भोपाल। छिंदवाड़ा में प्रचार के निर्णायक दौर में मैनेजमेंट किसका भारी यह वह सवाल है ..जिसने पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ और मोहन सरकार के मंत्री कैलाश विजयवर्गीय को आमने-सामने लाकर खड़ा कर दियाहै.. कमलनाथ और कैलाश दोनों चुनाव नहीं लड़ रहे.. लेकिन नाथ को चिंता अपने सांसद पुत्र नकुलनाथ को एक बार फिर लोकसभा में पहुंचने की.. तो कैलाश को चिंता अपने नेता अमित शाह के भरोसे पर खड़ा उतर कर दिखाने की.. अमित शाह और समूची भाजपा को मोदी की गारंटी पर भरोसा तो कमलनाथ अंतिम समय में इमोशनल कार्ड के जरिए यह चुनाव जीतना चाहते हैं..
विकास पर छिंदवाड़ा मॉडल हो या मोदी का मॉडल इस बहस के बीच कई मुद्दे पीछे छूट गए तो उम्मीदवार के चेहरे की चमक भी फीकी पड़ती नजर आ रही है। मैनेजमेंट एक साथ कई मोर्चों पर छिंदवाड़ा की जीत और हार में बड़ी भूमिका निभाने जा रहा है.. कैलाश विजयवर्गीय करेंगे ‘कमलनाथ’ के गढ़ में करिश्मा..!
कमलनाथ का गढ़ यानी छिंदवाड़ा.. और कैलाश का मतलब एक अनुभवी भाजपा के नीति निर्धारक और चुनावी चाणक्य कहे जाने वाले प्रमुख रणनीतिकार केंद्रीय मंत्री अमित शाह के भरोसेमंद.. कमलनाथ कांग्रेस के सबसे वरिष्टतम नेताओं में से एक जो फिलहाल मध्य प्रदेश की दूसरी 28 सीटों से दूरी बनाते हुए परंपरागत अपनी छिंदवाड़ा सीट से पुत्र नकुलनाथ को एक बार फिर लोकसभा में भेजने के लिए उसे 29वीं सीट तक खुद को सीमित किए हुए, जहां फिलहाल कांग्रेस का कब्जा..
इसी पर कांग्रेस से ज्यादा कमलनाथ की प्रतिष्ठा व्यक्तिगत तौर पर दांव पर लगी हुई है..तो हर चुनौती को स्वीकार करने वाले हाईकमान की लाइन पर खरा उतर परिणाम मूलक साबित करने में यकीन रखने वाले भाजपा के आक्रामक रणनीतिकार कैलाश विजयवर्गीय का करिश्मा भी भाजपा की उम्मीद बनकर सामने है.. मध्य प्रदेश की वह 29वीं लोकसभा सीट जिस पर मोदी शाह की नजर तो जिस पर मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव और प्रदेश भाजपा अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा का नेतृत्व उनकी दूरदर्शिता कसौटी पर लग चुकी है..
चुनाव का चेहरा भाजपा की ओर से मोदी तो कांग्रेस की ओर से कमलनाथ..मैदान में भले ही नकुलनाथ के सामने भाजपा जिला अध्यक्ष विवेक साहू बंटी लेकिन कहीं ना कहीं केंद्रीय गृहमंत्री और राज्यों की राजनीति को मोदी के मुताबिक जमीन पर उतारने वाले अमित शाह की बिसात यहां गौर करने लायक है…
विवेक साहू यदि विरोधियों के निशाने पर तो अपनों के बीच उनकी अनबन पार्टी की कमजोर कड़ी बन चुकी थी.. प्रदेश नेतृत्व को बंटी की स्वीकार्यता बनाने के लिए कड़ी मेहनत करना पड़ी.. भाजपा में टिकट के दूसरे दावेदार उनके समर्थक और कांग्रेस से आए आयातित नेताओं के मुद्दे ने भी पार्टी की परेशानी बढ़ाई है..
यूं तो भाजपा संगठन की कई स्तर की जिम्मेदारी महत्वपूर्ण नेताओं को सौंप दी गई है लेकिन बड़ी जिम्मेदारी मोहन सरकार की वरिष्ठ नगरीय प्रशासन मंत्री कैलाश विजयवर्गीय को जबलपुर संभाग के तहत खासतौर से छिंदवाड़ा की सौंपी गई है..कमलनाथ के इस गढ़ में बीजेपी कमल खिलाने के लिए इस बार न सिर्फ कुछ ज्यादा ही आतुर है.. मोदी सरकार के लिए जरूरी जीत की हैट्रिक के लिए यहां केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के रोड शो से माहौल बदल उसे परिणाम मूलक साबित करने के लिए जरूरी सफल और उसे प्रचार की निर्णायक कड़ी बनाने के लिए कैलाश जुटे हुए है..
