राहुल ने कहा था यूपी सबसे बड़ा उलटफेर करेगी। इंडिया गठबंधन 50 सीटों परजीतेगी। अखिलेश ने भी ऐसा ही कहा था। जबकि गोदी मीडिया के एक्जिट पोलइंडिया को पांच सीटे भी देने को तैयार नहीं थे। मगर जनता ने मोदी और योगी दोनों का अहंकार तोड़ दिया। बता दिया कि वोटकाम करने से मिलते हैं। बातों से नहीं। बुलडोजर लोगों का दिल नहीं जीतसकता।
तो क्या है चुनाव का मैसेज? सबसे बड़ा यह कि अहंकार किसी का नहीं रहता।इस चुनाव के शुरू होने तक या यह कहिए मंगलवार सुबह तक भी प्रधानमंत्रीमोदी यह समझ रहे थे कि वे देश की ऐसी ताकत बन गए हैं जो इससे पहले कभीनहीं थी। न भूतो न भविष्यति!
मगर मतगणना शुरू होते ही खबर आई कि बनारस से मोदी जी पीछे चल रहे हैं।हड़कंप मच गया। वैसे तो यह सामान्य बात है। चुनाव में प्रत्याशी आगे पीछेहोते रहते हैं। मगर मोदी जी और उनका गोदी मीडिया यह मानता ही नहीं था किमोदी जी भी पीछे हो सकते हैं। चाहे कुछ ही देर को हों। इलेक्शन कमीशन कीसाइट पर आ गया। मगर चैनल वाले दिखाने की हिम्मत नहीं कर पाए। जब यू ट्यूबपर चला, सोशल मीडिया पर चला तो एकाध चैनल ने हल्की सी पट्टी चलाई और फौरनहटा ली। एक डर का वातावरण था।
मगर यूपी से फिर जो लहर चली थोड़ी देर में वह आंधी बन गई। और मोदी के साथयोगी को भी करारा झटका दे गई। मोदी योगी उनके भक्त, गोदी मीडिया किसी कोउम्मीद नहीं थी कि यूपी में यह माहौल होगा। मगर इस चुनाव में दो बड़ेनायक बन कर उभरे राहुल गांधी और अखिलेश यादव।
राहुल ने कहा था यूपी सबसे बड़ा उलटफेर करेगी। इंडिया गठबंधन 50 सीटों परजीतेगी। अखिलेश ने भी ऐसा ही कहा था। जबकि गोदी मीडिया के एक्जिट पोलइंडिया को पांच सीटे भी देने को तैयार नहीं थे।मगर जनता ने मोदी और योगी दोनों का अहंकार तोड़ दिया। बता दिया कि वोटकाम करने से मिलते हैं। बातों से नहीं। बुलडोजर लोगों का दिल नहीं जीतसकता।
इस चुनाव ने दोनों के भविष्य पर प्रश्नचिन्ह लगा दिया है? सारे नतीजे अभीआना बाकी हैं। मुकाबला कांटे का है। क्षेत्रीय दलों पर बहुत कुछ निर्भरकरेगा। मोदी जी का मैं अकेला सब पर भारी का गुमान खत्म हो गया। वे तोबीजेपी को ही कुछ नहीं समझते थे। एनडीए को कुछ मानने का तो सवाल ही नहींपैदा होता। जो हमेशा से भाजपा के सहयोगी रहे। खुद को नेचुरल अलायंस कहतेथे उन शिवसेना और अकाली दल को न केवल अलग कर दिया बल्कि उनके खिलाफ खूबबोले भी। मगर अब कल वे एनडीए की मीटिंग बुला रहे हैं।
बीजेपी में सुगबुगाहट शुरू हो गई है। पूरा चुनाव मोदी जो के नाम पर लड़ागया। मोदी सरकार, मोदी परिवार, मोदी तीसरी बार। हर जगह सिर्फ मोदी मोदी।भाजपा का तो कहीं नाम ही नहीं। संघ जिसने मोदी को बनाया और मोदी क्यासारी भाजपा ही उसकी बनाई हुई है उसके लिए भाजपा अध्यक्ष नड्डा ने कह दियाकि हमें अब उसकी जरूरत नहीं।
जैसे शिवसेना और अकाली दल को उठाकर फैंक दिया वैसे ही संघ को भी अनावश्यककरार दिया। जनता को तो पहले ही कुछ नहीं समझते थे। उसकी बेरोजगारी,महंगाई जैसी समस्याओं की बात तक नहीं करते थे। अभी कांग्रेस अध्यक्ष खरगेजी ने बताया था कि उन्होंने पिछले दो हफ्ते के आंकड़े इकट्ठे किए औरउसमें मोदीजी ने 750 से ज्यादा बार सिर्फ मोदी मोदी बोला। और एक बार भीरोजगार, नौकरी का नाम नहीं लिया।
मतलब आज जनता की सबसे बड़ी समस्या बेरोजगारी है। और मोदी जी के लिए वहबात करने का भी विषय नहीं। जनता ने इसी का जवाब दिया है।
