महर्षि विश्वामित्र के अनुसार गायत्री के समान चारों वेदों में मन्त्र नहीं है। सम्पूर्ण वेद, यज्ञ, दान, तप गायत्री मन्त्र की एक कला के समान भी नहीं हैं। मनु महाराज के अनुसार ब्रह्मा ने तीनों वेदों का सार तीन चरण वाला गायत्री मन्त्र निकाला है। गायत्री से बढ़कर पवित्र करने वाला और कोई मन्त्र नहीं है। श्रावण मास की पूर्णिमा को देवी गायत्री का आविर्भाव होने की मान्यता होने के कारण इस दिन पूरे विधि-विधान से देवी गायत्री की पूजा- पाठ की जाती है। इस वर्ष 2024 में गायत्री जयंती 19 अगस्त को मनाई जाएगी।
परमात्मा की अनेक शक्तियाँ हैं, जिनके कार्य और गुण अलग-अलग हैं। इन शक्तियों और असंख्य दिव्य गुणों के कारण इनके कई नाम हैं। उन शक्तियों में गायत्री का स्थान बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। यह मनुष्य को सद्बुद्धि की प्रेरणा देती है। सद्बुद्धि की, सत्य ज्ञान की प्रेरिका वेद ज्ञान हैं। वस्तुतः वेद का अर्थ ही है -ज्ञान। ज्ञान के चार भेद हैं- ऋक्, यजुः, साम और अथर्व। ऋग्वेद में कल्याण, यजुर्वेद में पौरुष, सामवेद में काम अर्थात क्रीड़ा और अथर्ववेद में अर्थ- इन चार दिशाओं में प्राणियों की ज्ञान धारा को प्रवाहित होने की अवधारणा संबंधी वर्णन अंकित हैं। इसीलिए ऋग्वेद को धर्म, यजुर्वेद को मोक्ष, साम को काम, अथर्व को अर्थ भी कहा जाता है। मनुष्य अथवा किसी भी जीवित प्राणधारी की सूक्ष्म व स्थूल, बाहरी व भीतरी क्रियाओं और कल्पनाओं से संबंधित समस्त चेतना कल्याण, पौरुष, काम अर्थात क्रीड़ा और अर्थ, इन चार पुरूषार्थों में ही परिभ्रमण करती
रहती है।
ब्रह्मा के यही चार मुख हैं। ब्रह्मा को एक मुख होते हुए चार प्रकार की ज्ञान धारा का निष्क्रमण करने के कारण ही चतुर्मुख कहा गया है। वेद एक होते हुए भी प्राणियों के अन्तःकरण में वह चार प्रकार का दिखाई देता है। यही कारण हा कि एक वेद को सुविधा के लिए चार भागों में विभक्त कर दिया गया है। भगवान विष्णु की चार भुजाएँ भी यही हैं। इन चार विभागों को स्वेच्छापूर्वक विभक्त करने के लिए चार आश्रम और चार वर्णों की व्यवस्था है। बालक क्रीड़ावस्था में, तरुण अर्थावस्था में, वानप्रस्थ पौरुषावस्था में और संन्यासी कल्याणावस्था में रहता है। ब्राह्मण ऋक् है, क्षत्रिय यजु: है, वैश्य अथर्व है और साम शूद्र है। यह चारों प्रकार के ज्ञान सृष्टि के आरंभ में ब्रह्मा द्वारा उत्पन्न किए गए एक चैतन्य शक्ति के स्फुरण हैं, जिसे गायत्री नाम से सम्बोधित किया गया है। इस प्रकार सिद्ध है कि चारों वेदों की माता गायत्री है। इसीलिए गायत्री को वेदमाता भी कहा जाता है। जल तत्त्व को बर्फ, भाप अर्थात बादल, ओस, कुहरा आदि, वायु अर्थात हाइड्रोजन- ऑक्सीजन तथा पतले जल के चार रूपों में और अग्रि तत्त्व को ज्वलन, गर्मी, प्रकाश तथा गति के चार रूपों में देखे जाने की भांति ही एक ज्ञान गायत्री के चार वेदों के चार रूपों में दर्शन होते हैं। इस प्रकार गायत्री माता है, तो चार वेद इसके पुत्र हैं।
मान्यतानुसार ब्रह्मा ने चार वेदों की रचना से पूर्व चौबीस अक्षर वाले गायत्री मन्त्र की रचना की। विश्वामित्र जिसकी जाप से राजर्षि से ब्रह्मर्षि बन गए। इस एक मन्त्र के एक- एक अक्षर में सूक्ष्म तत्त्व समाहित हैं, जिनके पल्लवित होने पर चार वेदों की शाखा- प्रशाखाएँ उद्भूत हो गयीं। गायत्री के चौबीस बीज अक्षर प्रस्फुटित होकर वेदों के महाविस्तार के रूप में अवस्थित होते हैं। वैदिक मतानुसार अनादि परमात्मतत्त्व ब्रह्म से यह सब कुछ उत्पन्न हुआ। सृष्टि उत्पन्न करने का विचार उठते ही ब्रह्म में एक स्फुरणा उत्पन्न हुई, जिसका नाम है- शक्ति। शक्ति के द्वारा दो प्रकार की सृष्टि उत्पन्न हुई- एक जड़, दूसरी चैतन्य। जड़ सृष्टि का संचालन करने वाली शक्ति, प्रकृति और चैतन्य सृष्टि का संचालन करने वाली शक्ति का नाम सावित्री है। पुराणों के अनुसार ब्रह्मा के शरीर से एक सर्वांग सुन्दरी तरुणी उत्पन्न हुई, यह उनके अंग से उत्पन्न होने के कारण उनकी पुत्री हुई। इसी तरुणी की सहायता से उन्होंने अपना सृष्टि निर्माण कार्य जारी रखा।
इसके पश्चात उस अकेली रूपवती युवती को देखकर उनका मन विचलित हो गया और उन्होंने उससे पत्नी के रूप में रमण किया। इस मैथुन से मैथुनी संयोजक परमाणुमय पंचभौतिक सृष्टि उत्पन्न हुई। यह कथा आलंकारिक रूप प्रस्तुत की गई है। उल्लेखनीय है कि ब्रह्मा कोई मनुष्य नहीं है और न ही उनसे उत्पन्न हुई शक्ति पुत्री अथवा स्त्री है और न पुरुष- स्त्री की तरह उनके बीच में समागम होता है। ब्रह्मा सृष्टि का निर्माण करने वाली निर्विकार परमात्मा की शक्ति है। इस निर्माण कार्य को चालू करने के लिए उसकी दो भुजाएँ हैं, जिन्हें संकल्प और परमाणु शक्ति कहते हैं। संकल्प शक्ति चेतन सत्- संभव होने से ब्रह्मा की पुत्री है। परमाणु शक्ति स्थूल क्रियाशील एवं तम- संभव होने से ब्रह्मा की पत्नी है। इस प्रकार गायत्री और सावित्री ब्रह्मा की पुत्री तथा पत्नी नाम से प्रसिद्ध हुईं।
गायत्री संबंधी वैदिक ग्रन्थों में अंकित विवरणियों के समीचीन अध्ययन से इस सत्य का सत्यापन होता है कि पहले एक ब्रह्म था, उसकी स्फुरणा से आदिशक्ति का आविर्भाव हुआ। इस आदिशक्ति का नाम ही गायत्री है। ब्रह्म ने अपने तीन भाग कर लिए- सत्- जिसे ह्रीं या सरस्वती कहते हैं, रज- जिसे श्रीं या लक्ष्मी कहते हैं, तम- जिसे क्लीं या काली कहते हैं। वस्तुत: सत् और तम दो ही विभाग हुए थे। इन दोनों के मिलने से जो धारा उत्पन्न हुई, वह रज कहलाती है। सत् और तम के योग से रज उत्पन्न हुआ और यह त्रिधा प्रकृति कहलाई। ब्रह्म, जीव, प्रकृति यह तीनों ही अस्तित्व में हैं। पहले एक ब्रह्म था, पीछे ब्रह्म और शक्ति अर्थात प्रकृति दो हो गए। प्रकृति और परमेश्वर के संस्पर्श से जो रसानुभूति और चैतन्यता मिश्रित रज सत्ता उत्पन्न हुई, वह जीव कहलाई। मुक्ति होने पर जीव सत्ता नष्ट हो जाती है।
इससे भी स्पष्ट है कि जीवधारी की जो वर्तमान सत्ता मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार के ऊपर आधारित है, वह एक मिश्रण मात्र है। आद्यशक्ति गायत्री से उत्पन्न होकर सरस्वती, लक्ष्मी, दुर्गा में बँटने वाली ही सूक्ष्म प्रकृति है। यह सर्वव्यापिनी शक्ति- निर्झरिणी पंचतत्त्वों से कहीं अधिक सूक्ष्म है। सूक्ष्म प्रकृति की शक्ति धाराओं से तीन प्रकार की शब्द ध्वनियाँ उठती हैं। सत् प्रवाह में ह्रीं, रज प्रवाह में श्रीं और तम प्रवाह में क्लीं शब्द से मिलती- जुलती ध्वनि उत्पन्न होती है। उससे भी सूक्ष्म ब्रह्म का ऊँकार ध्वनि- प्रवाह है। नादयोगी इस ध्वनि को जान व इसके शेयर ईश्वर तक पहुँच जाते हैं। गायत्री उपासना ईश्वर उपासना का एक अत्युत्तम सरल और शीघ्र सफल होने वाला मार्ग है। इस मार्ग पर चलकर जीवन के चरम लक्ष्य ईश्वर प्राप्ति तक पहुँचा जा सकता है। ब्रह्म और गायत्री में केवल शब्दों का अन्तर है, वैसे दोनों ही एक हैं।
