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पार्टी ने की कंगना की बोलती बंद !

फ़िल्मी अंदाज को राजनीति की ज़मीन पर इस्तेमाल करने की कोशिश में बड़बोली कंगना रनौत आख़िर मात खा गईं।पार्टी के निर्देशक यानी कि अध्यक्ष ने उन्हें चुप रहने की हिदायत तो ही साथ ही दुबारा ऐसी बयानबाज़ी न करने कीचेतावनी भी दे दी। अब कंगना भले पढ़ी लिखी हों पर चुनावी माहौल में बेतुके बयानों ने आख़िर पार्टी की टेंशन बढ़ा दीं।एक तो वैसे ही हरियाणा में भाजपा की हालत अच्छी नहीं बताई जा रही है ऊपर से कंगना के किसानों को लेकर दिए गएबयानों ने पार्टी की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। ‘पंजाब में जो किसान आंदोलन हुआ वहाँ लाशें लटक रहीं थीं और रेप हो रहे थे’ जैसा बयान पंजाब क्या देश के किसी भी व्यक्ति की नाराज़गी बढ़ा सकता है सो विरोधियों ने हल्ला शुरू कर दिया ।मरता क्या न करता बाली बात ,भाजपा ने तुरंत अपनी सांसद के इस बेतुके बयान से किनारा किया और कंगना कोफटकारा भी। अब टेंशन तो कंगना को भी रही ही होगी सो दौड़ी-दौड़ी पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा के दरबार में जा पहुँची परपर लंबे समय तक इंतज़ार के बाद जब पार्टी नेता की फटकार लगी और नीतिगत मामलों पर शटअप रहने को कहा गयातो कंगना को एहसास हुआ होगा कि उनके दिए गए बयान किसी फ़िल्म के लिए नहीं थे बल्कि ऐसे बयानों से पार्टी कीछवि तो ख़राब होती ही है साथ ही चुनावी दौर में पार्टी को नुक़सान भी होता है। भला कोई यह कहे कि आख़िर कंगना नेऐसे बयान क्यों दिए होंगे तो लोग तो इसे पिछले दिनों एअरपोर्ट पर कंगना और एक सुरक्षा कर्मी के बीच हुई तकरार सेजोड़कर देख रहे हैं। वरना तो इस तरह के बयान देने लायक़ कंगना दिखती भी नहीं हैं। हाँ यह ज़रूर कि ‘द क्वीन ऑफझांसी’ फ़िल्म में रानी लक्ष्मीबाई की भूमिका निभाने के बाद से कंगना का जोश भले बढ़ा रहा है पर बिना होश के ही वेबयान दे बैठती हैं। आगे-आगे होता है क्या यह तो बाद की बात पर फिलाहल तो उन्होंने अकाली नेता सिमरन जीत सिंहमान की टिप्पणी के बाद यह तो कह ही डाला कि मुझे धमकियाँ मिल रही हैं। मेरी आवाज़ नहीं दवा सकते।

बाजीगर बनना चाहती हैं स्मृति ईरानी 

पार्टी को चुनाव जीतने के लाले पड़े हैं और नेता जो हैं कि मुख्यमंत्री बनने का सपना देखने में लगे हैं। जी अपन बात कर रहेहैं पूर्व केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी की।मैडम अमेठी से इस बार लोकसभा हार गईं,सारी हेकड़ी निकल गई पर न तो छपाई रोगकम हुआ और न ही सत्ता की ललक। शहर में मैडम को लेकर चर्चा है कि वे अगले साल होने वाले दिल्ली विधानसभा सभाके चुनाव लड़ने के लिए लॉविंग कर रही हैं। चुनाव जीतने पर वे दिल्ली का मुख्यमंत्री बनने की मंशा पाले बताई जा रही हैं।उन्हें लग रहा है कि दिल्ली में पार्टी के पास इस क़द का नेता नहीं जैसी कि वे रहीं हैं। यह अलग बात है कि उन्हें पूर्व केंद्रीयमंत्री डा हर्षवर्धन के अलावा कोई दूसरे नेता नज़र नहीं आ रहे हों। भले हर्षवर्धन राजनीति से संन्यास की बात कर चुके होंपर राजनीति से कोई यूँ भी मोह भंग नहीं कर पाता है तो हर्षवर्धन ही कैसे अपवाद हो सकते हैं। पिछले दिनों जब उनसे यहसवाल किया गया कि क्या वे दिल्ली में विधानसभा लड़ने की तैयारी में हैं या फिर क्या वे दिल्ली का मुख्यमंत्री बनने कीमंशा रखती हैं तो सीधे तौर पर चुप्पी साध गईं अलबत्ता यह ज़रूर कहा कि वे वही करेंगी जो पार्टी कहेगी। और तभी सेभाजपा के लोग ही उनकी ऐसी ही मंशा पर क़यास लगाने लगे हैं। भाजपाई तो कहते हैं कि स्मृति ईरानी अमेठी सेलोकसभा हारने के बाद से खुद को राजनीति में साइड लाइन होते देखने लगी थीं और तभी अब वे विधानसभा लड़ने कीमंशा पाल बैठी हैं। पार्टी में ईरानी का दम-ख़म क्या है और क्या रहा है यह तो सड़क चलता आदमी भी जानता है सोज़ाहिर है कि उन्हें टिकट की कोई दिक़्क़त होने वाली नहीं। अब स्मृति को टिकट मिलती है,चुनाव,लड़ती हैं ,भाजपा जीततीहै यह सब फिलाहल दूर की कौड़ी है। पर यह ज़रूर है कि स्मृति दिन में ही मुंगेर लाल जैसे हसीन सपने ज़रूर देखतीबताई जा रही हैं। अब उन्होंने इतना साहस कैसे बटोर पाया होगा यह अलग बात है पर उनका यह सोचना भी अजीब ही हैकि दिल्ली में भाजपा के पास उनसे बेहतर नेता नहीं है। औसान ही यह भी कि दिल्ली में आप पार्टी भाजपा या कांग्रेस सेकमतर होगी। सिर्फ़ वक्त का फेर है। आज आप पार्टी मनीष सिसोदिया के दम पर चुनाव जीतने का दम भरे हुए है भलेकेजरीवाल जेल में ही क्यूं न रहें। लोग तो मानते हैं कि केजरीवाल को जेल में रहने के दौरान भी वोट मिलेंगे और दिल्ली मेंफिर आप पार्टी सत्ता में बापिसी करेगी। लेकिन तब स्मृति के सपनों का क्या होगा इसका अंदाज़ा अभी उन्हें भी नहीं होगा।

