भोपाल। विगत कुछ दिनों से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, चुनावी रैलियों में काँग्रेस को बदनाम करने के लिए , हिन्दुओं के मंगल सूत्र छिने जाने के आरोप सरे-आम लगा रहे हैं। वैसे उनके चुनावी भाषणों को वर्तमान आपराधिक कानून के तहत। दो समुदायों के मध्य नफरत फैलाने और शांति भंग करने वाला तो है। परंतु चुनाव आयोग से शिकायत किए जाने के बाद भी उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई। होना भी नहीं था –आखिरकार वे कोई आम आदमी या छोटे –नोट नेता तो है नहीं जो उनके िवरुद्ध पुलिस में कोई रिपोर्ट लिखाता.!
तीन पुराने आईएएस अफसरों ने जो कि आज चुनाव आयुक्त है , उन्होंने मोदी जी के भाषणों को चुनावी गुनाह नहीं माना। वहीं मध्यप्रदेश के मंत्री और बीजेपी के तेज़ –तरार नेता कैलाश विजयवर्गीय के िवरुद्ध इंदौर उच्च न्यायालय ने दो साल पुराने मामले में, दो समुदायों में नफरत फैलाने वाला भाषण देने के आरोप की जांच करने का आदेश दिया हैं ! वह भी 90 दिनों में। मसला यह है कि 2022 की रामनवमी के अवसर पर कैलाश विजयवर्गीय ने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट डाली थी, जिसमें अल्पसंख्यकों पर टिप्पणी की गयी थी। कांग्रेस नेता अमीनूल 16 अप्रैल 2022 को इंदौर के तिलक नगर थाने में शिकायत की थी की। तेलंगाना के वीडियो को विजयवर्गीय ने खरगोन का बताया था। होना क्या था मध्यप्रदेश पुलिस ने सूरी की शिकायत को दाखिल दफ्तर कर दिया। तब सूरी ने उच्च न्यायले में अर्जी लगाई कि पुलिस कोई कार्रवाई नहीं कर रही। कैसे करती आखिर वे प्रदेश के बीजेपी के बड़े नेता जो हैं।
खैर, यह था एक उदाहरण, जिसमें कानून से उम्मीद की गयी थी कि वह – दो समुदायों में नफरत फैलाने वाले लोगों के खिलाफ कार्रवाई करेगा। परंतु सत्तासीन दल के मंत्री या नेता के खिलाफ सिर्फ पुलिस ही नहीं। वरन केंद्रीय चुनाव आयोग भी पंगु हैं। उन्होंने ना केवल मुस्लिमों को कांग्रेस का हामी बता दिया, वरन हिन्दू बहुसंख्यकों को डराया भी कि बाहर से आए घुस पैिठयों (मुसलमानों) से ना केवल देश की एकता को खतरा है वरन ये सामाजिक बुराइयों के प्रतीक भी हैं। उन्होंने मुसलमानों द्वारा मांस – मछली और मुर्गा खाने को देश की सांस्कृतिक सभ्यता के खिलाफ भी बताया। इस संदर्भ मे उन्होंने बिना नाम लिए राहुल गांधी और लालू यादव तथा तेजस्वी यादव की ओर इशारा भी किया।
चुनाव आयोग द्वरा इन शिकायतों पर मौन साधने पर पूर्व केन्द्रीय मंत्री और नौकरशाह रहे यशवंत सिन्हा ने एक पोस्ट सोशल मीडिया पर डाली, जिसमें उन्होंने व्यांगात्मक लहजे में लिखा है कि देश के तीन पूर्व आईएएस अफसरों ने (चुनाव आयोग के सदस्य जिन्हें आम बोलचाल मे आयुक्त और मुख्य आयुक्त कहा जाता है) देश के महान और ताकतवर शक्तियों के खिलाफ क्या शानदार फैसला लिया है कि पूर्व प्रधान चुनाव आयुक्त शेषन होते तो वे भी नहीं ऐसा कर सकते थे। अब सवाल यही है कि क्या नरेंद्र मोदी के तरकश में धार्मिक आधार पर नफरत फैलाने की हिटलरी चाल के अलावा कोई और विकल्प नहीं बचा हैं..?
हिटलर ने भी जर्मनी में आम ईसाई लोगो को यहूदियों के िवरुद्ध भड़काते हुए। देश की गरीबी, बेरोजगारी और भ्रष्टाचार के लिए यहूदियों को जिम्मेदार बताया था। जिसके बाद उनका नरसंहार हुआ था। फिलहाल तो जिस तरह से नरेंद्र मोदी और उनकी पार्टी के नेता कड़क हिन्दुत्व के नाम पर समाज को विभाजित कर बहुसंख्यकों के वोट पाने का प्रयास कर रहे हैं, वह न केवल गलत है वरन कानूनी भी नहीं है। यह देश आखिर तो उन सभी लोग का है। जिनके पुतवाज़ों ने इस देश की उन्नति में योगदान दिया। महात्मा गांधी की आज़ादी की लड़ाई में भाग लिया कुर्बानी दी।