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हिटलरी नाजीवाद और बंगलादेश – एक तुलना

बांग्लादेश में शुरू से कम से कम तीन कानूनी प्रावधान हिन्दुओं के विरुद्ध हैं। हिन्दू अपना धन बाहर नहीं भेज सकते; ‘भेस्टेड प्रॉपर्टी एक्ट’;  और इस्लाम का स्टेट रिलीजन होना। राजकीय धन, सहायता केवल इस्लामी संस्थानों को मिलती है। हिन्दुओं पर अत्याचार करने वाले इस्लामियों, अपराधियों पर प्रायः कानूनी कार्रवाई नहीं होती।  इस प्रकार, बंगलादेश क्षेत्र में सन् 1951 से निरंतर और बहुमुखी उत्पीड़न से हिन्दुओं की संख्या 33 प्रतिशत  से घटकर अब 8 प्रतिशत रह गई है। वहाँ की हिन्दू आबादी धीरे-धीरे खत्म होते हुए है।

पुस्तक अंश –  ‘इस्लाम और कम्युनिज्म:  तीन चेतावनियाँ’

बंगलादेश (पूर्वी बंगाल) में हिन्दुओं का सामूहिक, पर धीमा सफाया तब से चल रहा है जब बराक ओबामा स्कूल में पढ़ते थे। ईरान में शाह का सेक्यूलर शासन था। भारत में इंदिरा गाँधी का दबदबा था। अमेरिका वियतनाम युद्ध लड़ रहा था। सोवियत यूनियन में लियोनिद ब्रेझनेव की सत्ता थी। कोई इंटरनेट या मोबाइल फोन नहीं था। सो,  इतने लंबे समय से पूरी दुनिया बंगलादेश के हिन्दुओं का क्रमशः खत्मा होने दे रही है। कानूनी और गैर-कानूनी दोनों तरीकों से खात्मा हो रहा है। इस पर एक ऊँगली तक नहीं उठाई गई। उलटे बंगलादेश को एक गरीब, छोटा देश मानकर उसे तरह-तरह की सहायता दी जाती रही है। सहायता देने वालों में भारत भी है।

पूर्वी बंगाल फिर बंगलादेश में हिन्दू संहार की प्रक्रिया पूरी तरह छिपी हुई कभी नहीं रही थी। जैसे कि हिटलरी नाजीवाद की गतिविधियाँ भी पूरी तरह छिपी नहीं थीं। 1922 ई. से ही हिटलर ने कहना शुरू किया था कि सत्ता मिलने पर वह यहूदियों का सफाया करेगा। यूरोपीय मीडिया में हिटलर की पर्याप्त रिपोर्टें आ चुकी थीं, जब सभी शासक मौन देखते रहे। बंगलादेश में उस से भी बड़ी भयावह ताकत सक्रिय है, जो बंगलादेश के हिन्दुओं के सफाए के बाद भारत, यूरोप, अमेरिका पर भी नजर गड़ाए हुए है। उन संगठनों, संस्थाओं, और मतवाद का अध्ययन-परख करने वाला इसे सहज जान सकता है। बंगलादेश के बड़े राजनीतिक दल,  जमाते इस्लामी, खलीफत मजलिस, आदि संगठनों की घोषणाओं में भी सारी बातें हैं। वे पूरी धरती पर कुरान व शरीयत का शासन कायम करने, दारुल-इस्लाम बनाने के घोषित दावे के साथ चल रहे हैं। उन दावों का उन की गतिविधियों से मिलान करते ही गंभीरता और अब तक की सफलता भी साफ झलकती है।

बंगलादेश में इस्लामियों की क्षमता और अब तक के शिकारों की मात्रा देखते हुए यह हिटलरी नाजीवाद से कई गुना भयावह है। इसलिए और भी क्योंकि उन्हें रोकने, चिन्हित करने के बजाए ‘सेक्यूलरिज्म’, और ‘मल्टीकल्चरिज्म’ इस्लामी संगठनों को उलटे एक समर्थन की छाया देता है। इन के विचारों, कामों की जाँच-परख के बजाए उन्हें तरह देने की नीति पूरे लोकतांत्रिक विश्व में है।

