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जम्मू-कश्मीर की राजनीति में इल्तिजा मुफ्ती

महबूबा मुफ्ती अनंतनाग-राजौरी लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ रही हैं। इल्तिजा मुफ्ती लगातार चुनावी सभाओं को संबोधित कर रही हैं और लोग बड़ी संख्या में उन्हें सुनने पहुंच रहे हैं। विशेषकर महिलाओं व युवाओं में इल्तिजा ज़बरदस्त ढंग से लोकप्रिय हो रही हैं। खूब मेहनत करते हुए इल्तिजा कभी अपनी मां महबूबा मुफ्ती के साथ, तो कभी अकेले लगातार चुनावी क्षेत्र का दौरा कर रही हैं। लोगों तक अपनी बात बहुत ही सरल अंदाज़ से पहुंचाने में उन्हें सफलता भी मिल रही है।

देश के पूर्व गृह मंत्री और जम्मू-कश्मीर के पूर्व स्वर्गीय मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद की नातिन व पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती की बेटी इल्तिजा मुफ्ती ने राजनीति में ज़ोरदार ढंग से दस्तक दे दी है। मुफ्ती परिवार की वे तीसरी पीढ़ी हैं जिन्होंने राजनीति में कदम रखा है। अपनी मां महबूबा मुफ्ती का लोकसभा चुनाव को दौरान चुनाव प्रचार करते हुए इल्तिजा एक नए राजनीतिक सितारे के रूप में उभर कर सामने आई हैं। उल्लेखनीय है कि महबूबा मुफ्ती अनंतनाग-राजौरी लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ रही हैं।

इल्तिजा मुफ्ती लगातार चुनावी सभाओं को संबोधित कर रही हैं और लोग बड़ी संख्या में उन्हें सुनने पहुंच रहे हैं। विशेषकर महिलाओं व युवाओं में इल्तिजा ज़बरदस्त ढंग से लोकप्रिय हो रही हैं। खूब मेहनत करते हुए इल्तिजा कभी अपनी मां महबूबा मुफ्ती के साथ, तो कभी अकेले लगातार चुनावी क्षेत्र का दौरा कर रही हैं। लोगों तक अपनी बात बहुत ही सरल अंदाज़ से पहुंचाने में उन्हें सफलता भी मिल रही है। इल्तिजा की भाव-भंगिमा और उनकी भाषण शैली से उनका ज़बरदस्त आत्मविश्वास साफ झलकता है।

उम्र में इल्तिजा मुफ्ती भले ही अभी छोटी हैं लेकिन जिस गंभीरता व ज़िम्मेदारी के साथ उन्होंने अपनी मां महबूबा मुफ्ती के चुनाव प्रचार को संभाला है उससे उनमें एक परिपक्व राजनीतिक नेता की झलक अभी से दिखाई देने लगी है। चुनाव प्रचार के दौरान अनंतनाग-राजौरी लोकसभा क्षेत्र के हर कोने को उन्होंने छूने की कोशिश की है और सभी वर्गों से संपर्क बनाया है।

सांस्कृतिक, भाषाई व राजनीतिक विविधता वाली अनंतनाग-राजौरी लोकसभा सीट पर चुनाव प्रचार करते हुए कभी कश्मीरी भाषा में तो कभी बड़ी सुगमता के साथ पहाड़ी भाषा में बोलते हुए इल्तिजा कुछ ही दिनों में लोकप्रियता के तमाम रिकार्ड तोड़ चुकी है। इल्तिजा के तेवर साफ संकेत दे रहे हैं कि वे आने वाले दिनों में जम्मू-कश्मीर की राजनीति में एक अहम भूमिका निभाने के लिए तैयार हैं।

