यह एक तकनीकी स्थिति है कि भाजपा को पहले जितना मत प्रतिशत होने के बावजूद सीटों की संख्या में कमी आ गई। लेकिन इतना स्पष्ट है कि जनादेश श्री नरेंद्र मोदी को ही मिला है। उनके नेतृत्व में एनडीए ने चुनाव लड़ा था। उनके नाम और 10 साल के काम पर वोट मांगा गया था। चाहे बिहार में नीतीश कुमार हों या आंध्र प्रदेश में चंद्रबाबू नायडू सबने मोदी को प्रधानमंत्री बनाने के लिए वोट मांगा था और मतदाताओं ने उनकी झोली भर दी।
लोकसभा चुनाव, 2024 के परिणामों का विश्लेषण कई पहलुओं से किया जा रहा है। एकाध अपवादों को छोड़ दें तो सारे विश्लेषण अलग अलग प्रकार के पूर्वाग्रहों से ग्रसित दिख रहे हैं। कई बार तो ऐसा प्रतीत होता है कि 2024 के जनादेश की पूरी तरह से गलत व्याख्या की जा रही है। ऐसा दिखाया जा रहा है, जैसे भारतीय जनता पार्टी चुनाव हार गई है और कांग्रेस पार्टी या उसका गठबंधन चुनाव जीत गया है। भारतीय जनता पार्टी की लोकसभा सीटों की संख्या 303 से कम होकर 240 हो जाने को चुनावी हार तो कहा ही जा रहा है, कई लोग इसे नैतिक पराजय भी बता रहे हैं।
दूसरी ओर कांग्रेस की सीटों की संख्या 52 से बढ़ कर 99 होने को महान विजय की तरह प्रस्तुत किया जा रहा है। तभी एनडीए की बैठक में किया गया प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी का यह व्यंग्य बहुत सटीक है कि भाजपा को कम होकर भी जितनी सीटें मिली हैं उतनी तो पिछले तीन चुनावों को मिला कर कांग्रेस को नहीं मिली है। 2014, 2019 और 2024 इन तीनों चुनावों को मिला कर कांग्रेस को 195 सीटें मिली हैं, जबकि भाजपा को 2024 में 240 सीटों मिली हैं। इसलिए चुनाव का विश्लेषण करने वाले हर राजनीतिक जानकार को तथ्यों और आंकड़ों को सही परिप्रेक्ष्य में जनता के सामने रखना चाहिए।
वास्तविकता यह है कि भाजपा के मत प्रतिशत में बहुत मामूली गिरावट आई है। मत प्रतिशत के हिसाब से यह गिरावट एक फीसदी से भी कम है, जबकि मतों की संख्या में यह पिछली बार से डेढ़ करोड़ ज्यादा है। भाजपा को लोकसभा चुनाव, 2024 में 36.56 प्रतिशत वोट मिले हैं। पिछली बार उसे 37.36 फीसदी वोट मिले थे। यानी इस बार उसके मत प्रतिशत में 0.80 प्रतिशत की कमी आई है। ध्यान रहे यह गिरावट भी मतदाताओं की नाराजगी की वजह से नहीं है, बल्कि मतदाताओं की स्वाभाविक थकान या भाजपा की जीत की आश्वस्ति में समर्थकों के घर बैठ जाने की वजह से है। भाजपा के मत प्रतिशत की कमी कुल मतदान में आई गिरावट के समानुपातिक है।
भाजपा को 2019 में 22 करोड़ वोट मिले थे, जबकि 2024 में उसे साढ़े 23 करोड़ के करीब वोट मिले हैं। कह सकते हैं कि मत प्रतिशत के मुकाबले सीटों की संख्या का अनुपात कम हो गया और ऐसा एक स्वार्थी और बेमेल गठबंधन की वजह से हुआ है। ध्यान रहे भाजपा को 2014 में 31 फीसदी वोट मिले थे और उसने 284सीटें जीती थीं तब मत प्रतिशत और सीटों की संख्या का अनुपात 1.68 का था। 2014 में भाजपा को 37.36 फीसदी वोट और 303 सीटें मिलीं। तब यह अनुपात कम होकर 1.50 का हो गया।