सब को अपने ‘रिलीजन का पालन’ करने की स्वतंत्रता की आड़ में इस्लामी राजनीतिक गतिविधियों से आँखें मूँद ली जाती हैं। इस के पीछे के अज्ञान, आरामपसंदगी, व कायरता का इस्लामी संगठन भरपूर दोहन कर रहे हैं। यदि यह प्रक्रिया नहीं रोकी गई, तो यह अंततः निस्संदेह वहीं पहुँचेगी जो तमाम इस्लाम जमातों का दावा है। यह प्रक्रिया हिटलरी नाजीवाद से कई गुणा विशाल, प्रभावी, पर लगभग निःशब्द, ‘अंडर द रडार’ चल रही है। लोकतांत्रिक विश्व अपने ही बनाए भ्रामक शब्दजाल से उन्हें चाहे अनचाहे सहायता दे रहा है।

बंगलादेश में हिटलरी यातना-शिविर नहीं हैं, इस से वहाँ हिन्दुओं के लिए भयावहता कम नहीं हो जाती। बल्कि उलटे बढ़ जाती है, क्योंकि उस पर ध्यान ही नहीं जाता। बड़े-बड़े मानवाधिकार संगठन प्रायः बंगलादेश के हिन्दुओं के उत्पीड़न का उल्लेख तक नहीं करते! जबकि बंगलादेश में सरकार, मजहब, और आम मुस्लिम समाज, तीनों मिल कर हिन्दुओं का क्रमशः सफाया कर रहे हैं। कम से कम तीन कानूनी प्रावधान हिन्दुओं के विरुद्ध हैं। हिन्दू अपना धन बाहर नहीं भेज सकते; ‘भेस्टेड प्रॉपर्टी एक्ट’;  और इस्लाम का स्टेट रिलीजन होना। राजकीय धन, सहायता केवल इस्लामी संस्थानों को मिलती है। हिन्दुओं पर अत्याचार करने वाले इस्लामियों, अपराधियों पर प्रायः कानूनी कार्रवाई नहीं होती।

इस प्रकार, बंगलादेश क्षेत्र में 1951 ई. से निरंतर और बहुमुखी उत्पीड़न से हिन्दुओं की संख्या 33 %  से घटकर अब 8 % रह गई है। वहाँ की हिन्दू आबादी मर रही है। पूर्ण विनाश की ओर है। यह लफ्फाजी नहीं, बल्कि ऐसा तथ्य है जिसे कितनी भी बार दुहराना कम होगा। तुलना के लिए ध्यान दें कि 1951 ई. में पूरे पाकिस्तान में कुल हिन्दू आबादी 23 % थी, जो आज पाकिस्तान में 1 % से भी कम रह गई है। दोनों क्षेत्रों में एक ही प्रक्रिया से, एक विशेष समूह खत्म हुआ है। मुख्यतः इसलिए क्योंकि भारत और पश्चिमी विश्व, दोनों ने इसे चुपचाप देखा। किसी ने कुछ नहीं किया।

