राज्य-शहर ई पेपर व्यूज़- विचार

सनातन के शाश्वत अधिष्ठाता “श्रीगणेश”

मान्यता है, उन्हें देवाधिदेव महादेव ने ही यह विशेष वरदान दिया था कि हर पूजा या शुभ कार्य करने से पहले उनकी पूजा अनिवार्य होगी। पौराणिक कथाओं के अनुसार, गजानन गणेश, भगवान शिव व मां पार्वती के पुत्र हैं। गणेश नाम की उत्पत्ति पर विचार करें, तो गण का अर्थ है, समूह एवं ईश का अर्थ है, स्वामी। भगवान गणेश की पत्नी का नाम रिद्धि और सिद्धि है।

सनातन मान्यता है कि 33 करोड़ देवी-देवता हैं। इनकी पूजा देश भर में की जाती है। पर, इन 33 करोड़, देवी-देवताओं में प्रथम पूज्य श्रीगणेश जी ही हैं, देवों में सर्वप्रथम। चाहे कैसी भी पूजा हो या कोई मंगल कार्य, सबसे पहले विघ्नविनाशक श्रीगणेश जी की पूजा करने का विधान है। ऐसी मान्यता है, उन्हें देवाधिदेव महादेव ने ही यह विशेष वरदान दिया था कि हर पूजा या शुभ कार्य करने से पहले उनकी पूजा अनिवार्य होगी। पौराणिक कथाओं के अनुसार, गजानन गणेश, भगवान शिव व मां पार्वती के पुत्र हैं। गणेश नाम की उत्पत्ति पर विचार करें, तो गण का अर्थ है, समूह एवं ईश का अर्थ है, स्वामी। भगवान गणेश की पत्नी का नाम रिद्धि और सिद्धि है। रिद्धि और सिद्धि भगवान विश्वकर्मा की पुत्रियां हैं। श्रीगणेश के बीज मंत्र- ‘ॐ गं गणपतये नमः’ का जाप कर अपनी समस्त कामनाओं को पाया जा सकता है। इसके जाप से आर्थिक प्रगति व समृद्धि भी प्राप्त होगी।

हर साल की तरह श्री गणेश चतुर्थी के अवसर पर भगवान गणेश घर-घर पधार रहे हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को गणेश जी का जन्म हुआ था.इसी चतुर्थी से आरंभ होकर गणेशोत्सव पूरे दस दिनों तक चलता है। महाराष्ट्र, गोवा, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश में गणेश चतुर्थी पूरे धूमधाम से मनायी जाती है। पंडाल सजते हैं। गणपति की बड़ी-बड़ी प्रतिमाएं स्थापित की जाती हैं। घर-बाजार चहुंओर विशेष रौनक होती है। मंदिरों में लगातार नौ दिनों तक पूजन होता है। दस दिन पश्चात् अनंत चतुर्दशी के दिन पूरे जोश के साथ गणेश प्रतिमा को जलस्रोत में विसर्जित किया जाता है।

ऐसी मान्यता है कि सार्वजनिक गणेशोत्सव के मिले-जुले सामूहिक प्रयास की शुरुआत उन्नीसवीं सदी के आरंभ में पुणे से हुई। गणपति उत्सव की शुरुआत पेशवाओं द्वारा की गई। पुणे के प्रसिद्ध शनिवारवाड़ा नामक राजमहल में भव्य गणेशोत्सव मनाया जाता था। पर, महाराष्ट्र में बड़े पैमाने पर गणपति उत्सव मनाने की शुरूआत 1893 में हुई। स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान बाल गंगाधर तिलक द्वारा आजादी की लड़ाई में लोगों को एकजुट करने के उद्देश्य से इसे शुरू किया गया था। पूजा पंडालों में क्रांतिकारी एकत्र होते और आगे की योजना पर काम करते थे। भक्ति रस में सराबोर होकर गणपति की पूजा करते। क्रमशः इसका प्रचलन बढ़ता गया। इसमें लोग भी बढ़-चढ़कर सहयोग और भागीदारी करने लगे। आजादी आते-आते यह पूरे महाराष्ट्र और देश के अन्य हिस्सों में विस्तारित होता गया। आज विदेशों में भी इसकी धूम है। मुंबई से लेकर मैनहटन तक में श्री गणेश पूजा धूम धाम से होती है।

