उनकी 9 दिन की वादा निभाओ यात्रा सोमवार कोअपने गृहनगर राघौगढ़ में पूरी भी हो गई। 31 मार्च को उन्होंने अपने संसदीय क्षेत्र राजगढ़ की पदयात्रा शुरू की थी। पदयात्रा में वे अब देशके सबसे प्रमुख यात्री बन गए हैं। 77 साल की उम्र में अभी उन्होंने 25 किलमीटर रोज पैदल यात्रा की। लोगों से मिलते बात करते हुए चलते रहे। जिसगांव में रात हो गई रुक गए।
इस चुनाव के शुरू होने से पहले हमने लिखा भी था और चैनल पर बोला भी था कि कांग्रेस के बडे नेताओं में से पार्टी दिग्विजय सिंह को जहां से कहेगी वह लड़ेंगे। और वे राजगढ़ पहुंच गए। और उनकी 9 दिन की वादा निभाओ यात्रा सोमवार को अपने गृहनगर राघौगढ़ में पूरी भी हो गई।
31 मार्च को उन्होंने अपने संसदीय क्षेत्र राजगढ़ की पदयात्रा शुरू की थी। पदयात्रा में वे अब देशके सबसे प्रमुख यात्री बन गए हैं। 77 साल की उम्र में अभी उन्होंने 25 किलमीटर रोज पैदल यात्रा की। लोगों से मिलते बात करते हुए चलते रहे। जिस गांव में रात हो गई रुक गए।
दिग्विजय राजनीति में संघर्ष के साथ सतत यात्री के रूप में प्रसिद्ध होगए है। इससे पहले 2017 – 18 में उन्होंने अपनी पहली चर्चित नर्मदा यात्रा निकाली थी। करीब साढ़े छह महीने की। 3330 किलोमीटर की पद यात्रा। वह यात्रा तख्ता पलट साबित हुई थी। 9 अप्रैल 2018 में समापन हुआ था। और सालके आखिर में भाजपा की 15 साल पुरानी सरकार विदा हो गई थी। वह अलग बात हैकि कमलनाथ उस तोहफे में मिली सरकार को भी चला नहीं पाए। और एक साल कुछ समयमें ही कांग्रेस में टूट फूट हो गई। सरकार चली गई। खैर वह अलग कहानी है।
अभी बात कांग्रेस में कौन कौन लड़ सकता है पर हो रही है। लड़ सकता है मतलब विपरीत परिस्थिति में, हर हाल में पार्टी केसाथ खड़े होना। नेतृत्व के आदेश का पालन करना।
तो पार्टी में यह हिम्मत फिर दिग्विजय ने दिखाई है। राहुल ने चुनाव शुरूहोने से पहले कहा कि सब बड़े नेताओं को यह चुनाव लड़ना चाहिए। मगरदिग्विजय के अलावा और किस बड़े नेता ने बीड़ा उठाया? यूपीए के दस साल में सब बड़े नेता मंत्री रहे। दिग्विजय ने मंत्री पदस्वीकार करने से इनकार कर दिया। ओल्ड स्कूल वचन निभाने वाले नेता।
रघुकुलरीत वाले। 2003 में मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव हारने के बाद कहा था दससाल कोई पद नहीं लूंगा तो नहीं लिया। मगर बाकी सब बड़े नेता मंत्री रहे। वे कोई भी दिग्विजय की तरह वचनों मेंबंधने वाले नहीं थे। वचन देते ही नहीं थे। तो उसे पूरा करने का सवाल ही नहीं।
आज की राजनीति में वचन, जबान, वादे, सत्य, संघ्रर्ष, पार्टी के प्रतिवफादारी का क्या मतलब? कौन इन पुराने उसूलों पर चलता है? मगर पुरानेलोगों में एक दिग्विजय और नयों में एक राहुल आज भी सिद्धांतों में जीते हैं। कोई भी खतरा उठाने को तैयार। अपनी व्यक्तिगत छवि की कोई चिन्तानहीं। पहली चीज पार्टी के प्रति वफादारी, दूसरी जनता के प्रति प्रेम औरतीसरी अथक मेहनत।
यहां तुलना की बात नहीं हो रही। कोई सवाल ही नहीं है। राहुल गांधी नेताहैं और दिग्विजय उनका आदेश मानकर चुनाव लड़ने वाले एक सिपाही। और यह पहलीबार नहीं है जब दिग्विजय इस तरह न चाहते हुए भी चुनाव मैदान में उतरे।2019 में भी पार्टी ने उन्हें बेमतलब भोपाल से चुनाव लड़वाया था। उस समयभी सब बड़े नेताओं की चुनाव लड़ने की बात हुई थी। मगर दिग्विजय के अलावाऔर कोई नहीं लड़ा।
2019 में भाजपा ने भोपाल में अपनी पूरी ताकत लगा दीथी। किसी भी तरह दिग्विजय को हराना है। भाजपा के लिए तब भी दिग्विजयप्रमुख विरोधी थे और अब भी हैं। भाजपा जानती है कि राहुल के साथ, परिवारके साथ, पार्टी के साथ दिग्विजय आखिरी तक रहेंगे।
जब कांग्रेस से जाने वालों की बात होती है तो कई नाम आते हैं। मगरदिग्विजय का नाम उनका बड़े से बड़ा विरोधी भी नहीं ले पाता। इस चुनाव मेंजब तक राहुल ने लड़ने के लिए कहा नहीं था। दिग्विजय इच्छुक नहीं थे। वेराज्यसभा के पहले से गी सदस्य हैं। और पूरे प्रदेश में और कई जगह प्रदेश केबाहर भी उनकी डिमांड रहती है। इसलिए एक क्षेत्र में बंधना कोई समझदारीनहीं थी। लेकिन जब पार्टी ने राजगढ़ से टिकट दे दिया। और पत्रकारों नेपूछा तो दिग्विजय ने कहा कि राजगढ़ क्या पार्टी कहती तो मैं वाराणसी सेमोदी जी के खिलाफ भी लड़ लेता।
