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न तो ये युद्ध है न ही आक्रमण, यह है नस्ल संहार

भोपाल। संयुक्त राष्ट्र संघ और विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार गाज़ा पट्टी पर इज़राइल की फौजी कार्रवाई ने अब तक 17000 (सत्रह हज़ार) और 700 (सात सौ) फिलिस्तीनी लोगों की मौत/हत्या/वध का जिम्मेदार है। यूक्रेन और रूस के दरम्यान पिछले साल भर से चल रहे युद्ध में भी इतने लोगों की मौत नहीं हुई जितनी इज़राइल की अहंकारी नेत्न्याहु सरकार ने एक माह में भी निहत्थे नागरिकों को मौत की नींद सुला दिया हैं। भारत के संदर्भ में ने इतनी मौतंे बंगला देश युद्ध में भी नहीं हुई थी। शायद दूसरे महायुद्ध में बर्लिन के घेरे के समय भी दोनों पक्षों ने इतनी जनहानि नहीं उठाई होगी। जितनी इज़राइल की जिद्द बेगुनाह फिलिस्तीनी लोगों को मार रही है। इज़राइल ने अपनी कार्रवाई के पहले ही यह साफ कर दिया था कि वह अपनी कार्रवाई के लिए किसी नियम या अदालत के प्रति जवाबदेह नहीं होगा। यानि गाज़ा में उसकी फौजी कार्रवाई ना तो युद्ध है ना आक्रमण है यह बस कार्रवाई है जो हमास को मिटा कर ही खतम होगी।

अब हमास एक आतंकवादी संगठन है, जैसा इज़राइल कहता है परंतु बीबीसी ऐसे चैनल और उदरवादी खबरों के संस्थान चाहे वे रेडियो हो या फिर चैनल हो या अखबार हो सभी इसे आज़ादी की लड़ाई लड़ रहे सशस्त्र संगठन ही माना है। यहां तक कि बीबीसी को ब्रिटिश प्रधानमंत्री सुनक की सार्वजनिक फटकार भी सुननी पड़ी। अब ऐसे संगठन से कोई भी राष्ट्र कैसे लड़ सकता है। अमेरिका ने भी ओसामा बिन लादेन के लिए ना तो सऊदी अरब में और ना ही पाकिस्तान पर फौजी कार्रवाई की थी। क्यूंकि बिन लादेन एक आतंकी संगठन चला रहा था जिसकी कोई भौगोलिक सीमा नहीं थी। जैसी हमास की कोई सीमा ना ही उसका सिक्का किसी निश्चित भू भाग में चलता हैं।

इन तथ्यों के बावजूद अमेरिका के राष्ट्रपति बाइडेन गाज़ा पट्टी में हो रहे फिलिस्तीनी नस्ल संहार को रोकने के लिए कड़ी कार्रवाई नहीं कर रहे हैं। वैसे सुपर पावर का अपना दर्जा वे सुरक्षा परिषद में ही दिखाते रहते हैं इसलिए अमेरिका अपने अहंकार और हथियार निर्माण करने वाले बहु राष्ट्रीय कंपनियों के मुनाफे के लिए वियतनाम में सालों साल युद्ध करते रहे। भले ही वहां से बड़े बेआबरू हो कर निकले। जिन मनवाधिकारों की रक्षा के लिए सालों साल युद्ध किया उनके निकलने के बाद उत्तर और दक्षिण वियतनाम डॉ. हो ची मिनह के नाम पर एक हो गए।

अफगानिस्तान मंे गए थे तालिबान का वंश नाश करने और राष्ट्रपति ट्रम्प की सनक के चलते उन्हीं को सैनिक सामान सहित देश सौंप आए। सुपर पवार रास्तों में फ्रांस ने इज़राइल को साफ – साफ कह दिया कि गाज़ा में नागरिकों के खिलाफ उनकी कार्रवाई का वह विरोध करता है| ब्रिटेन और अमेरिका यहूदी धन कुबेरों के प्रभाव और उनके चुनावी चंदे की लालच में इज़राइल का आंख मूंद कर हाँ जी हाँ जी कर रहे हैं। हालत यह है किसंयुक्त राष्ट्र संघ और विश्व स्वस्थ संगठन के बार – बार अपील करने पर भी नेत्न्याहु अपना प्रधानमंत्री पद बचाने के लिए गाज़ा की फिलिस्तनी बच्चों और निहथे नागरिकों का कत्लेआम कर रहे हैं। जो मरने वालों की संख्या से ज़ाहिर है। कुछ ऐसा ही काम म्यांमार का सैनिक जुनटा चिन जन जातियों का नर संहार कर रहा है। इनमें अधिकांसतः मुसलमान है, जिन्हे बंगला देश ने अपने यहां शरण दिया है। और जो ईसाई है उन्हें मिज़ोरम और मणिपुर में शरण लिया है। अफ्रीका के कई देशों में जातीय द्वंद के लिए विरोधी जनजातियों के गाँव के गाँव जला कर आबादी का संहार कर दिया जाता है। बोको हराम एक उदाहरण है।

जहां संयुक्त राष्ट्र संघ के सदस्यों से यह अपेक्षा की जाती है कि वे उसकी अपील को स्वीकार करेंगे। इज़राइल यूएनओ के कर्मचारियों को भी गाज़ा में शरणार्थियों की मदद के लिए भी नहीं जाने दे रहा है। जैसे उत्तर कोरिया के तानाशाह किम उल सुन करते हंै। क्या इज़राइल भी अनियंत्रित राष्ट्र नहीं बन रहा है।

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