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चर्चित चर्चा : सवाल…. हमारे संविधान की अहमियत का….?

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भोपाल। विश्व के सभी प्रजातंत्रीय या लोकतंत्री देश हमारे देश के संविधान की न सिर्फ तारीफ करते हैं, बल्कि अमेरिका जैसे देशों ने तो उसकी नकल भी की है, किंतु आज जब हमारे संविधान को लागू हुए करीब पचहत्तर वर्ष पूरे होने जा रहे है…., इस पर अनेक सवाल उठाए जा रहे है और ये सवाल और कोई नही बल्कि उसी दल के नेता उठा रहे है, जिन्होंने आजादी के बाद से अब तक सर्वाधिक समय सत्ता में रहकर मौजूदा संविधान को जन्म देने का श्रेय लूटा, इसी दल ने सत्ता में रहते अब तक इस संविधान पर एक सौ से अधिक तीर चलाकर इसे ‘शरशैय्या’ पर पड़े रहने को मजबूर किया है, अपनी मनमर्जी से संविधान को तोड़ने-मरोड़ने वाला दल आज सत्तारूढ़ दल पर संविधान के विपरीत काम करने के आरोप लगा रहा है, आज के मुख्य प्रतिपक्षी दल के वे नेता जिनका जन्म इस संविधान के लागू होने के बाद हुआ और जिन्होंने स्वयं संविधान नही पढ़ा। आज संविधान में मीन-मैख निकाल रहे है।

वैसे यह भी एक कटु सत्य है कि अब तक हर सत्तारूढ़ दल ने हमारे संविधान को धार्मिक गं्रथ रामायण, श्रीमद्भागवत गीता, कुरान और गुरूगं्रथ साहब की तरह लाल कपड़े में लपेट कर रखा और इसका उपयोग सिर्फ और सिर्फ इसे हाथों में लेकर शपथ तक ही सीमित रखा, इसका सही अर्थों में अनुसरण करने का किसी भी सत्ताधारी दल ने प्रयास नही किया, जबकि संविधान सभा के अध्यक्ष डाॅ. भीमराव आम्बेड़कर ने बड़ी आशा व उम्मीदों के साथ इसकी रचना की थी, किंतु सिर्फ पचहत्तर साल की अवधि में ही हमारे संविधान की अंतिम यात्रा की तैयारी की जा रही है और उसे देश का मार्गदर्शक नहीं मानकर एक धर्मगं्रथ की मानिंद इसका उपयोग किया जा रहा है। हमारे इसी संविधान का अगले साल हीरक जयंति वर्ष है, इस वर्ष को जोर-शोर से मनाने की तैयारी भी की जा रही है, सत्ता और विपक्ष दोनों ही इस दिशा में तैयारी कर रहे है, किंतु मेरी दृष्टि में संविधान की हीरक जयंती मनाने के सही पात्र वे है, जिन्होंने इसकी कायदे से इज्ज़त कर इसे ईमानदारी से लागू करने और इस पर अपने आपको समर्पित करने का प्रयास किया हो, लेकिन अब तो हमारे इस संविधान को भी ‘‘राजनीतिक नारा’’ बनाने का प्रयास किया जा रहा है?

क्या संशोधन की ‘शरशैय्या’ पर पड़े इस संविधान की गति भी द्वापर के महाभारत के भीष्म पितामाह जैसी ही होगी? इसी बात को लेकर आज पूरे विश्व के देश भारत का मजाक उड़ा रहे है और आरोप लगाया जा रहा है कि संविधान को भारत के सत्ता में रहने वाले राजनीतिक दलों ने ‘‘सत्ता-सुरक्षा-हथियार’’ बना रखा है। अब यह आरोप कहा तक सही है, यह तो भारत के आत्मचिंतन के बाद ही पता चलेगा, किंतु यदि इसमें तनिक भी सच्चाई है तो यह हमारे लिए ‘शर्मनाक’ है, क्योंकि संविधान को हमने हमेशा सत्ता का मार्गदर्शक सिद्धांत माना है और वही मंत्र रहा है। इसलिए अब यह जरूरी हो गया है कि मौजूदा हालातों में हमारे संविधान पर समय व परिस्थिति के अनुसार सही समीक्षा होना चाहिए और विश्व के अलोचक देशों को मुंह तोड़ जवाब दिया जाना चाहिए तथा अब इतनी देरी से ही सही हमारे संविधान को पूरी निष्ठा-ईमानदारी और सच्चाई के साथ लागू किया जाना चाहिए और यह अपेक्षा मोदी जी के प्रधानमंत्री रहते उनसे ही की जा सकती है?

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