2019 में 303 सीट दी थीं बीजेपी को अब 240 के करीब रोक दिया है। मतलबसामान्य बहुमत से भी पहले। देर रात अख़बार छपने तक कुछ ज्यादा कम होजाएं। मगर पिछली बार से बहुत कम। इसे क्या कहते हैं? नकारना। जी हां जनता ने मोदी जो को नकार दिया है। दससाल झेला। अब और नहीं।
प्रधानमंत्री कौन बनेगा पता नहीं। लेकिन अगर मोदी जी भी बनते हैं तो उनकावह भौकाल अब नहीं रहेगा। बनारस से कितने वोटों से जीतेंगे यह भी अभी यहलिखने तक पता नहीं। मगर जितने से भी जीतें उन शिवराज सिंह चौहान से बहुतपीछे होंगे जिन्हें उन्होंने बिना कारण मुख्यमंत्री पद से हटा दिया था।शिवराज आठ लाख से ज्यादा वोटों से जीते हैं। विनम्रता की जीत। हालत यह थीकि जब शिवराज मुख्यमंत्री थे तो मोदी उनके नमस्कार का भी जवाब नहीं देतेथे। और जो मध्य प्रदेश में 2023 में विधानसभा में भाजपा की जीत हुई है।
वह उन्हीं कि वजह से। उनकी लाडली बहन चली।
तो अब यह बातें तो बीजेपी में होंगी कि शिवराज आठ लाख वोटों से जीततेहैं। और मोदी उनके आधे से भी नहीं। चौथाई से भी जीतना मतलब दो लाख से भीबड़ी बात हो रही है।
इस जीत के साथ और यूपी में बड़ी हार के साथ अगर मोदी प्रधानमंत्री भीबनते हैं तो राजनाथ सिंह और गडकरी जैसे वरिष्ठ नेता अब किनारे नहींरहेंगे। वाजपेयी के समय में जैसे सभी नेता बराबर सम्मान पाते थे। सबकामहत्व था वह दिन भाजपा में वापस आ सकता है।
और इसका पूरा श्रेय जाता है राहुल गांधी को। उनकी कन्सिसटेन्सी (निरंतरता) निराश नहीं होना, साहस और मेहनत ने यह तस्वीर बदली है। पतानहीं क्या होगा। हो सकता है इन्डिया की सरकार बन जाए। नीतीश कुमार औरचन्द्रबाबू नायडू पाला बदल लें। कुछ भी हो सकता है। लेकिन अगर एनडीए कीभी सरकार बनती है और मोदी जी ही प्रधानमंत्री बनते हैं तो कम से कम यहमिथ तो टूट जाएगा कि मोदी को हराया नहीं जा सकता।
लोकतंत्र की वापसी। पहले जैसे चुनाव होते थे वैसे वापस होने की शुरूआत।
हार जीत को खेल की भावना से लेना फिर शुरू होना भी बड़ी जीत है।अभी तो हाल यह था कि रात तक कहा जा रहा था कि समाजवादी पार्टी यूपी मेंदंगा करवा रही है। मतलब समाजवादी पार्टी ने कहा कि सचेत रहो तो इसेउन्होंने ऐसे पेश किया कि सपा लोगों को भड़का रही है। रात को कई सपा केनेताओं को घरों में नजरबंद किया गया। मगर सुबह मतगणना शुरू होते ही माहौलबदल गया।
इस चुनाव में अगर दो लोगों का ग्राफ गिरा है मोदी और योगी का तो दो काग्राफ बढ़ा भी है। राहुल और अखिलेश का। राहुल की हिम्मत तो लाजवाब रहीही। अखिलेश का पीडीए का फार्म्यूला भी जबर्दस्त चला। पीडीए मतलब पी सेपिछड़ा डी से दलित और ए से अल्पसंख्यक। तीनों एकजूट हो गए। इसमें खास बातयह है कि पिछड़ों में गैर यादव भी अखिलेश के साथ आए। और दलितों का आना तोनिर्णायक रहा। यह तो सबको मालूम था कि दलित मायावती से टूटा है। मगर वहभाजपा में न जाकर अखिलेश और कांग्रेस के साथ आया यह बड़ी बात थी। एककहानी जबर्दस्ती की बनाई जा रही थी कि दलित सपा के साथ नहीं जा सकता। इसचुनाव ने यह धारणा तोड़ दी। संविधान के नाम पर, आरक्षण के नाम पर, जातिगणना के नाम पर दलित और पिछड़े एक हो गए। और अल्पसंख्यक भी मायावती कीतरफ जरा भी नहीं गया। सपा और कांग्रेस में उसने अपना विश्वास बनाए रखा।
चुनाव हो गए। लोकतंत्र और जनता जीत गई। मोदी और योगी मानें या नहीं मानेंजनता ने दोनों को कड़ा सबक सिखाया है। दोनों का अहंकार इतना बढ़ गया किदोनों एक दूसरे को भी मानने को तैयार नहीं थे। चुनाव ने बताया कि जनतादोनों को मानने को तैयार नहीं है। जनता को अहंकार नहीं भाता।