लोगों को अपने साथ जोड़ने के राजनीतिक गुर उन्हें विरासत में मिले हैं जबकि कुछ राजनीतिक दांव-पेंच सीखने से उन्हें कोई परहेज भी दिखाई नही देता है। किसी अनुभवी और परिपक्व राजनीतिज्ञ की तरह इल्तिजा मुफ्ती आमजन की नब्ज पकड़ने की महारत सीख चुकी हैं। उदाहरण के लिए वे जब कश्मीर घाटी में सभाएं करती हैं तो लोगों के मिजाज को देखते हुए कश्मीरी भाषा पर ज़ोर देती हैं। मगर जब उन्हें भाषा व संस्कृति के लिहाज से पूरी तरह से विपरीत जम्मू संभाग के पुंछ-राजौरी क्षेत्र का दौरा करना होता है तो वहां अपनी बात पहुंचाने के लिए एक मझे हुए राजनीतिज्ञ की तरह स्थानीय पहाड़ी भाषा में बोलना ही पसंद करती हैं। इल्तिजा द्वारा चुनाव प्रचार के दौरान सुगमता व सरलता के साथ पहाड़ी भाषा में भाषण देते देख स्थानीय लोग अचंभित भी होते हैं और यह उनके लिए एक सुखद अनुभव भी है। शायद यह पहली बार है कि कोई कश्मीरी भाषी राजनीतिक नेता पहाड़ी भाषा में आराम से बोलते हुए चुनाव प्रचार कर रहा है।

आमतौर पर कश्मीरी राजनीतिक नेताओं को उर्दू-हिन्दी बोलते समय उच्चारण को लेकर कुछ समस्याएं रहती हैं लेकिन इल्तिजा मुफ्ती की साफ-स्पष्ट हिन्दुस्तानी और पहाड़ी भाषा में दिए जा रहे भाषण लोगों में खूब लोकप्रिय हो रहे हैं। विभिन्न भाषाओं पर उनकी पकड़ ने उन्हें आम लोगों के साथ जुड़ने में मदद की है। नपे-तुले शब्दों का प्रयोग करते हुए इल्तिजा जिस तरह से भाषण देती हैं उससे लोग प्रभावित हो रहे हैं। अपने भाषणों में अपने नाना स्वर्गीय मुफ्ती महोम्मद सईद को याद करना भी इल्तिजा मुफ्ती भूलती नही हैं। प्रदेश के मुख्यमंत्री रहते जो प्रमुख काम स्वर्गीय मुफ्ती महोम्मद सईद ने करवाए हैं उन्हें गिनवाने का काम भी इल्तिजा लगातार कर रही हैं।

इल्तिजा मुफ्ती तकनीक और सोशल मीडिया की ताकत को भी बखूबी जानती-पहचानती हैं। तकनीक का पूरा उपयोग करते हुए वे आम लोगों तक सोशल मीडिया के विभिन्न मंचों का इस्तेमाल कर रही हैं। किस समय और कैसे अपनी बात आम लोगों तक पहुंचानी है इसकी जानकारी व समझ इल्तिजा को पूरी है। जिस जगह इल्तिजा का दौरा होना होता है उसके बारे में खुद विडियो के माध्यम से पूरी अग्रिम जानकारी वे अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर उपलब्ध करवा देती हैं, जिससे लोग उनके कार्यक्रमों को लेकर उत्सुकता के साथ इंतज़ार करते दिखते हैं।

उल्लेखनीय है कि इल्तिजा मुफ्ती उस समय सार्वजनिक जीवन में सक्रिय होना शुरू हुईं थी जब पांच अगस्त 2019 को अनुच्छेद-370 की समाप्ति के बाद महबूबा मुफ्ती को हिरासत में ले लिया गया था। उन्होंने लगभग चार साल तक अपनी मां का ट्विटर अकाउंट संभाला। बाद में उन्हें पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) ने आधिकारिक रूप से पार्टी प्रमुख महबूबा मुफ्ती के मीडिया सलाहकार के तौर पर ज़िम्मेदारी सौंप दी। महबूबा मुफ्ती को जैसे उनके पिता मुफ्ती महोम्मद सईद का संरक्षण मिला और जिस तरह से उनके पिता ने महबूबा को राजनीति में सीढ़ी दर सीढ़ी आगे बढ़ाया, ठीक उसी तरह महबूबा मुफ्ती भी अपनी बेटी इल्तिजा मुफ्ती को धीरे-धीरे, मगर मजबूती के साथ आगे बढ़ा रही हैं।

