सोशल मीडिया के वीडियो में दिखा है कि लोग यहूदियों को पीटते, उनका चाकुओं से पीछा करते और सार्वजनिक-निजी संपत्ति को तोड़फोड़ करते हुए देखा जा सकता है। कुछ यहूदी अपनी जान बचाने के लिए स्थानीय इमारतों में घुसते और नहर में कूदते भी नजर आए। मामले में 62 लोगों की गिरफ्तारी हुई है, जबकि दस घायल है। नीदरलैंड के प्रधानमंत्री ने कहा, “यह एक भयानक यहूदी विरोधी हमला है। हम इसे बर्दाश्त नहीं करेंगे। मैं बेहद शर्मिंदा हूं कि 2024 में नीदरलैंड में ऐसा हो सकता है।“
बीते दिनों यूरोपीय देश नीदरलैंड की राजधानी एम्सटर्डम में यहूदियों को फिलीस्तीन समर्थकों द्वारा निशाना बनाया गया। सदियों से यहूदी मजहबी कारणों से ईसाइयत और इस्लाम के निशाने पर है। इसी तरह हिंदुओं के उत्पीड़न का भी काला इतिहास है। इन सबके सैंकड़ों नहीं, बल्कि हजारों उदाहरण और प्रमाण मौजूद है। आखिर मजहब के नाम पर व्यक्ति द्वारा अन्य इंसानों को प्रताड़ित करने के पीछे कौन-सी मानसिकता या विचारधारा है?
आखिर एम्सटर्डम में क्या हुआ था? बीते 7 नवंबर को यहां खेले में एक फुटबॉल मैच में इजराइली टीम भारी अंतर से हार गई थी। जब निराश इजराइली प्रशंसक स्टेडियम से बाहर निकले, तब फिलीस्तीन समर्थकों ने अपनी गाड़ियों में सवार होकर उन्हें दौड़ा-दौड़कर मारना-पीटना शुरू कर दिया। सोशल मीडिया पर इसकी कई वीडियो वायरल है, जिसमें यहूदियों को पीटते, उनका चाकुओं से पीछा करते और सार्वजनिक-निजी संपत्ति को तोड़फोड़ करते हुए देखा जा सकता है। कुछ यहूदी अपनी जान बचाने के लिए स्थानीय इमारतों में घुसते और नहर में कूदते भी नजर आए। मामले में 62 लोगों की गिरफ्तारी हुई है, जबकि दस घायल है। नीदरलैंड के प्रधानमंत्री ने कहा, “यह एक भयानक यहूदी विरोधी हमला है। हम इसे बर्दाश्त नहीं करेंगे। मैं बेहद शर्मिंदा हूं कि 2024 में नीदरलैंड में ऐसा हो सकता है।“ अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने भी यहूदियों पर हमले को शर्मनाक और घृणित बताया है।
यूरोप में यहूदी-विरोधी हिंसा में काफी वृद्धि हुई है। अकेले नीदरलैंड में वर्ष 2022-23 के बीच यहूदियों पर हमलों में 245 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। हमास के हमले के बाद ब्रिटेन में 550 यहूदी-विरोधी घटनाएं दर्ज हुई है। फ्रांस भी इससे अछूता नहीं है। क्या इस बवाल की जड़ें केवल 7 अक्टूबर 2023 को फिलीस्तीन समर्थक हमास जिहादियों द्वारा इजराइल पर घातक आतंकवादी हमले के बाद इजराइल की अबतक जारी जवाबी सैन्य कार्रवाई (बहुपक्षीय), जिसमें 40 हजार से अधिक लोगों की मौत का दावा किया जा रहा है— उसमें ही मिलती है? सच तो यह है कि यहूदियों को हालिया कारणों से ही नहीं, बल्कि मजहबी कारणों से भी उन्हें सतत उत्पीड़न का सामना करना पड़ रहा है।
विश्व विख्यात इनसाइक्लोपीडिया ‘ब्रिटानिका’ में अनुसार, “पहली शताब्दी में ईसाइयत के विस्तार के बावजूद अधिकांश यहूदी उसे मजहब के रूप में अस्वीकार करते रहे। इसके परिणामस्वरूप, चौथी शताब्दी तक ईसाइयों ने ईसा मसीह और चर्च को अस्वीकार करने के कारण यहूदियों को अलग समुदाय मानना शुरू कर दिया। जब ईसाई चर्च रोमन साम्राज्य में प्रभावशाली हुआ, तब उसने रोमन सम्राटों को यहूदी विरोधी कानून बनाने के लिए प्रेरित किया। इनका उद्देश्य ईसाई प्रभुत्व को चुनौती देने वाले किसी भी खतरे को समाप्त करना था। इस कारण यहूदी यूरोपीय समाज में हाशिये पर धकेल दिए गए।“
इस चिंतन का भयावह रूप मध्यकाल में भी दिखा। वर्ष 1466 में तत्कालीन पोप पॉल-2 के निर्देश पर क्रिसमस के दिन रोम में यहूदियों को सरेआम निवस्त्र करके घुमाया गया था। कालांतर में यहूदी पुजारियों (रब्बी) को जोकर के कपड़े पहनाकर उनका जुलूस निकाले जाने लगा। 25 दिसंबर 1881 को पोलैंड के वारसॉ में 12 यहूदियों को उन्मादी ईसाइयों ने निर्ममता के साथ मौत के घाट उतार दिया, तो कई महिलाओं का बलात्कार तक किया गया। इस प्रकार की प्रताड़ना के असंख्य उदाहरण है। यहूदी-विरोधी अभियानों ने सदियों तक यूरोप में यहूदियों के लिए असुरक्षा, उत्पीड़न और हिंसा का माहौल बनाया, जो चर्च के समर्थन से यूरोपीय समाज और संस्कृति में गहराई तक समा गई, जिसने आगे चलकर 20वीं शताब्दी में तानाशाह एडोल्फ हिटलर जनित ‘होलोकॉस्ट’ का रूप लिया।
हिटलर की अगुवाई में ईसाई बहुल जर्मनी ने 1933-1945 के बीच यहूदियों पर भयंकर अत्याचार हुआ था। इसे प्रारंभ में चर्च का मुखर समर्थन प्राप्त था। एक आंकड़े के अनुसार, तब लगभग 60 लाख यहूदियों (15 लाख बच्चे सहित) की हत्या कर दी गई थी। यहूदियों को जड़ से मिटाने के अपने मकसद को हिटलर ने इतने प्रभावी ढंग से अंजाम दिया कि दुनिया की एक तिहाई यहूदी आबादी खत्म हो गई। चूंकि हिटलर का जन्म एक ईसाई परिवार में हुआ था, तो क्या उसे नरपिशाची रूप से यहूदियों के नरसंहार की प्रेरणा सदियों तक चले यहूदी-विरोधी अभियानों से मिली थी?
बात यदि भारतीय उपमहाद्वीप की करें, तो वर्ष 712 में अरब आक्रांता मोहम्मद बिन कासिम ने सिंध पर हमला करके भारत में इस्लाम के नाम मजहबी दमन का सूत्रपात किया था। उसी मानस से प्रेरित होकर कालांतर में गजनी, गौरी, खिलजी, तैमूर, तुगलक, बाबर, औरंगजेब, टीपू सुल्तान आदि ने यहां की मूल सनातन संस्कृति और प्रतीकों को क्षत-विक्षत किया और ऐसा उनके मानसपुत्रों द्वारा आज भी हो रहा है। इन्हीं जिहादियों से प्रेरणा से भारत के एक तिहाई क्षेत्र पर इस्लाम का कब्जा (पाकिस्तान-बांग्लादेश) है, जहां इस्लाम-पूर्व संस्कृति के ध्वजावाहकों (हिंदू, सिख और बौद्ध) के लिए कोई स्थान नहीं है।
यही नहीं, जब उत्तर-भारत में इस्लामी प्रचार-प्रसार के नाम पर मजहबी शासकों का आतंकवाद चरम पर था, तब 16वीं शताब्दी में दक्षिण-भारत में जेसुइट मिशनरी फ्रांसिस ज़ेवियर ईसाइयत के प्रचार के लिए भारत पहुंचे थे। उस समय जेवियर ने ‘गोवा इंक्विजीशन’ के जरिये से गैर-ईसाइयों के साथ उन सीरियाई और मतांतरित ईसाइयों के खिलाफ भी हिंसक मजहबी अभियान चलाया था, जो रोमन कैथोलिक चर्च का अनुसरण नहीं कर रहे थे। मजहबी मतांतरण का यह कुचक्र अब भी जारी है।
क्या कारण है कि स्वघोषित सभ्य-सुसंस्कृत लोग बड़ी बेशर्मी के साथ घृणा के नायकों को गौरवान्वित करते है? यह उपयुक्त ही है कि कोई भी हिटलर का नाम नहीं रखता और उसे गाली का पर्याय माना जाता है। लेकिन क्या स्टालिन-लेनिन जैसे नामों के प्रति भी वैसा तिरस्कार का भाव नहीं होना चाहिए, जिन्होंने अपने शासन के दौरान लाखों मासूमों को उनसे असहमति रखने के कारण मौत के घाट उतार दिया था? देश में एक प्रसिद्ध फिल्मी घराने ने अपने बेटे का नाम तैमूर रखा है। वर्ष 1398 में तैमूर ने भारत पर हमला इसलिए किया था, क्योंकि उसकी शिकायत थी कि तत्कालीन इस्लामी आक्रांता स्थानीय हिंदुओं का वैसा दमन नहीं कर रहे है, जैसा एक काफिर के लिए आपेक्षित है। आखिर यह कौन सी विचारधारा है, जो एक मानव को वीभत्स राक्षस बना देती है?