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भावनात्मक आघात से आगे बढ़ने की कहानी

It Ends With Us MovieImage Source: Social Media

हॉलीवुड It Ends With Us Movieकी भारत में भी काफ़ी चर्चा हो रही है। ये फ़िल्म इसी नाम से 2016 में छपे कोलीन हूवर के मशहूर उपन्यास पर आधारित है। फ़िल्म की पटकथा लिखी है क्रिस्टी हॉल ने और निर्देशक हैं जस्टिन बाल्डोनी। यह कहानी जेनरेशनल ट्रॉमा (पीढ़ीगत आघात), प्यार और रिश्तों में दुर्व्यवहार जैसे भावनात्मक और नाजुक विषयों को बेहद संवेदनशीलता से टटोलती है। फ़िल्म इट एंड्स विथ असप्रेम कहानी के भीतर गहरे सामाजिक मुद्दों को एक धागे से पिरोती है।

सिने-सोहबत

इन दिनों हॉलीवुड It Ends With Us Movie’ की भारत में भी काफ़ी चर्चा हो रही है। ये फ़िल्म इसी नाम से 2016 में छपे कोलीन हूवर के मशहूर उपन्यास पर आधारित है। फ़िल्म की पटकथा लिखी है क्रिस्टी हॉल ने और निर्देशक हैं जस्टिन बाल्डोनी। यह कहानी जेनरेशनल ट्रॉमा (पीढ़ीगत आघात), प्यार और रिश्तों में दुर्व्यवहार जैसे भावनात्मक और नाजुक विषयों को बेहद संवेदनशीलता से टटोलती है।

इट एंड्स विथ अस’ : प्रेम, संघर्ष और सामाजिक संदेश की कहानी

It Ends With Us Movie’ प्रेम कहानी के भीतर गहरे सामाजिक मुद्दों को एक धागे से पिरोती है। यह बताती है कि कैसे पीढ़ी दर पीढ़ी कुछ ग़लतियों और तकलीफों का चक्र चलता रहता है, और ज़िंदगी में एक वक़्त ऐसा भी आता है, जब हमें उस चक्र को भेदने के लिए हिम्मत दिखाकर उसे रोकने का फ़ैसला करना ही पड़ता है। इस कहानी में नायिका के भीतरी और बाहरी संघर्ष को दिखाया गया है, जो अपने पार्टनर के शारीरिक और मानसिक दुर्व्यवहार का शिकार होती है। कहानी यह दिखाती है कि अपने आत्मसम्मान और शांति के लिए मुश्किल लेकिन सही फ़ैसले लेने की क्या अहमियत होती।

फ़िल्म का निर्देशन बेहद संवेदनशीलता और गहराई से किया गया है। निर्देशक जस्टिन बाल्डोनी ने अपना शानदार कौशल दिखाते हुए फ़िल्म की कहानी को वास्तविकता के करीब रखने की सार्थक कोशिश की है। फिल्म के दृश्य और उनका प्रभाव कमाल का है, ख़ासकर फ्लैशबैक और वर्तमान के बदलाव के दौरान। फिल्म बहुत सहज रूप से एक समय से दूसरे समय में आती जाती है। कहानी को लेकर निर्देशक ने इस बात का ख्याल रखा है कि यह फ़िल्म सिर्फ़ एक लव स्टोरी नहीं, बल्कि एक सशक्त सामाजिक संदेश भी ज़रूर दे।

जस्टिन बाल्डोनी ने इससे पहले दो और फ़िल्में, 2019 में ‘फाइव फ़ीट अपार्ट’ और 2020 में  ‘क्लाउड्स’, निर्देशित की है और उनकी सभी फ़िल्मों में भावनात्मक और इंसानी संबंधों से जुड़ी कहानियां और ट्रीटमेंट हैं। फ़ीचर फिल्मों के निर्देशन से पहले बाल्डोनी डॉक्यूमेंट्री फ़िल्में बनाते थे और उनकी इसी पृष्ठभूमि ने उनके निर्देशन में यथार्थवाद की झलक दी है। भावनात्मक गहराई और यथार्थवाद से भरी अपनी फ़िल्मों में जस्टिन बाल्डोनी किरदारों के संघर्ष और भावनाओं को इस तरह चित्रित करते हैं कि वे दर्शकों से सहज रूप से जुड़ जाते हैं।

