भारतीय पंचांगों में इस प्रकार की गड़बड़ियाँ नहीं रहीं, क्योंकि यहाँ ग्रहीय गतियों का सूक्ष्म अध्ययन करने की अतिप्राचीन परंपरा रही है तथा कालगणना पृथ्वी, चन्द्र, सूर्य की गति के आधार पर होती रही है। चंद्र और सूर्य गति के अंतर को पाटने की भी व्यवस्था अधिक मास आदि द्वारा होती रही है। भारत में सूर्योदय से सूर्यास्त तक दिन, माह और वर्ष की गणना करके भारतीय पंचांग बनाया गया है।
1 जनवरी, नववर्ष विशेष
अधिकांश देशों में नववर्ष की शुरुआत आंग्ल कैलेंडर के अनुसार प्रथम जनवरी से होती हैं। प्रथम जनवरी को मनाया जाने वाला यह नववर्ष ग्रेगोरियन कैलेंडर पर आधारित है। आंग्ल कैलेंडर में समय का विभाजन वर्ष, मास व दिन का आधार पृथ्वी और चंद्र की गति के आधार पर किया जाता है। सौर वर्ष और चंद्रमास का तालमेल नहीं होने के कारण आरंभ में अनेक देशों में समय व पर्व-त्योहारों के निर्धारण में गड़बड़ी होती रही। समय का विभाजन ऐतिहासिक घटना के आधार पर करने का भी चलन है। ईसाई मत के अनुसार ईसा का जन्म इतिहास की एक निर्णायक घटना है, इस आधार पर इतिहास को दो हिस्सों में विभाजित किया जाता है- बी.सी. तथा ए.डी.। बी सी का अर्थ है- बीफोर क्राईस्ट अर्थात ईसा के पूर्व। यह ईसा के उत्पन्न होने से पहले की घटनाओं पर लागू होता है। ईसा के जन्म की बाद की घटनाओं को ए. डी. कहा जाता है, जिसका अर्थ है – अन्नों डोमिनी अर्थात इन द ईयर ऑफ आवर लॉर्ड।
लेकिन विचित्र बात यह है कि यह पद्धति ईसा के जन्म के बाद कुछ सदी तक प्रयोग में नहीं आती थी। वर्तमान के ईस्वी सन का मूल रोमन संवत है, जो ईसा के जन्म से 753 वर्ष पूर्व रोम नगर की स्थापना के साथ प्रारंभ हुआ। प्रारंभ में इसमें दस माह का वर्ष होता था, जो मार्च से दिसम्बर तक चलता था तथा 304 दिन होते थे। सबसे पहले रोम के राजा नूमा पोंपिलस के द्वारा रोमन कैलेंडर में बदलाव किया गया था। इसके बाद रोमन कैलेंडर में वर्ष का प्रथम महीना जनवरी को माना गया। जबकि पूर्व में मार्च को वर्ष का प्रथम महीना माना जाता था। इसके बाद रोम में आए एक शासक जूलियस सीजर ने 47 ईसा पूर्व में रोमन कैलेंडर में फिर बदलाव करवाया और इसमें अपने नाम के आधार पर जुलाई माह जुड़वाया। और एक वर्ष में 12 महीने करवाए।
उसके भतीजे आगुस्तुस के नाम के आधार पर इसमें अगस्त माह जोड़ा गया। सीजर ने खगोलविदों के सलाह पर पृथ्वी के 365 दिन और छह घंटे में सूर्य का एक चक्कर लगाने के कारण वर्ष में 365 दिन का कैलेंडर बनवाया। वर्तमान में दुनिया भर में प्रचलित कैलेंडर को पोप ग्रेगोरी अष्टम ने 1582 में तैयार किया था। ग्रेगोरी ने इसमें लीप ईयर का प्रावधान किया था। ईसाइयों का एक अन्य पंथ ईस्टर्न आर्थोडॉक्स चर्च तथा इसके अनुयायी ग्रेगोरियन कैलेंडर को मान्यता न देकर पारंपरिक रोमन कैलेंडर को ही मानते हैं। इस कैलेंडर के अनुसार जॉर्जिया, रूस, यरूशलम, सर्बिया आदि में 14 जनवरी को नववर्ष मनाया जाता है।
