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क्या विपक्षी गठबंधन में सब ठीक है?

समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने मध्य प्रदेश में विधानसभा की कुछ सीट नहीं देने के लिए कांग्रेस को निशाना बनाया तो कहा गया कि विपक्षी गठबंधन में फूट पड़ गई और यह टूट सकता है। उधर बिहार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी कांग्रेस पर हमला किया तब भी यही कहा गया कि गठबंधन टूट सकता है और विपक्षी गठबंधन में सब कुछ ठीक नहीं है। इससे पहले वामपंथी पार्टियों ने अपने असर वाले राज्यों में तालमेल से इनकार किया तब भी विपक्षी गठबंधन में सब कुछ ठीक नहीं होने की खबरें चलीं। आम आदमी पार्टी को लेकर रोज आशंका जताई जाती है कि अरविंद केजरीवाल किसी भी समय विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ को गच्चा दे सकते हैं। इस तरह की घटनाएं भाजपा के गठबंधन में भी हो रही हैं। हाल ही में तमिलनाडु में अन्ना डीएमके ने भाजपा से तालमेल तोड़ लिया है। आंध्र प्रदेश में पता ही नहीं चल रहा है कि भाजपा और टीडीपी का तालमेल होगा या परदे के पीछे से भाजपा वाईएसआर कांग्रेस से तार जोड़े रहेगी। पंजाब में भी अकाली दल के साथ उसका गठबंधन नहीं हो रहा है तो बिहार में लोक जनशक्ति पार्टी के दोनों खेमों में घमासान चल रहा है, जिसकी पंचायत भाजपा को करनी है। हैरानी की बात है कि इसके बावजूद एनडीए के बिखरने या सब कुछ ठीक नहीं होने की खबरें नहीं आती हैं। यह भारतीय मीडिया का चरित्र है वह सत्तापक्ष की कमियां नहीं बता सकती है।

बहरहाल, विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ का जो विवाद अभी दिख रहा है उस आधार पर किसी नतीजे पर पहुंचने की जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए। क्योंकि अखिलेश यादव जो कह रहे हैं या नीतीश कुमार ने बिहार में जो कहा या सीपीएम का जो स्टैंड है वह सबकी अपनी अपनी राजनीति को लेकर है। हां, यह जरूर है कि अभी ‘इंडिया’ में सब कुछ ठीक नहीं लग रहा है। लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि विपक्षी गठबंधन बिखरने जा रहा है और सभी पार्टियां मिल कर लोकसभा का चुनाव नहीं लड़ सकती हैं। यह सही है कि विपक्षी गठबंधन की आखिरी बैठक 31 अगस्त और एक सितंबर को मुंबई में हुई थी। उसके बाद से कोई बैठक नहीं हुई है। समन्वय समिति की एक बैठक 13 सितंबर को हुई थी, जिसमें भोपाल में विपक्ष की साझा रैली करने की सहमति बनी थी लेकिन वह रैली भी टल गई क्योंकि मध्य प्रदेश के अध्यक्ष कमलनाथ चुनावी सीजन में ऐसे नेताओं से दूर रहना चाहते थे, जो सनातन का विरोध कर रहे थे। समन्वय समिति में टिकट बंटवारे को लेकर भी चर्चा हुई थी और कहा जा रहा था कि 31 अक्टूबर तक इस बारे में शुरुआती फैसला हो जाएगा। लेकिन अभी उस दिशा में भी काम आगे नहीं बढ़ा है।

इसका कारण यह है कि कांग्रेस इस समय विपक्षी गठबंधन की बैठक और सीट बंटवारे के काम में नहीं उलझाना चाहती है। इस समय पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव चल रहे हैं, जिसमें कांग्रेस का बहुत कुछ दांव पर लगा है। गठबंधन की बाकी पार्टियां इन राज्यों में नहीं हैं इसलिए उनकी चिंता आगे के चुनाव की है, जबकि कांग्रेस को इन पांच राज्यों की चिंता है। उसके सारे नेता राज्यों के उम्मीदवारों के चयन, रणनीति बनाने और प्रचार में बिजी हैं। इसलिए वे गठबंधन के बारे में नहीं सोच रहे हैं। दूसरी बात यह है कि कांग्रेस पांच राज्यों के चुनाव नतीजों से पहले विपक्षी पार्टियों के साथ सीट बंटवारे में नहीं पड़ना चाहती थी। कांग्रेस को लग रहा है कि पांच राज्यों में उसका प्रदर्शन बहुत अच्छा होगा और उसके बाद वह मोलभाव करने की बेहतर स्थिति में होगी। हालांकि यह जोखिम लेने वाली बात है क्योंकि अगर पांच राज्यों में कांग्रेस का प्रदर्शन उम्मीद के मुताबिक नहीं रहा तो उसकी मोलभाव करने की क्षमता कम भी हो सकती है और तब विपक्षी पार्टियां उस पर ज्यादा हावी हो जाएंगे। फिर भी कांग्रेस सोच समझ कर यह जोखिम ले रही है।

