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इंडिया नहीं विपक्ष या यूपीए कहिए

ये राजनीति भी ग़ज़ब हैं। किसी काम की या नाम की शुरूआत कीजिए कि चुटकी लेने वाले और बदनाम करने वाले आपको तुरंत मिल जाएँगे। या यूँ कहिए कि शुरूआत हुई नहीं कि बतगंड बनना शुरू हो जाता है। 2024 में होने वाले लोकसभा चुनावों गर्माहट हुई तो ज़मीन पर पहुँची कांग्रेस को भी कुछ उम्मीदें दिखने लगीं सत्ता में वापसी की। लेकिन इससे पहले कि सत्ता पक्ष उसे बदनाम कर फ़ायदा उठाए कांग्रेस ने अपने संगठन का नाम ही यूपीए से बदल कर इंडिया कर दिया। ताकि कोई राजनीतिक पार्टी अगर संगठन को बदनाम कर फ़ायदा उठाए भी या आलोचना करें भी तो बदनाम होने की छींटें उस पर भी आएँ। और ऐसा ही हुआ भी।

अब विपक्ष के संगठन बदलने पर सत्ता पक्ष के लोग चुटकी लें तो चलो कोई बाँ नहीं पर जैसे ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस पार्टी को यह कदम उठाते तो बतंगड बन गया। सत्ता पक्ष के नेताओं को तो छोड़िए मोदी ने ही कांग्रेस के इस नए संगठन की तुलना इंडियन नेशनल कांग्रेस,इंडियन मुजाहिद्दीन,और पीएसआई से कर डाली। भले मोदी का ऐसा कहना राजनीति का ही हिस्सा रहा हो पर लोगों लगा कि वे इंडिया यानी भारत के ख़िलाफ़ बोल रहे हैं। और विपक्ष ने भी कह डाला कि मोदी को इंडिया शब्द से लगता है नफ़रत है। या यूँ कहिए कि भाजपा को अपने नेता का ऐसा कहना ठीक नहीं लगा और ऐसे समय पर जबकि सत्ता में वापसी और बाहर हो जाने की टेंशन हो। चुनावी दौर में शब्दों का अर्थ ग़लत न हो जाए इसी डर से भाजपा नेताओं ने संज्ञान लिया और भूल सुधार कर डाली। आनन-फ़ानन में इसका तोड़ निकाला गया और तय किया गया कि पार्टी नेता अब विपक्ष को इंडिया नहीं बल्कि कांग्रेस संगठन के इस बदले नाम को या तो विपक्ष कहकर संबोधित करेंगे या फिर यूपीए सहयोगी दल कहकर ही संबंधित करेंगे। अब भला हो अपने नेताओं का कि अभी तक तो दल बदल कर राजनीति में फ़ायदा उठाने की जुगत में रहते थे पर अब तो नाम बदल कर भी ऐसी मंशा दिख रही है। अब 2024 के चुनावी नतीजे ही बताएँगे कि नाम बदलकर फ़ायदा होता है या नाम बदलने पर पार्टी का मखौल उड़ाने पर।

By ​अनिल चतुर्वेदी

जनसत्ता में रिपोर्टिंग का लंबा अनुभव। नया इंडिया में राजधानी दिल्ली और राजनीति पर नियमित लेखन

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