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मीडिया इतना कभी नहीं गिरा !

जब मीडिया  ने सवाल नहीं पूछे तो मीडिया पर सवाल पूछे ही जाएंगे। प्रधानमंत्री भैंस तक पर आ जाते हैं। और कोई यह नहीं पूछता कि हुजूर यह भैंस आपके दिमाग में कैसे आ गई। कांग्रेस ने यह नहीं किया वह नहीं किया। ठीक है। मगर भैंस से कांग्रेस का क्या ताल्लूक!… अभी देखा होगा कि एक एंकर पत्रकार तेजस्वी से पूछ रहा है कि इतनी ज्यादा नौकरी देने की क्या जरूरत? और असम के मुख्यमंत्री हेमंत बिस्वा कह रहे हैं कि सरकारी नौकरियां पहले ही ज्यादा दी जा चुकी हैं। यह वही स्थिति लाने की कोशिश है कि रोजी के बाद रोटी पर कहा जाएगा कि इतनी रोटी की क्या जरूरत है? रोटियां पहले ही ज्यादा खिलाई जा चुकी हैं!

इन लोकसभा चुनावों में मीडिया जितना चर्चा में रहा उतना पहले कभी नहीं रहा। मीडिया खुद ज्यादा चर्चा में रहने के लिए नहीं होता। वह जनता की समस्याओं को चर्चा में लाने के लिए होता है। मगर यह बात तो अब सब भूल गए। देश में सबसे बड़ा पद प्रधानमंत्री का होता है। और उनसे जब बात करने का मौका मिलता है तो मीडिया उन्हें बताता है कि जनता किस हाल में है। उसकी क्या तकलीफें हैं और जब फार्मल बात करता है मतलब इंटरव्यू की शक्ल में तो वह जनता के उन सवालों को पूछता है जिससे जनता को राहत मिले। जनता के विभिन्न वर्गों की समस्याएं सामने आएं।

मगर आज तो प्रधानमंत्री से यह पूछा जा रहा है कि उनके चेहरे पर तेज क्यों हैं? एनर्जी कैसे मिलती है? इतना काम कैसे कर लेते है? इतना कम सोते हैं? आप थकते नहीं? आम कैसे खाते हैं? काटकर या चूसकरये सवाल प्रधानमंत्री से! यह तो फिल्म अभिनेताओं से भी पूछने वाले नहीं हैं। और यह तो सवाल के फार्म में हैं। लेकिन साथ में यह भी कहा जाता है कि आप महान हैं। और हम आप का समर्थन करते हैं।

किसी ने यह नहीं पूछा कि चीन इतना अंदर घुस कर कैसे बैठा हुआ है? मणिपुर क्यों नहीं गए ? देवगौड़ा के पोते प्रजवल्ल रैवन्ना के लिए वोट मांगने से पहले क्या आपको मालूम नहीं था कि उन पर क्या आरोप हैं ? ब्रजभूषण शरणसिंह के खिलाफ कोर्ट में चार्जशीट हो गई है मगर वह फिर भी पार्टी में है?

लेकिन अगर यह सवाल ज्यादा कड़े लग रहे हों तो बेरोजगारी पर तो पूछा ही जा सकता था! पेट्रोल डीजल खाना बनाने की गैस की कीमतें ! यह भी नहीं तो अग्निवीर! इलेक्टोरल बांड! कोरोना! कोरोना की वैक्सिन पर उठे सवाल ! मगर किसी पर नहीं।

तो जब मीडिया  ने सवाल नहीं पूछे तो मीडिया पर सवाल पूछे ही जाएंगे। प्रधानमंत्री भैंस तक पर आ जाते हैं। और कोई यह नहीं पूछता कि हुजूर यह भैंस आपके दिमाग में कैसे आ गई। कांग्रेस ने यह नहीं किया वह नहीं किया। ठीक है। मगर भैंस से कांग्रेस का क्या ताल्लूक! मीडिया जब पानी को पप्पा कहकर सवाल पूछ रहा है तो प्रधानमंत्री को कुछ भी कहने का मौका मिल रहा है। और इसी में वे यह भी कह देते हैं कि मैं दूसरे लोगों की तरह बायलोजिकल नहीं। मतलब मां के पेट से पैदा होने से है। दूसरों ने जिस तरह जन्म लिया है मैं वैसे पैदा नहीं हुआ। मुझे स्वयं भगवान ने भेजा है। और अवतार की शक्ल में।

मीडिया ने अपनी चमचागिरी से यह हालत पैदा कर दी प्रधानमंत्री अवतार हो गए, अविनाशी हो गए। अविनाशी मतलब जीवन मरण के चक्र से मुक्त। जो कभी खत्म नहीं होता है। विनाश नहीं होता है। तो राहुल गांधी ने चमचे कह दिया। जनता तो पता नहीं कब से कह रही है। राहुल जो बहुत संयम से काम लेते हैं अगर उनके मुंह से भी यह निकल गया तो आप सोच सकते हैं बाकी लोग क्या कहते होंगे।

मीडिया उनकी समस्या उठाने के लिए है। मीडिया की आज तक यह परिभाषा तो खुद गोदी मीडिया भी नहीं कर पाया कि मीडिया सरकार और सरकार में खासतौर से प्रधानमंत्री और प्रधानमंत्री भी सब नहीं केवल मोदी के लिए है। उनके महिमामंडन के लिए। ऐसा तो केन्द्र सरकार के सूचना विभाग का प्रेस इन्फार्मेशन ब्यूरो ( पीआईबी) भी नहीं होता। वह भी प्रधानमंत्री के अलावा दूसरे मंत्रियों की खबर देता है। मगर मीडिया तो केवल और केवल मोदी के लिए हो गया। त्वमेव माता च पिता त्वमेव। बस यहीं तक। बंधु और सखा नहीं।

संबित पात्रा ने मीडिया में ही कहा था कि नरेन्द्र मोदी देश के बाप हैं। और फिर अभी मीडिया से बात करते हुए कह दिया कि भगवान जगन्नाथ भी मोदी के भक्त हैं। क्या इस पर आपने मोदी जी का कोई बयान देखाहमारी नजर नहीं पड़ी। अगर और कोई होता तो तत्काल कहता कि अरे यह क्या बात हुई। किसने कहाकैसे कहा? शर्मनाक! मैं उनका भक्त। मैं उन्हें मानने वाला। बहुत दुख हुआ। वगैरह वगैरह!