इस बार यह थोड़ा और कम हो गया क्योंकि सत्ता के लिए तड़प रही विपक्षी पार्टियों ने किसी तरह से भाजपा को हराने के लिए एक गठबंधन बना लिया था, जिसमें कहीं कांग्रेस, कम्युनिस्ट, आम आदमी पार्टी आदि आपस में लड़ रहे थे तो कहीं साथ लड़ रहे थे। कांग्रेस के इतना स्वार्थी गठबंधन करने के बावजूद उसे इस चुनाव में 21.19 फीसदी वोट मिले यानी भाजपा से साढ़े 15 फीसदी कम। 2019 में उसे 19.31 फीसदी वोट मिले थे यानी पांच साल के बाद तमाम किस्म के समझौतों के बावजूद उसका वोट सिर्फ पौने दो फीसदी बढ़ा। अगर भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए की बात करें तो उसे 45 फीसदी से ज्यादा वोट और 293 लोकसभा सीटें मिलीं। यानी स्पष्ट बहुमत से 21 सीटें ज्यादा मिलीं।
आंकड़ों के इस संक्षिप्त विश्लेषण का निष्कर्ष यह है कि न तो कांग्रेस के मत प्रतिशत में कोई बड़ा उछाल आ गया और न उसका इंडी गठबंधन बहुमत के आसपास भी पहुंचा सका। तभी आश्चर्य है कि कांग्रेस और उसके लिए काम करने वाला वामपंथी इकोसिस्टम परिणामों के तुरंत बाद ऐसे ढोल पीटने लगा, जैसे भाजपा हार गई और कांग्रेस को बड़ी जीत मिल गई। वास्तविकता यह है कि कांग्रेस लगातार तीसरी बार बुरी तरह से चुनाव हारी है और उसका गठबंधन भी हारा है। यह एक तकनीकी स्थिति है कि भाजपा को पहले जितना मत प्रतिशत होने के बावजूद सीटों की संख्या में कमी आ गई। लेकिन इतना स्पष्ट है कि जनादेश श्री नरेंद्र मोदी को ही मिला है। उनके नेतृत्व में एनडीए ने चुनाव लड़ा था। उनके नाम और 10 साल के काम पर वोट मांगा गया था। चाहे बिहार में नीतीश कुमार हों या आंध्र प्रदेश में चंद्रबाबू नायडू सबने मोदी को प्रधानमंत्री बनाने के लिए वोट मांगा था और मतदाताओं ने उनकी झोली भर दी।
लोकसभा चुनाव में तो एनडीए को पूर्ण बहुमत मिला ही देश के चार राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों में भी एनडीए ने सौ प्रतिशत सफलता का रिकॉर्ड बनाया। चारों राज्यों में एनडीए की सरकार बनी। अरुणाचल प्रदेश में भाजपा की सरकार रिपीट हुई है तो ओडिशा में पहली बार अपने दम पर भाजपा को बहुमत मिला है। गौर करें कि यह कितना बड़ा परिणाम है। नवीन पटनायक के 24 साल के शासन को भाजपा ने उखाड़ फेंका। वहां भाजपा ने किसी स्थानीय चेहरे पर चुनाव नहीं लड़ा था। चुनाव श्री नरेंद्र मोदी के चेहरे पर लड़ा गया था और भाजपा की जीत हुई। इसके अलावा दो राज्यों, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश में भाजपा की सहयोगी पार्टियों की सरकार बनी है।
इन दोनों राज्यों में जीत का जिक्र प्रधानमंत्री मोदी ने चुनाव नतीजों के बाद नई दिल्ली में पार्टी मुख्यालय में कार्यकर्ताओं को संबोधित करते समय किया था। लोकसभा चुनाव के नतीजों के तुरंत बाद चार जून को सबसे पहले सिक्किम के मुख्यमंत्री श्री प्रेम सिंह तमांग ‘गोले’ ने श्री नरेंद्र मोदी को बधाई दी और कहा कि सिक्किम क्रांतिकारी मोर्चा पूरी तरह से एनडीए से जुड़ा हुआ है। ध्यान रहे श्री प्रेम सिंह तमांग पूर्वोत्तर के एकमात्र मुख्यमंत्री हैं, जिनकी पृष्ठभूमि गैर कांग्रेस की है।
वे कभी कांग्रेस के साथ नहीं रहे। वैचारिक रूप से वे श्री नरेंद्र मोदी की विचारधारा के निकट रहे। इसी तरह तेलुगू देशम पार्टी के नेता चंद्रबाबू नायडू ने कहा कि वे अपनी पार्टी की ओर से इस महान राष्ट्र का नेतृत्व करने के लिए श्री नरेंद्र मोदी के नाम का प्रस्ताव करते हैं। नीतीश कुमार ने भी श्री नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री बनाने के लिए बिना शर्त समर्थन दिया। लोकसभा चुनाव में इतनी बड़ी जीत और चार राज्यों में एनडीए के स्पष्ट बहुमत से साथ सरकार बनाने के जनादेश के बाद भाजपा और उसके शीर्ष नेतृत्व या समर्थकों के भी विचलित होने का कोई कारण नहीं है। वोट अनुपात में सीटों की थोड़ी कम संख्या एक तकनीकी अवस्था और अस्थायी परिघटना है।