उल्लेखनीय है कि जम्मू-कश्मीर की राजनीति में अब्दुल्ला परिवार के बाद मुफ्ती परिवार दूसरा सबसे बड़ा राजनीतिक परिवार है। अब्दुल्ला परिवार को विरासत में जम्मू-कश्मीर के दिग्गज नेता स्वर्गीय शेख महोम्मद अब्दुल्ला जैसे एक विराट व्यक्तित्व का नाम और नेशनल कांफ्रेस जैसा एक मजबूत संगठन मिला है। लेकिन दूसरी तरफ मुफ्ती परिवार ने लंबे संघर्ष के बाद राजनीति में अपने लिए जगह बनाई है।

जम्मू-कश्मीर की राजनीति में अब्दुल्ला परिवार का अधिकांश समय दबदबा रहा है। इसे यूं भी कहा जा सकता है कि अब्दुल्ला परिवार राजनीति में मुफ्ती परिवार से एक बहुत बड़े अरसे तक कई कदम आगे ही रहा है। लेकिन शायद यह पहला मौका है कि जब मुफ्ती परिवार ने एक बड़ी छलांग लगाई है और मुफ्ती परिवार की नई पीढ़ी ने अब्दुल्ला परिवार से पहले राजनीति में ज़ोरदार ढंग से प्रवेश किया है।

अब्दुल्ला व मुफ्ती परिवार परिवारों के बीच एक कश्मकश भरा लंबा इतिहास रहा है। यह राजनीतिक टकराव अब्दुल्ला परिवार के मुखिया और जम्मू-कश्मीर के पहले प्रधानमंत्री स्वर्गीय शेख महोम्मद अब्दुल्ला के समय से चला आ रहा है। हालांकि शेख महोम्मद अब्दुल्ला के विराट राजनीतिक व्यक्तित्व के आगे राजनीति में मुफ्ती महोम्मद सईद का कद बहुत छोटा था मगर दोनों के बीच रस्साकशी चलती रही।

शेख महोम्मद अब्दुल्ला का 1982 में निधन होने के बाद उनके बड़े बेटे फारूक अब्दुल्ला ने पिता की विरासत को संभाला। फारूक को एक मजबूत संगठन मिला और एक बहुत लंबे वक्त तक फारूक अब्दुल्ला जम्मू-कश्मीर की सियासत में अपना प्रभुत्व बनाए रखने में सफल तो रहे मगर बीच-बीच में उन्हें मुफ्ती महोम्मद सईद से लगातार चुनौती भी मिलती रही।

मुफ्ती महोम्मद सईद  कुछ समय के लिए केंद्रीय राजनीति में चले गए और 1986 में राजीव गांधी सरकार में मंत्री रहे। बाद में मुफ्ती स्वर्गीय प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह के साथ कांग्रेस छोड़ दी और 1989 में जनता दल सरकार में देश के गृह मंत्री बने। कुछ समय बाद मुफ्ती फिर से कांग्रेस में लौट आए और 1999 में उन्होंने अपनी खुद की पार्टी – पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) का गठन कर लिया। लेकिन इस बीच मुफ्ती महोम्मद सईद और फारूक अब्दुल्ला के बीच की राजनीतिक तनातनी भी बरकरार रही।

मुफ्ती परिवार की दूसरी पीढ़ी के रूप में महबूबा मुफ्ती के भी अब्दुल्ला परिवार की तीसरी पीढ़ी के सदस्य उमर अब्दुल्ला के साथ राजनीतिक मतभेद रहे हैं। दोनों के बीच भी राजनीतिक वर्चस्व की लड़ाई कभी कम नही हुई।

By मनु श्रीवत्स

लगभग 33 वर्षों से पत्रकारिता में सक्रिय।खेल भारती,स्पोर्ट्सवीक और स्पोर्ट्स वर्ल्ड, फिर जम्मू-कश्मीर के प्रमुख अंग्रेज़ी अख़बार ‘कश्मीर टाईम्स’, और ‘जनसत्ता’ के लिए लंबे समय तक जम्मू-कश्मीर को कवर किया।लगभग दस वर्षों तक जम्मू के सांध्य दैनिक ‘व्यूज़ टुडे’ का संपादन भी किया।आजकल ‘नया इंडिया’ सहित कुछ प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं के लिए लिख रहा हूँ।

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