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केजरीवाल की विश्वसनीयता नहीं बची

विश्वसनीयता और विशिष्टता ये दो चीजें केजरीवाल की पहचान थी। उन्होंने अपने को देश के तमाम राजनेताओं से अलग एक विशिष्ट नेता के तौर पर पेश किया था और भ्रष्टाचार के खिलाफ दिल्ली में ऐतिहासिक आंदोलन करके अपनी विश्वसनीयता भी बनाई थी। लेकिन अब इन दोनों में से उनके पास कुछ भी नहीं बचा है। वे उन्हीं नेताओं की जमात में खड़े हैं,  जिनका विरोध करते हुए वे नेता बने थे और उसी तरह की राजनीति कर रहे हैं, जिस तरह की राजनीति का विरोध करने का संकल्प करके उन्होंने पार्टी बनाई थी।

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल अपनी विश्वसनीयता और विशिष्टता दोनों पूरी तरह से गंवा चुके हैं और अब उनकी लोकप्रियता की बारी है, जिसमें बड़ी तेजी से गिरावट आ रही है। विश्वसनीयता और विशिष्टता ये दो चीजें केजरीवाल की पहचान थी। उन्होंने अपने को देश के तमाम राजनेताओं से अलग एक विशिष्ट नेता के तौर पर पेश किया था और भ्रष्टाचार के खिलाफ दिल्ली में ऐतिहासिक आंदोलन करके अपनी विश्वसनीयता भी बनाई थी।

लेकिन अब इन दोनों में से उनके पास कुछ भी नहीं बचा है। वे उन्हीं नेताओं की जमात में खड़े हैं,  जिनका विरोध करते हुए वे नेता बने थे और उसी तरह की राजनीति कर रहे हैं, जिस तरह की राजनीति का विरोध करने का संकल्प करके उन्होंने पार्टी बनाई थी। उनकी पूरी राजनीति बेहिसाब धन और झूठ के नैरेटिव पर टिकी हुई दिख रही है। वे भ्रामक बयानों से जनता को गुमराह कर रहे हैं और महज 22 सीटों पर चुनाव लड़ कर देश बदलने के वादे कर रहे हैं।

चुनाव प्रचार के लिए सर्वोच्च अदालत की कृपा से अंतरिम जमानत पर छूटे केजरीवाल ने जेल से निकलते ही एक झूठा नैरेटिव स्थापित करने का प्रयास किया। उन्होंने प्रेस कांफ्रेंस करके कहा कि अगले साल 17 सितंबर को प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी 75 साल के हो जाएंगे और तब वे प्रधानमंत्री का पद छोड़ देंगे क्योंकि उन्होंने ही यह नियम बनाया है कि 75 साल से ऊपर का कोई व्यक्ति भाजपा में सक्रिय राजनीति में नहीं रहेगा। इसके बाद उन्होंने कहा कि मोदी की जगह श्री अमित शाह प्रधानमंत्री बनेंगे। केजरीवाल ने तीसरी बात यह कही कि केंद्र में सरकार बनने के दो से तीन महीने के अंदर श्री योगी आदित्यनाथ को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पद से हटा दिया जाएगा। ये तीनों बातें सिरे से गलत हैं।

पहला, भाजपा में ऐसा कोई नियम नहीं बना है और न उसके संविधान में लिखा है कि 75 साल से ज्यादा उम्र का व्यक्ति सक्रिय राजनीति में नहीं रहेगा। उम्र के आधार पर जिन लोगों के रिटायर होने की बात केजरीवाल कर रहे हैं उनमें श्री लालकृष्ण आडवाणी 2019 तक सांसद रहे, तब उनकी उम्र 91 साल की थी। श्री मुरली मनोहर जोशी भी 2019 तक सांसद रहे और उस समय उनकी उम्र 85 साल थी। यानी 75 साल के बाद तक दोनों नेता सक्रिय राजनीति में रहे। जाहिर है भाजपा के इन दोनों शीर्ष नेताओं का नाम लेकर केजरीवाल झूठ बोल रहे थे, जिसे आसानी से पकड़ा जा सकता है।

