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‘आएगा तो मोदी ही, आएगा तो मोदी ही’

pm narendra Modi

मुझे नहीं मालूम कि नरेंद्र भाई ही आएंगे या नहीं। लेकिन मुझे इतना मालूम है कि अगर वे आएंगे तो हमारे देश का, हमारे समाज का, क्या-क्या जाएगा और अगर वे जाएंगे तो क्या-क्या आएगा। भाजपा का आना अलग बात है। नरेंद्र भाई का आना अलग बात। नरेंद्र भाई के आने को भाजपा का आना समझने वाले मासूम हैं। भाजपा तो अब तब आएगी, जब नरेंद्र भाई जाएंगे। जो यह समझ लेंगे, देश पर उपकार करेंगे। pm narendra Modi

‘आएगा तो मोदी ही, आएगा तो मोदी ही’ की रट जैसे-जैसे नरेंद्र भाई मोदी (pm narendra Modi) ख़ुद ही ज़ोर-ज़ोर से लगाने लगे हैं, मुझे इन गर्मियों में उन के रायसीना पहाड़ी पर वापस आने को ले कर संदेह बढ़ता जा रहा है। 2014 में जब वे आए तो इसलिए आए थे कि उन्होंने देश को यक़ीन दिला दिया था कि ‘अच्छे दिन आने वाले हैं’। pm narendra Modi

फिर 2019 में वे आए तो इसलिए आए कि देश को लगा कि कुछ काम शायद अधूरे रह गए हैं, सो, ‘फिर एक बार, मोदी सरकार’ ही आनी बेहतर है। लेकिन 2024 में देश आश्वस्त है कि जो भला-बुरा होना था, हो चुका और अब बिगाड़ के अलावा कुछ होने वाला नहीं है। चूंकि नरेंद्र भाई को इस का अहसास हो गया है, इसलिए वे थोपू-मुद्रा में आ गए हैं और यह कह-कह कर अपना ख़ौफ़ फैला रहे हैं कि आऊंगा तो मैं ही, ताकि मतदाता किसी और की हिमायत में खड़ा होने से पहले पसोपेश में पड़ जाए। pm narendra Modi

नरेंद्र भाई भीड़ का मनोविज्ञान जानते हैं। उन्हें मालूम है कि बार-बार एक ही जुमला और एक ही दृश्य अगर सामने आता रहे तो वह कितना ही मिथ्या हो, भीड़ उसे वास्तविक मान लेती है। सो, वे दिन में दस बार और रात में बीस बार ‘आएगा तो मोदी ही’ का जप कर रहे हैं। मगर अब देश भी नरेंद्र भाई का मनोविज्ञान समझने लगा है। देश जानता है कि अपना लक्ष्य हासिल न कर पाने की आशंका से भयभीत व्यक्ति दूसरों से ज़्यादा स्वयं को विश्वास दिलाने के लिए तरह-तरह के सूत्र-वाक्य गढ़ लेता है और उन्हें निरंतर दोहराता है। ‘आएगा तो मोदी ही’ इसी तरह का तकिया-कलाम है। इसलिए आप देख रहे हैं कि नरेंद्र भाई ख़ुद ही यह बुदबुदा रहे हैं। उन के अलावा कोई और यह नहीं कह रहा है। pm narendra Modi

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क्या आप ने संघ-प्रमुख मोहन भागवत को कहीं यह कहते सुना कि ‘आएगा तो मोदी ही’? क्या आप ने केंद्र के किसी भी महत्वपूर्ण मंत्री के मुंह से इस जुमले की रटंत कहीं सुनी? क्या आप ने योगी आदित्यनाथ जैसे भारतीय जनता पार्टी के किसी प्रभावशाली मुख्यमंत्री को इस गान की तान पर कभी थिरकते देखा? क्या भाजपा को मार्गदर्शन देने वाली मंडली का कोई सदस्य आप को कहीं इस चालीसा का पाठ करता मिला? अगर नहीं तो इस का अर्थ क्या है? इस का अर्थ है कि सब के मन में ऊहापोह है कि इस बार नरेंद्र भाई वापस आ पाएंगे कि नहीं। स्वयं नरेंद्र भाई के भी अंतर्मन में यही खटका है। इसलिए वे ‘आएगा तो मोदी ही’ का खटराग पसार रहे हैं।

इस चक्कर में कैसे बेतुके नजारे आकार ले रहे हैं, इस की फ़िक्र कौन करे? दिल्ली के भारत मंडपम में शनिवार-रविवार को भाजपा का दो दिनी राष्ट्रीय सम्मेलन हुआ। उस के समापन भाषण में नरेंद्र भाई ने मियां-मिट्ठुई शैली में ‘आएगा तो मोदी ही, आएगा तो मोदी ही’ का समां बांध दिया। अपने तकिया-कलाम के अनुमोदन की एक बड़ी मज़ेदार दलील भी दे डाली। देश भर से आए भाजपाइयों को बताया कि उन के पास अभी से दुनिया के कई देशों से जून-जुलाई-अगस्त-सितंबर में यात्रा के निमंत्रण आ गए हैं। बोले कि इस का मतलब है कि पूरी दुनिया भी समझ गई है कि ‘आएगा तो मोदी ही’। pm narendra Modi

