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कोटा अब कोचिंग की जगह ‘सुसाइड हब’

kota suicide hubImage Source: ANI

kota suicide hub: दुनिया भर में किसी भी शहर में छात्रों की आत्महत्या की दर इतनी नहीं है जो कोटा में है। वह भी कम उम्र के छात्रों की। लेकिन कमाल है इतना लंबा समय बीतने, इस तरह की दुखद घटनाओं के होने के बावजूद सरकार और प्रशासन के कान परजूं तक नहीं रेगीं। कभी कभार लीपापोती कर दी जाती है। मसलन 2023 में कोटा प्रशासन की तरफ से नोटिस जारी की गई कोटा के सभी हॉस्टल और पीजी में स्प्रिंग वाले पंखे लगाए जाए ताकि उससे छात्र फांसी ना लगा सके। लेकिन हुआ क्या? जनवरी में 15 दिन के भीतर जो भी आत्महत्या की घटनाएं हुई है उनमें से एक को छोड़ कर सभी बच्चों ने पंखे से ही फंदा लगाया।

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वर्ष 2025 के पहले महीने, जनवरी में केवल पंद्रह दिन में राजस्थान के कोटा शहर में एक नहीं, दो नहीं, जेईई, नीट की तैयारी कर रहे छह बच्चों ने हॉस्टल और पीजी एकोमोडेशन के अपने कमरों में फांसी लगा कर आत्महत्या कर ली।

22 जनवरी को एक ही दिन में थोड़े से अंतराल में जेईई और नीट की परीक्षा की तैयारी कर एक छात्र और छात्रा के आत्महत्या के दो मामलों की रपट जब थाने में दर्ज हुई, इसकी खबरें स्थानीय अखबारों में आईं तो लोगों की पेशानी पर थोड़ा बल पड़ा।

दो चार दिन बहस चली। फिर लोग सब कुछ भूल गए। जिन बच्चों ने जान दी है उनका परिवार भले ही इस जख्म को कभी ना भूल पाए। उन परिवारों में शायद की कोई ऐसा होगा जो इसमें खुद को गुनहगार माने।

इसमें कोई संदेह नहीं कि कोटा शहर देश के मासूम और कैरियर उन्मुख छात्रों की आत्महत्या का एक बड़ा केंद्र बन चुका है।(kota suicide hub)

कोटा में आत्महत्या आम…

जनवरी में बच्चों के आत्महत्या के जिस तरह से मामले सामने आए वे कोटा के लिए, वहां के प्रशासन, वहां की आम जनता और मीडिया के लिए कोई बड़ी नहीं बात नहीं है।

यहां हर वर्ष जेईई, नीट की प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी में जुटे कई बच्चे हताशा का शिकार हो कर फांसी पर लटकते रहते हैं। खबरे आती रहती हैं।

वहां के लोगों से पूछिएगा तो वे आपको यह भी बताएंगे कि बच्चे अपना यह आखिरी कदम मूलतः प्रतियोगिता परीक्षाओ में मिली असफलता की वजह से नहीं, बल्कि कई अन्य वजहों से उत्पन्न मानसिक तनाव की वजह से उठाते हैं।

खुद से ज्यादा मां बाप के सपने को पूरा करने के लिए कोटा जाने वाले बच्चे रात दिन की पढ़ाई की मेहनत, प्रतिस्पर्धा के मनोवैज्ञानिक तनाव, होम सिकनेस, खाने पीने की दिक्कतों, इन सबको झेलते रहने के बीच जब हताशा, निराशा का भारी दबाब नहीं बर्दाश्त कर पाते तो इनमें से कई फांसी पर झूल जाते है।

छोटी उम्र में इन परिस्थितियों में वे अकेले होते हैं। उनके साथ उनके मां बाप, भाई बहन कोई भी घर का नहीं होता जिससे वे अपनी तकलीफों को, मानसिक आवेग को साझा कर सके, उन्हें नहीं कुछ तो ऐसी परिस्थितियों में ढाढस दे सके।

कोटा कोई बड़ा शहर नहीं(kota suicide hub)

कोटा कोई बड़ा शहर नहीं है, पिछले कुछ सालों में भौगोलिक, आर्थिक तौर पर जो उसका विस्तार हुआ है उसकी एकमात्र वजह यहां पिछले दो दशक में फले फूले कोचिंग सेंटरों की वजह है।