देश की जनता ने स्पष्ट जनादेश प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाले एनडीए को दिया है, जिसकी सरकार तीसरी बार आज यानी रविवार को शपथ लेने जा रही है। यह स्वीकार करने में किसी को हिचक नहीं होनी चाहिए कि यह जनादेश श्री नरेंद्र मोदी के उन संकल्पों को मिला है, जिसे आगे रख कर वे पिछले 10 साल से निरंतर काम कर रहे हैं। भाजपा के घोषणापत्र या संकल्प पत्र में ‘मोदी की गारंटी’ के नाम से जो वादे किए गए हैं लोगों ने उन पर भरोसा किया है और संविधान, आरक्षण आदि को काल्पनिक खतरा बताने के कांग्रेस और इंडी गठबंधन के दुष्प्रचार को नकार दिया है। इसलिए प्रधानमंत्री श्री मोदी को बगैर विचलित हुए अपने कर्तव्य पथ पर उसी तरह से आगे बढ़ना है, जैसे वे विगत 10 वर्षों से चल रहे हैं।
प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी को देश के 140 करोड़ लोगों की आकांक्षाओं को पूरा करना है, इसी के लिए उनको जनादेश मिला है। उनको मिला जनादेश तुष्टिकरण के लिए नहीं, बल्कि संतुष्टिकरण के लिए है। उनको बड़े आर्थिक और न्यायिक सुधारों के लिए जनादेश मिला है। उनको देश के लोगों ने बड़े सामाजिक बदलाओं के लिए जनादेश दिया है।
उन्होंने अपने 10 साल के पहले कार्यकाल में जम्मू कश्मीर से लेकर अयोध्या तक कई ऐतिहासिक भूलों को ठीक किया। आगे इन कार्यों को जारी रखने के लिए उन्हें जनादेश मिला है। समान नागरिक संहिता यानी ‘एक देश, एक कानून’ की व्यवस्था लागू होने की उम्मीद देश के नागरिक कर रहे हैं ताकि नागरिकों के साथ होने वाले भेदभाव खत्म हों। ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ की आकांक्षा को भी प्रधानमंत्री श्री मोदी को साकार करना है और इसके साथ ही महिला सशक्तिकरण के लिए लाए गए ‘नारी शक्ति वंदन कानून’ का क्रियान्वयन भी सुनिश्चित करना है। इसके लिए परिसीमन की जरुरत है और उम्मीद की जानी चाहिए कि श्री मोदी अपने सभी सहयोगियों की सहमति से यह कार्य पूर्ण करेंगे।
ऐतिहासिक गलतियों को ठीक करने और गुलामी की मानसिकता के प्रतीक चिन्हों को मिटाने का जो महती कार्य श्री नरेंद्र मोदी ने अपने पहले कार्यकाल से शुरू किया था वह किसी भी परिस्थिति में स्थगित नहीं होना चाहिए। प्रधानमंत्री ने खुद एनडीए की बैठक में कहा कि सरकार बनाने के लिए बहुमत और सरकार चलाने के लिए सर्वमत की जरुरत होती है। उनके पास बहुमत भी है और सर्वमत भी है। इसलिए कोई ऐसा कारण नहीं दिख रहा है कि वे अपने कर्तव्य पथ से विचलित हों।
उन्होंने अगले 26 साल में यानी आजादी की सौवीं वर्षगाठ तक भारत को विकसित राष्ट्र बनाने का प्रण किया है, तो उस दृष्टि से उनका यह कार्यकाल बेहद अहम है। उन्हें आम लोगों का जीवन स्तर बेहतर करना है और भारत का ऐतिहासिक गौरव वापस लौटाना है। स्वतंत्रता के बाद तुष्टिकरण की राजनीति के तहत जो गलतियां हुई हैं उनको दुरुस्त करने का महत्वपूर्ण कार्य भी प्रधानमंत्री को संपन्न करना है। इन सबके लिए भारत की महान जनता ने उनको जनादेश दे दिया है और अब अपनी आकांक्षाओं के पूर्ण होने की प्रतीक्षा कर रही है। (लेखक सिक्किम के मुख्यमंत्री प्रेम सिंह तमांग (गोले) के प्रतिनिधि हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)