कनाडा की धरती से भारत विरोधी गतिविधियां चल रही हैं, जिनके पीछे खालिस्तानी अलगाववादियों के साथ साथ दूसरे अनेक आतंकवादी संगठन भी शामिल हैं। कनाडा के प्रधानमंत्री आतंकवादियों, अलगाववादियों, गैंगेस्टरों और भारत विरोधी ताकतों को अपने यहां शरण दे रहे हैं। भारत उचित माध्यम से इन सबका विरोध दर्ज करा रहा है। परंतु भारत के विरोध और भारत की ओर से दी जाने वाली विश्वसनीय सूचनाओं के आधार पर कार्रवाई करने की बजाय कनाडा उलटे भारत पर निराधार आरोप लगा रहा है।
कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिस ट्रूडो अपनी दलगत राजनीति और सत्ता बचाए रखने की चिंता में एक के बाद एक कई गलतियां करते जा रहे हैं। उन्होंने ऐतिहासिक गलती की है, जो भारत को अपने विरोधी या दुश्मन देशों (एडवरसरीज) की श्रेणी में शामिल किया है। क्या कनाडा के प्रधानमंत्री को पता नहीं है कि भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है और पश्चिम के सभ्य व विकसित देशों की तरह भारत में भी शांतिपूर्ण तरीके से चुनाव होते हैं और उसके बाद सत्ता का हस्तांतरण होता है? क्या उनको पता नहीं है कि भारत समस्त अंतरराष्ट्रीय संधियों का पालन करता है और अंतरराष्ट्रीय कानूनों का सम्मान करता है? फिर कैसे उन्होंने भारत को चीन और रूस जैसे एकाधिकारवादी व अलोकतांत्रिक देशों और ईरान व उत्तर कोरिया जैसे दुष्ट देशों की श्रेणी में रखा? कनाडा ने अपने विरोधी देशों की जो सूची जारी की है उसमें चीन, रूस, ईरान और उत्तर कोरिया के साथ भारत का भी नाम रखा है। यह कितनी बड़ी कूटनीतिक गलती है, इसका अंदाजा शायद ट्रूडो को नहीं है।
असल में जस्टिस ट्रूडो ने वोट की राजनीति में पहले एक गलती की। उसके बाद अपनी उस गलती को सही ठहराने के लिए दूसरी गलती की और उसके बाद गलतियों का जो सिलसिला शुरू हुआ वह थम नहीं रहा है। ऐसा लग रहा है कि वे अपने ही बुने हुए जाल में उलझ गए हैं और उससे निकलने की कोशिश में एक के बाद एक गलतियां करते जा रहे हैं। सीधे तौर पर अपनी गलती मानने की बजाय वे मामले को उलझाते जा रहे हैं। एक समय ऐसा लगा था कि वे शायद भूल सुधार करें, जब उन्होंने कनाडा की एक संसदीय समिति के सामने कहा कि खालिस्तानी अलगाववादी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या को लेकर उन्होंने भारत पर जो आरोप लगाए थे उसके पुख्ता सबूत उनके पास नहीं थे।
ट्रूडो ने माना था कि खुफिया सूचना के आधार पर बिना सबूत के ही उन्होंने आरोप लगाए थे। जाहिर है कि यही हकीकत है कि कनाडा के पास उसका समर्थन करने वाले ‘फाइव आइज’ देशों के पास कोई पुख्ता सबूत नहीं था। जहां तक खुफिया सूचना की बात होती है तो ज्यादातर सूचनाएं सुनी सुनाई बातों पर आधारित होती हैं। उसके भी कोई ठोस सबूत नहीं होते हैं। तभी ऐसा लगा था कि भारत पर लगाए गए निराधार आरोपों से जो विवाद शुरू हुआ था वह समाप्त हो जाएगा और दोनों देशों के दोपक्षीय संबंधों में सुधार होगा।
