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हॉकी:एशियाड गोल्ड ओलंपिक की गारंटी

भले ही हमारा परंपरागत प्रतिद्वंद्वी पाकिस्तान अपनी पहचान खो चुका है फिरभी  यह कहना कि पाकिस्तान दौड़ में शामिल नहीं है, सरासर गलत होगा। कुछ माह पहले इसी पाकिस्तान को अपनी मेजबानी में हराने के लिए टीम इंडिया को एड़ी चोटी का जोर लगाना पड़ा था।

भारतीय हॉकी टीम जोशो खरोश और बुलंद हौसलों के साथ एशियाई खेलों में भाग लेने जा रही है। खिलाड़ियों के हौंसले  ऊंचे हैं और  कोच को भरोसा है कि भारतीय टीम खिताब जीत कर पेरिस ओलंपिक का टिकट पा जाएगी। लेकिन यदि खिताब नहीं जीते तो रैंकिंग का उपहास उड़ना तय है। पिछले कुछ महीनों के प्रदर्शन पर नजर डालें तो भारत खिताब का प्रबल दावेदार है। विश्व रैंकिंग में तीसरे नंबर की भारतीय टीम के आस पास भी कोई एशियाई देश नहीं है।

लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि भारत आसानी से गोल्ड जीत जाएगा। भले ही हमारा परंपरागत प्रतिद्वंद्वी पाकिस्तान अपनी पहचान खो चुका है फिरभी  यह कहना कि पाकिस्तान दौड़ में शामिल नहीं है, सरासर गलत होगा। कुछ माह पहले इसी पाकिस्तान को अपनी मेजबानी में हराने के लिए टीम इंडिया को एड़ी चोटी का जोर लगाना पड़ा था। एशिया कप जीतने के लिए उसे पेनल्टी शूट आउट का सहारा लेना पड़ा। तब कहीं जाकर विश्व कप का टिकट मिल पाया था।

यह सही है कि महाद्वीप में पाकिस्तान की बादशाहत नहीं रही। जापान, मलेशिया और कोरिया जैसे देश भी कभी कभार उलटफेर करते आए हैं लेकिन भारतीय हॉकी वापसी के सबसे सुखद दौर से गुजर रही है। विश्व रैंकिंग के हिसाब से भारत के सामने कमजोर चुनौतीबाज हैं। लेकिन भारतीय हॉकी  ने पहले भी  कई बार धोखा दिया  है। भले पाकिस्तानी खिलाड़ियों को भारतीय टीम जैसी सुविधाएं नहीं मिल पा रहीं लेकिन पाकिस्तान, जापान और मलेशिया उलटफेर करने की योग्यता रखते हैं।

खासकर पाकिस्तान से सावधान रहने की जरूरत है। यह सही है कि हमारे पास पेनल्टी कॉर्नर पर गोल जमाने वाले खिलाड़ी हैं लेकिन उनकी फार्म आती जाती रहती है। कुछ का प्रदर्शन तो बेहद निराश करने वाला है। पिछले कुछ सालों में भारतीय खिलाड़ी पूरी तरह एक्सपोज हुए  हैं। खिलाड़ी, कप्तान,  कोच और टीम प्रबंधन बड़े बड़े दावे कर खिलाड़ियों पर अतिरिक्त बोझ डालते हैं और  देशवासी भी कुछ ज्यादा ही उम्मीद कर लेते हैं, जोकि पूरी नहीं हो पाती।

भले ही मलेशिया(10), कोरिया(12), पाकिस्तान(15) और जापान(19)  एफआईएच रैंकिंग में भारत से बहुत पीछे हैं लेकिन हार जीत का अंतर हमेशा रैंकिंग से तय नहीं होता। यह भी सही है कि बेकार का बड़बोलापन  और खोखले दावे भारतीय हॉकी को उपहास का पात्र बनाते आए हैं।

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