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मोदी की सक्रीयता आग पर रखी रोटी के जलने का खतरा…?

भोपाल। भारतीय जनता पार्टी के आधार स्तंभ और देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र भाई मोदी के अचानक अधिक सक्रीय व आक्रामक रूख से राजनीतिक क्षेत्रों में आश्चर्य व्यक्त किया जा रहा है, उनकी न सिर्फ प्रतिपक्षी दलों व उनके नेताओं के खिलाफ हमले की धार तेज व तीखी हो गई है, बल्कि अब तो उन्होंने प्रतिपक्षी दलों के नेताओं से निपटने के लिए सरकारी तंत्र का भी सहारा लेना शुरू कर दिया है, जिसका ताजा उदाहरण कांग्रेस के शीर्ष नेता सोनिया राहुल के खिलाफ उनकी कम्पनी से जुड़ी सम्पत्ति कुर्क करने और प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) को उसकी जांच सौंपना है, यद्यपि विभिन्न राजनीतिक व गैर-राजनीतिक स्तरों पर मोदी की अचानक सक्रीयता के कारणों की खोज की जा रही है किंतु मुझे अपने शीर्ष स्तर से मिली जानकारी के अनुसार मोदी जी की सक्रीयता बढ़ने और प्रतिपक्ष पर वार तेज होने का मुख्य कारण उनकी ही सरकार को खुफिया एजेंसी द्वारा प्राप्त वह रिपोर्ट है,

जिसमें साफ शब्दों में लिखा गया है कि मोदी जी का करिश्मा अब कम हो गया है तथा पांच राज्यों की विधानसभाओं चुनाव भाजपा को निराशा हाथ लग सकती है, इसी एक रिपोर्ट ने मोदी जी को काफी परेशान कर दिया है और उन्होंने अपना रूख बदल लिया है। उक्त रिपोर्ट में खुफिया विभाग ने साफ लिखा है कि देश की आम जनता अब वह कहावत दोहराने लगी है, जिसमें आग पर रखी रोटी नहीं पलटने से उसके जल जाने की बात कही गई है।

अब चूंकि देश पर राज कर रही भारतीय जनता पार्टी के सर्वोच्च ‘सिरमौर’ मोदी जी ही है, इसलिए पूरी पार्टी की निगाहें मोदी जी पर ही टिकी है और पार्टी का हर कार्यकर्ता यह कहने को मजबूर है कि ‘‘भाजपा की नैया के खिवैय्या मोदी जी है, वे चाहे तो पार्टी को पार लगाए या फिर बीच भंवर में डुबो दे।’’ अब यही धारणा पार्टी में ऊपर से नीचे तक बलवती होती जा रही है अर्थात् भाजपा का भविष्य सिर्फ और सिर्फ मोदी जी के ही हाथों में है, पार्टी की इसी धारणा के चलते अपनी साख बचाने के लिए मोदी का अचानक सक्रिय व आक्रामक होना स्वाभाविक है।

अब यह तो तय है कि देश के अगले छः महीनें चुनावों को ही समर्पित है और इन चुनावों के मुख्य केन्द्र बिन्दू मोदी जी है, इसलिए यह सामान्य धारणा बलवती हो गई है कि अगले छः महीनें में देश में कोई भी जनहित, कल्याण या विकास का काम नहीं होना है, क्योंकि भाजपा को जहां अपना रूतबा कायम रखने की चिंता है, तो प्रतिपक्षी दलों को अपनी साख बचाने की प्रमुख चिंता है और ऐसे ‘अग्निपरीक्षा’ वाले समय में सरकार को उसके खिलाफ खूफिया रिपोर्ट मिले तो मुखिया की हालत का अंदाजा कोई भी लगा सकता है, बस यही एक कारण है मोदी जी के अचानक रूख परिवर्तन का।

दूसरी तरफ यह भी विचारणीय है कि पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों को लोकसभा चुनाव का ‘सेमी फायनल’ कहा जा रहा है, ये चुनाव परिणाम एक ओर जहां मोदी जी का भविष्य तय कर देगें, वहीं देश के राजनीतिक भविष्य का भी शंखनाद कर देगें और मोदी जी को पता है कि चुनावी राज्यों में से मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ में बड़ी चुनौती है, क्योंकि इनमें से मध्यप्रदेश को छोड़ बाकी दो राज्यों राजस्थान व छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकारें थी, इसलिए इन पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों व उनके परिणामों पर सबकी तीखी नजरें है, क्योंकि इन राज्यों के चुनाव परिणाम लोकसभा के परिणामों की झांकी प्रस्तुत करने वाले है।

….फिर कांग्रेस ही एकमात्र ऐसा राष्ट्रªीय दल है जो भाजपा का मुकाबला कर सकता है, किंतु विचारणीय बिन्दू यह है कि मौजूदा राजनीतिक माहौल से स्वयं कांग्रेसी ही चिंतित है, क्योंकि इस दल में नेतृत्व क्षमता धीरे-धीरे शून्य होती जा रही है, इसलिए यह संभावना व्यक्त की जा रही है कि कांग्रेस के रसातल की ओर अग्रसर होने से देश के मतदाताओं के सामने भाजपा का कोई राष्ट्रªीय विकल्प शेष नहीं बचा, इसलिए अब अगले चुनावों में या तो मतदान की मशीनों पर नोटा की संख्या बढ़ेगी या मजबूरी में भाजपा को ही चुनना पड़ेगा? देश के मतदाताओं के सामने ऐसी दुविधापूर्ण स्थिति पहली बार पैदा हुई है।

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