मन्नू भंडारी ने स्त्रीवाद का पौधा लगाया और शुरुआत करने का महत्व है क्योंकि पहले से कोई बना रास्ता नहीं था वे परंपरा से विद्रोह भी कर रही थीं क्योंकि परंपरा और संस्कारों के नाम पर स्त्रियों को छला गया था। मन्नू भंडारी अपनी रचनाओं में कोई वाम विचारधारा की बात नहीं करती थीं। वह किसी वाम लेखक संगठन में भी नहीं रहीं पर उन्होंने निम्न मध्यवर्ग और गरीब तबकों के पात्रों की रचना कर स्त्री विमर्श की जमीन तैयार की जिस पर आज हिंदी का स्त्री विमर्श खड़ा है।
हिंदी की प्रख्यात लेखिका मन्नू भंडारी की 93 वीं जयंती के अवसर पर तीन अप्रैल को उनकी रचनाओं पर एक विचारोत्तेजक गोष्ठी हुई और साथ ही एक अद्भुत नाटक भी खेला गया। मध्य प्रदेश के भानपुरा में तीन अप्रैल 1931 को जन्मी मन्नू भंडारी नई कहानी के दौर की लेखिका थीं और साठ के दशक में उन्होंने लिखना शुरू किया था। था करीब 50 वर्षों की रचना यात्रा में उन्होंने कई महत्वपूर्ण कहानियां और उपन्यास लिखे, जिस पर कई फिल्में भी बनीं और देश भर में कई नाटक भी खेले गए।
उनकी 93वीं जयंती के मौके पर हिंदी के प्रसिद्ध लेखक और और पत्रकार प्रियदर्शन ने उनकी रचनाओं पर एक अद्भुत नाटक लिखा, जिससे मन्नू जी की रचनाओं को समझने का एक नया सूत्र मिलता है और उनके स्त्री विमर्श को समग्रता में समझने की एक दृष्टि मिलती है।
आखिर मन्नू भंडारी का स्त्री विमर्श कैसा था जो कृष्णा सोबती और उषा प्रियम्बदा के स्त्री विमर्श से भिन्न था? क्या वह महादेवी के स्त्री विमर्श का अगला चरण था? क्या वह आज के स्त्री विमर्श की तरह था? क्या वह एक स्त्रीवादी लेखिका थीं? क्या उनके लेखन में विचारधारा के लिए कोई जगह नहीं थी? ये बहुत सारे सारे सवाल गोष्ठी में उठे और नाटक में भी उनके पत्रों के जरिए उन सवालों पर विचार किया गया। दरअसल मन्नू भंडारी ने जिस दौर में लिखना शुरू किया था वह एक अलग समय था जबकि आज के दौर में बाजार, भूमंडलीकरण, सांप्रदायिकता, धर्म तथा राजनीति का पतन हो चुका है और एक स्त्री समाज और राज्य की हिंसा की लगातार शिकार होती जा रही है।
ऐसे में मन्नू भंडारी का मूल्यांकन कैसे हो? उनके लेखन की प्रासंगिकता क्या होगी? यह महत्वपूर्ण सवाल हिंदी साहित्य के सामने है, जिस पर सुधीजनों ने विचार भी किया और अपनी-अपनी राय भी रखी। प्रियदर्शन ने मन्नू भंडारी के बहुचर्चित उपन्यास “आपका बंटी” और उनकी आठ कहानियों को मिलाकर एक ऐसा नाटक तैयार किया जो हिंदी रंगमंच के इतिहास में सर्वथा एक अनूठा प्रयोग है। इससे पहले हिंदी रंगमंच में किसी लेखक की कई कहानियों और रचनाओं को आपस में गूंथ कर एक स्वतंत्र नाटक तैयार नहीं किया गया था लेकिन प्रियदर्शन ने “मन्नू की बेटियां” नाटक में यह नया प्रयोग कर दर्शकों का दिल जीत लिया।
राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के सम्मुख सभागार में एनएसडी के पूर्व निदेशक एवं प्रख्यात रंगकर्मी देवेंद्र राज अंकुर के निर्देशन में खेला गया यह नाटक इतना सफल रहा कि सभागार पूरा भर गया कि लोग नीचे बैठकर भी नाटक देखते रहे और मंत्रमुग्ध हो गए। समारोह के अंत में श्री अंकुर ने दर्शकों को बताया कि मन्नू भंडारी की नौ रचनाओं को मिलाकर यह नाटक तैयार किया गया है। इससे पहले भी वह मन्नू जी की कहानियों और उनके प्रसिद्ध उपन्यास “महाभोज” का मंचन कर चुके हैं।
प्रियदर्शन के अनुसार मन्नू भंडारी के उपन्यास “आपकी बंटी” के एक अंश के अलावा उनकी आठ कहानियों को मिलाकर यह नाटक तैयार किया गया। इसमें मन्नू जी के किरदार भी लेखिका से सवाल करते हैं कि उन्हें ऐसा क्यों रचा गया। “आपका बंटी” की नायिका शकुन और उसके बेटे के आपसी संवादों के जरिए यह नाटक शुरू होता है, जिसमें बंटी अपनी मां से सवाल करता है कि उसे दूसरे पिता के हाथों क्यों परवरिश करने दिया गया।
मां और बेटे का संवाद बहुत दिलचस्प है और उतार चढ़ाव लिए हुए है तथा एक विडंबनापूर्ण स्थिति बयान करता है। नाटक में इस उपन्यास के किरदार फिर दूसरी कहानियों में प्रवेश कर नए किरदार बन जाते हैं और इस तरह यह नाटक विकसित होता चला जाता है। उसमें मन्नू जी की कहांनी “जीत का चुंबन”, ‘यही सच है’, “एक कमजोर लड़की की कहानी”, “नई नौकरी” ‘स्त्री बोधिनी’ और ‘अभिनेता’ आदि के माध्यम से यह नाटक आगे बढ़ता है और एक तरह से एक स्वतंत्र रचना का आकार ग्रहण कर लेता है।
प्रियदर्शन ने मन्नू भंडारी की रचनाओं को आपस में इस तरह गूंथ कर यह नाटक तैयार किया है कि लगता ही नहीं है कि इस नाटक में कहानियों को मिलाया गया है, बल्कि वह एक नई कहानी की तरह बन जाता है। इस नाटक की खूबी यह भी है कि इसमें कहानियों के पात्र रचनाकार से भी सवाल पूछते हैं और कहते हैं कि तुमने मुझे इस तरह क्यों ऐसा बनाया है जबकि दूसरे किरदारों को अलग क्यों बनाया। मैं इस तरह किरदार नहीं बनना चाहती थी।
यह नाटक बताता है कि किसी रचनाकार का मूल्यांकन उसकी एक रचना या एक पात्र के आधार पर नहीं होना चाहिए। सारे किरदार उसके हैं। इस नाटक में मुख्य अभिनेता अमित सक्सेना, अदिति, गौरी और तूलिका ने अपने सुंदर अभिनय से इस नाटक में जान डाल दी और “मन्नू की बेटियों” का संदेश सीधे दर्शकों के दिल में उतर जाता है।
इस नाटक में मन्नू भंडारी की विभिन्न कहानियां के कई रंग दिखाई दिए और नाटककार ने यह बताने का प्रयास किया कि मन्नू भंडारी का कोई एक रंग नहीं था, बल्कि वह कई रंगों वाली लेखिका थीं और उन सभी रंगों को मिलकर ही उनका सम्यक मूल्यांकन किया जा सकता है।
दरअसल इस नाटक ने मन्नू जी की कहानियों को समझने के सूत्र भी दिए हैं। श्री अंकुर ने इस नाटक के मंचन में कुछ नए तरह के प्रयोग भी किया और महज चार कलाकारों के आपसी संवाद के जरिए इस नाटक का निर्माण किया और सारे पात्र एक ही किरदार के अलग-अलग संस्करण दिखाई देते हैं। इस नाटक में मन्नू भंडारी की कहानियों में लिखे गए संवादों को शामिल किया गया है।
इससे पहले मन्नू भंडारी की रचनाशीलता पर एक विचारोत्तेजक गोष्ठी भी हुई, जिसमें हिंदी की वरिष्ठ लेखिका मधु कांकरिया, कथाकार आलोचक विवेक मिश्रा, युवा लेखिका प्रकृति करगेती ने भाग लिया जबकि मंच का कुशल संचालन चर्चित कवयित्री रश्मि भारद्वाज ने किया। गोष्ठी के बाद श्रोताओं और वक्ताओं के बीच सवाल जवाब भी हुए, जिससे ममता कालिया, मृदुला गर्ग, आकांक्षा पारे, नीला प्रसाद आदि ने कई प्रश्न पूछे। इससे अच्छी खासी बहस भी हुई। सभी लोगों ने मन्नू भंडारी को अपनी अपनी दृष्टि से परिभाषित करने की कोशिश की। रश्मि भारद्वाज ने गोष्ठी की शुरुआत करते हुए मंन्नू भंडारी को स्त्रीवाद के नजरिये से देखने का प्रयास किया और
हुए ‘आपका बंटी’ की मां शकुन के विद्रोह की बात की। उनका मानना था कि मन्नू जी ने साहसिक स्त्री पात्रों का निर्माण किया है भले ही वह प्रेम विवाह और मातृत्व के त्रिकोण में फंसी हों पर वह अपना रास्ता चुनती हैं।
प्रकृति करगेती ने मन्नू भंडारी के किरदारों को सहज सरल बताया और मन्नू जी को उद्धृत किया कि उन्होंने जैसा देखा वैसा ही लिखा और उन्हें किसी विचारधारा से नहीं गढ़ा। उन्होंने एक पुराने चर्चित गीत “लारा लप्पा लारा लप्पा “के हवाले से कहा कि जिस तरह गाने के अंत मे लड़कियां पुरुषों की कुर्सियों पर कब्जा होने की बात कहती हैं इस तरह मन्नू भंडारी भी अपनी कहानियों में स्त्रियों के सशक्तिकरण की बात कहती हैं उन्होंने मन्नू भंडारी की कहानियों में नैतिक आधार की भी बात का ही और उसके पीछे उसे दूर के समाज की मानसिकता को रेखांकित किया और कहा कि वह नैतिक आधार सभी पुरुषों के लिए एक जैसा था।
विवेक मिश्रा मन्नू भंडारी की कहानियों को उनके समय में पहचानने की जरूरत बताई और कहा कि यह वह दौर था जब न्यूक्लियर फैमिली बन रही थी और स्त्रियों की नौकरियां शुरू हो रही थी पढ़ाई का भी बोझ था और घर चलाने की भी जरूरत थी तथा महानगर में आकांक्षा और करियर का भी दौर था। उन्होंने कहा कि मन्नू भंडारी ने स्त्रीवाद का पौधा लगाया और शुरुआत करने का महत्व है क्योंकि पहले से कोई बना रास्ता नहीं था वे परंपरा से विद्रोह भी कर रही थीं क्योंकि परंपरा और संस्कारों के नाम पर स्त्रियों को छला गया था। मन्नू भंडारी अपनी रचनाओं में कोई वाम विचारधारा की बात नहीं करती थीं। वह किसी वाम लेखक संगठन में भी नहीं रहीं पर उन्होंने निम्न मध्यवर्ग और गरीब तबकों के पात्रों की रचना कर स्त्री विमर्श की जमीन तैयार की जिस पर आज हिंदी का स्त्री विमर्श खड़ा है।