यहां देश भर से आने वाले बच्चों में आत्महत्या की बढ़ती घटना के पीछे जेईई, नीट की परीक्षाओँ की तैयारी के लिए सालो से बने कोचिंग के बाजार और उससे जुड़ी अर्थव्यवस्था का बड़ा बड़ा हाथ है।

मजबूती से बनाए गए सिस्टम ने अनुभवहीन छोटी उम्र के हाई स्कूल, इंटर पास कर के आए इन बच्चों के दिमाग में यह भर दिया था कि उनकी जिंदगी का लक्ष्य महज जेईई, नीट की परीक्षा को क्रैक करने तक ही सीमित है।

उन्हें यह मालूम चलने ही नहीं दिया जाता कि इस दुनिया में इससे कहीं बेहतर, कहीं लुभावने और भी अवसर है।(kota suicide hub)

उन्हें यह भी नहीं मालूम हो पाता कि उन्हें इस समझ से परे रखने में उनके मां बाप, घर वाले, बाजारवाद, कोचिंग सेंटर और उनकी तरफ से हिंदी, अंग्रेजी, अन्य भाषाओं के अखबारों में पूरे पेज पर निकाले जाने वाले लाखों रुपए के बड़े बड़े विज्ञापन का बड़ा हाथ है।

चक्रव्यूह का छठा घेरा तोड़ना

हाई स्कूल या इंटर पास कर के यहां इंजीनियरिंग की तैयारी के लिए आए 14 से 16 वर्ष के बच्चों को यह नहीं पता होता कि दुनिया में इंजीनियर, डॉक्टर, एमबीए करना ही करियर या उनके भविष्य का अंतिम मुकाम नहीं है।

उन्हें यह लक्ष्य बचपन से जो उनके मां बाप, संरक्षक, फिर कोटा का शिक्षा बाजार पकड़ा देता है, यह एक ऐसा छलावा है जो उनकी जान तक ले सकता है।

जेईई की कोचिंग करते हुए, कोटा में परीक्षा की तैयारी में जुटे इन बच्चों को कुछ ही समय में यह महसूस होने लगता है कि उनकी नियति चक्रव्यूह में फंसे महाभारत के उस अभिमन्यु की तरह है, जिसके पास आगे बढ़ने के लिए चक्रव्यूह का छठा घेरा तोड़ना ही एकमात्र विकल्प है।

इसे तोड़ कर कर सातवें घेरे (इंजीनियरिंग कॉलेज) में जाने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं बचा है।(kota suicide hub)

आत्महत्या करने का भयानक फैसला

उस समय उन्हें यह मालूम नही होता कि जिस इंजीनियरिंग की परीक्षा नहीं क्रैक करने की वजह से वे आत्महत्या करने तक का भयानक फैसला कर लेते है, उसी जेईई परीक्षा को पास कर, यहां तक कि आईआईटी से भी निकले कई इंजीनिय़र अपनी नौकरी से संतुष्ट ना हो, कोटा से बाहर देश के दूसरी जगहों पर आईएस, आईपीएस के लिए दिन रात एक कर रहे हैं, जिसे एक साधारण कॉलेज से बीए की डिग्री हासिल किया कोई ग्रेजुएट कर सकता है।

वे यह भी देख नहीं पाते कि जेईई की परीक्षा पास कर मल्टीनेशनल में काम करने वाले कई इंजीनियरिंग कुछ ही समय में अपनी नौकरी छोड़ अपनी फर्म खोल लेते हैं, जिसके लिए किसी बड़ी डिग्री की जरूरत नहीं होती।

उन्हें यह अहसास हो नहीं पाता कि उनमें जो निहित प्रतिभा है वह क्या है, या वे खुद क्या बनना चाहते हैं। कबूतर के बच्चे ने अभी आंख खोली नहीं कि उन्हें साइंस और मैथ की बेसिक शिक्षा दिलवा कर कोटा के सिस्टम में धकेल दिया जाता है, जिसकी अपनी अलग एक दुनिया है, एक अलग व्यवस्था है।

बचपन से गुरूकुल, मदरसा, आर्मी में भेज दिए जाने वाले बच्चों की तरह उनकी दुनिया भी एक छोटे से दायरे में सिमट कर रह जाती है।(kota suicide hub)

अंतिम उपाय…आत्महत्या

घर छोड़ कोटा के इस एकदम से अलग माहौल में इन बच्चों एडजस्ट करने के साथ साथ उनके भीतर हॉस्टल, पीजी, मेस, कोचिंग सेंटर, कोचिंग सेंटरों की तरफ से मुहैया किए जाने वाले स्टडी मैटेरियल, उनकी तरफ से समय समय पर लिए जाने वाले टेस्ट और फिर जेईई की परीक्षा, इन सबको ले कर धीरे धीरे एक प्रेशर कुकर की तरह दबाब बनने लगता है।

