पंत और सरफराज ने सामने के ‘वी’ के अलावा पीछे के ‘वी’ में भी रन बनाने में कसर नहीं छोड़ी। यानी पंत और सरफराज ने ‘एक्स-फैस्टर’ की शानदार, और 360 डिग्री की ताबड़तोड़ बल्लेबाजी करते हुए मैदान के हर कोने में रन बनाए। दोनों ने न्यूजीलैंड के गेंदबाज व फिल्डरों को बावला व बेसुध किया। समय बदलता है तो परंपराएं भी बदल जाती हैं। पंत और सरफराज बदलते दौर की बदलती बल्लेबाजी के निर्भीक प्रणेता हैं।
हिंदू मनोदशा में खतरे और चिंता की आहट है तो गोपाल मिश्रा नासमझ निडरता दिखाते है। वहीं मुस्लिम जमात में इस्लाम बचाने के हल्ले में सरफराज में नाहक की निडरता दिखाई है। समाज को बदले की भावना को हवा देते है। दोनों भूल जाते हैं कि हिंदू व मुसलमान के साझा जीने से ही उनके पंथ-जमात जीते रह सकते है। सर्वसत्ता पाने की चाह ही अलगाव के ऐसे खुनी-जनूनी खेल से जनता को डराती-भरमाती है।
उत्तर प्रदेश के बहराईच से क्या भारतीयता ही खतरे में नहीं दिखाई दे रहा है? खैर, अपन हिंदू-मुस्लिम पंथ-जमात से अलग मानव धर्म में विश्वास करते हैं। वही मानव धर्म जो अपन तन मन धन से करना, मनना व धरना चाहते हैं। जो पंथ-जमात के सियासती पचड़े से अलग समाज के सहजीवन का धर्म हैं। यानी अपनी क्रिकेट पर आते हैं।
बेंगलुरु में खेले गए टेस्ट मैच में भारत छत्तीस साल बाद न्यूजीलैंड से आठ विकेट से हार गया। पुणे का टेस्ट कल शुरू हुआ है। और मुंबई टेस्ट उसके बाद खेला जाना हैं। दोनों देशों के बीच मैदान पर मोहक, मनोरम व मनोरंजक टेस्ट क्रिकेट खेला गया। इस रोमांच से भरी अद्भुत अहिंसक लड़ाई का मैदान क्रिकेट का चिन्नास्वामी स्टेडियम रहा। आज टेस्ट क्रिकेट जितना मनलुभावना लग रहा है उतना शायद पहले कभी नहीं रहा।
ऐसा मनने-मानने में अतिशयोक्ति नहीं। सबका अपना अपना समय होता है लेकिन समय का भी एक स्वर्णिम पल आता है। आज दुनिया भर में खेले जा रहे क्रिकेट टेस्ट मैचों की लोकप्रियता, कैसे भी सुख-दुख के आर पार देखने-समझने की क्षमता रखती है। सही तौर पर अहिंसक लड़ने की योग्यता ही जीत, व हार को भी महान बनाती है।
तो बेंगलुरु में बारिश से पूरा एक दिन धुल जाने के बाद भी हार-जीत होना क्रिकेट खेल और उसके खिलाड़ियों की महानता ही मानना होगा। लगातार बारिश और पिच पर नमी के बावजूद टॉस जीत कर कप्तान रोहित शर्मा ने पहले बल्लेबाजी की। पांच दिन के टेस्ट मैच में टॉस जीतकर पहले बल्लेबाजी करना ही आने वाले दिनों में रणनीति बनाने में कारगर होता है। लेकिन पिच पर अंदाजे से कुछ ज्यादा ही नमी थी। गेंद का हवा में लहराना, टप्पा खाते ही कटना और उसपर उछाल, बल्लेबाजी के लिए मुश्किल रहा। फिर जो हुआ वह अपन सभी ने हैरानी में देखा। उसके बावजूद आशा नहीं छोड़ी।
पहली पारी में ढह जाने के बाद तो भारत सिर्फ मैच का पीछा ही करता रहा। घरेलू मैदान पर भारत को हराना किसी भी आने वाले देश की टीम के लिए मुश्किल ही रहा है। इसके बावजूद न्यूजीलैंड खिलाड़ी जिस दमखम और लगन से खेले वह दाद लेने के साथ, दर्द भी दे गया। पिच पर धूप पड़ी तो नमी जाती रही। बल्लेबाजी आसान होती गयी। दूसरी पारी में भारत को विशाल स्कोर करना था ताकि जीत की कोशिश की जा सके। यशस्वी, रोहित व विराट सभी ने अच्छी बल्लेबाजी की। लेकिन फिर जब युवा ऋषभ पंत और सरफराज खान की साझेदारी हुई तो दोनों ने बल्लेबाजी का नया रोमांच दिखाया जो कला को नए मायने दे गया।
अभय पंत और निर्भय सरफराज ने 177 रन की साझेदारी महज 211 गेंद में बनाई। युवाओं की साझेदारी में बल्लेबाजी की मानी गयी पारंपरिकता भी ध्वस्त हुई। बल्लेबाजी का धर्म भी रन बनाना ही है। सीखाया जाता रहा है कि सीधे बल्ले की पारंपरिक बल्लेबाजी, सामने के ‘वी’ में रन बनाना रही है। मगर पंत और सरफराज ने सामने के ‘वी’ के अलावा पीछे के ‘वी’ में भी रन बनाने में कसर नहीं छोड़ी। यानी पंत और सरफराज ने ‘एक्स-फैस्टर’ की शानदार, और 360 डिग्री की ताबड़तोड़ बल्लेबाजी करते हुए मैदान के हर कोने में रन बनाए। दोनों ने न्यूजीलैंड के गेंदबाज व फिल्डरों को बावला व बेसुध किया।
समय बदलता है तो परंपराएं भी बदल जाती हैं। पंत और सरफराज बदलते दौर की बदलती बल्लेबाजी के निर्भीक प्रणेता हैं। महान खेल क्रिकेट के नए जांबाज खिलंदर खिलाड़ी हैं। जो अभय व निर्भय मनोभाव दोनों की बल्लेबाजी में दिखा उसने क्रिकेट प्रेमियों को आनंद से भर दिया।
बेंगलुरु में जो घटा उससे बहराइच में हुए को समझना होगा। समाज में फैलाए जा रहे भीड़ के भय की सियासत को भी दरकिनार करना होगा। हिंसा के खेल से अहिंसक लड़ाई ही बेहतर रहेगी।