जस्टिन बाल्डोनी की फ़िल्मों में रिश्तों, संघर्ष और संवेदनशीलता की गहरी छाप

एक ओर जहां उनकी फ़िल्म ‘फाइव फ़ीट अपार्ट’ में क्रॉनिक इलनेस (सिस्टिक फाइब्रोसिस) से पीड़ित दो किशोरों की कहानी है, जिसमें वे अपनी सीमाओं के बावजूद प्यार का अनुभव करते हैं। वहीँ दूसरी और उनकी फ़िल्म ‘क्लाउड्स’ एक वास्तविक कहानी पर आधारित है, जहां कैंसर से जूझ रहे किशोर की ज़िंदगी को संगीत और सकारात्मकता के माध्यम से दिखाया गया है।

‘It Ends With Us Movie’ घरेलू हिंसा और रिश्तों की जटिलताओं को यथार्थवादी तरीके से दिखाती है। फ़िल्म दर्द, संघर्ष, और आत्म-खोज को उजागर करती हैं। उनकी फ़िल्में गंभीर सामाजिक और व्यक्तिगत मुद्दों को संवेदनशीलता और सम्मान के साथ दर्शाती हैं। उनकी फ़िल्में मुख्य रूप से रिश्तों, प्यार, और व्यक्तिगत संघर्षों के ईर्द-गिर्द घूमती हैं। चाहे वह दोस्ती हो, रोमांटिक प्यार, या पारिवारिक रिश्ते, बाल्डोनी ने हमेशा इंसानी भावनाओं को प्राथमिकता दी है।

जस्टिन बाल्डोनी की फ़िल्में इंसानी कहानियों और संवेदनशील विषयों की गहराई में जाकर उन्हें खूबसूरती से चित्रित करने के लिए जानी जाती हैं। उनके निर्देशन और अभिनय दोनों में यथार्थवाद और भावनात्मक गहराई का संगम देखने को मिलता है। इस फ़िल्म में भी उनका अभिनय और निर्देशन उनके मल्टी-टैलेंटेड व्यक्तित्व का प्रमाण है। जस्टिन बाल्डोनी ने खलनायक की भूमिका निभाई। राइल किनकेड का किरदार एक परतदार व्यक्तित्व है, जो सतह पर आकर्षक और प्रतिभाशाली डॉक्टर है, लेकिन अंदरूनी तौर पर गुस्से और हिंसा से भरा हुआ है। बाल्डोनी ने इस जटिलता को प्रभावी ढंग से निभाया।

जस्टिन बाल्डोनी की निर्देशन और अभिनय में संतुलन, और ब्लेक लाइवली का सशक्त प्रदर्शन

एक अभिनेता के रूप में, बाल्डोनी ने राइल के आंतरिक संघर्ष और ख़ामियों को वास्तविकता के करीब दर्शाया। ख़ुद की निर्देशित फ़िल्म में अभिनय करना वाकई चुनौतीपूर्ण होता है, लेकिन बाल्डोनी ने निर्देशन और अभिनय के बीच बेहतरीन संतुलन बनाए रखा।

फिल्म की शूटिंग सुंदर लेकिन भावनात्मक रूप से प्रभावशाली लोकेशंस पर की गई है। अमेरिका के विख्यात शहर बॉस्टन के ख़ूबसूरत लोकेशन के माध्यम से कहानी का मूड दर्शकों तक पहुंचता है। हैरत करने वाली बात ये है कि आमतौर पर हॉलीवुड की फ़िल्मों में  संगीत का इतना ज़्यादा इस्तेमाल कम दिखता है, लेकिन ‘इट एंड्स विथ अस’ में संगीत का फिल्म में बहुत अहम रोल है। बैकग्राउंड स्कोर कहानी के इमोशन्स को और गहराई देता है, जबकि गाने किरदारों की मानसिक स्थिति को समझाने में मदद करते हैं। फ़िल्म का ये पक्ष भारतीय दर्शकों को मोहने के लिए कारगर साबित हो रहा है।

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फ़िल्म के दूसरे मुख्य किरदारों ने भी प्रभावशाली काम किया है। मुख्य अभिनेत्री ब्लेक लाइवली ने लिली ब्लूम के क़िरदार को जीवंत कर दिया है। दरअसल, यही किरदार इस फ़िल्म का असली हीरो भी है। ब्लेक ने एक पीड़ित और फिर एक सशक्त नारी की भूमिका बखूबी निभाई है। इस किरदार की सबसे बड़ी ख़ूबी ये है कि वो अपने रिश्तों की टॉक्सिसिटी को ख़त्म करने के लिए प्रतिशोध की बजाए ‘माफ़’ करके आगे बढ़ जाने के फ़लसफ़े में यक़ीन करती है। उसका मानना है कि दरअसल कोई भी इंसान पूरे का पूरा बुरा नहीं होता है। अगर इंसान अपने अंदर मौजूद बुराई को पहचान कर उसे ख़ुद से दूर भगाने की प्रक्रिया को अपना ले तो मामला नियंत्रित हो सकता है।