यह दबाब जब बहुत ज्यादा हो जाता है तो प्रेशर कुकर की तरह ही उनकी मानसिक स्थिति में विस्फोट होता है, बच्चों को कुछ समझ में नहीं आता तो अपनी जान दे देते हैं।

इस साल 22 जनवरी को प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए असम के नागांव से कोटा में आ कर कोचिंग के लिए हॉस्टल में रह रहे 18 वर्ष के पराग ने अपने कमरे में पंखे से फांसी लगा कर आत्महत्या कर ली।

उसी दिन दूसरा मामला आफ्शा शेख का आया। यह अहमदाबाद से नीट की तैयारी के ले यहां आई थी। 23 वर्ष की थी, पीजी में रहती थी।(kota suicide hub)

परीक्षा मे व्यस्त बेटी को संभालने के लिए उसकी मां ट्रेन से उसी दिन अहमदाबाद से कोटा आ रही थी। अहमदाबाद से चलने के पहले मां की बेटी से बात भी हो चुकी थी।

लेकिन मां जब रास्ते में ट्रेन में थी, उस समय आफ्शा ने फांसी लगा ली। मां जब कोटा उसके यहां पहुंची तो उसे आफ्शा की जगह उसकी लाश मिली।

कुल छह बच्चों ने पहले महीने में आत्महत्या कर ली। पिछले साल 2024 में 26 बच्चों ने आत्महत्या की। 2018 में 20 बच्चों ने, 2019 में 18 बच्चों ने, 2022 में 15 बच्चों नें कोटा में आत्महत्या की थी। तकरीबन सभी यहां देश के विभिन्न शहरों से इंजीनियरिंग की तैयारी करने आए थे।

प्रशासन-सरकार अनजान (kota suicide hub)

दुनिया भर में किसी भी शहर में छात्रों की आत्महत्या की दर इतनी नहीं है जो कोटा में है। वह भी कम उम्र के छात्रों की।

लेकिन कमाल है इतना लंबा समय बीतने, इस तरह की दुखद घटनाओं के होने के बावजूद सरकार और प्रशासन के कान पर जूं तक नहीं रेगीं। कभी कभार लीपापोती कर दी जाती है।

मसलन 2023 में कोटा प्रशासन की तरफ से नोटिस जारी की गई कोटा के सभी हॉस्टल और पीजी में स्प्रिंग वाले पंखे लगाए जाए ताकि उससे छात्र फांसी ना लगा सके।

लेकिन हुआ क्या? जनवरी में 15 दिन के भीतर जो भी आत्महत्या की घटनाएं हुई है उनमें से एक को छोड़ कर सभी बच्चों ने पंखे से ही फंदा लगाया।

नेताओं की तरफ से इसी तरह गाहे बगाहे चिंता जता दी जाती है। जब भी मीडिया में छात्रों के आत्महत्या की खबरे आती हैं, सुझाव आते हैं, बच्चों की काउंसिलिंग करने को ले कर कोचिंग सेंटर वालों को निर्देश दे कर सरकार और प्रशासन अपना कर्तव्य पूरा कर लेती हैं। यह अजीब बात है।

कुछ बच्चों की तहरीर…

मां बाप की आकांक्षा, बारहवीं की परीक्षा के साथ कोचिंग सेंटर की पढ़ाई, रहने भोजन के संकट, भविष्य के करियर के दबाब को अकेले झेलते बच्चों को आप क्या समझाएंगे?

यहीं ना कि निराश मत हो, प्रतिस्पर्धा और पढ़ाई के दबाब में मत आओ, जिदंगी कीमती है, इसे आत्महत्या कर खत्म ना करो…।

इस प्रतिस्पर्धा में उन्हें धकेलता कौन है?  सिस्टम, मां बाप, कोचिंग सेंटर, बाजार उस पर अपना दबाब उसी तरह बनाए रहेगा।

सच पूछा जाए तो काउंसिलिंग इन बच्चों की नहीं, उनके मां बाप, कोचिंग सेंटर के मालिकों और प्रशासन में बैठे अधिकारियों की होनी चाहिए।(kota suicide hub)

आत्महत्या के पहले कुछ बच्चों ने जो तहरीर छोड़ी है वह लगभग एक सी हैं-

“सारी पापा…..सारी मम्मी….यही लास्ट आप्शन है,,,,”

“इस बार हार्ड वर्क कर रहे थे, लेकिन फिर भी रिजल्ट नहीं आया….हमारी हिम्मत नहीं है आप से नजर मिलाने की….इसलिए अपनी लाइफ खत्म कर रहे हैं…. सारी फार बीईंग वीक बट आई हैव नो स्ट्रेंथ लेफ्ट…”

“…सारी दादाजी मैं आपके सपने को पूरा नहीं कर पाई….मुझे माफ कीजिएगा…..”