दूसरा, जहां तक श्री नरेंद्र मोदी के उत्तराधिकारी का सवाल है कि तो जब पहली बात ही गलत है, जब 75 साल की उम्र में रिटायर होने का कोई नियम ही नहीं है तो अगले साल श्री मोदी का उत्तराधिकारी तय करने की बात कहां से आएगी। फिर भी केजरीवाल ने झूठ बोला कि श्री अमित शाह उत्तराधिकारी बनेंगे। खुद श्री अमित शाह ने इसे खारिज करते हुए कहा कि श्री नरेंद्र मोदी 2029 के बाद भी पार्टी और देश का नेतृत्व करते रहेंगे। रक्षा मंत्री श्री राजनाथ सिंह ने भी यह बात कही है। श्री नरेंद्र मोदी इस चुनाव में लगातार तीन बार पूर्ण बहुमत से चुनाव जीतने का पंडित जवाहरलाल नेहरू का रिकॉर्ड तोड़ेंगे और उसके बाद 2029 में सबसे लंबे समय तक प्रधानमंत्री रहने का नेहरू का रिकॉर्ड तोड़ने के लिए लड़ेंगे। इसका पर्याप्त संकेत श्री अमित शाह और श्री राजनाथ सिंह ने दे दिया है। तीसरा, श्री योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री पद से हटाने की जहां तक बात है तो वह भी पूरी तरह से काल्पनिक और अरविंद केजरीवाल के साजिशी दिमाग की उपज है। वे भाजपा के शीर्ष नेताओं के बीच झगड़ा लगाने और एक दूसरे के प्रति अविश्वास पैदा करने की घटिया राजनीति कर रहे हैं। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने कई सभाओं में श्री योगी आदित्यनाथ की प्रशंसा करके तमाम साजिश थ्योरी को खारिज कर दिया।

वैसे भी केजरीवाल की बातों पर कोई विश्वास नहीं कर सकता है क्योंकि उन्होंने अपने कामकाज से खुद अपनी छवि बेहद अविश्वनीय बना ली है। याद करें वे कैसे राजनीति में आए थे और क्या वादे किए थे। वे नीले रंग की वैगन आर गाड़ी से नीले रंग की मुड़ी तुड़ी कमीज पहन कर, मफलर लपेटे और खांसते हुए राजनीति में आए थे। उन्होंने आम आदमी की तरह रहने का वादा किया था। उन्होंने कहा था कि वे और उनके नेता न बड़ी गाड़ियां लेंगे और न बड़े बंगलों में रहेंगे। लेकिन हकीकत क्या है?

केजरीवाल के रहने के लिए दो बड़े बंगलों को तोड़ कर एक बंगला बनाया गया, जिसकी सिर्फ साज सज्जा पर 55 करोड़ रुपए खर्च हुए हैं। उनके छह लोगों के परिवार की देख रेख के लिए 28 लोगों का सरकारी स्टाफ काम करता है। उनको दिल्ली और पंजाब सरकार की सुरक्षा मिली हुई है और कई गाड़ियों के काफिले के साथ वे निकलते हैं और जब निकलते हैं तो उनके लिए दिल्ली में सड़कें बंद कर दी जाती हैं। उनके तमाम मंत्री और नेता भी बड़े बंगलों में रहते हैं और बड़ी गाड़ियों में भारी भरकम सुरक्षा तामझाम लेकर बाहर निकलते हैं।

अन्ना हजारे के ‘इंडिया अगेंस्ट करप्शन’ आंदोलन से निकले केजरीवाल ने ईमानदारी की राजनीति करने का वादा किया था लेकिन पूरी पार्टी आकंठ भ्रष्टाचार में डूबी हुई है। उनके और उनकी पार्टी के नेताओं के खिलाफ भ्रष्टाचार के अनेक मामले सामने आए हैं। शराब नीति में हुए घोटाले और उससे जुड़े धन शोधन के मामले में उनको प्रवर्तन निदेशालय ने गिरफ्तार किया था और वे 21 दिन के लिए अंतरिम जमानत पर रिहा हुए हैं। उनको दो जून को सरेंडर करना है और फिर उनका मुकाम दिल्ली का तिहाड़ जेल रहेगा। उनके उप मुख्यमंत्री रहे मनीष सिसोदिया शराब नीति घोटाले में ही करीब सवा साल से जेल में बंद हैं।

राज्यसभा सांसद संजय सिंह भी इसी मामले में गिरफ्तार हुए थे और अभी जमानत पर बाहर हैं। उनके मंत्री रहे सत्येंद्र जैन हवाला मामले में जेल में बंद हैं। विधायक अमानतुल्ला खान को कई मामलों में आरोपी हैं और कई बार गिरफ्तार हो चुके हैं। शराब नीति और हवाला के बाद दिल्ली जल बोर्ड में ठेका देने के मामले में गड़बड़ी की खबरें आईं, जिसकी सीबीआई जांच की सिफारिश उप राज्यपाल ने की है। केजरीवाल के बंगले पर हुए करोड़ों रुपए के खर्च के मामले की विजिलेंस जांच अलग चल रही है।

अब तो ईडी ने अदालत में कहा है कि उसके पास सीधे हवाला कारोबारी से केजरीवाल के चैट के सबूत हैं। उसके पास इस बात के भी सबूत हैं कि शराब नीति घोटाले में मिले पैसे का इस्तेमाल गोवा में चुनाव लड़ने में किया गया। देखें केजरीवाल की पार्टी का कैसा पतन हुआ कि जिस पार्टी का गठन ईमानदार राजनीति के लिए हुआ उसकी सारी राजनीति बेईमानी और भ्रष्टाचार से मिले पैसे से चल रही है। यह दुनिया में पहली बार हो रहा है, जब घोटाले के आरोप में किसी पार्टी को आरोपी बनाया गया है। ईडी ने केजरीवाल के साथ साथ आम आदमी पार्टी को भी आरोपी बनाया है क्योंकि घोटाले का पैसा पार्टी के लिए इस्तेमाल किया गया है।

शराब नीति या जल बोर्ड का घोटाला कोई अपवाद नहीं है। केजरीवाल की पूरी राजनीति उसी फॉर्मूले पर है, जिसका विरोध करते हुए वे राजनीति में उतरे थे। उन्होंने दिल्ली और पंजाब में जैसे लोगों को राज्यसभा में भेजा वह भी एक मिसाल है। इक्का दुक्का लोगों को छोड़ दें तो केजरीवाल ने ऐसे कारोबारियों और उद्योगपतियों को राज्यसभा में भेजा, जिनका न तो आम आदमी पार्टी से कोई लेना देना था और न राजनीति से उनका कोई सरोकार था। इससे पहले उन्होंने अपनी पार्टी के तमाम संस्थापक सदस्यों को अपनी असुरक्षा भावना के चलते किसी न किसी बहाने पार्टी से बाहर कर दिया। प्रशांत भूषण से लेकर लेकर योगेंद्र यादव, प्रोफेसर आनंद कुमार, आशुतोष, कुमार विश्वास, शाजिया इल्मी जैसे अनगिनत लोग जिन्होंने आंदोलन की नींव रखी और पार्टी बनाने में केजरीवाल की मदद की वे सब लोग पार्टी से निकाल दिए गए।

केजरीवाल की विशिष्टता यह थी कि उन्होंने अपने को आम आदमी की तरह स्थापित किया था और ईमानदारी राजनीति का वादा किया था। इस पर लोगों का भरोसा जीतने के लिए उन्होंने देश के अनेक पार्टियों के नेताओं पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए। उन्होंने दो दर्जन से ज्यादा नेताओं की एक सूची जारी करके कहा कि ये सब भ्रष्ट हैं। अब वे इस सूची के नेताओं के साथ ही गठबंधन करके चुनाव लड़ रहे हैं। कांग्रेस के नंबर एक परिवार से लेकर मुलायम सिंह, लालू प्रसाद, शरद पवार आदि के परिवार पर उन्होंने भ्रष्टाचार के आरोप लगाए थे। लेकिन आज इन सबके साथ मिल कर चुनाव लड़ने और जनता के बीच जाकर साझा रैली करने में उन्हें कोई परेशानी नहीं है। ममता बनर्जी के परिवार और पार्टी के ऊपर हजारों करोड़ रुपए के घोटाले के आरोप हैं लेकिन ममता बनर्जी के साथ केजरीवाल के सबसे घनिष्ठ राजनीतिक संबंध हैं। जाहिर है उनकी कथनी और करनी में कोई तालमेल नहीं है।

वे सादगी से रहने की बात करते हैं लेकिन रहते शहंशाहों की तरह हैं, ईमानदारी की बात करते हैं लेकिन खुद और पूरी पार्टी भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरी है, दूसरी पार्टियों पर बेईमानी के आरोप लगाते हैं और फिर उन्हीं पार्टियों के साथ तालमेल कर लेते हैं। झूठ और बेईमानी के अलावा आपराधिक कृत्य से भी केजरीवाल को परहेज नहीं है। पहली बार उन्हीं के मामले में सुनने को मिला की मुख्यमंत्री आवास में राज्य के सबसे वरिष्ठ आईएएस अधिकारी यानी मुख्य सचिव के साथ मारपीट हुई और अब अपनी पार्टी की इकलौती महिला सांसद स्वाति मालीवाल के साथ उनके आवास पर मारपीट हुई है। ऐसे नेता के ऊपर कोई भी नागरिक कैसे यकीन कर सकता है!  (लेखक सिक्किम के मुख्यमंत्री प्रेम सिंह तमांग (गोले) के प्रतिनिधि हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

By Naya India

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