उस किरदार की परिपक्वता और मुश्किल परिस्थिति में अपनी बेटी की सकारात्मक ज़िन्दगी के लिए नकारात्मक पति से ‘मूव ऑन’ कर जाने का फ़ैसला उसे काफी गहराई देता है। लिली का क़िरदार अपने पति के प्रति भी समानुभूति ही रखती है क्योंकि वो खुद बचपन में आपसी खेल में पिता की रिवॉल्वर से गोली चल जाने की वजह से अपने भाई की मौत के सदमे से उबर नहीं सका था।

उपन्यासों के फ़िल्मी रूपांतरण: चुनौतियाँ और सफल उदाहरण

उपन्यासों के फ़िल्मी रूपांतरण की एक बहुत बड़ी चुनौती ये होती है उनके ऐसे दर्शक काफ़ी स्ट्रिक्ट होते हैं, जो वो किताब पढ़ चुके होते हैं, जिस पर फ़िल्म आधारित होती है। दरअसल, पाठकों के लिए ये बेहद स्वाभाविक है कि वो कोई उपन्यास पढ़ते हुए अपने मन में भी अपनी एक फ़िल्म बनाते जाते हैं और जब उसी किताब पर बनी फ़िल्म उनकी अपनी मन में बनी फ़िल्म से मिलती जुलती नहीं होती है तो उन्हें संतोष नहीं होता।

किताब की लंबाई को ध्यान में रखते हुए फिल्म के लिए कहानी को संक्षिप्त करना पड़ता है। इससे कभी कभी कहानी की गहराई कम हो सकती है। फ़िलहाल ‘इट एंड्स विथ अस’ के सन्दर्भ में देखें तो फ़िल्म ने किताब की तुलना में कुछ सबप्लॉट्स को हटाकर कहानी को सरल बनाया है। फिल्म के क्लाइमेक्स में किताब की तुलना में थोड़ा बदलाव किया गया है ताकि यह अधिक सिनेमाई और प्रभावशाली लगे।

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इसके पहले भी हॉलीवुड में कई बेहतरीन फिल्म एडेप्टेशन के उदाहरण बिलकुल मौजूद हैं, जिनमें जॉन ग्रीन के उपन्यास पर आधारित, ‘द फॉल्ट इन ऑवर स्टार्स’, स्टीफन किंग की कहानी पर आधारित ‘द शॉशैंक रिडेम्पशन’ और लुजिया मे एलकॉट के उपन्यास पर आधारित ‘लिटिल वूमन’ को देखना सुखद होगा। ऐसा नहीं है कि अपने देश में अच्छे एडेप्टेशन की कमी रही है। हिंदी सिनेमा की फेहरिस्त देखें तो शेक्सपियर के ‘मैकबेथ’ और ‘ओथेल’ पर विशाल भारद्वाज की निर्देशित ‘मकबूल’ और ‘ओमकारा’ और आरके नारायण के उपन्यास पर आधारित ‘गाइड’ दर्शकों का दिल जीत लेने में कामयाब फ़िल्में रहीं हैं।

‘इट एंड्स विथ अस’ एक रोमांटिक ड्रामा है, लेकिन इसमें सामाजिक और मनोवैज्ञानिक मुद्दों की परतें भी हैं। इसे केवल रोमांटिक फिल्म कहना इसे सीमित करना होगा। ये केवल एक मनोरंजक फ़िल्म भी नहीं है, बल्कि यह दर्शकों को सोचने और महसूस करने के लिए मजबूर करती है। यह कहानी प्यार और तकलीफों के बीच एक संतुलन ढूंढने और सही फैसले लेने की प्रेरणा देती है।  फ़िल्म नेटफ़्लिक्स पर है। देख लीजियेगा।  (पंकज दुबे मशहूर बाइलिंग्वल उपन्यासकार और चर्चित यूट्यूब चैट शो, “स्मॉल टाउन्स बिग स्टोरीज़के होस्ट हैं)

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