कैलाश यहां माइक्रो मैनेजमेंट के साथ प्रेशर पॉलिटिक्स की लाइन पर प्रभावी बढ़त बनाते हुए कमलनाथ के कई समर्थकों को भाजपा में लाने में काफी हद तक सफल रहे..चुनाव जीतने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का चेहरा तो अमित शाह की रणनीति के साथ कैलाश विजयवर्गीय ने सिर्फ कांग्रेस और विरोधियों के लिए बड़ा दिल दिखा कर दरवाजे ही नहीं खोले बल्कि टिकट के दावेदार और भाजपा के रूठे नाराज नेता कार्यकर्ताओं को भरोसे में लेकर डैमेज कंट्रोल की चुनौती पर भी लगभग पार पा लिया है..कमलनाथ के बूथ मैनेजमेंट से निपटने के लिए कैलाश ने भाजपा के बूथ कार्यकर्ताओं पर फोकस बनाया हुआ है..
किस विधानसभा और विशेष क्षेत्र में कांग्रेस की बढ़त को रोककर भाजपा का गड्ढा भरा जा सकता है यह काम कैलाश सहयोगियों को भरोसे में लेकर कर रहे हैं..भाजपा संगठन और कैडर से जुड़े नेता कार्यकर्ताओं के अलावा आयातित नेता और उनके समर्थकों की पूछ परख कर उन्हे काम पर लगाते हुए टारगेट देने में टीम कैलाश जुटी हुई है..नकुलनाथ को चुनाव जिताने के लिए कमलनाथ अपने लंबे सियासी जीवन की सारी पुण्याई के भरोसे मोर्चा खुद संभाले हुए हैं..कमलनाथ ने निर्णायक दौर में इमोशनल कार्ड खेल कर भाजपा को सोचने को मजबूर किया..
चाहे फिर वह कांग्रेस और नाथ परिवार से समर्थकों का मोह भंग होना और उस पर कमलनाथ का व्यथित होकर उन्हें कोसने की बजाय हमदर्दी जाताना..कमलनाथ को अपने समर्थक कार्यकर्ताओं के साथ जनता पर पूरा भरोसा है कि इस संघर्ष के चुनाव में वह उनका साथ जरूर देगी..अमित शाह के रोड शो से पहले राष्ट्रीय सह संगठन महामंत्री और मध्य प्रदेश की बड़ी जिम्मेदारी निभा रहे शिव प्रकाश का छिंदवाड़ा पहुंचने का मतलब साफ है कि पार्टी नेतृत्व और परदे के पीछे संघ भी आखिर इस चुनाव को लेकर कितना गंभीर है..
पार्टी का संकल्प पत्र जारी होने के बाद छिंदवाड़ा में कैलाश विजयवर्गीय ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर मोदी के विजन,भाजपा की सोच को भारत के नवनिर्माण से जोड़कर अपनी बात भी जनता तक पहुंचाई..मोदी है तो मुमकिन है,हर गारंटी पर मोदी की गारंटी भारी जैसे सूत्र वाक्य के जरिए इस चुनाव को मोदी वर्सेस कमलनाथ से आगे ले जाते हुए नकुलनाथ और नरेंद्र मोदी के बीच मुकाबला समेटने की रणनीति पर भाजपा कम कर रही है..
भाजपा उम्मीदवार विवेक साहू को कुछ व्यक्तिगत विवादों का सामना करना पड़ रहा तो पार्टी से जुड़े एक खेमे में इंटरनल तौर पर चुनौती न सही लेकिन समन्वय की कमी यहां देखी जा सकती है..कैलाश विजयवर्गीय ने काफी हद तक इस गुथ्थी को सुलझा लिया है..चाहे फिर वह अमरवाड़ा विधायक कमलेश शाह हो या फिर पूर्व मंत्री दीपक सक्सेना हो या फिर चौधरी चंद्रभान के अलावा कार्यवाहक जिला अध्यक्ष शेष राय यादव,कन्हैया राम रघुवंशी,उत्तम ठाकुर और उनके समर्थक,जो पार्टी कार्यक्रमों में बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रहे हैं..लेकिन चुनाव थमने के अंतिम दौर में इन नेताओं का जो सियासी संदेश मतदाता तक पहुंचना चाहिए उसमें हीला हवाली देखी जा सकती है..
