राज्य-शहर ई पेपर व्यूज़- विचार

सम्मान व्यक्ति विशेष का नहीं, हिन्दुत्व का..!

भोपाल। भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठतम नेता लालकृष्ण आडवानी जी को भारत सरकार द्वारा सर्वोच्च अलंकार ‘भारत रत्न’ से सम्मानित करने की घोषणा की गई है, यद्यपि आडवानी जी के व्यक्तित्व के सामने यह अलंकरण काफी तुच्छ है और इस घोषणा को प्रधानमंत्री मोदी द्वारा अपना ‘राजधर्म’ निभाना बताया जा रहा है, किंतु यह भी सही है कि आज मोदी जी जो कुछ भी है, उसमें परम् श्रद्धेय लाल कृष्ण आडवानी जी की अहम् भूमिका है और इसी ‘‘राजधर्म के ऋण’’ को चुकाने की मोदी जी ने कौशिश की है।

आज से करीब तीन दशक पहले आडवानी जी ने ही अयोध्या राम मंदिर प्रहसन में मुख्य भूमिका का निर्वहन किया था और रथयात्रा के माध्यम से ‘राम मंदिर’ की अलख जगाई थी, आज उनके ही परम् शिष्य मोदी जी ने गुरू दक्षिणा के बतौर राम मंदिर की सौगात भेंट की है और अपने गुरू के सपने को साकार किया है और अपने गुरू के सम्मान की शेष क्षतिपूर्ति उन्हें ‘भारत रत्न’ से सम्मानित कर पूरी कर दी, वास्तव में शिष्य हो तो ऐसा….।
अखण्ड भारत की स्थिति में आडवानी जी पाकिस्तान में रहा करते थे, देश के विभाजन के बाद वे भारत के राजस्थान की सांस्कृतिक नगरी जोधपुर में आकर रहे, जिसका उल्लेख बड़े रोचक ढं़ग से उन्होंने अपनी पुस्तक ‘‘माई कन्ट्री-माई लाईफ’’ में इसका जिक्र किया है, उन्होंने इस पुस्तक में यह भी लिखा है कि अटल जी मोदी को मुख्यमंत्री पद से हटाना चाहते थे और इसीलिए उन्होंने दंगों के बाद गुजरात जाकर मोदी जी को ‘राजधर्म’ निभाने की सीख भी दी थी, किंतु आडवानी जी ने अटल जी के इस विचार का विरोध किया और मोदी जी यथावत मुख्यमंत्री बने रहे, इसका स्पष्ट अर्थ यह है कि आडवानी जी मोदी जी के राजनीतिक संरक्षक अतीत में भी थे और आज 96 वर्ष की उम्र में भी मोदी जी के प्रति अपने दायित्व का निर्वहन कर रहे है। इसलिए आज यदि आडवानी देश के सर्वोच्च सम्मान से सम्मानित होने जा रहे है, तो वह किसी का एहसान नहीं बल्कि स्वयं के व्यक्तित्व की आभा ही है।

यद्यपि भारतवासियों का एक वर्ग विशेष भारत सरकार के इस अहम् फैसले को मजहबी दायरे में लाकर साम्प्रदायिक विद्वेष फैलाने की कौशिश कर रहा है और इस सर्वोच्च सम्मान को बाबरी मस्जिद विध्वंस का ईनाम निरूपित कर रहा है, किंतु भारत के मौजूदा राजनीतिक सर्वेसर्वा और उनके साथ देशवासियों ने ऐसी समझ या मान्यता को कभी कोई महत्व या मान्यता नहीं दी है और न भविष्य में ही ऐसी कोई संभावना है, यह सम्मान एक वरिष्ठ राष्ट्रभक्त और देश के महान व्यक्तित्व का सम्मान है, इससे इतर कुछ नहीं।

आज देश पर राज कर रही भारतीय जनता पार्टी जो कुछ भी है, वह अटल-आडवानी-मुरली मनोहर जोशी इन ‘त्रिदेव’ के कारण है, आज से चौवालिस वर्ष पूर्व 1980 में जनसंघ को भारतीय जनता पार्टी के रूप में जन्म देने का श्रेय भी इसी ‘तिकड़ी’ को है और इन साढ़े चार दशक में इस पार्टी पर होने वाले वारों को भी इसी तिकड़ी ने बखूबी झेला है, यद्यपि अटल जी के असमय चले जाने के बाद आडवानी, जोशी थोड़े हतोत्साहित अवश्य हुए थे, किंतु इस के बावजूद उन्होंने अपने राष्ट्रª धर्म के अलख को जगाए रखा, इसीलिए आज यही कहा जा सकता है कि आडवानी जी के गौरवमयी व्यक्तित्व के सामने इस सम्मान का कोई अस्तित्व नहीं है।

Tags :

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *