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ख़ुदसाख़्ता ‘हिंदू हृदय सम्राट’ नरेंद्र भाई

तमाम दुस्साध्य कोशिशों के भी हिंदू आबादी का 60-65 प्रतिशत हिस्सा नरेंद्र भाई की असहमति में मुट्ठियां ताने खड़ा है तो वे काहे के एकछत्र ‘हिंदू हृदय सम्राट’? सोचिए, वे कौन-से हिंदू हैं, जिनके दिल में नरेंद्र भाई बसे हैं – सनातनी संस्कारों वाले करुणामयी, दयामयी, उदारमना हिंदू या सनातनी लताओं में ऑक्सीटोसिन इंजेक्शन लगा-लगा कर तैयार की गई महाकाय हिंदुत्व-सोच के अनुगामी हिंदू? सच बताइए, आप कैसा हिंदू होने पर गर्व करेंगे?

हमारे नरेंद्र भाई मोदी को उनके चाहने वाले ‘हिंदू हृदय सम्राट’ कहते हैं। मुझे नहीं मालूम कि उनके पहले यह ख़िताब भारतीय जनता पार्टी के पूर्वज – भारतीय जनसंघ – के संस्थापक श्यामाप्रसाद मुखर्जी को मिला था या नहीं? मैं यह भी नहीं जानता कि जो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भाजपा का असली पड़दादा है, उसके संस्थापक केशव बलिराम हेडगेवार को हिंदू अपने हृदय का सम्राट मानते थे या नहीं? उनके बाद के संघ प्रमुखों महादेव सदाशिवराव गोलवलकर, मधुकर दत्तात्रय देवरस, राजेंद्र सिंह यानी रज्जू भैया और कुप्पाहल्ली सीतारमैया सुदर्शन को कभी किसी ने ‘हिंदू हृदय सम्राट’ का अलंकरण दिया या नहीं, यह भी मैं अज्ञानी नहीं जानता। आज के संघ प्रमुख मोहन भागवत के बारे में भी मैं ने यह नहीं सुना है कि वे हिंदुओं के हृदय सम्राट हैं। वे ख़ुद भी ऐसा कोई दावा करते मुझे कभी सुनाई-दिखाई नहीं दिए।

भारतीय जनसंघ के पहले अध्यक्ष रहे मौलिचंद्र शर्मा, प्रेमनाथ डोगरा, देबाप्रसाद घोष, पीतांबर दास, अवसराला रामराव, रघु वीरा, बच्छराज व्यास, बलराज मधोक और दीनदयाल उपाध्याय के बारे में उनके ‘हिंदू हृदय सम्राट’ होने की कोई कथा मैं न तो नहीं सुनी है। सच बताऊं, मैं ने तो इनमें से कइयों के नाम भी नहीं सुने थे। अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी भारतीय जनसंघ के भी अध्यक्ष रहे और जब जनसंघ ने अपना निर्मोक परिवर्तन कर स्वयं को भारतीय जनता पार्टी की मुखाकृति प्रदान की तो उसके भी अध्यक्ष रहे। वाजपेयी को ज़रूर हिंदुओं के हृदय का आंशिक सम्राट माना गया, मगर आडवाणी अपने को थोप-थोप कर थक गए, पर सम्राट तो दूर, जागीरदार की पदवी भी हासिल नहीं कर पाए। भाजपा के अध्यक्ष रहे मुरली मनोहर जोशी, कुशाभाऊ ठाकरे, बंगारू लक्ष्मण, के. जना कृष्णमूर्ति, मुप्पवरापु वेंकैया नायडू, राजनाथ सिंह, नितिन गड़करी और अमित शाह ने कभी यह पगड़ी पहनने का ख़्वाब देखा हो, इस तक का भी कोई प्रमाण नहीं मिलता है। सो, मौजूदा अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा के मन में तो ऐसी सोच उपजना भी असंभव है।

अटल बिहारी वाजपेयी भाजपा से बनने वाले देश के पहले प्रधानमंत्री थे। 1996 में जब वे पहली बार प्रधानमंत्री बने तो सिर्फ़ 16 दिन ही गद्दी पर रहे। इत्ते-से समय में उनके ‘हिंदू हृदय सम्राट’ की तरह स्थापित होने का सवाल ही कहां उठता? लेकिन जब वे दूसरी बार 1998 में और तीसरी बार 1999 में प्रधानमंत्री बने तो 6 साल 64 दिन राजगद्दी पर रहे। इतना वक़्त हृदय सम्राट बनने के लिए काफी होता है। लेकिन मुझे क्या, किसी को भी, कभी ऐसा नहीं लगा कि वाजपेयी प्रधानमंत्री के पद का काम-धाम छोड़ कर हिंदुओं का हृदय सम्राट बनने की जी-तोड़ बैनर-पोस्टरी कोशिशों में लगे हुए हैं। अपने आप जितने हिंदुओं ने उन्हें अपने दिल में बसा लिया, वे उतने में ही ख़ुश थे। किसी के दिल में दरवाज़ा तोड़ कर जबरदस्ती या तिकड़में कर के चोर दरवाज़े से वे नहीं घुसे। वे हिंदू थे, संघ के प्रचारक भी रहे थे, संघ की शिक्षा-दीक्षा में ही उन्हें सोच-विचार की दिशा मिली थी, लेकिन जब वे प्रधानमंत्री के संवैधानिक पद पर बैठे तो संघ-भाजपा के बजाय भारत के प्रधानमंत्री हो गए।

नरेंद्र भाई मोदी भाजपा के दूसरे व्यक्ति हैं, जो भारत के प्रधानमंत्री के गरिमामय संवैधानिक पद की ज़िम्मेदारी संभाल रहे हैं। वे भी हिंदू हैं। वे भी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक रह चुके हैं। मुझे लगे-न-लगे, आपको लगे-न-लगे, मगर उन्हें लगता है कि वे ‘हिंदू हृदय सम्राट’ हैं। उनके आराधकों के मन में तो यह भाव और भी गहरे धंसा हुआ है कि उनका आराध्य भारत और विश्व के सकल हिंदू समाज का एकमात्र और निर्विवाद हृदय सम्राट है। दिग्भ्रमित अनुचर मानते हैं कि उनके नरेंद्र भाई प्रधानमंत्री बनने के बाद हिंदुओं के हृदय सम्राट नहीं बने हैं। वे तो अगर पहले से ही ‘हिंदू हृदय सम्राट’ न होते तो प्रधानमंत्री का सिंहासन उनका बेताबी से इंतज़ार ही न कर रहा होता। सो, अपने पाले के हिंदुओं के हृदय सम्राट तो वे गुजरात का मुख्यमंत्री बनने के दो-तीन बरस के भीतर ही बन गए थे। दिल्ली पहुंचने में तो उन्हें दसेक बरस की देर हो गई। अगर वे एक दशक पहले रायसीना-पहाड़ी फ़तह कर चुके होते तो भारत अब तक हिंदू-राष्ट्र बन चुका होता।

जो हुआ, सो, हुआ। अच्छा हुआ या बुरा, कौन जाने? दस साल देर से ही सही, नरेंद्र भाई दिल्ली पहुंच गए और जब से पहुंचे हैं, दिन-रात अपने काम में लगे हैं। 282 के बाद 303 पर पहुंच गए, सो, प्रधानमंत्री बने रहने में कोई खतरा है नहीं। इसलिए भारत का प्रधानमंत्री बने रहने के कर्तव्य पथ पर चलते रहने से बड़ी प्राथमिकता उनके लिए ‘हिंदू हृदय सम्राट’ की उपाधि को हर हाल में अपनी मुट्ठी में बांधे रखना बन गई है। वे इसके लिए जो करना है, ताल ठोक कर करते हैं और जंगल में ऐसे मोर की तरह नहीं नाचना चाहते हैं, जिसे कोई देखे ही नहीं, सो, अपने किए को जन-जन तक पहुंचाने के लिए आधुनिक प्रचार तकनीकों के तमाम यंत्र-तंत्र-मंत्र झोंकने में भी कोई कोताही नहीं करते हैं।