फलतः अब तक बंगलादेश में 4 करोड़ 90 लाख हिन्दुओं का संहार या जबरन धर्मांतरण हो चुका है। जबकि हिटलर ने 60 लाख यहूदियों का संहार किया था, और स्तालिन ने 2 करोड़ रूसियों का। उन यहूदियों और बंगलादेशी हिन्दुओं की स्थिति में अंतर भी है। बंगलादेश में कोई ‘हिन्दू समस्या’ करके कोई चीज नहीं रही, जैसे जर्मनी में ‘यहूदी समस्या’ करके चर्चा होती थी। यहूदियों को निंदित किया जाता था, जबकि बंगलादेश के नेता खुलकर ‘हिन्दुओं से मुक्त बंगलादेश’ जैसी घोषणाएं नहीं करते; न ही बंगलादेश सरकार हिन्दुओं के खात्मे की योजनाएं चलाती है। नाजी जर्मनी में सारे यहूदियों को एक जैसा घृणित जैसा मानकर चला जाता था। जबकि बंगलादेश में हिन्दू व्यक्ति सरकार, मीडिया, उद्योग आदि में बड़े पदों पर काम करते भी मिलते हैं। एक अन्य अंतर यहूदियों को हर हाल में खत्म करना था, जिन्हें धर्मांतरित होकर बचने का रास्ता नहीं था। जबकि बंगलादेश में हिन्दू को इस्लाम में धर्मांतरित कराना, उन की लड़कियों का अपहरण कर उन से मुस्लिम बच्चे पैदा कराना भी हिन्दू सफाए की एक तकनीक है। इन सब से क्या ऐसा नहीं लगता कि नाजी जर्मनी में यहूदियों की दुर्गति से बंगलादेश में हिन्दुओं की दुर्दशा की तुलना अनुपयुक्त है?

नहीं,  बल्कि यह अंतर ही स्थिति को और भयानक बना देता है। नाजी जर्मनी और इस्लामी बंगलादेश की तुलना में समानता के बिन्दुओं से समान परिणाम का संकेत मिलता है:   एक चुने हुए जातीय समूह का विनाश। वस्तुतः नाजीवाद की तुलना में जिहाद कई गुने अधिक मारक साबित होता है। बंगलादेश के हिन्दुओं और नाजी जर्मनी के यहूदियों के उत्पीड़न की तुलना निम्नलिखित समानताएं दिखाती है –

  1. नाजीवाद की यहूदी-विरोधी आइडियोलॉजी की तरह इस्लाम की काफिर-विरोधी आइडियोलॉजी के लक्ष्य समान हैं।
  2. जैसा 1941-43 में हुआ था, दुनिया के लोग बंगलादेश के हिन्दुओं की दुर्दशा से उसी तरह उदासीन हैं जैसे तब यहूदियों के लिए थे।
  3. न्यूरेनबर्ग कानूनों की तरह बंगलादेश का ‘भेस्टेड प्रॉपर्टी एक्ट’, जो एक समूह को मूल अधिकारों से वंचित करता है। जिन के प्रति बाहरी विश्व निष्क्रिय, निर्विकार रहा।
  4. यहूदी-मुक्त जर्मनी की तरह हिन्दू-मुक्त बंगलादेश की भवितव्यता।
  5. जर्मनी से फैलकर पड़ोसी ऑस्ट्रिया में भी वही गतिविधि शुरू हो जाने जैसे बंगलादेश से फैलकर भारत में वही गतिविधि चलना।
  6. हिटलर ने जर्मनी के लिए और ‘रहने की जगह’ (लेबेन्सराउम) का दावा किया था, वही दावा भारतीय बंगाल, असम, सीमावर्ती बिहार, आदि क्षेत्रों पर है। गत चार दशकों में भारत की सीमा बिना किसी युद्ध के एक सौ कि. मी. पीछे आ चुकी है। बंगलादेश के मुस्लिमों द्वारा क्रमशः कब्जे द्वारा।
  7. जर्मन होलोकॉस्ट की तरह, कम से कम एक बार, 1971 ई. में बंगलादेश (पूर्वी पाकिस्तान) में बीस-पचीस लाख हिन्दुओं को मार डाला गया था। तब अंतर्राष्ट्रीय मीडिया और विदेशी राजदूतों ने स्पष्ट पाया था कि मुख्य निशाना मुख्यतः हिन्दू थे।
  8. पुलित्जर पुरस्कार विजेता, प्रसिद्ध पत्रकार सिडनी शॉनबर्ग ने 1971 ई. में पूर्वी पाकिस्तान (बंगलादेश) में न्यूयॉर्क टाइम्स के संवाददाता थे। उन के अनुसार, पाकिस्तानी फौज ने हिन्दुओं को चुन-चुन कर सामूहिक निशाना बनाया। हिन्दू घरों, दुकानों, आदि को पीले रंग से ‘H’ चिन्हित कर दिया जाता था, जैसे जर्मनी में यहूदियों की निशानदेही होती थी। ताकि उन का खात्मा करने का उपाय हो। शॉनबर्ग को लोगों ने बताया कि फौजी गाड़ी आती थी और चिल्लाते हुए पूछती थी,‘यहाँ कोई हिन्दू है’? जब उत्तर हाँ में मिलता तो उन्हें मार डाला जाता। उस समय के ऐसे विवरण और रिपोर्टें पढ़कर, तथा आज हो रही घटनाओं से मिलान कर कहना असंभव है कि वह प्रक्रिया खत्म हो गई है। ढाका में कुछ वर्ष पहले एक बेकरी पर आइसिस का हमला हू-ब-हू उसी तरह का संहार था जिस में गैर-मुस्लिमों को अलग कर, पहचान कर इसी लिए मार डाला गया।

