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अकिंचनों की धरती पर परमात्मा का दूत

नरेंद्र भाई ने जो कहा, वह शब्दशः यूं हैः ‘‘मां के जाने के बाद मैं कन्विंस हो चुका हूं कि परमात्मा ने मुझे भेजा है। ऊर्जा बायोलोजिकल शरीर से नहीं, ईश्वर को मुझ से कोई काम लेना है, इसलिए उसने सामर्थ्य भी दी है, वही उर्जा देता है। ईश्वर मुझ से कुछ विशेष करवाना चाहता है।’’ प्रधानमंत्री जी ने इस इंटरव्यू में यह भी कहा कि मैं ने जीवन में तपस्या की है जी। अपना पल-पल खपाया है। इसलिए खपाया है कि ये (यानी हम भारतवासी) डिज़र्विंग हैं।… अब आप को और मुझे तो परमात्मा ने पृथ्वी पर भेजा नहीं। हम सब का निर्माण-उत्पादन तो यहां मृत्युलोक में ही हुआ है।

2024 के आम चुनाव के दौरान हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र भाई मोदी ने अख़बारों और टीवी चैनलों को दिए अपने बीसियों इंटरव्यू में बहुत-सी अद्भुत बातें कहीं और मैंने उन में से तक़रीबन सभी को बहुत ध्यान से पढ़ा-सुना। इस विमर्श ने मुझे नरेंद्र भाई के व्यक्तित्व में अंतर्हित कई विलक्षण आयामों से परिचित कराया। इन में से कुछ मेरे लिए सचमुच चकित करने वाले थे, क्योंकि उन का अंदाज़ पिछले दस बरस में मुझे तो कभी नहीं हुआ था। एक आदमी में किस तरह दस-बीस आदमी होते हैं, इसे समझना हो तो लोकसभा के इस चुनाव में, भाषणों के ज़रिए या इंटरव्यू के दौरान, कही गईं नरेंद्र भाई की तमाम बातों को संकलित कर उन का बारंबार पाठ करना चाहिए। 

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सब से ज़्यादा प्रभावित मुझे नरेंद्र भाई के उस इंटरव्यू ने किया, जो उन्होंने वराणसी के नमो घाट के सामने गंगा मैया की गोद में खड़े क्रूज़ पर चढ़ कर दिया था। इस इंटरव्यू के दौरान उन का गला भी भर्राया और आंखें भी नम हुईं। किसी की भी आंखें नम होना अच्छी बात है। यह किसी के भी बेहद भलामानुस होने की पहचान है। चक्रवर्ती सम्राटों की भीगी आंखें तो और भी लुभाती हैं। मगर इस से भी ज़्यादा असर मुझ पर नरेंद्र भाई द्वारा इस इंटरव्यू में प्रस्तुत उस संकल्पना ने किया, जिस में उन्होंने अपने बारे में यह अटूट विश्वास व्यक्त किया कि वे भले ही किसी भौतिक काया के माध्यम से, जिसे आप मां कह सकते हैं, इस धरती पर आए हैं, लेकिन उन्हें भेजा किसी दिव्य शक्ति ने है। नरेंद्र भाई ने कहा कि मैं पूरी तरह आश्वस्त हूं कि मुझे परमात्मा ने किसी विशेष उद्देश्य को पूरा करने के लिए भेजा है और वह परम शक्ति ही यह काम पूरा करने के लिए मुझे ऊर्जा, सामर्थ्य और प्रेरणा देती है। 

यह इंटरव्यू देखते-सुनते मेरा सिर स्वतः विनत-भाव से झुक गया। परमात्मा की तरफ़ से सीधे किसी ख़ास ज़िम्मेदारी का निर्वाह करने के लिए मनुष्यलोक में भेजे गए प्रकाश-पुंज के सम्मान में यह होना एकदम स्वाभाविक था। मुझे इस रहस्योद्घाटन ने गर्व से भर दिया कि भारत के प्रधानमंत्री कोई साधारण मनुष्य नहीं, देवदूत हैं। अगर कोई और कहता तो शायद मैं यह बात मानने से कुछ हिचकता भी, मगर जब नरेंद्र भाई ख़ुद अपने मुख से यह राज़ सार्वजनिक कर रहे हों कि उन की जैविक उपस्थिति कोई मायने नहीं रखती है, महत्व तो उस प्रयोजन का है, जिस के लिए उन्हें परमात्मा ने भेजा है तो तो फिर प्रत्यक्षम किम प्रमाणम? 

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नरेंद्र भाई ने जो कहा, वह शब्दशः यूं हैः ‘‘मां के जाने के बाद मैं कन्विंस हो चुका हूं कि परमात्मा ने मुझे भेजा है। ऊर्जा बायोलोजिकल शरीर से नहीं, ईश्वर को मुझ से कोई काम लेना है, इसलिए उसने सामर्थ्य भी दी है, वही उर्जा देता है। ईश्वर मुझ से कुछ विशेष करवाना चाहता है।’’ प्रधानमंत्री जी ने इस इंटरव्यू में यह भी कहा कि मैं ने जीवन में तपस्या की है जी। अपना पल-पल खपाया है। इसलिए खपाया है कि ये (यानी हम भारतवासी) डिज़र्विंग हैं। 

आप को और मुझे तो परमात्मा ने पृथ्वी पर भेजा नहीं। हम सब का निर्माण-उत्पादन तो यहां मृत्युलोक में ही हुआ है। हमारे ज़िम्मे कोई विशेष ध्येय पूरा करने का लक्ष्य भी शायद नहीं है। हम तो बस अपने-अपने पेट और अपने-अपने बच्चे पालने के लिए दर-दर भटकने और फिर रुख़सत हो जाने के चक्र में गोल-गोल चक्कर लगा रहे हैं। परमात्मा ने हमें ख़ुद अपने हाथ से बनाया होता तो फिर बात ही क्या थी? परमात्मा की छुअन से तो हमारा दूर-दूर तक वास्ता नहीं है। होगा भी तो महज़ इतना कि उन्होंने हमें बनाने का, मृत्युलोक में भेजने का और फिर वापस बुलाने का ठेका किसी को आवंटित कर दिया होगा। जब हम ठेके पर बनवाए जाने के बाद भी इतना इतराते घूमते हैं तो स्वयं परमात्मा द्वारा गढ़ कर विशेष उद्देश्य की गठरी दे कर भेजे जाने वाले की चाल में तरन्नुम पर आप को क्यों ऐतराज़ है? प्रधानमंत्री जी हमें अपनी तपस्या के लिए सुपात्र मानते हैं, यह जान कर मेरे सीने की चौड़ाई छप्पन नहीं, सत्तावन इंच की हो गई है। 

मैं तब था नहीं, इसलिए मैं ने देखा नहीं; मगर सुना-पढ़ा है कि महात्मा गांधी ने अपने जीवन में बड़ी तपस्या की। दुनिया भर में बहुत-से लोगों को लगता है कि उन्हें परमात्मा ने एक इतिहास रचने के लिए गढ़ा था। करोड़ों लोगों के अहसास में यह बसा है कि गांधी को शायद परमात्मा ने भारत की आज़ादी और सामाजिक क्रांति के लिए भेजा था। ऐसा ही सुभाषचंद्र बोस, भगत सिंह, चंद्रशेखर आज़ाद और अशफ़ाकउल्ला खान सरीखे नायकों के लिए कहा जाता है। मैं ने गांधी को खूब पढ़ा है। हमारे देश के बाकी दिग्गज नायकों के बारे में भी अध्ययन किया है। उन सभी के लिखे-बोले को कई बरस ठीक से खंगाला है। मैं ने उन में से किसी को यह कहते-लिखते नहीं पाया कि वे आश्वस्त हैं कि उन्हें किसी ख़ास मकसद को पूरा करने के लिए सीधे परमात्मा ने पृथ्वी पर भेजा है। 

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मुझे ऐसा भी कोई हवाला कहीं नहीं मिला कि गांधी-सुभाष ने कभी अपने कर्म को तपस्या की श्रेणी में स्वयं ही स्थान दे दिया हो। गांधी तो सींकिया पहलवान थे। बदन से सींकिया, मनोबल से पहलवान। उन्हें इतनी ऊर्जा कौन देता था? उन्हें इतना सामर्थ्य किसने दिया था? उन्हें इतनी प्रेरणा कहां से मिलती थी? बेचारे महात्मा गांधी अपने, पता नहीं कितने इंच के, सीने पर तीन गोलियां खा कर गोकुलधाम चले गए, मगर तब तक उन्हें मालूम ही नहीं चला कि उन्हें किसी दिव्य शक्ति ने धरती पर भेजा था या वे भी ठेके पर बनवाई गई खेप का हिस्सा बन कर मनुष्यलोक में आए थे? 

कुछ और भेंटवार्ताओं में नरेंद्र भाई ने दस और अहम बातें कहीं। 

एक, जब हम पर कोई दाग नहीं होता, तब हिम्मत होती है कुछ करने की। दो, मेरा हर संदेश एक वैल्यू सिस्टम से जुड़ा होता है, प्रतिबद्धता से जुड़ा होता है। तीन, मैं जिस सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि से आया हूं, मैं ने बहुत अपमान झेले हैं। चार, मेरी कोशिश है कि एकता के पहलुओं को ज़्यादा-से-ज़्यादा उभार सकूं। पांच, जाति, समुदाय और लिंग के आधार पर कोई भी भेदभाव सरकार के काम में नहीं होना चाहिए। छह, मैं ख़ुद उस बैठक में मौजूद था, जिसमें मनमोहन सिंह ने कहा था कि देश की संपदा पर पहला अधिकार मुसलमानों का होना चाहिए। सात, हिंदू-मुसलमान मोदी नहीं लाया। मैं ने न कभी मुसलमानों के खि़लाफ़ बोला है, न इस्लाम के खि़लाफ़। आठ, जैसे देश में आज़ादी की लड़ाई का महत्व है, वैसे ही राम मंदिर आंदोलन का है। नौ, अगर हिंदू कम हो जाएंगे तो दुनिया का नुकसान होगा, क्योंकि हिंदू ‘वसुधैव कुटुंबकम’ को मानता है। दस, हम अपने किए का कभी ढोल नहीं पीटते हैं। 

ये चुनाव न आते तो मेरी तो आंखें ही नहीं खुलतीं। मैं कभी समझ ही नहीं पाता कि मैं कितना नासमझ हूं कि अपने प्रधानमंत्री को अब तक समझ ही नहीं पाया था। प्रधानमंत्री तो नरेंद्र भाई के पहले 13 लोग बन चुके हैं भारत में। वे आए और गए। कहां से आए थे, कहां गए, किसे पता? किस ने उन्हें भेजा था और वे सोद्देश्य आए थे या निरुद्देश्य ही मारे-मारे फिरते रहे, किसे मालूम? सो, अपना नसीब सराहिए कि आप को मालूम है कि हमारे मौजूदा प्रधानमंत्री को किस ने कितना बड़ा काम करने भेजा है।

By पंकज शर्मा

स्वतंत्र पत्रकार। नया इंडिया में नियमित कन्ट्रिब्यटर। नवभारत टाइम्स में संवाददाता, विशेष संवाददाता का सन् 1980 से 2006 का लंबा अनुभव। पांच वर्ष सीबीएफसी-सदस्य। प्रिंट और ब्रॉडकास्ट में विविध अनुभव और फिलहाल संपादक, न्यूज व्यूज इंडिया और स्वतंत्र पत्रकारिता। नया इंडिया के नियमित लेखक।

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