पूर्व में नववर्ष 1 जनवरी को नहीं मनाया जाता था। पहले नववर्ष कभी 25 मार्च को तो कभी 25 दिसम्बर को मनाया जाता था। सर्वप्रथम नववर्ष के तौर पर 1 जनवरी को मान्यता 15 अक्टूबर 1582 को मिली थी। लेकिन आज तक यह कैलेंडर सम्पूर्ण विश्व में मान्यता प्राप्त करने में असफल ही रही है। और आज भी पूरी दुनिया कैलेण्डर प्रणाली पर एकमत नहीं हैं। आज भी दुनिया के अलग-अलग कोने में अलग-अलग दिन नववर्ष मनाए जाने की परंपरा कायम है, क्योंकि दुनिया भर में अनेक कैलेंडर हैं और हर कैलेंडर का नववर्ष का प्रथम दिन अलग-अलग होता है। एक अनुमान के अनुसार अकेले भारत में ही विक्रम संवत, शक संवत, हिजरी संवत, फसली संवत, बांग्ला संवत, बौद्ध संवत, जैन संवत, खालसा संवत, तमिल संवत, मलयालम संवत, तेलुगु संवत सहित 50 से भी अधिक पंचांग अर्थात कैलेंडर प्रचलित हैं, और इनमें से कई का नववर्ष अलग दिनों पर होता है। एक आकलन के अनुसार दुनिया भर में पूरे 70 नववर्ष मनाए जाते हैं।
ग्रेगोरियन कैलेंडर के सर्वमान्य नहीं हो पाने का कारण इस कैलेंडर में विद्यमान गड़बड़ियाँ ही हैं, जो समय -समय पर उजागर होती रही हैं। परंतु भारतीय पंचांगों में इस प्रकार की गड़बड़ियाँ नहीं रहीं, क्योंकि यहाँ ग्रहीय गतियों का सूक्ष्म अध्ययन करने की अतिप्राचीन परंपरा रही है तथा कालगणना पृथ्वी, चन्द्र, सूर्य की गति के आधार पर होती रही है। चंद्र और सूर्य गति के अंतर को पाटने की भी व्यवस्था अधिक मास आदि द्वारा होती रही है। भारत में सूर्योदय से सूर्यास्त तक दिन, माह और वर्ष की गणना करके भारतीय पंचांग बनाया गया है। जहां अन्य देशों में नववर्ष मनाने का आधार किसी व्यक्ति, घटना या स्थान से जुड़ा होता है और विदेशी लोग अपने देश की सामाजिक और धार्मिक परंपराओं और मान्यताओं के अनुसार इसे मनाते हैं, वहीं भारतीय कैलेंडर व नववर्ष ब्रह्मांड के शाश्वत तत्वों से जुड़ा हुआ है।
ग्रहों की चाल पर आधारित भारतीय पंचांग व नववर्ष सबसे विशिष्ट और पूर्णतः वैज्ञानिक है। पृथ्वी अपनी धुरी पर 1600 किलोमीटर प्रति घंटा की गति से घूमती है। इस चक्र को पूरा करने में उसे 24 घंटे का समय लगता है। इसमें 12 घंटे पृथ्वी का जो भाग सूर्य के सामने रहता है, उसे अह: कहा जाता है। तथा सूर्य के पीछे रहने वाले भाग को रात्र कहा जाता है। इस प्रकार 12 घंटे पृथ्वी का पूर्वार्द्ध तथा 12 घंटे पृथ्वी का उत्तरार्द्ध सूर्य के सामने रहता है। इस प्रकार एक अहोरात्र में 24 होरा होते हैं। पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा 1 लाख किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से कर रही है।
पृथ्वी का 10 चलन सौर दिन कहलाता है। चांद्र दिन को तिथि कहते हैं। जैसे एकम्, चतुर्थी, एकादशी, पूर्णिमा, अमावस्या आदि। पृथ्वी की परिक्रमा करते समय चंद्र का 12 अंश तक चलन एक तिथि कहलाता है। सम्पूर्ण विश्व में सप्ताह के दिन व क्रम भारतीय क्रम के अनुसार ही हैं। भारत में पृथ्वी से उत्तरोत्तर दूरी के आधार पर ग्रहों का क्रम निर्धारित किया गया, जैसे – शनि, गुरु, मंगल, सूर्य, शुक्र, बुद्ध और चन्द्रमा। इनमें चंद्रमा