निशा बागरे पूर्व आईएएस अधिकारी का कांग्रेस और कमलनाथ प्रेम दिया पुरानी बात हो गई है..कमलनाथ को अपने मैनेजमेंट पर भरोसा है तो भाजपा प्रबंधन से आगे नेता कार्यकर्ता की जवाबदेही तय कर संगठन को मजबूत साबित करने की रणनीति पर काम कर रही है.. सोशल इंजीनियरिंग खासतौर से आदिवासी मतदाताओं को लेकर गंभीर भाजपा के इस दावे में दम नजर आता है कि पिछले चुनाव का गड्ढा उसने एक साथ कई मोर्चे पर डैमेज कंट्रोल के साथ भर लिया है और जीत का दावा नए आंकड़ों के साथ जरूर सामने आएगा..इसे भाजपा की रणनीति कहें या कैलाश का प्रबंधन जो गोंडवाना पृष्ठभूमि से जुड़े दो छोटे क्षेत्रीय दलों के प्रतिनिधि छिंदवाड़ा लोकसभा चुनाव में कमलनाथ और कांग्रेस उम्मीदवार नकुलनाथ की परेशानी बढ़ा सकते हैं.. प्रदेश की दूसरी लोकसभा सीटों की तुलना में कमलनाथ छिंदवाड़ा में कांग्रेस की सबसे मजबूत कड़ी ही नहीं चुनाव की धुरी बन चुके हैं.. जबकि नकुलनाथ सिर्फ गैरों ही नहीं अपनों के निशाने पर लेकिन चुनाव जीतने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं..
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रहते कमलनाथ जब भाजपा को सत्ता में लौटने से नहीं रोक पाए.. तभी से उनके नेतृत्व पर सवाल खड़े होना शुरू हो गया थे.. दिल्ली से दूरी बनाकर चल रहे नाथ से जब प्रदेश संगठन की कमान लेकर जीतू पटवारी को सौंप गई.. तो फिर पार्टी के अंदर कमलनाथ की नई भूमिका को लेकर चर्चा शुरू हो गई थी.. लोकसभा चुनाव से ठीक पहले प्रचार के शुरुआती दौर में जब भाजपा ने विरोधियों के लिए अपने दरवाजे खोल दिए.. इस बीच नकुलनाथ के चुनाव लड़ने और फिर किस पार्टी से लड़ने की अटकलें शुरू हुई और घटनाक्रम तेजी से बदला भोपाल से लेकर दिल्ली तक पिता पुत्र कमलनाथ और नकुलनाथ के भाजपा में शामिल होने की चर्चाएं जोर पकड़ने लगी.. लेकिन इसे कयासबाजी कहे या फिर बात बनते बनते बिगड़ जाना नकुलनाथ का कांग्रेस से चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया गया.. यह पहला मौका था जब नाथ परिवार का उनके समर्थकों ने साथ छोड़ा और भाजपा ने आक्रामक रुख अख्तियार कर छिंदवाड़ा को रडार पर ले लिया..
अब प्रचार के निर्णायक दौर में कई समर्थकों का नाथ से मोह भंग होने के बाद और दूसरे विवाद खड़े हो गए.. भाजपा उम्मीदवार विवेक साहू बंटी द्वारा पुलिस में अश्लील वीडियो के मुद्दे पर मुकदमा दर्ज कराने से विवाद और बढ़ गया क्योंकि पुलिस की जांच के दायरे में कमलनाथ के भरोसेमंद उनके ओएसडी आ चुके हैं.. कुल मिलाकर चुनाव प्रचार थमने से कुछ घंटे पहले भाजपा हो या कांग्रेस या फिर कमलनाथ हो या उनके सामने कैलाश का प्रबंध, भाजपा का बूथ मैनेजमेंट के साथ और दूसरे मोर्चे पर जमावट ही इस चुनाव के परिणाम को एक नई दिशा देगी.. यहां चुनाव कांग्रेस नहीं पिता पुत्र कमलनाथ और नकुलनाथ लड़ रहे हैं तो उधर भाजपा को मोदी मैजिक मोदी की गारंटी पर जीत का पूरा भरोसा है.. भाजपा कमलनाथ को अभी भी हल्के में नहीं ले रही लेकिन इसलिए उसकी कोशिश सीधे मुकाबले में नकुलनाथ की नेतृत्व क्षमता पर सवाल खड़ा कर तीसरी बार नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री बनाने के लिए छिंदवाड़ा में कमल खिलाना क्यों जरूरी यह उम्मीदवार विवेक साहू को पीछे रखते हुए मतदाता को हर हाल में समझा देना चाहती है.. भाजपा को भरोसा है अमित शाह के छिंदवाड़ा प्रवास और रोड शो से माहौल एक तरफ हो जाएगा..