यही कारण है कि श्रीमद्भगवद्गीता 10/35 में श्रीकृष्ण कहते हैं- छंदों में मैं गायत्री हूँ – गायत्री छन्दसामहम्। उपनिषद, ब्राह्मण व संहिता ग्रन्थों के अनुसार भूर्भुव: स्व: यह तीन महाव्याहृतियाँ, चौबीस अक्षर वाली गायत्री तथा चारों वेद निस्सन्देह ओंकार (ब्रह्म) स्वरूप हैं। त्रिवेदमयी (वेदत्रयी) तत्त्व स्वरूपिणी गायत्री से सच्चिदानन्द लक्षण वाला ब्रह्म प्रकाशित होता है अर्थात ज्ञात होता है। यह समस्त जो कुछ है, गायत्री स्वरूप है। गायत्री परमात्मा। शतपथ ब्राह्मण 8/5/3/7 व ऐतरेय ब्राह्मण 17/5 के अनुसार गायत्री (ही) परमात्मा है- ब्रह्म गायत्रीति- ब्रह्म वै गायत्री। ब्रह्म गायत्री है, गायत्री ही ब्रह्म है। प्रकाश सहित सत्यानन्द स्वरूप ब्रह्म को हृदय में और सूर्य मण्डल में ध्यान करते हुए कामना रहित हो गायत्री मन्त्र को जपने वाला मनुष्य अविलम्ब संसार के आवागमन से छूट जाता है। ओंकार परब्रह्म स्वरूप है और गायत्री भी अविनाशी ब्रह्म है। गायत्री परम तत्त्व है, गायत्री परम गति है। यह गायत्री देवी समस्त प्राणियों में आत्मा रूप में विद्यमान है, गायत्री मोक्ष का मूल कारण तथा सन्देह रहित मुक्ति का स्थान है। गायत्री ही दूसरे विष्णु हैं और शंकर दूसरे गायत्री ही हैं। ब्रह्मा भी गायत्री में परायण हैं, क्योंकि गायत्री तीनों देवों का स्वरूप है।
गायत्री परम श्रेष्ठ देवता और चित्त रूपी ब्रह्म है। यह विश्व जो कुछ भी है, वह समस्त गायत्रीमय है। गायत्री और ब्रह्म में भिन्नता नहीं है। गायत्री प्रत्यक्ष अद्वैत ब्रह्म की बोधिका है। हृदय चैतन्य ज्योति गायत्री रूप ब्रह्म के प्राप्ति स्थान के प्राण, व्यान, अपान, समान, उदान ये पाँच द्वारपाल हैं। इन्हीं को वश में करना चाहिए, जिससे हृदयस्थित गायत्री स्वरूप ब्रह्म की प्राप्ति हो। उपासना करने वाला स्वर्गलोक को प्राप्त होता है और उसके कुल में वीर पुत्र या शिष्य उत्पन्न होता है। भूमि, अन्तरिक्ष, द्यौ- ये तीनों गायत्री के प्रथम पाद के आठ अक्षरों के बराबर हैं। अत: जो गायत्री के प्रथम पद को भी जान लेता है, वह त्रिलोक विजयी होता है। शक्ति, शक्तिमान से कभी पृथक नहीं रहती। इन दोनों का नित्य सम्बन्ध है। अग्रि और दाहक शक्ति का नित्य परस्पर संबंध होने की भांति शक्ति और शक्तिमान का संबंध भी है। इन दोनों का सदा संबंध है, कभी भेद नहीं है। जो वह है, सो मैं हूँ और जो मैं हूँ, सो वह है। यदि भेद है, तो केवल बुद्धि का भ्रम है।
संसार की जन्मदात्री प्रकृति है और जगत् का पालनकर्ता या रक्षा करने वाला पुरुष है। जगत में पिता से माता सौ गुनी अधिक श्रेष्ठ है। इन प्रमाणों से स्पष्ट हो जाता है कि ब्रह्म ही गायत्री है और उसकी उपासना ब्रह्म प्राप्ति का सर्वोत्तम मार्ग है। अथर्ववेद 19/71 में गायत्री की स्तुति अंकित है, जिसमें उसे आयु, प्राण, शक्ति, कीर्ति, धन और ब्रह्मतेज प्रदान करने वाली कहा गया है। महर्षि विश्वामित्र के अनुसार गायत्री के समान चारों वेदों में मन्त्र नहीं है। सम्पूर्ण वेद, यज्ञ, दान, तप गायत्री मन्त्र की एक कला के समान भी नहीं हैं। मनु महाराज के अनुसार ब्रह्मा ने तीनों वेदों का सार तीन चरण वाला गायत्री मन्त्र निकाला है। गायत्री से बढ़कर पवित्र करने वाला और कोई मन्त्र नहीं है। श्रावण मास की पूर्णिमा को देवी गायत्री का आविर्भाव होने की मान्यता होने के कारण इस दिन पूरे विधि-विधान से देवी गायत्री की पूजा- पाठ की जाती है। इस वर्ष 2024 में गायत्री जयंती 19 अगस्त को मनाई जाएगी।