‘आप’ बोले केजरीवाल आएँगे

आप पार्टी अपने नेता अरविंद को सोने से कमतर नहीं मानती। पार्टी कार्यकर्ताओं और कई नेता मानते हैं कि सोने की तरहही केजरीवाल को जितना तंग किया रहा है। निपटाने की कोशिशें की जा रही हैं उतना ही दम ख़म से केजरीवाल फिरदिल्ली की सत्ता में वापिसी करेंगे। इसी कड़ी में पार्टी ने ‘केजरीवाल आएँगे’ अभियान शुरू किया है। जिसके तहत नेताऔर कार्यकर्ता विधानसभा चुनावों से पहले वोटरों से संपर्क कर रहे हैं। पार्टी के इस अभियान से दो संदेश हैं। एक तोकेजरीवाल जेल से जल्दी ही छूटने वाले हैं और दूसरे अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों में पार्टी सत्ता में वापिसीकरेगी। केजरीवाल एंड पार्टी का यह अभियान कितना खरा उतर पाता है यह अलग बात है पर इसके पहले भी 2020 केविधानसभा चुनावों में भी पार्टी ने लगे रहो केजरीवाल के नाम से अभियान शुरू किया था । अभियान से वोटरों पर ख़ासाअसर हुआ और पार्टी बहुमत से चुनाव जीती। यह बात दूसरी है कि लगे रहो मुन्ना भाई गाने की तर्ज़ पर शुरू हुआ यहस्लोगन या नारा का विचार देने वाले प्रशांत किशोर फिलाहल राजनीति के मैदान में ज़मीन तलाश रहे हैं। हेमंत सोरेन, मनीष सिसोदिया और इसके बाद के कविता को ज़मानत मिलने के बाद से पार्टी को केजरीवाल के जल्दी ही ज़मानत परछूटने की उम्मीद बंधी है। ज़ाहिर है कि ईडी के मामले केजरीवाल को पहले ही ज़मानत मिली हुई है। बात बची है तोसीबीआई के मामले की। पार्टी विधानसभा चुनावों की तैयारी में लगी है। यूँ भी मनीष सिसोदिया के जेल से आने के बादसे नेता और कार्यकर्ता उत्साहित हैं। अब भला केजरीवाल कब जेल से बाहर आते हैं इसका तो कार्यकर्ताओं को इंतज़ार हैही पर भरोसा सत्ता में वापिसी का भी है। भाजपा को उम्मीद है कि आप का दलित वोट आप से छिटक कर कांग्रेस मेंवापिसी करेगा और भाजपा को इसका लाभ मिलेगा। भाजपा तो मान बैठी है कि एक लंबे अरसे के बाद वह दिल्ली कीसत्ता में लौट रही है। लेकिन चर्चा तो यह भी है कि कांग्रेस और आप के बीच अंदरखाते गठजोड़ है और भाजपा के लिएदिल्ली फिर दूर ही रहनी है।

By ​अनिल चतुर्वेदी

जनसत्ता में रिपोर्टिंग का लंबा अनुभव। नया इंडिया में राजधानी दिल्ली और राजनीति पर नियमित लेखन

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