चर्चिल ने कहा था, भारत के नेताओं की भाषा तो मीठी होगी मगर दिल चालबाजियों से, बेवकूफियों से भरा होगा। वे भारत को खत्म कर देंगे। उनका कहां आज सही साबित हो रहा है। ऐसी-ऐसी बाते कही जा रही हैं कि जिनकासच से कोई ताल्लुक ही नहीं है। खुद नोटबंदी करके घरेलू महिलाओं का सारा धन निकलवा लिया था। जो वे परिवार के आड़े वक्त के लिए रखती थीं। और अब मोदी कह रहे हैं कि कांग्रेस महिलाओं के मंगलसूत्र छीन लेगी!
अगर ब्राह्मणों के खिलाफ नफरत फैलाने से वोट मिलेगा तो उसके खिलाफ फैलाएंगे। राजपूतों के खिलाफ फैलाई ही है। और ऐसा किसी छोटे नेता ने नहीं बल्कि मोदी के खास केंद्रीय मंत्री पुरुषोत्तम रुपाला ने किया है। बहुत ही निम्न स्तर पर जाकर आरोप लगाए। रुपाला को दो बार माफी मांगना पड़ी। मगर जिस नफरत की विचारधारा से भर कर उन्होंने एक पूरे समुदाय विशेष को निशाने पर लिया उससे देश भर में राजपूत आक्रोशित हो गए।
इसे पहले तो भाजपा मानने को ही तैयार नहीं थी। कहने लगी और उसके साथ उसका मीडिया भी कि राजपूत कभी भाजपा से अलग हो ही नहीं सकता। लेकिन जब गुजरात से लेकर राजस्थान और उत्तर प्रदेश हर जगह राजपूतों की बड़ी-बड़ी सभाएं होने लगीं। और वहां बीजेपी को वोट नहीं देने की शपथ ली जाने लगी तो फिर मीडिया ने और भाजपा दोनों ने माना की राजपूतों के स्वाभिमान को गहरी चोट लगी है। शुरू शुरू में तो मीडिया ने इस तरह लिखा कि राजपूत नेता किसी भी पार्टी में हो उसकी आत्मा बीजेपी में होती है। लेकिन मीडिया की स्वामी भक्ति अलग चीज है सच्चाई अलग।
सच्चाई यह है कि क्या नफरत की राजनीति ने ब्राह्मण को छोड़ दिया? याद कीजिए पीलीभीत से चुनाव लड़े भाजपा प्रत्याशी जितिन प्रसाद ने तो यूपी में ब्राह्मणों के नरसंहार का बड़ा आरोप लगाते हुए आंदोलन छेड़ दिया था। वे उन दिनों कांग्रेस में थे। और कांग्रेस ऐसी किसी जातिवादी राजनीति का समर्थन करती नहीं है तो जितिन प्रसाद को एक ब्राह्मण संगठन अलग से बनाना पड़ा। लेकिन मजेदार यह है कि जिस भाजपा सरकार के खिलाफ वे ब्राह्मणों पर अत्याचार का आरोप लगाते हुए आंदोलन कर रहे थे उसी ने उनको अपने में मिला लिया। जितिन भाजपाई हो गए। मगर भाजपा सरकार का वह ब्राह्मणों के खिलाफ होने का आरोप मिटा नहीं।
सच यह है कि क्या राजपूत क्या ब्राह्मण, समाज के कौन से हिस्से को नफरत की राजनीति बख्श देगी? नफरत की आग है ही ऐसी चीज कि किसी को नहीं बख्शती। दलित, आदिवासी, ओबीसी महिला तो किसी गिनती में नहीं। तो सवाल किसी धर्म जाति या समुदाय की सोच का नहीं है। और वह सोच है निहित स्वार्थ की। स्वार्थ मतलब किसी भी कीमत पर सत्ता बनी रहना चाहिए।
पहले चरण के मतदान के बाद जब प्रधानमंत्री को अहसास हुआ कि जनता इस बार अपने मुद्दों पर चली गई है। युवा नौकरी के लिए वोट डाल आएं हैं। आम जनता महंगाई के खिलाफ मतदान कर आई है तो वे एकदम सकपका गए। पेनिक रिएक्शन में वे बोलने लगे जो आदर्श आचार संहिता, संविधान के खिलाफ तो था ही भारतीय दंड संहिता के अनुसार आपराधिक भी है। प्रधानमंत्री मोदी ने एक समुदाय का नाम लेकर, मुसलमानों का नाम लेकर समाज में वैमनस्य फैलाने की कोशिश की। एक दूसरे समुदाय को साफ तौर पर भड़काया कि कांग्रेस आपसे सारी धन संपत्ति छीन लेगी। और दूसरे समुदाय को दे देगी। मंगल सूत्र भी छीन लेगी। बहुत खतरनाक बाते हैं। यह सब आन रिकार्ड हैं। और हर तरह से आधारहीन झूठी।
कांग्रेस के घोषणापत्र में कहीं नहीं लिखा कि संपत्ति छीनकर बांटी जाएगी। कोई पार्टी लिख भी नहीं सकती। मगर प्रधानमंत्री मोदी ने सारी मर्यादाएं तोड़ दीं। यह करेंगे वह करेंगे। सब अपने अंदाजे। झूठ पर झूठ। सिर्फ नफरत फैलाना।
रामदेव ने यही तो किया था। डाक्टर झूठे। डाक्टर टर्र टर्र! यही तो कहा था। और कहा था कि मेरे पास है कोरोना की दवा। कैंसर की दवा। पुत्र प्राप्त करने की औषधि! क्या हुआ? सुप्रीम कोर्ट में हाथ जोड़े खड़े रहना पड़ता है। बार बार माफी मांगना पड़ती है।
यह सबको याद रखना चाहिए। दुनिया से सब मिट सकता है। मिटता रहता है। बदलता रहता है। मगर न्याय हमेशा रहता है। न्याय ही वह अवधारणा है जो मनुष्य को मनुष्य बनाए हुए है। जिस दिन न्याय मिट जाएगा। मनुष्यता खत्म हो जाएगी। कबीलों के समय से लेकर राजा बादशाहों के वक्त अंग्रेजों के टाइम और आज तक अगर कोई एक उम्मीद हमेशा रही तो वह इन्साफ की। कि वह होगा। देर हो सकती है। समय लग सकता है। व्यवधान भी आ सकते हैं। न्याय की कुर्सी डर भी सकती है। मगर हमेशा नहीं। एक ना एक दिन न्याय का हथोड़ा बजेगा। और किसी को नहीं छोड़ेगा। चाहे वह कितना ही शक्तिशाली क्यों न हो।
प्रधानमंत्री ने अपने पद कि सारी गरिमा गिरा दी है। दुनिया भर में भारत की हंसी उड़ रही है। किसलिए? इसलिए कि देश के सर्वोच्च पद पर बैठा व्यक्ति एक तरफ तो कह रहा है कि मेरी गारंटी! “ ये है मोदी की गारंटी ! “ और दूसरी तरफ कह रहा है लूट लेंगे! जनता को लूट लिया जाएगा ! वाह ऐसा तो कोई सरकार नहीं कह सकती। कोई अपना प्रधानमंत्री नहीं। हां, मगर बाहर का कह सकता है। चर्चिल ने कहा था। इंग्लैंड के प्रधानमंत्री रहे थे। हमें आजादी देना नहीं चाहते थे। तब उन्होने कहा था भारत के नेता भारत को लूट लेगें। सत्तर, सत्तर साल तो बहुत करते हैं। सत्तर साल में क्या किया यह भी पूछते हैं।
सत्तर साल में बाकी जो किया इसका जवाब कांग्रेस देगी। मगर यह किया। अंग्रेजो को गलत साबित किया। वह यह कि सत्तर साल तक चर्चिल को सही नहीं होने दिया। चर्चिल ने कहा था। यह सब आन रिकार्ड है। मोदी जी जैसा नहीं जो अंदाजे बता रहे हैं, फैंक रहे हैं कि यह होगा वह होगा। तो चर्चिल ने कहा था कि भारत के नेताओं की भाषा तो मीठी होगी। मगर दिल चालबाजियों से बेवकूफियों से भरा होगा। वे एक दूसरे पर आरोप लगाएंगे। और भारत को खत्म कर देंगे। यह आज सही साबित हो रहा है। ऐसे आरोप लगाए जा रहे हैं कि जिनका सच से कोई ताल्लुक ही नहीं है। खुद नोटबंदी करके घरेलू महिलाओं का सारा धन निकलवा लिया था। जो वे परिवार के आड़े वक्त के लिए रखती थीं। और अब कह रहे हैं कि कांग्रेस महिलाओं के मंगलसूत्र छीन लेगी! यही तो कहा था चर्चिल ने कि ऐसे आरोप, ऐसी राजनीति होगी।
अफसोस मोदी जी ने भारत के प्रधानमंत्री की क्षमताओं को नहीं पहचाना। भारत का प्रधानमंत्री कभी विश्व का नेता हुआ करता था। दुनिया के सबसे ज्यादा निर्गुट देशों नेता। निर्गुट आंदोलन में120 से ज्यादा देश थे और नेहरू उनके नेता थे। शीत युद्ध के दौरान रूस, अमेरिका को नियंत्रण में रखने वाली वास्तविक शक्ति। ऐसी नकली कहानियां नहीं कि मोदी जी ने रुस और युक्रेन का युद्ध रुकवा दिया। भाजपा नेताओं के इस दावे की जब दुनिया भर में खिल्ली उड़ी तो हमारे विदेश विभाग को इसका खंडन करना पड़ा।
प्राउड इंडियन हम तब थे। गौरवशाली भारतीय। नेहरू, इन्दिरा के जमाने में। आज तो हम ताली थाली बजाने वालों के नाम से जाने जाते हैं। झूठ के प्रचार में ही लगे रहते हैं। नफरत को अपना प्रमुख जीवन मूल्य बना लिया। सबसे बड़ा सिद्धांत। एक के बाद एक के खिलाफ फैलाते रहो।
आज उन्हें लगता है कि मुस्लिम के खिलाफ जहर फैलाने से वोट मिल सकता है तो उसके खिलाफ फैला रहे हैं। कल जैसा कि हमने शुरू में लिखा ब्राह्मण, राजपूत दलित, ओबीसी, आदिवासी जिस के खिलाफ नफरत फैलाने से फायदा दिखेगा उसके खिलाफ फैलाने लगेंगे। केन्द्रीय मंत्री रुपाला ने गुजरात में दलितों के एक वर्ग (रुखी समुदाय) के वोट लेने के लिए दूसरे समुदाय राजपूतों के खिलाफ नफरत फैलाई थी। यही भाजपा की राजनीति है। मगर इससे देश कहां जाएगा यह सोचना शायद उनका काम नहीं है।
मगर देश को सोचना पड़ेगा। चर्चिल कहते थे स्वार्थी नेता भारत को बांट देगे। मगर भारत ने सत्तर सालों तक चर्चिल को गलत साबित रखा। आगे भी करना पड़ेगा। नफरत के बदले प्रेम की राजनीति को आगे बढ़ाना होगा। राहुल गांधी ने मोहब्बत की दुकान यूं हीं नहीं खोलने की बात कही थी। वे जानते थे। और जानते हैं कि नफरत नहीं मोहब्बत ही भारत को एक रखेगी। आगे बढ़ाएगी।