कई बार मैं सोच में पड़ जाता हूं कि आख़िर वे कौन-से हिंदू हैं, जिनका स्वयंभू हृदय सम्राट हमारे नरेंद्र भाई इतना सब करने-धरने के बाद बन पाए हैं? इस वक़्त जब मैं यह लिख रहा हूं, भारत की जनसंख्या-घड़ी मुझे बता रही है कि हमारी आबादी 1 अरब 43 करोड़ 36 लाख 3 हज़ार 720 हो गई है। मोटे अनुमान के मुताबिक़ देश की आबादी में 80 प्रतिशत हिंदू हैं। इसका मतलब हुआ कि भारत में आज 1 अरब 14 करोड़ 68 लाख 42 हज़ार 976 हिंदू हैं। क्या आपको लगता है कि नरेंद्र भाई इन सवा अरब गर्वीले हिंदुओं के हृदय सम्राट हैं?

2024 के आम चुनाव में जब कुल मतदाताओं की तादाद एक अरब होगी और उनमें से क़रीब 70 करोड़ अपने वोट देने जाएंगे तो 80 फ़ीसदी की मोटी गणना के मुताबिक़ 56-57 करोड़ हिंदू मतदान केंद्रों पा पहुंचेंगे। देखते हैं, इनमें से कितनों के वोट तब ‘हिंदू हृदय सम्राट’ को मिलते हैं? वैसे प्रसंगवश आपको बता दूं कि 2019 के जिस चुनाव में नरेंद्र भाई को 303 सीटों का बंपर बहुमत मिला था, उसमें क़रीब साढ़े 61 करोड़ मतदाता वोट देने गए थे। स्थूल गणना के अनुसार उनमें से तक़रीबन सवा 49 करोड़ मतदाता हिंदू थे। भाजपा को तब क़रीब 23 करोड़ वोट मिले थे। अर्थ हुआ कि वोट देने गए हिंदुओं में से सवा 26 करोड़ ने नरेंद्र भाई को ख़ारिज कर दिया था। 2014 में जब नरेंद्र भाई पहली बार दनदनाते हुए रायसीना पर्वत पर झंडा गाड़ने पहुंचे थे तो क़रीब साढ़े 55 करोड़ लोग मतदान केंद्रों पर अपनी राय ज़ाहिर करने गए थे। उनमें सवा 44 करोड़ से कुछ ज़्यादा हिंदू रहे होंगे। उस चुनाव में वोट देने गए हिंदुओं में से सवा 17 करोड़ ने भाजपा का समर्थन किया था और सवा 27 करोड़ ने नरेंद्र भाई को अस्वीकार कर दिया था।

जब बावजूद तमाम दैत्याकार और दुस्साध्य कोशिशों के भी हिंदू आबादी का 60-65 प्रतिशत हिस्सा नरेंद्र भाई की असहमति में मुट्ठियां ताने खड़ा है तो वे काहे के एकछत्र ‘हिंदू हृदय सम्राट’? सोचिए, वे कौन-से हिंदू हैं, जिनके दिल में नरेंद्र भाई बसे हैं – सनातनी संस्कारों वाले करुणामयी, दयामयी, उदारमना हिंदू या सनातनी लताओं में ऑक्सीटोसिन इंजेक्शन लगा-लगा कर तैयार की गई महाकाय हिंदुत्व-सोच के अनुगामी हिंदू? सच बताइए, आप कैसा हिंदू होने पर गर्व करेंगे?

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By पंकज शर्मा

स्वतंत्र पत्रकार। नया इंडिया में नियमित कन्ट्रिब्यटर। नवभारत टाइम्स में संवाददाता, विशेष संवाददाता का सन् 1980 से 2006 का लंबा अनुभव। पांच वर्ष सीबीएफसी-सदस्य। प्रिंट और ब्रॉडकास्ट में विविध अनुभव और फिलहाल संपादक, न्यूज व्यूज इंडिया और स्वतंत्र पत्रकारिता। नया इंडिया के नियमित लेखक।

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