पृथ्वी के सबसे पास है तो शनि सबसे दूर। इसमें एक-एक ग्रह दिन के 24 घंटों अथवा होरा में एक-एक घंटे का अधिपति रहता है। इसलिए क्रम से सातों ग्रह एक-एक घंटे अधिपति, यह चक्र चलता रहता है और 24 घंटे पूरे होने पर अगले दिन के पहले घंटे का जो अधिपति ग्रह होगा, उसके नाम पर दिन का नाम रखा गया। सूर्य से सृष्टि होने की मान्यता के कारण प्रथम दिन रविवार मानकर ऊपर क्रम से शेष वारों का नाम रखा गया। पृथ्वी की परिक्रमा में चंद्रमा का 12 अंश चलना एक तिथि कहलाता है। अमावस्या को चंद्रमा, पृथ्वी तथा सूर्य के मध्य रहता है। इसे 0 (अंश) कहते हैं। यहां से 12 अंश चलकर जब चंद्रमा सूर्य से 180 अंश अंतर पर आता है, तो उसे पूर्णिमा कहते हैं।
इस प्रकार एकम् से पूर्णिमा वाला पक्ष शुक्ल पक्ष कहलाता है तथा एकम् से अमावस्या वाला पक्ष कृष्ण पक्ष कहलाता है। कालगणना के लिए आकाशस्थ 27 नक्षत्र माने गए हैं- अश्विनी, भरणी, कृत्तिका, रोहिणी, मृगशिरा, आर्द्रा, पुनर्वसु, पुष्य, आश्लेषा, मघा, पूर्व फाल्गुन, उत्तर फाल्गुन, हस्त, चित्रा, स्वाति, विशाखा, अनुराधा, ज्येष्ठा, मूल, पूर्वाषाढ़, उत्तराषाढ़, श्रवणा, धनिष्ठा, शतभिषाक, पूर्व भाद्रपद, उत्तर भाद्रपद और रेवती। सताईस नक्षत्रों में प्रत्येक के चार पाद किए गए। इस प्रकार कुल 108 पाद हुए। इनमें से नौ पाद की आकृति के अनुसार बारह राशियों के नाम रखे गए- मेष, वृष, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक, धनु, मकर, कुंभ व मीन। पृथ्वी पर इन राशियों की रेखा निश्चित की गई, जिसे क्रांति कहते है। ये क्रांतियां विषुव वृत्त रेखा से 24 उत्तर में तथा 24 दक्षिण में मानी जाती हैं।
इस प्रकार सूर्य अपने परिभ्रमण में जिस राशि चक्र में आता है, उस क्रांति के नाम पर सौर मास है। यह साधारणत: वृद्धि तथा क्षय से रहित है। मास भर सायंकाल से प्रात: काल तक जो नक्षत्र दिखाई दे तथा जिसमें चंद्रमा पूर्णता प्राप्त करे, उस नक्षत्र के नाम पर चांद्र मासों के नाम पड़े हैं- चित्रा, विशाखा, ज्येष्ठा, अषाढ़ा, श्रवण, भाद्रपद, अश्विनी, कृत्तिका, मृगशिरा, पुष्य, मघा, फाल्गुनी। इसलिए इसी आधार पर चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़, श्रावण, भाद्रपद, अश्विनी, कृत्तिका, मार्गशीर्ष, पौष, माघ तथा फाल्गुन-ये चंद्र मासों के नाम पड़े। पृथ्वी के अपने कक्षा पर भ्रमण, झुकाव, सूर्य की किरणों के पृथ्वी पर पड़ने के आधार पर उत्तरायण- दक्षिणायन काल, कर्क- मकर संक्रांति आदि का निर्धारण किया गया है।
पृथ्वी सूर्य के आस-पास लगभग एक लाख किलोमीटर प्रति घंटे की गति से 166000000 किलोमीटर लम्बे पथ का करीब 365 दिन में एक चक्र पूरा करती है। इस काल को ही वर्तमान में वर्ष माना गया। वर्ष की शुरुआत नववर्ष अर्थात वर्ष के प्रथम दिन से माना जाता है। और नए का आत्मबोध हमारे अंदर एक नवीन उत्साह भरता है, जीवन में नवीनपन लाने का प्रेरणा देता है और नए तरीक़े से जीवन जीने का संदेश देता है। इसलिए नववर्ष कोई भी हो, उसे खुलकर जीना चाहिए।