इस प्रकार, नाजी जर्मनी में यहूदी संहार और बंगलादेश में हिन्दू संहार के दोनों मामलों में पूरी प्रक्रिया तीन कर्तव्य बिन्दु रेखांकित करती है। पहला, शुरू से दिख रहे संकेत पहचानना; दूसरा, अपने सिवा दूसरे लोगों की हालत समझना; और तीसरा, उस पर कुछ करना।

हिन्दू लोग उसी तरह नियमित रूप से मारे, बलात्कार किए, और अपने पूर्वजों की भूमि से बेदखल किए जा रहे हैं – और यह बंगलादेश जैसे दुर्बल देश में! जो महत्वपूर्ण देशों का दबाव नहीं झेल सकता!  यह सैनिक और आर्थिक दृष्टि से सब से कमजोर देशो में ही गिना जा सकता है। यह कोई ईरान या चीन नहीं है, जिस से उलझने में पश्चिमी देशों को सोचना पड़े।

पर उलटे ‘इस्लामोफोबिया’ की दलील आती है। जिसे महत्व देकर पीड़ितों के बजाए अभियुक्तों को नियमित मंच और प्रचार दिया जाता है। इस प्रकार, जहाँ संहार का कारण इस्लाम है और कर्ता मुस्लिम हैं, वहाँ भी कारण और कर्ता को छूट देने की जिद है। केवल 60 वर्ष में पाकिस्तान और बंगलादेश में हिन्दुओं की आबादी 23 % और 33 % से गिर कर क्रमशः 1 % और 8 % (कश्मीर में लगभग 5 %  से 0 %) हो जाने का तथ्य भी इस दलील का खोखलापन दिखाता है। यदि कोई देख कर भी अनदेखा करना न चाहे।

‘इस्लाम और कम्युनिज्म: तीन चेतावनियाँ – बिल वार्नर, रिचर्ड बेंकिन, सोल्झिनित्सिन’

(दिल्ली: अक्षय प्रकाशन, 2022). संकलन व अनुवाद – शंकर शरण

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By शंकर शरण

हिन्दी लेखक और स्तंभकार। राजनीति शास्त्र प्रोफेसर। कई पुस्तकें प्रकाशित, जिन में कुछ महत्वपूर्ण हैं: 'भारत पर कार्ल मार्क्स और मार्क्सवादी इतिहासलेखन', 'गाँधी अहिंसा और राजनीति', 'इस्लाम और कम्युनिज्म: तीन चेतावनियाँ', और 'संघ परिवार की राजनीति: एक हिन्दू आलोचना'।

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