गीता में एक श्लोक है-

त्वमक्षरं परमं वेदितव्यं त्वमस्य विश्वस्य परं निधानम्त्वम

व्ययः शाश्वतधर्मगोप्ता सनातनस्त्वं पुरुषो मतो मे (11.18)

भावार्थ है कि आप ही जानने योग्य परम अक्षर (अक्षरब्रह्म) हैं, आप ही इस सम्पूर्ण विश्व के परम आश्रय हैं, आप ही सनातन धर्म के रक्षक हैं और आप ही अविनाशी सनातन पुरुष हैं, ऐसा मैं मानता हूं। ऐसे ही हैं श्री गणेश जी।

शिवपुराण में एक कथा मिलती है। एक बार माता पार्वती ने स्नान से पूर्व अपने मैल से एक बालक उत्पन्न कर उसे अपना द्वारपाल बना दिया। जब पार्वती जी स्नान करने लगी, तब अचानक भगवान शिव वहां आए, लेकिन द्वारपाल बने बालक ने उन्हें अंदर प्रवेश करने से रोक दिया। उसके बाद शिवगणों से बालक का भयंकर युद्ध हुआ।. कोई भी उसे पराजित नहीं कर सका। क्रोधित शिव ने अपने त्रिशूल से बालक का सिर धड़ से अलग कर दिया। जब माता पार्वती को यह पता चला तो क्रोधित हुईं। उन्होंने प्रलय करने का निश्चय किया। देवलोक इससे भयाक्रांत हो उठा। देवताओं ने उनकी स्तुति की। उन्हें शांत किया। फिर शिव ने निर्देश दिया कि उत्तर दिशा में सबसे पहले जो भी प्राणी मिले, उसका सिर काटकर ले आएं। भगवान विष्णु उत्तर दिशा की ओर गए। उन्हें सबसे पहले एक हाथी दिखाई दिया। वे उसी का सिर काटकर ले आए। शिव ने उसे बालक के धड़ पर रखकर उसे पुनर्जीवित कर दिया। पार्वती उसे पुनः जीवित देख बहुत खुश हुईं। तब समस्त देवताओं ने बालक गणेश को अनेकानेक आशीर्वाद दिए। भगवान शिव ने उन्हें आशीर्वाद दिया कि कोई भी शुभ कार्य यदि गणेश की पूजा करके शुरू किया जाएगा, तो वह निर्विघ्न सफल होगा। उन्होंने गणेश को अपने समस्त गणों का अध्यक्ष घोषित करते हुए आशीर्वाद दिया। कहा, विघ्न विनाश करने में गणेश का नाम सर्वोपरि होगा।

भगवान श्री गणेश को विघ्नहर्ता भी कहा जाता है। एक प्रचलित लोककथा के अनुसार भगवान शिव का एक बार त्रिपुरासुर से भीषण युद्ध हुआ। युद्ध शुरू करने से पहले उन्होंने गणेश को स्मरण नहीं किया, इसलिए वे त्रिपुरासुर से जीत नहीं पा रहे थे। उन्हें जैसे ही इसका अहसास हुआ, उन्होंने गणेश जी को स्मरण किया और उसके बाद आसानी से त्रिपुरासुर का वध करने में सफल हुए।

आज जिस भारतीय संस्कृति के उत्सव के रूप में गणपति उत्सव अपना विशेष महत्व रखता है। इसके शुरू होने के परिवेश, उससे साधे जाने वाले बहुआयामी हित और व्यापक स्तर पर परम्परा बन जाने के कारणों को समझना इसलिए भी जरूरी है कि आज कोई भी पर्व-त्योहार बाजारवाद की चपेट से बचा नहीं है। बावजूद इसके गणपति उत्सव में पारंपरिक उत्स अभी भी शेष है। स्वच्छता, समानता, सौहार्द एवं सहभागिता का संदेश यह उत्सव देता है। खासतौर से जिस देश में धर्म लोगों की जीवन-पद्धति हो, वहां धार्मिक विश्वास का विशेष महत्व होता है।

गणपति उत्सव को मनाने के पीछे जो दर्शन है, वह विश्वव्यापी है। शायद यही कारण है कि इस पर्व के प्रति लोगों में आस्था आज न सिर्फ देश के अन्य भू-भागों में, बल्कि विदेशों में भी देखी जा रही है।(लेखक साहित्य अकादमी के पूर्व सदस्य और विश्व भोजपुरी सम्मेलन के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं।)

Tags :

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *