें। दिन में दो कप से ज्यादा चाय या कॉफी पीने से स्पर्म काउंट में गिरावट आती है, ऐसे में कैफीन युक्त पेय पदार्थों का सेवन कम करें और ग्रीन टी को प्राथमिकता दें।

सैचुरेटेड और ट्रांस फैट

प्रोसेस्ड यानी डिब्बा बंद मीट जैसे हैम, बेकन, सलामी और टूना इत्यादि से परहेज करें। इनके प्रिजर्वेशन में नाइट्रेट जैसे हानिकारक रसायन इस्तेमाल होते हैं जिनसे प्रजनन क्षमता घटती है। एक रिसर्च में प्रोसेस्ड मीट खाने वाले पुरुषों में, ताजा मीट खाने वालों की तुलना में 23 प्रतिशत कम शुक्राणु पाये गये। वजह थी प्रिजर्वेटिव और सैचुरेटेड-ट्रांस फैट की ज्यादा मात्रा।

वैज्ञानिक, सैचुरेटेड-ट्रांस फैट को पुरुष प्रजनन क्षमता में कमी से जोड़कर देखते हैं। इनसे शरीर में क्रोनिक इन्फ्लेमेशन और ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस बढ़ता है जिससे मोटापा, टाइप-2 डॉयबिटीज, इंसुलिन रजिस्टेंस, मेटाबॉलिक डिस्ऑर्डर, हारमोन असुंतलन, शिथिल इम्यूनिटी जैसी समस्यायें हो जाती हैं जो कारण बनती हैं शुक्राणुओं की क्वालिटी, संख्या और गतिशीलता में कमी का।

ट्रांस फैट के कारण टेस्टीकल्स में हुए रोगात्मक परिवर्तनों का प्रजनन क्षमता पर दीर्घकालिक असर होता है। इसके, टेस्टीकल्स में जमा होने से टेस्टोस्टेरोन बनना कम हो जाता है। यौन इच्छायें मरने लगती हैं। शुक्राणु कम बनते हैं। इसलिये यदि लो-स्पर्म काउंट से छुटकारा पाना है तो इन्हें जल्द से जल्द अपनी डाइट से बाहर करें। इसी तरह सोया आधारित खाद्य पदार्थ जैसे सोया सॉस, टोफू, सोया मिल्क, टेम्पेह, सोया आटा, सोया चंक्स इत्यादि से परहेज करें कारण इनका सेवन पुरूष शरीर में हारमोन अंसुतलन बढ़ाता है जिससे स्पर्म बनने में दिक्कत आती है।

कुछ खास तरह की मछलियों जैसे स्वोर्डफ़िश, किंग मैकेरल, टाइलफ़िश, मार्लिन, बिगआई टूना, ऑरेंज रफ़ी और शार्क का सेवन न करें। वजह इनमें पारे की ज्यादा मात्रा। पारा, पुरूष हो या महिला दोनों की प्रजनन क्षमता पर नकारात्मक असर डालता है। इनकी जगह ओमेगा-3 से भरपूर सॉल्मन, हेरिंग, सार्डिन, एंकोवी या ज़िंक से भरपूर शेलफ़िश अपनी डाइट में शामिल करें।

बीपीए का इस्तेमाल घटायें

बिस्फेनॉल या बीपीए, आज प्रजनन क्षमता के बड़े दुश्मन के रूप में उभरा है। असल में यह एंडोक्राइन डिसरप्टिंग केमिकल है जो प्लास्टिक और डेली इस्तेमाल के कई उत्पादों में पाया जाता है। जिन पुरूषों के यूरीन में बीपीए का स्तर अधिक होता है उनमें शुक्राणुओं की संख्या, व्यवहार्यता और गतिशीलता कम होती है।

बिस्फेनॉल से पूरी तरह बचना असम्भव है वजह फूड पैकिंग और कास्मेटिक्स में इसका इस्तेमाल। हमारे अंदर जाता है यह प्लास्टिक में पैक भोजन-पानी के जरिये। पुरुष प्रजनन क्षमता पर पड़ने वाले प्रतिकूल प्रभाव को कम करने के लिये प्लास्टिक में लिपटे या पैक खाद्य पदार्थों का इस्तेमाल घटायें। प्लास्टिक बोतल में पानी या अन्य पेय पदार्थों के सेवन से बचें। माइक्रोवेब और फ्रिज में प्लास्टिक की जगह कांच के बर्तन इस्तेमाल करें। खाना बनाने के बाद उसे प्लास्टिक के बजाय कांच या स्टील के बर्तनों में रखें।

स्पर्म काउंट बढ़ाने वाले खाद्य-पदार्थ 

ज्यादा मात्रा में उत्तम गुणवत्ता वाले शुक्राणुओं के लिये चाहिये जिंक और एंटी-ऑक्सीडेंट्स रिच डाइट। जहां जिंक रिच खाद्य-पदार्थ शरीर में वीर्य उत्पादन के साथ शुक्राणुओं की गतिशीलता बढ़ाते हैं वहीं एंटी-ऑक्सीडेंट्स, शुक्राणुओं में कोशिका स्तर पर होने वाली क्षति रोककर उनकी गुणवत्ता। वैसे तो सबसे ज्यादा जिंक होता है ओयेस्टर यानी सीप में। लेकिन हमारे यहां सीप खाने का चलन नहीं है इसलिये डाइट में रेड मीट, अंडे, चिकन और सी-फूड की मात्रा बढ़ायें। इनके अलावा काजू, बादाम, अखरोट, अंकुरित मूंग, चना दाल, ब्राउन राइस, अलसी, कद्दू और तरबूज के बीज, स्किम्ड मिल्क, दही, पनीर, पालक, मशरूम और ब्रोकली में भी अच्छा-खासा जिंक होता है। एंटी-ऑक्सीडेंट्स मिलेंगे फल-सब्जियों से। इनके लिये डाइट में संतरा, अमरूद, अनार, आंवला, शकरकंद, लहसुन, टमाटर, अंगूर, आम, पालक और मेथी शामिल करें।

जीवनशैली में बदलाव जरूरी

जीवनशैली में बदलावों के तहत ज्यादा देर तक एक मुद्रा में न बैठें। स्मोकिंग और शराब छोड़ें। लेट नाइट पार्टियों से दूर रहें। डेली सात से आठ घंटे की नींद लें। वजन ज्यादा है तो घटायें। डेली 45 मिनट वॉक करें। शरीर से फ्री-रेडिकल्स और बीपीए निकालने के लिये रोजाना 3 से चार लीटर पानी पियें। सूती अंडरवियर पहनें। तनाव दूर करने के लिये योगा/मेडीटेशन को डेली रूटीन का हिस्सा बनायें। अगर संक्रमण या किसी क्रोनिक डिजीज से पीड़ित हैं तो समय पर इलाज करायें। प्रदूषण, कीटनाशकों और औद्योगिक सॉल्वेंट से जितना सम्भव हो दूर रहें। जीवन में प्लास्टिक का हस्तक्षेप कम करें खासतौर पर फूड पैकेजिंग और खाने-पीने के बर्तनों के रूप में।

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