कांग्रेस में आज से ऐसे ही नेताओं की जरूरत है। पार्टी जब विपक्ष मेंहोती है तो उसे अपने बारे में ही सोचने वाले नेताओं की जरूरत नहीं होती।न जनता से कटे अहंकारी नेताओं की। उसे चाहिए होते हैं ऐसे नेता जो जनतामें घुल मिल जाएं। कार्यकर्ताओं और आम जनता को अपना जलवा न दिखाएं। जनताऔर कार्ययकर्ताओं से बड़ा जलवा किसी का नहीं होता है। कांग्रेस इस समय अपने सबसे खराब समय में है। हालांकि राहुल गांधी की वजहसे वह लड़ती हुई दिख रही है। कांग्रेस का घोषणा पत्र भी हिट हो गया है।प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इसे वायरल करने में सबसे बड़ी भूमिका
निभाई है। बार बार इसका जिक्र करके उन्होंने लोगों की उत्सुकता बढ़ा दीहै। अब सब इसे पेज दर पेज पढ़ रहे हैं। मगर उन्हें मोदी द्वारा कही गई वहबात तो नहीं दिख रही कि इसमें मुस्लिम लीग है। लेकिन यह जरूर दिख रहा हैकि इसमें नौकरी की उम्मीदें हैं। घोषणा पत्र जिसे कांग्रेस ने न्याय पत्रके नाम से रिलिज किया है उसमें 30 लाख सरकारी नौकरियां देने की बात लिखीहै। न्याय पत्र में यह भी लिखा है कि कक्षा एक से लेकर 12 तक निशुल्कशिक्षा दी जाएगी। यह भी है कि शिक्षकों का काम केवल बच्चों को पढ़ानाहोगा। उनसे गैर- शैक्षणिक काम नहीं लिया जाएगा।
जैसे जैसे लोग न्याय पत्र पढ़ रहे हैं उन्हें नई नई चीजें देखने को मिलरही हैं। यह पढ़ना भी उन्हें चीन के संदर्भ में अच्छा लग रहा है कि“राष्ट्रीय सुरक्षा सीना ठोकने या अतिशयोक्ति पूर्ण दावों से नहीं होती। बल्कि सीमाओं पर सतर्कता से ध्यान देने और दृढ़ रक्षा तैयारियों से होतीहै। “ बहुत कुछ मिल रहा है। भूमिहीनों को जमीन देने की बात से लेकर दलित,आदिवासी, पिछड़ों एवं गरीब सामान्य वर्ग का आरक्षण 50 प्रतिशत से उपर लेजाने तक की बात है। मगर नहीं मिल रहा तो इसमें हिन्दु मुसलमान नहीं मिलरहा। मुस्लिम लीग नहीं मिल रहा। जिसकी बात बार बार प्रधानमंत्री कर रहेहैं।
प्रधानमंत्री की बात ढुंढने के चक्कर में दो बातें हो रही हैं। एक लोगबार बार और ध्यानपूर्वक कांग्रेस का न्याय पत्र पढ़ रहे हैं। और हर बारउन्हें अपने लिए नई नई चीजें मिल रही हैं। दूसरी बात अब वे भाजपा केघोषणा पत्र का इन्ताजर करने लगे कि उसमें नौकरी की क्या बात होगी। क्यायह बताया जाएगा कि दो करोड़ नौकरी प्रतिवर्ष के हिसाब से देने के वादेअनुसार दस साल में 20 करोड़ नौकरी दी जा चुकी हैं। और अब कोई बेरोजगार
नहीं है। कांग्रेस का नौकरी का वादा झुठा है। वह किस को नौकरी देगी जबकोई बेरोजगार बचा ही नहीं है। चुनाव बहुत दिलचस्प हो गया है। घोषणा पत्र पर आ गया है। जो बहुत समयसे आया नहीं था। पहले कांग्रेस के महाअधिवेशन के राजनीतिक, आर्थिक, विदेशनीति से संबंधित प्रस्ताव इसी तरह देश विदेश में चर्चित होते थे। उसकाघोषणा पत्र ऐसा ही विकास का और गरीबी दूर करने का दस्तावेज हुआ करता था।
तो देखिए बात शुरू हुई दिग्वजय से और पहुंच गई कांग्रेस के माहौल तक।राजगढ़ की बात थी। पूरी राजनीति की हो गई। तो राजगढ़ में चुनाव बहुतदिलचस्प है। ग्रामीण आबादी वाले इस लोकसभा क्षेत्र में 12 अप्रैल को अधिसूचना जारी होगी। और दिग्विजय यहां एक नया प्रयोग करने जा रहे हैं।ईवीएम के विरोध में 384 से अधिक प्रत्याशी उतारकर मतदान मतपत्र के जरिएकरवाने का।
वीएम की अधिकतम क्षमता 384 उम्मीदवार हैं। अगर इससे अधिक हुएतो निवार्चन आयोग को मतपत्र छापना पड़ेंगे। दिग्विजय लोगों से उम्मीदवारबनने की अपील कर रहे हैं। ताकि ईवीएम को हराया जा सके। वे कहते है कि अगरईवीएम हार गया तो बीजेपी हार जाएगी। यहां 7 मई को तीसरे चरण में मतदानहै। दिग्विजय यहां से दो बार लोकसभा जीत चुके हैं। उनकी रियासत राघौगढ़इसी लोकसभा क्षेत्र में आती है।