नाथ परिवार ने किया जनता के दिल पर राज
1980 से 2024 तक की बात करें तो छिंदवाड़ा पर 44 वर्ष से कमलनाथ परिवार का कब्जा है,1998 के उपचुनाव में एक वर्ष यह सीट भाजपा के पास रही थी,जब पूर्व सीएम सुदरलाल पटवा से कमलनाथ हार गए थे.पटवा ने करीब 35 हजार मतों से ये जीत दर्ज की थी..छिंदवाड़ा से सर्वाधिक उम्मीदवार 1996 में 28 और सबसे कम 3 प्रत्याशी 1962 में खड़े हुए थे..सर्वाधिक मतदान वर्ष 2019 में 82.39 प्रतिशत और सबसे कम वर्ष 1957 में 33.36 प्रतिशत हुआ था..कमलनाथ यहां से 9 बार और उनकी पत्नी और बेटा एक-एक बार विजयी हो चुके हैं..गार्गीशंकर रामकृष्ण मिश्रा यहां से कांग्रेस से तीन बार विजयी रहे..जब 1977 में देश में इंदिरा गांधी के विरुद्ध और जनता पार्टी के पक्ष में लहर थी तब भी यहां से कांग्रेस विजयी रही थी..सबसे बड़ी विजय छिंदवाड़ा से कमलनाथ की और सबसे छोटी विजय गार्गीशंकर रामकृष्ण मिश्रा के नाम दर्ज है..बीते तीन चुनावों पर नजर डाले तो लोकसभा चुनाव 2009 में कमलनाथ कांग्रेस के टिकट पर चुनावी मैदान में थे..वहीं भाजपा के टिकट पर मारोत राव खावासे रहे..कमलनाथ को इा चुनाव में 4 लाख 09 हजार 736 वोट मिले थे वहीं भाजपा के उम्मीदवार को 2 लाख 88 हजार 516 वोट मिले थे..इस चुनाव में भी कमलनाथ को जीत मिली थी..अगर लोकसभा चुनाव 2014 की बात करें कमलनाथ के सामने भाजपा के चंद्रभान सिंह मैदान में रहे..कमलनाथ को 5 लाख 59 लार 755 वोट मिले तो वहीं भाजपा के उम्मीदवार को 4 लाख 43 हजार 218 वोट मिले थे..और कमलनाथ चुनाव जीते थे..लोकसभा चुनाव 2019 में कमलनाथ मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री थे और छिंदवाड़ा लोकसभा सीट पर उनके बेटे नकुलनाथ को कांग्रेस ने उतारा था..भाजपा ने नाथान शाह को टिकट दिया था..नकुलनाथ को 5 लाख 47 हजार 305 और नाथान शाह को 5 लाख 09 हजार 769 वोट मिले और नकुलनाथ बेहद करीबी अंतर से जीते..आईए एक नजर डालते हैं छिंदवाड़ा के अब तक के सांसदों पर….
अपनों ने साथ छोड़ ‘नाथ’ की बढ़ाई परेशानी
1980 से 2014 तक एक छत्र राज करने वाले कमलनाथ अपने ही गढ़ में घिरे नजर आ रहे हैं..करीब 45 साल की दमदार पारी, नौ बार के सांसद, मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ के छिंदवाड़ा मॉडल पर विस 2023 के चुनाव परिणाम के बाद से ही भाजपा नजरें जमाए हुए है..बीते दो महीने की बात करें तो कमलनाथ के इस अभेद किले को ढहाने जो भाजपा ने प्लान तैयार किया उसमें उसे दिन व दिन सफलता भी मिली..लोकसभा के संयोजक मझें हुए दमदार और रणनीतिकार नेता कैलाश विजयवर्गीय,न्यू ज्वाइनिंग कमेटी के संयोजक और भाजपा के संकटमोचक माने जाने वाले नरोत्तम मिश्रा की जोड़ी ने मानो कमलनाथ को झटके पर झटके देने का खाका ही तैयार कर रखा था..
