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‘इंडिया’ से ऐसी हिली सरकार जो ‘प्रेसिडेटं ऑफ भारत’ हुआ!

जी-20 देशों के नेताओं को 9 सितम्बरको डिनर पर बुलाने का जो न्योता भेजा गया है उस पर प्रेसिडेंट आफइन्डिया के बदले प्रेसिडेंट आफ भारत लिखवाया गया है।कांग्रेस केसीआर को सीधा मैसेज दे किलोकसभा में हमारे साथ आने की घोषणा करो। अगर आप आ रहे हैं तो बहुत अच्छीबात है। विधानसभा आप और कांग्रेस अलग अलग लड़ो। इन्डिया को कोई मतलब नहींहै। मगर जैसे हम सब लोकसभा में एक होकर लड़ने के लिए कृत संकल्प हैं वैसेही आप भी घोषणा कीजिए।

जीतती हुई टीम के लक्षण क्या हैं? वह सही फैसले लेने लगती है। और हारतीहुई के? वह देश का नाम बदलने में ही लग जाती है। कांग्रेस अपनी नई सीडब्ल्यूसी की पहली मीटिंग करने के लिए हैदराबाद जारही है। सही फैसला। और मोदी सरकार विपक्ष की एकता से जिसका आत्मविश्वासहिल गया है, वह राष्ट्रपति और पूर्व राष्ट्रपति को विवादों में ला रही है। पहले जो आज तक नहीं हुआ वह काम किया कि पूर्व राष्ट्रपति की अध्यक्षतामें एक कमेटी बना दी। एक देश, एक चुनाव का नया शिगूफा छेड़ने के लिए।उसमें उन हरीश साल्वे को मेम्बर बना दिया जो कहलाते तो बड़े वकील हैं।सरकार के प्रिय भी हैं इसलिए कमेटी में लिए गए मगर इतना नहीं जानते कीकिसी भगोड़े, वान्टेड को अपने साथ रखने में संकोच नहीं करता।  मध्य प्रदेश मेंएक समय ऐसा कानून आया था जिसमें डाकूओं से संपर्क रखने वाले व्यक्ति कोगैर-जमानती धाराओं में गिरफ्तार कर लिया जाता था। आज भी क्राइम का कोईछोटा सा वकील बता सकता है कि देश का पैसा लेकर भागे हुए ललित मोदी के साथसाल्वे ने जाम टकराकर किस किस धारा में अपराध किया है। और नैतिक रूप सेतो यह देशद्रोह जैसा काम है कि जिसे भारत की जांच एजेंसियों ढूढ रहीहों उसके साथ दिखलाई देना,उसका हौसला बनाना।

तो खैर सरकार की बनाई इस कमेटी में विरोधाभास ही विरोधाभास हैं। एकमेंबर गुलामनबी आजाद को बनाया है। जो खुद को राज्य के विभाजन और 370हटाए जाने के खिलाफ बता रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट में इसका मुकदमा लड़ रहेकपिल सिब्बल के साथ फोटो खिंचवाकर उनका समर्थन कर रहे हैं। दूसरी तरफ हरबयान प्रधानमंत्री मोदी और गृहमंत्री अमित शाह के समर्थन में देकर उनसेफायदे ले रहे हैं जिसके फलस्वरूप ही उन्हें देश की आज तक कि सबसे बड़ीकमेटी में जगह मिली है। सबसे बड़ी इसलिए कि आज तक देश के पूर्वराष्ट्रपति की अध्यक्षता में कोई कमेटी नहीं बनी है। तो पूरी तरह दोहराखेल खेल रहे आजाद एक देश एक चुनाव पर किस तरह जम्मू कश्मीर लद्दाख केबारे में बोलते हैं यह देखना दिलचस्प होगा।

बहरहाल न इस कमेटी से और न ही उससे पहले संसद का विशेष अधिवेशन बुलाने सेINDIA का माहौल कमजोर हुआ। तो अब INDIA का नाम बदलने की ही शुरूआत कर दी।यहां भी राष्ट्रपति को ही सामने लाए। जी-20 देशों के नेताओं को 9 सितम्बरको डिनर पर बुलाने का जो न्योता भेजा गया है उस पर प्रेसिडेन्ट आफइन्डिया के बदले प्रेसिडेन्ट आफ भारत लिखवाया गया है।

मशहूर कहावत है कि तनखा चाहे सौ कम कर दो, नाम दारोगा धर दो!  वही बातहै। बेरोजगारी, मंहगाई, सराकारी स्कूल, सरकारी अस्पताल, बढ़ती हिंसा,विभाजन, मणिपुर, चीन पर तो कुछ किया नहीं। देश का ही नाम बदल रहे हैं।जैसे नाम नयनसुख रखने से दृष्टिहीन को दिखने लगेगा! माफ करना शेक्सपियरसाहब नाम में बहुत दम होता है। देखिए INDIA  नाम ने क्या हलचल मचा दी। इससरकार ने तो बता दिया कि नाम में बहुत कुछ रखा है। और इससे डर लगता है।

तो इधर नाम का डर है उधर फुल फार्म में कांग्रेस अपना पूरा ध्यानविधानसभा चुनावों पर केन्द्रीत कर रही है। अपनी नई बनी सीडब्ल्यूसी कीपहली मीटिंग करने उस तेलंगाना में जा रही है जहां इसी साल चुनाव हैं। औरतेलंगाना का महत्व इसलिए है कि जिन चार बड़े राज्यों मध्य प्रदेश,छत्तीसगढ़ राजस्थान और तेलंगाना में चुनाव हैं उनमें से तेलंगाना ही ऐसाहै जहां उसे सबसे सबसे ज्यादा ताकत लगाने की जरूरत है।