लेकिन जब ट्रूडो ने आधे अधूरे ढंग से गलती स्वीकार की उसी समय उनके उप विदेश मंत्री डेविड मॉरिसन ने एक संसदीय समिति के सामने केंद्रीय गृह मंत्री श्री अमित शाह का नाम ले लिया। उन्होंने कहा कि खालिस्तानी अलगाववादी हरदीप सिंह निज्जर के खिलाफ कार्रवाई के आदेश भारत के गृह मंत्री ने दिए थे। इतना ही नहीं कनाडा सरकार के मंत्री ने कहा कि इस बारे में अमेरिकी मीडिया को उन्होंने खबर लीक की थी। कनाडा की राजनीति और उसकी कूटनीति पर यह कितना बड़ा सवाल है कि उसका एक मंत्री अखबारों को खबर लीक करता है और दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के गृह मंत्री को बदनाम करने की कोशिश करता है? गौरतलब है कि मंत्री की स्वीकारोक्ति से पहले अमेरिकी अखबार ‘वाशिंगटन पोस्ट’ में खबर आई थी कि श्री अमित शाह ने हमले के आदेश दिए थे। बाद में पता चला कि अखबार की इस खबर का स्रोत कनाडा के उप विदेश मंत्री थे। जाहिर है ट्रूडो सरकार ने भारत पर आरोप लगाने की पहली गलती को ठीक करने की बजाय अपने आरोप को सही साबित करने के लिए दूसरी गलती की है। भारत के राजनयिकों को संदिग्ध बता कर कनाडा पहले ही एक बड़ी कूटनीतिक गलती कर चुका है, जिसके बाद दोनों देशों ने अपने राजनयिक वापस बुलाए।
इसमें संदेह नहीं है कि देश के दुश्मनों को पाताल में भी खोज कर सजा देना किसी भी मजबूत देश की निशानी है। देश के दुश्मनों को खोज कर मारने का काम कैसे किया जाता है यह अमेरिका और इजराइल से बेहतर कौन जानता है! इन दोनों देशों ने इस मामले में मिसाल कायम की है। दुर्भाग्य से भारत में पहले ऐसा नहीं होता था। पहले भारत पर आतंकवादी हमले होते थे तब भी भारत कोई प्रतिक्रिया नहीं देता था। मुंबई जैसे हमले के बाद भी भारत ने कोई कार्रवाई नहीं की थी। लेकिन प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाला नया भारत अब घर में घुस कर मारने की सोच रखने वाला है। भारतीय सेना की सर्जिकल स्ट्राइक या एयर स्ट्राइक इसकी मिसाल है।
इसी तरह अगर अमेरिका और इजराइल की तरह भारत अपने दुश्मनों की पहचान कर रहा है और भारत की एकता और अखंडता को भंग करने की सोच रखने वालों की तलाश कर रहा है तो इसमें कोई बुराई नहीं है। अगर श्री अमित शाह ने देश के दुश्मनों की पहचान करने और उनके खिलाफ अंतरराष्ट्रीय कानूनों के तहत कार्रवाई करने को कहा है तो इसमें कुछ भी गलत नहीं है। ध्यान रहे भारत के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने हाल ही में बताया कि कई वांछित अपराधी, जो गैंगवार या अलगाववादी गतिविधियों से जुड़े हैं उनके प्रत्यर्पण की दो दर्जन से ज्यादा अपील भारत ने कनाडा से की है, जो अभी तक लंबित है।
इसका मतलब है कि भारत के अलगाववादी या गैंगेस्टर भाग कर कनाडा पहुंच रहे हैं तो कनाडा उन पर कार्रवाई करने की बजाय उनको शरण दे रहा है और भारत की मांग के बावजूद उनका प्रत्यर्पण नहीं कर रहा है। इसके बाद जब ये गैंगेस्टर आपसी लड़ाई में मारे जा रहे हैं तो भारत के ऊपर आरोप लगा रहा है कि भारत उनकी हत्या करा रहा है। कनाडा के प्रधानमंत्री और उनके उप विदेश मंत्री के ऐसे बेहूदा आरोपों पर भी भारत ने बहुत संयम बरता। भारत ने बार बार कनाडा से कहा कि वह सबूत मुहैया कराए। लेकिन वह कोई ठोस सबूत मुहैया नहीं करा रहा है क्योंकि उसके पास सबूत नहीं है। यह बात खुद प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने स्वीकार कर ली है।