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राजनय की व्यवहार-संहिता के जानकार पिछले रविवार से अपना माथा पीट रहे हैं। वे चकित हैं कि वैश्विक कूटनीति के अंगने में यह नई परंपरा कब से आरंभ हो गई है कि किसी मुल्क की सरकार दूसरे देश के संवैधानिक पदनाम को आमंत्रित करने के बजाय किसी व्यक्ति-विशेष को दावतनामा भेजे? निमंत्रण भारत के प्रधानमंत्री के लिए हैं या राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक नरेंद्र भाई मोदी के लिए? राष्ट्रपतियों-प्रधानमंत्रियों को विदेश यात्राओं के निमंत्रण चार-छह महीने पहले भेजना एक बहुत ही सामान्य व्यवस्था है। इन यात्राओं में होने वाली वार्ताओं और किए जाने वाले अनुबंधों की तैयारियों में इतना वक़्त तो लगता ही है। pm narendra Modi

क्या भारत की यात्रा पर आने वाले परदेसी शासन-प्रमुख चार-छह दिन पहले फ़ोन करने पर अपना बस्ता लिए दौड़े चले आते हैं? मगर वायुसेना तक को आसमान में बादल होने पर विमान के राडार की पकड़ में न आने का यक़ीन दिलाने पर उतारू हमारे हृदय सम्राट अगर भावी निमंत्रण पत्रों के बूते हमें ख़ुद की चुनावी वापसी को ले कर आश्वस्त कर रहे हैं तो इस में मैं तो उन का कोई कसूर मानता नहीं।pm narendra Modi

‘आएगा तो मोदी ही’ का आत्मकेंद्रित एकालाप अभी तो हर दिन और घना होता जाएगा। मैं इस से डरा हुआ नहीं हूं कि नरेंद्र भाई आ जाएंगे तो क्या होगा? मुझे तो यह डर लग रहा है कि अगर कहीं इतने घनन-घनन के बाद भी वे नहीं आ पाए तो क्या होगा? पहले यह होता था कि भाजपा आती थी तो उस सामूहिक प्रयास के परिणामस्वरूप कोई आया करता था। दस बरस पहले यह हुआ कि नरेंद्र भाई आए तो भाजपा आई। तब से नरेंद्र भाई आते हैं तो भाजपा आती है।

सो, अगर इस बार नरेंद्र भाई नहीं आए तो वे अकेले नहीं जाएंगे, भाजपा भी चली जाएगी। उन्होंने भाजपा को अपने में ऐसा समाहित कर लिया है और भाजपा भी उन में ऐसी समाहित हो गई है कि जब तक नरेंद्र भाई सिंहासन पर हैं, तभी तक भाजपा सिंहासन पर है। जिस दिन वे उतरे, भाजपा-संगठन भी हवा-हवाई हो जाएगा। प्रेम गली अति सांकरी, जा में दो न समाय। pm narendra Modi

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मोदी-युग के पहले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अपनी एक स्वायत्त सत्ता हुआ करती थी। भाजपा तो उस का राजनीतिक प्रकोष्ठ थी। वह संघ की सक्रियता और भूमिगत ऊर्जा के चलते चुनाव जीता करती थी। मगर जब से अपने नरेंद्र भाई आए, बाकी तो जिन-जिन संवैधानिक संस्थाओं की स्वायत्तता घास चरने चली गई, सो चली गई; बिना किसी संविधान के 99 साल से चल रहे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्वायत्तता भी खूंटी पर लटक गई। नरेंद्र भाई के पहली बार प्रधानमंत्री बनने के एक साल बाद मोहन भागवत ने सरकार से रपट मांगने का जो जलवा दिखाया था, वह उन पर ऐसा भारी पड़ा कि नरेंद्र भाई ने संघ पर ही पूर्णविराम लगा दिया।

अब संघ-प्रमुख पितृ-पुरुष से प्रतीक-पुरुष में तब्दील हो गए हैं। पिछले आठ बरस से वे बिना कोई चूं-चपड़ किए सिर्फ़ वार्षिक दशहरा व्याख्यान परोस कर अपना समय काट रहे हैं। असली अनुच्छेद 370 तो नरेंद्र भाई ने संघ का ख़त्म किया है। अब संघ की ज़मीन अपनी नहीं रही। सबै भूमि नरेंद्र भाई की। सारे संघ-शिखर ठनठन गोपाल। सो, ‘आएगा तो मोदी ही’ में जिन-जिन के लिए चेतावनी की घ्वनि छुपी है, उन में एक मोहन भागवत का सांस्कृतिक संगठन भी है। pm narendra Modi

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मुझे नहीं मालूम कि नरेंद्र भाई ही आएंगे या नहीं। लेकिन मुझे इतना मालूम है कि अगर वे आएंगे तो हमारे देश का, हमारे समाज का, क्या-क्या जाएगा और अगर वे जाएंगे तो क्या-क्या आएगा। भाजपा का आना अलग बात है। नरेंद्र भाई का आना अलग बात। नरेंद्र भाई के आने को भाजपा का आना समझने वाले मासूम हैं। भाजपा तो अब तब आएगी, जब नरेंद्र भाई जाएंगे। जो यह समझ लेंगे, देश पर उपकार करेंगे। pm narendra Modi

By पंकज शर्मा

स्वतंत्र पत्रकार। नया इंडिया में नियमित कन्ट्रिब्यटर। नवभारत टाइम्स में संवाददाता, विशेष संवाददाता का सन् 1980 से 2006 का लंबा अनुभव। पांच वर्ष सीबीएफसी-सदस्य। प्रिंट और ब्रॉडकास्ट में विविध अनुभव और फिलहाल संपादक, न्यूज व्यूज इंडिया और स्वतंत्र पत्रकारिता। नया इंडिया के नियमित लेखक।

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