मगर प्रधानमंत्री का कोई रिएक्शन सुना नहीं। और जब प्रधानमंत्री कुछ नहीं कहते हैं तो क्या मौन स्वीकृति चिन्हम्! अब हम क्या कहें? आपने कहा है। हम विनम्रतापूर्वक स्वीकार ही करते हैं। इसी तरह बात आगे बढ़ती है। राम की उंगली पकड़ कर ले जाने वाला चित्र भाजपा वालों ने ही बनाया था। उसका प्रतिवाद नहीं किया तो गाने बन गए जो राम को लाएं हैं!  अभी सुना भाजपा अध्यक्ष नड्डा कुछ कह रहे हैं कि इन्सानों के क्या देवों के भी देव हैं।

आखिर हर हर मोदी तो 2014 में ही कह दिया गया था। ऐसा नहीं कि काशी में विरोध नहीं हुआ हो। मगर सुनता कौन है। जंगल में मोर नाचा किसने देखा। अब समझ में आया यह मुहावरा इसलिए है। मीडिया दिखाएगा नहीं बताएगा नहीं तो कैसे मालूम पड़ेगा? बताया तो इस तरह जाता है जैसे काशी से स्वीकृत हो हर हर मोदी!

इन चीजों के क्या परिणाम होते हैं? मीडिया जब आपको वहां पहुंचा देता है जहां आप सवाल जवाब, जिम्मेदारी, जवाहदेही से ऊपर हो जाते हैं तो फिर रोजी रोटी बेरोजगारी नौकरी के सवाल अपने आप बौने हो जाते हैं। क्षुद्र सवाल। अभी देखा होगा कि एक एंकर पत्रकार तेजस्वी से पूछ रहा है कि इतनी ज्यादा नौकरी देने की क्या जरूरत? और असम के मुख्यमंत्री हेमंत बिस्वा कह रहे हैं कि सरकारी नौकरियां पहले ही ज्यादा दी जा चुकी हैं।

यह वही स्थिति लाने की कोशिश है कि रोजी के बाद रोटी पर कहा जाएगा कि इतनी रोटी की क्या जरूरत है? रोटियां पहले ही ज्यादा खिलाई जा चुकी हैं! देख लीजिए रोजी रोटी की समस्या कितनी आसानी से हल हो गई। रोजी की जरूरत नहीं है। रोटी की भी नहीं। जनता का काम है मोदी जी की स्तुति करना। मोदी, मोदी जैसे नारे इसीलिए चलाए गए थे।

सरकार में कई डिपार्टमेंट काम करते हैं। रक्षा, विदेश, वित्त इनमें प्रमुख हैं। हर प्रधानमंत्री सुबह सबसे पहले इन्हें देखता है। मगर मोदी के लिए प्रचार विभाग प्रमुख है। किसने क्या क्या दिखाया! आज क्या करना है? छवि निर्माण! इमेज मेकिंग! इसलिए रक्षा के मामले में मोदी जी कह देते हैं कि न कोई घुसा है। और न कोई है। विदेश के मामले में खुद ही कह कह देते हैं कि हां मैंने वार रुकवाई थी।

जबकि पहले रूस युक्रेन के मामले में विदेश विभाग को इस तरह के भाजपा नेताओं के दावे का खंडन करना पड़ा था। दुनिया हंसने लगी थी। मगर इंटरव्यू में उनसे कुछ भी बुलवा लीजिए। आत्मप्रशस्ति में। कह दिया कि रमजान में इजराइल से हमले रोकने के लिए कहा था। और वित्त में तो उनकी वित्त मंत्री के पति ही बताते हैं कि सरकार गलत रास्ते पर है। और जा रही है।

मगर इन सबसे प्रधानमंत्री को कोई मतलब नहीं। मीडिया चकाचक होना चाहिए। जैसे शादी में लाइट रोशनी सब करके दुल्हे के चमका दिया जाता है। यह घोड़ा, तलवार साफा सब इसलिए होता है कि भव्य बना दिया जाए। पीछे बाराती चल पड़ते हैं।

यही हो रहा है। रोज चमकाया जा रहा है। मीडिया डांस करती हुई चल रही है। जरूरत पड़ने पर रोशनी के हंडे भी अपने सिर पर खुद उठा लेती है। सब चकमक। गरीबी, बेरोजगारी, भुख, दुख सब तेज रोशनी में छुपा दिए गए हैं।

By शकील अख़्तर

स्वतंत्र पत्रकार। नया इंडिया में नियमित कन्ट्रिब्यटर। नवभारत टाइम्स के पूर्व राजनीतिक संपादक और ब्यूरो चीफ। कोई 45 वर्षों का पत्रकारिता अनुभव। सन् 1990 से 2000 के कश्मीर के मुश्किल भरे दस वर्षों में कश्मीर के रहते हुए घाटी को कवर किया।

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