और वह उसने लगा दी है। मल्लिकार्जुन खरगे ने कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बादजो नई सीडब्ल्यूसी बनाई है उसकी पहली मीटिंग 16, 17 सितम्बर को हैदराबादमें बुलाई है। कांग्रेस के सारे बड़े नेता एक साथ जब हैदराबाद में इकट्ठाहोंगे तो माहौल अलग ही बनेगा। सीडब्ल्यूसी की बैठक के बाद 17 की शाम वहांएक बड़ी जनसभा होगी। जहां राहुल की पांच गारंटियों के नाम से जनता काविश्वास जीत चुकी स्कीमों की घोषणा होगी। 18 को भी कई कार्यक्रम होंगे।

फर्क साफ दिख रहा है। पहले कांग्रेस मैच निपटाने के भाव से खेल रही थी।हार-जीत से निस्पृह! राहुल की यात्रा के समय गुजरात और हिमाचल में चुनावथे। मगर यात्रा की दिशा उधर नहीं मोड़ी गई। गुजरात में तो कोई गया हीनहीं। खरगे जी अध्यक्ष बन गए थे उनका एक औपचारिक दौरा करवाया और ऐसे हीराहुल का। प्रियंका का प्रोग्राम बनाया ही नहीं। नतीजा पांच साल पहले 2022में जहां भाजपा को सौ के नीचे रोक दिया था और खुद बिल्कुल नजदीक 78 सीटोंपर आ गए थे वहां 2022 में केवल 17 सीटों पर सिमट गए। खुद ओढ़ी हुई हार।

मगर साथ ही हुई हिमाचल में प्रियंका गांधी लगातार डटी रहीं तो जीत मिली।और फिर जीत के बाद यात्रा का रूट डाइवर्ट किया गया और हिमाचल से होकर गई।इसके बाद कर्नाटक तो सबने देखा कि किस तरह खरगे, राहुल, प्रियंका सबनेजान लगा दी। और बड़ी जीत हासिल की। उसीका नतीजा था कि विपक्ष में हिम्मतआई और साथ आने को तैयार हुए। INDIA बन गया। कमेटियां बन गईं। एक साथचुनाव लड़ने पर तैयार हो गए। और न केवल तैयार हो गए बल्कि यह कह दिया किहम अपना नुकसान उठाकर भी सीट शेयरिंग करेंगे। यह बड़ी बात है। इसे समझनाकी घी खिचड़ी में और खिचड़ी घी में एक ही बात है।

अब इन्डिया को एक काम और करना चाहिए। बात तो अब उसके अस्तित्व तक आ गईहै। नाम पर बात आना मतलब आपके पूरे अस्तित्व पर सवाल। तो कांग्रेस तोअपनी सीडब्ल्यूसी करने हैदराबाद जा ही रही है। इन्डिया को भी अपनी अगलीमीटिंग करने हैदराबाद ही जाना चाहिए। केसीआर को सीधा मैसेज जाएगा किलोकसभा में हमारे साथ आने की घोषणा करो। अगर आप आ रहे हैं तो बहुत अच्छीबात है। विधानसभा आप और कांग्रेस अलग अलग लड़ो। इन्डिया को कोई मतलब नहींहै। मगर जैसे हम सब लोकसभा में एक होकर लड़ने के लिए कृत संकल्प हैं वैसेही आप भी घोषणा कीजिए। हैदराबाद की चौथी बैठक में शामिल होइए। चाहे तोहोस्ट भी कीजिए। विधानसभा में किसी की कोई बाध्यता नहीं है। अपना दल अपनाचुनाव। मगर लोकसभा में आप भी जानते हैं कि कितना बड़ा दांव लगा हुआ है।देश का लोकतंत्र। आज देश का नाम बदल रहे हैं। कल चुनाव प्रणाली भी बदलीजा सकती है। कुछ भी हो सकता है। अगर मोदी जी तीसरी बार आ गए तो फिर नबाकी कोई दल रहेगा और केसीआर का भी नहीं।

इन्डिया को साफ कहना चाहिए। और साथ ही यह कि अगर आप लोकसभा में साथ नहींहैं तो समझ लीजिए की यह 28 या अगली मीटिंग तक और कितने बढ़ जाएं पता नहींसब विधानसभा में भी आपके खिलाफ होंगे। क्या इतने दलों से और जिसकी वजह सेआज प्रधानमंत्री मोदी जैसे ताकतवर नेता हिले हुए हैं आप मिस्टर केसीआरअकेले लड़ पाएंगे। या आपको लड़ना चाहिए?

इन्डिया के कुछ बड़े नेताओं को जाकर पहले ही केसीआर को समझाना चाहिए किअब लोकसभा के लिए साथ आने में ही फायदा है। बाकी विधानसभा सबके अपने अपनेभाग्य की!

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By शकील अख़्तर

स्वतंत्र पत्रकार। नया इंडिया में नियमित कन्ट्रिब्यटर। नवभारत टाइम्स के पूर्व राजनीतिक संपादक और ब्यूरो चीफ। कोई 45 वर्षों का पत्रकारिता अनुभव। सन् 1990 से 2000 के कश्मीर के मुश्किल भरे दस वर्षों में कश्मीर के रहते हुए घाटी को कवर किया।

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