जहां तक बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की नाराजगी का सवाल है तो उसका मुख्य कारण यह है कि नीतीश ने ही विपक्षी गठबंधन बनाने की पहल की थी और पहली बैठक पटना में कराई थी। तभी से वे उम्मीद कर रहे हैं कि उनको विपक्षी गठबंधन का समन्वयक या संयोजक बनाया जा सकता है। लेकिन तीन बैठकों के बाद भी इस बारे में फैसला नहीं हुआ। इससे वे आहत हैं। तभी वे बिहार में कांग्रेस कोटे से एक और मंत्री बनाने का फैसला भी नहीं कर रहे हैं। इससे प्रदेश स्तर पर नाराजगी बढ़ रही है। यह भी कहा जा रहा है कि राजद और जदयू दोनों मिल कर कांग्रेस को कम से कम सीटें देना चाहते हैं। इसलिए कांग्रेस की ओर से भी दबाव की राजनीति हो रही है। तभी नीतीश कुमार ने बिहार में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की मौजूदगी में एक कार्यक्रम में कह दिया कि भाजपा नेताओं के साथ उनकी दोस्ती कभी खत्म नहीं होगी। उन्होंने यह भी कहा कि कांग्रेस की मनमोहन सिंह सरकार ने केंद्रीय विश्वविद्यालय के बारे में उनकी बात नहीं सुन रही थी, जबकि 2014 में बनी सरकार ने उनकी बात सुन ली। यह कांग्रेस पर दबाव बनाने की रणनीति के तहत उन्होंने कहा क्योंकि सबको पता है कि बिहार में दो केंद्रीय विश्वविद्यालय बनाने की मंजूरी कांग्रेस सरकार के समय ही हुई थी।

अखिलेश यादव की नाराजगी का कारण भी स्थानीय है। वे उत्तर प्रदेश में प्रदेश कांग्रेस की ओर से चलाए जा रहे अभियानों से आहत हैं। राज्य में कांग्रेस पार्टी दलित गौरव यात्रा निकाल रही है तो कांग्रेस के नेता मायावती से तालमेल के बारे में बात भी कर रहे हैं। इसी बीच कांग्रेस ने मध्य प्रदेश में समाजवादी पार्टी के लिए उसकी मांगी सीटें नहीं छोड़ीं तो अखिलेश यादव ने कहना शुरू कर दिया कि अगर राज्यों में गठबंधन नहीं हो सकता है तो राष्ट्रीय स्तर पर कैसे गठबंधन होगा। उन्होंने यह भी कहा कि कांग्रेस का रवैया यही रहा तो उस पर कौन भरोसा करेगा। हालांकि बाद में वे मान गए और विवाद खत्म किया। लेकिन इस बीच कांग्रेस और सपा नेताओं की ओर से भारी कटुता वाले बयान दिए गए थे। तभी यह कहा जाने लगा था कि विपक्षी गठबंधन बिखरने वाला है। लेकिन असल में ऐसा नहीं है। हर गठबंधन में पार्टियां बेहतर मोलभाव के लिए दबाव बनाती हैं और अंत में अपना हित देखते हुए समझौता करती हैं। ‘इंडिया’ के भीतर भी आखिरी समय तक यह खींचतान चलती रहेगी।

By अजीत द्विवेदी

संवाददाता/स्तंभकार/ वरिष्ठ संपादक जनसत्ता’ में प्रशिक्षु पत्रकार से पत्रकारिता शुरू करके अजीत द्विवेदी भास्कर, हिंदी चैनल ‘इंडिया न्यूज’ में सहायक संपादक और टीवी चैनल को लॉंच करने वाली टीम में अंहम दायित्व संभाले। संपादक हरिशंकर व्यास के संसर्ग में पत्रकारिता में उनके हर प्रयोग में शामिल और साक्षी। हिंदी की पहली कंप्यूटर पत्रिका ‘कंप्यूटर संचार सूचना’, टीवी के पहले आर्थिक कार्यक्रम ‘कारोबारनामा’, हिंदी के बहुभाषी पोर्टल ‘नेटजाल डॉटकॉम’, ईटीवी के ‘सेंट्रल हॉल’ और फिर लगातार ‘नया इंडिया’ नियमित राजनैतिक कॉलम और रिपोर्टिंग-लेखन व संपादन की बहुआयामी भूमिका।

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