इसके बावजूद वहां के नेता बेबुनियाद आरोप लगाने से बाज नहीं आ रहे हैं। यह वास्तविकता है कि कनाडा के प्रधानमंत्री भारत के दुश्मनों की मदद से राजनीति कर रहे हैं। वे खालिस्तानी अलगाववादियों की मदद से सत्ता बचाए रखने की राजनीति कर रहे हैं। तभी उनके तुष्टिकरण के लिए भारत से संबंध खराब कर रहे हैं। उनकी इस खराब कूटनीति ने कनाडा की अर्थव्यवस्था को भी मुश्किल में डाला है। कनाडा के अलग अलग संस्थानों में पढ़ने वाले भारतीय छात्रों से कनाडा को हर साल दो लाख करोड़ रुपए का राजस्व मिलता है। उसकी जीडीपी में इसका हिस्सा बहुत बड़ा है। इसके बाद वहां काम करने और वहां की अर्थव्यवस्था में योगदान देने वाले भारतीयों का मामला अलग है।
कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो को अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से कुछ सीखना चाहिए। ट्रंप ने बांग्लादेश में हिंदुओं पर हो रहे अत्याचार का मुद्दा उठाया है। उन्होंने कहा कि वहां हिंदुओं के साथ बर्बरता हो रही है। ट्रंप हों या राष्ट्रपति जो बाइडेन उनको पता है कि भारत के हिंदू दुनिया में जहां भी हैं वहां उस देश के विकास में सार्थक योगदान कर रहे हैं। कनाडा में भी उनका योगदान दूसरे किसी भी जातीय या धार्मिक समुदाय से ज्यादा है। ट्रूडो इसका सम्मान नहीं कर रहे हैं। वहां लगातार हिंदुओं के खिलाफ नफरत का अभियान चल रहा है। उनके ऊपर हमले हो रहे हैं। आए दिन भारत के राष्ट्रीय ध्वज यानी तिरंगे के अपमान के वीडियो वायरल हो रहे हैं। कनाडा की धरती से भारत विरोधी गतिविधियां चल रही हैं, जिनके पीछे खालिस्तानी अलगाववादियों के साथ साथ दूसरे अनेक आतंकवादी संगठन भी शामिल हैं।
कनाडा के प्रधानमंत्री आतंकवादियों, अलगाववादियों, गैंगेस्टरों और भारत विरोधी ताकतों को अपने यहां शरण दे रहे हैं। भारत उचित माध्यम से इन सबका विरोध दर्ज करा रहा है। परंतु भारत के विरोध और भारत की ओर से दी जाने वाली विश्वसनीय सूचनाओं के आधार पर कार्रवाई करने की बजाय कनाडा उलटे भारत पर निराधार आरोप लगा रहा है। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री श्री अमित शाह के नेतृत्व में भारत आज इतना सक्षम है कि वह देश के दुश्मनों को उनकी भारत विरोधी गतिविधियों के लिए सजा दे सकता है। कोई भी चीज इसमें बाधा नहीं उत्पन्न कर सकती है। इसलिए यह कनाडा को ध्यान में रखना चाहिए कि वह मजबूत भारत के साथ सौहार्द्र के संबंध रखता है और इसका लाभ उठाता है या घोषित रूप से दुश्मनी का रास्ता चुन कर अपना नुकसान करता है। (लेखक दिल्ली में सिक्किम के मुख्यमंत्री प्रेम सिंह तमांग (गोले) के कैबिनेट मंत्री का दर्जा प्राप्त विशेष कार्यवाहक अधिकारी हैं।)