भोपाल। आज देश के प्रजातंत्र के भविष्य को संवारने का दिन है, इसलिए आज किसी ओर की नहीं, सिर्फ अपने दिल-दिमाग और मन की सुने और इन्हीं की सलाह पर प्रजातंत्र के महायज्ञ में अपनी आहूति डालें, क्योंकि यह क्षण अपने प्यारे राष्ट्रª के अगले पांच साला भविष्य को संवारने-सजाने का समय है और आज सब काम छोड़कर सबसे पहले अपने राष्ट्रधर्म व उससे जुड़े अपने कर्तव्य का पालने करें। यह क्षण किसी व्यक्ति या दल विशेष पर ध्यान केन्द्रित करने का नहीं बल्कि राष्ट्रीय धर्मिता को संवारने का है, इसलिए इस पुण्य राष्ट्रीय धर्म में अपना योगदान अवश्य दें, क्योंकि आपका एक वोट किसी ‘ब्रम्हास्त्र’ से कम नही है, यह किसी को आह्त करने के लिए नही बल्कि राष्ट्र को संवारनें-सजाने का माध्यम है, इसलिए अपनी राष्ट्रीय धर्मिता का परिचय दें।
हमारे देश को आजाद हुए करीब पचहत्तर साल पूरे होने आए, आज देश का आम मतदाता आजादी के समय का भोला-भाला, अशिक्षित, अज्ञान मतदाता नही रहा है, अब यह काफी समझदार, शिक्षित और राष्ट्रप्रेमी हो चुका है, किंतु हमारे अवसरवादी राजनेता व उनके दल हमारे मतदाताओं को आज भी 1951 का ही मतदाता समझ रह है और उसी तरह के प्रलोभनों से आज भी अपना स्वार्थ सिद्ध करना चाह रहे है, कभी किसी बड़े नेता के नाम पर वोट मांगे जा रहे है, तो कभी विभिन्न रंगीन भावी सपने दिखा कर, जबकि इनके पास राष्ट्र या जनहित के कोई मुद्दे नहीं है, अर्थात हमेशा की तरह यह चुनाव भी बिना कोई अह्म मुद्दों के बल पर एक खास नेता के नाम पर लड़ा जा रहा है और जहां तक देश के आम मतदाता का सवाल है, वह काफी परिपक्व तो हो चुका है, राजनीतिक दलों की अवसरवादी भूमिकाओं से भी परिचित है, किंतु वह इस बार किंकर्तव्य-विमूढ़ इसलिए है, क्योंकि उसके सामने वोट डालने के लिए विकल्प का अभाव है, देश के सबसे पुराने और आजादी दिलाने वाली कांग्रेस को उसके अनुभवहीन वारिसों ने अंतिम सांस लेने को मजबूर कर दिया है और इस कारण देश के मतदाताओं के सामने मतदान के विकल्प का अभाव हो गया है, अब देश का जागरूक व बुद्धिमान मतदाता यह तय नही कर पा रहा है कि वे मत दे तो आखिर किसे? विकल्प हीन मतदान में मतदाता अपना राष्ट्रधर्म कैसे निभाए?
यद्यपि देश का सत्तारूढ़ दल व उसके नेता चुनावी अभियान को मुद्दों और विकास की ओर मोड़ने का प्रयास कर रहे है, किंतु सबसे अहम् सामायिक समस्या यह है कि बिना विकल्प के आखिर आम मतदाता मतदान करें तो कैसे? सिर्फ सत्तारूढ़ दल के एक वरिष्ठ नेता के नाम पर या उसके विरोध में मतदान की अपील करना कहां तक न्यायोचित है? इसलिए आपातकाल के बाद शायद पहली बार यह चुनाव आम मतदाता की अग्निपरीक्षा लेने को आतुर दिखाई दे रहा है, इसलिए यह मतदान मतदाता के लिए काफी महत्वपूर्ण सिद्ध हो रहा है। इस प्रकार कुल मिलाकर आजादी के बाद शायद पहली बार यह चुनाव राजनीतिक दलों या उनके प्रत्याशियों के लिए नहीं, बल्कि आम मतदाताओं के लिए कठिन परीक्षा की घड़ी लेकर आया है, अब ऐसे में देश के आम मतदाताओं को कठिन परीक्षा के दौर से गुजर कर अपने राष्ट्रधर्म का निर्वहन करना है, ऐसी घड़ियां वास्तव में कभी-कभी ही उपस्थित होती है और यही मतदाता की बुद्धिमत्ता के परिचय का वक्त होती है।