इनसे एक अल्पबुद्धि का व्यक्ति भी उस स्थिति का अंदाजा लगा सकता है, जिनसे इन बच्चों को गुजरना पड़ता है।

बच्चों के गुनहगार मां-बाप

सवाल है जो कुछ इन बच्चों के साथ हो रहा है उसमें बड़ी गलती किसकी है? यह कईयों को बुरा लग सकता है, पर सबसे बड़े गुनहगार इसमें बच्चों के मां, बाप हैं।

कई वजहें हैं इसकी। कई पिता ऐसे हैं जो अपने सपनों को अपने बच्चों पर थोपते हैं, उन पर उन्हें पूरा करने के लिए पूरा भार डालते हैं।

उसके लिए वे कर्ज ले कर भी पैसा खर्च करते हैं। यह नहीं जानते कि उनके द्वारा उठाया गया आर्थिक बोझ भी बच्चों पर दबाब बनाए रहता है।

उनके दिमाग में यह बना रहता है कि पिता जी किस मुसीबत से पैसा भेज रहे हैं और मैं उनके सपने को पूरा नहीं कर पा रहा हूं।

दरअसल बच्चे नही, मां, बाप कोटा के गढ़े तिलस्म और अंधी रेस में फंसे हैं, वे समझते है कि कोटा अल्टीमेट है, वहां भेजने के बाद उनके बेटे बेटी आईआईटी में पहुंच जाएंगे।

पढ़े लिखे होने के बावजूद उन्हें यह नहीं मालूम रहता कि 10वीं, बारहवीं में नंबर लाना और प्रतियोगिता दोनों अलग चीज होती है।

आईआईटी हो या आईएएस, कई साधारण नंबर पाने वाले बच्चे सफल हो जाते हैं। लड़के को साइंस, मैथ नहीं पसंद है फिर भी उसे इंजीनियर बनाना है।(kota suicide hub)

ऐसे बच्चों से आप मेहनत करवा सकते हैं, पर उनमें उन विषयों के प्रति दिलचस्पी नहीं पैदा कर सकते हैं।

बच्चे गैरजानकार

बच्चे गैरजानकार होते हैं, पर गार्जियन के तो पता होना चाहिए कि तरक्की के इससे बेहतर और भी कई रास्ते हैं।

उन्हें तो पता होना चाहिए अपने बच्चे की भावना, उनके दर्द की जो प्रतियोगिता, प्रतिस्पर्धा के दबाब से कहीं अधिक इस छोटी सी उम्र में घऱ से दूर रहने पर उन्हें महसूस होता है।

होम सिकनेस 21 साल और उससे बड़े लड़कों को भी महसूस होता है जब वह पहली बार घर छोड़ कर विश्वविद्यालय में या नौकरी पर बाहर जाता है।(kota suicide hub)

कोटा की तैयारी के लिए 10वीं पास करने के बाद कोचिंग में बच्चों को भेज दिया जाता है, कोचिंग सेंटर ही उन्हें मेरठ या कहीं और किसी प्राइवेट स्कूल से उनके 12वीं बोर्ड की परीक्षा दिलवाने की व्यवस्था करते हैं, जिनमें बगैर पढ़ाए उनकी हाजिरी बन जाती है।

एक बड़ा शिक्षा माफिया लगा रहता है, इन सबके पीछे और यह सब सरकार की जानकारी में होता रहा है। कोटा में कोचिंग सेंटर के जरिए चलने वाले व्यापार की टर्नओवर एक अनुमान के हिसाब से तकरीबन पांच हजार करोड़ है।

By प्रदीप सिंह

Experienced Journalist with a demonstrated history of working in the newspapers industry. Skilled in News Writing, Editing. Strong media and communication professional. Many Time Awarded by good journalism. Also Have Two Journalism Fellowship. Currently working with Naya India.

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