नाथ परिवार की विरासत के साथ सालों से खड़े के कई मजबूत खंभे उखाड़ भाजपा में शामिल कराने का सिलसिला जो इन दोनों नेताओं के साथ भाजपा के संगठन और मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव ने शुरू किया वो अभी भी जारी है..छिंदवाड़ा ही नहीं, मध्य प्रदेश के इतिहास में ऐसा पहली बार हो रहा है जब लोकसभा चुनाव के बीच आचार संहिता लागू होने के बाद भी बड़े-बड़े नेता कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में शामिल हो रहे हैं..छिंदवाड़ा जिले की सभी सात विधानसभा सीटों में पिछले दो चुनावों से कांग्रेस का कब्जा है..लेकिन हाल ही में जिले की अमरवाड़ा विधानसभा सीट से विधायक कमलेश प्रताप सिंह शाह बीजेपी में शामिल हो गए हैं और यह सीट रिक्त हो गई है..उसके बाद छिंदवाड़ा से कांग्रेस के महापौर विक्रम अहाके ने भी बीजेपी ज्वाइन कर ली है..कमलनाथ के करीबी पूर्व मंत्री दीपक सक्सेना और उनके बेटे ने नाथ का साथ छोड़ दिया और भाजपा के हो लिए…
चौरई विधानसभा सीट से पूर्व विधायक गंभीर सिंह, पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष सीताराम डहेरिया, कांग्रेस के प्रदेश पूर्व प्रदेश महासचिव अजय ठाकुर पांढुर्णा,नगर पालिका के अध्यक्ष संदीप घाटोड़े,नगर निगम के पार्षद,सैय्यद जाफर सहित कई बड़े नेता अभी तक नाथ परिवार और कांग्रेस का साथ छोड़ चुके हैं…6000 से अधिक कांग्रेसी कार्यकर्ता भाजपा में शामिल हो गए हैं..1 जनवरी 2024 से अभी तक की बता करें तो हर दिन कोई न कोई छिंदवाड़ा का नेता कांग्रेस छोड़ रहा है..जो नेता कांग्रेस छोड़ रहे उनकी पीड़ा कमलनाथ से कम नकुलनाथ और उनकी टीम के रवैये से ज्यादा है…नकुलनाथ के विधायक कमलेश शाह को गदृार बिकाउ कहने को लेकर भी घमासान छिड़ गया..
इस बयान से आहत होकर जल विभाग सभापति प्रमोद शर्मा,अनुसूचित जाति विभाग जिला अध्यक्ष सिद्धांत थनेसर, पूर्व एनएसयूआई जिला अध्यक्ष आशीष साहू, पूर्व एनएसयूआई जिला उपाध्यक्ष धीरज राऊत, पूर्व एनएसयूआई जिला कार्यकारी अध्यक्ष आदित्य उपाध्याय,पूर्व एनएसयूआई विधानसभा अध्यक्ष सुमित दुबे भी भाजपा में शामिल हुए..लोकसभा चुनावों में वोटिंग से पहले कांग्रेस को एक के बाद एक झटके लग रहे हैं..और भाजपा के रणनीतिकार दिन व दिन 29वां कमल खिलाने यानि छिंदवाड़ा जीतने वहीं डेरा डाले हुए हैं..पहले चरण का मतदान 19 अप्रैल को होना है, छिंदवाड़ा में भी पहले चरण में मतदान होगा..मतदान से ठीक पहले भाजपा के चाणक्य केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह कमलनाथ के गढ़ में पहुंच रहे हैं..इतनी तोड़फोड़ के बावजूद भी भाजपा इस सीट को जीतने वोटिंग से पहले और क्या धमाका करती है ये देखना बाकी होगा..हालांकि कांग्रेस और उनके नेताओं को मैनेजमेंट के माहिर खिलाड़ी कमलनाथ पर पूरा भरोसा है….
कमलनाथ का इमोशनल कार्ड
अपने राजनीतिक जीवन के सबसे मुश्किल चुनाव से गुजर रहे कमलनाथ अब इमोशनल कार्ड का सहारा है…चुनाव प्रचार में कमलनाथ छिंदवाड़ा की जनता को समर्पित अपनी सेवा याद दिला रहे हैं…नकुलनाथ भी अपने पांच सालों के कार्यों की बजाय पिता के काम ही गिना रहे हैं…तो बहु प्रियानाथ हर सभा में अपने ससुर कमलनाथ का दुख बताना नहीं भूल रहीं…लंबे अरसे से राजनीति से दूर नकुल की माताजी अलका नाथ भी इस बार बेटे के लिए प्रचार कर रही हैं…यानि पूरा परिवार एकजुट होकर अपनी सियासत और विरासत को बचाने की जद्दोजहद कर रहा है..
आखिर ये भाजपा के मिशन 29 की आखिरी मंजिल है तो वहीं नाथ परिवार के लिए विरासत बचाने की अग्निपरीक्षा…ऐसे में भाजपा ने जहां नाथ के गढ़ को जीतने में पूरी जान लगा दी है… नकुलनाथ की पत्नी और कमलनाथ की बहू प्रिया नाथ भी अपने भाषण में भावुकता भरे भाषण दे रही हैं.. प्रिया कहती हैं कि मेरे ससुर को जब देखती हूं तो दुख होता है…प्रिया के मुताबिक कमलनाथ ने जिन्हें आशीर्वाद दिया, आज वे लोग ही धोखा दे गए…
जनता से कनेक्टिविटि के लिए वे खेतों में फसल काटते भी नजर आ चुकी हैं…ये चुनाव नहीं बल्कि एक परिवार का संघर्ष ज्यादा नजर आ रहा है…जहां परिवार की प्रतिष्ठा समेत सब कुछ दांव पर लगा हो वहां भावनात्मक अपील का ही सहारा नजर आ रहा है.. समर्थक जो छोड़कर चले गए उनके लिए भी सद्भावना कमलनाथ रखते हैं.. भावुक अपील करने लगे कमलनाथ को अपने कार्यकर्ता के साथ उसे जनता पर भरोसा है जिसके लिए उन्होंने चार दशक में बहुत कुछ किया.. जनता नाथ के इमोशंस के साथ जाती है या फिर मोदी के चेहरे के साथ…ये देखना दिलचस्प होगा कई चुनाव लड़ चुके और कई राज्यों में चुनाव लड़ा चुके कांग्रेस का यह सबसे बड़ा चेहरा अपने गढ़ छिंदवाड़ा में इस बार कैसे परिवार की प्रतिष्ठा बचाता है..
शिवराज की कसक
शिवराज सिंह चौहान ने मुख्यमंत्री रहते छिंदवाड़ा की जनता को कई सौगातें दीं…जनता का ह्रदय परिवर्तन करने में वे कामयाब भी रहे…तभी तो 2014 में जो कमलनाथ करीब एक लाख से ज्यादा वोटों से चुनाव जीते थे…2019 में नकुलनाथ महज 37 हजार वोटों से जीत पाए…2023 में भले ही भाजपा सीटें न जीत पाई लेकिन शिवराज सिंह ने नतीजों के अगले ही दिन छिंदवाड़ा जिताने का संकल्प लिया और कार्यकर्ताओं से मिलने पहुंच गए…
उसी दिन से लगने लगा था कि भाजपा छिंदवाड़ा को लेकर बहुत ज्यादा गंभीर हो चुकी है…..छिंदवाड़ा में नाथ परिवार के असर को कम करने में शिवराज की बड़ी भूमिका रही…तभी तो नाथ परिवार की जीत का अंतर घटता गया…शिवराज ने केन्द्रीय नेतृत्व की मंशा को समझकर ही छिंदवाड़ा की कमियों को दूर करने का प्रयास किया…शिवराज सिंह जिनके नेतृत्व में भाजपा ने 2023 के विधानसभा चुनाव में शानदार जीत हासिल की…और 166 सीटें जीतकर सारे पूर्वानुमान ध्वस्त कर दिये…छिंदवाड़ा में भाजपा का विधायक न बनने की टीस उन्हें भी रही थी…इसलिए उन्होंने 2024 के लोकसभा चुनाव में पीएम मोदी को 29 सीटों की जीत का कमल हार पीएम मोदी को भेंट करने का संकल्प भी लिया था…अब देखना है कि शिवराज छिंदवाड़ा में भाजपा को जितना मजबूत कर पाए थे…उनके साथी क्या अब उस काम को मुकाम तक पहुंचा पाएंगे…