विराट और रोहित अभी खेल ही रहे हैं लेकिन अब यशस्वी जयसवाल ने अपनी बल्लेबाजी से क्रिकेट देखने–समझने, प्रेम करने वालों के मन में रोमांच भर दिया है। मैं देख कर हैरान होता हूं की क्रिकेट के तीनों प्रारुपों में, इतनी छोटी उम्र में कोई बल्लेबाजी में कैसे इतना संभला, परिपक्व, और मंझा हुआ हो सकता है?
मेरा क्रिकेट देखना और उससे प्रेम करना शुरू हुआ तो सुनील गावस्कर की बल्लेबाजी के नाम और किस्सों व उनके खेल को देखते रोमांचित होता था, दिल बाग-बाग हो जाता था। हालांकि उनके समय में भी अन्य महान बल्लेबाजों के किस्से भी सुनने को मिलते ही थे जैसे विश्वनाथ, वैंगसरकर। मगर अपनी स्मृति में सुनील गावस्कर पहले बल्लेबाज थे जो विदेशी पिचों पर विदेशी गेंदबाजों के सामने टिकते-जूझते दिखे। उनकी अच्छी या बुरी बल्लेबाजी पर ही भारत का कुल स्कोर-योग निर्भर रहता था।
उनकी बल्लेबाजी में क्रिकेट का जोश, जज्बा झलकता था। फिर जब क्रिकेट खेल समझना हुआ, और भारतीय क्रिकेट नयी ऊंचाइयों पर पहुंचा तो लगा कि सुनील गावस्कर से महान बल्लेबाज कैसे, कभी कोई और हो सकेगा? लेकिन फिर दो साल के अंदर ही, सत्रह साल के सचिन तेंदुलकर ने अपनी प्रतिभा से सभी को हैरान किया। टेस्ट क्रिकेट के अलावा एकदिवसीय भी खेला जाने लगा।
समय के साथ सचिन महानता के शिखर पर पहुंचे। अंतरराष्ट्रीय मैचों में सौ-शतक ठोक गए। बल्लेबाजी के भगवान मान लिए गए। सचिन के समय में भी कुछ बल्लेबाज शिखर पर पहुंचते लगे थे। जैसे द्रविड़, लक्षमण व गांगुली मगर सचिन की छाया उन पर भारी ही पड़ी। सचिन अभी खेल ही रहे थे कि उनको खेलते देख कर बढ़े हुए वीरेन्द्र सहवाग अपनी आक्रामक बल्लेबाजी से दुनिया भर के गेंदबाजों की दिशा, लय और टप्पे बिगाड़ने लगे।
फिर वे टेस्ट और एकदिवसीय क्रिकेट की लोकप्रियता से आगे निकल गए। दुनिया बीसमबीस पर लट्टू होने लगी। इसी समय उभरे युवराज व धोनी भी सहवाग की तरह बल्लेबाजी में छाप नहीं छोड़ पाए। लगा की दूसरा सचिन तो संभव ही नहीं है मगर दुसरा सहवाग भी मुश्किल ही रहने वाला है। लेकिन फिर इन दोनों के खेलते हुए ही युवा बल्लेबाज विराट कोहली उभरे तो उनकी बल्लेबाजी पर आनंद और वाहवाही दुनिया भर से आने लगी। आज रोहित शर्मा भी हैं तो विराट कोहली का भी अपना रुतबा है।
विराट और रोहित अभी खेल ही रहे हैं लेकिन अब यशस्वी जयसवाल ने अपनी बल्लेबाजी से क्रिकेट देखने-समझने, प्रेम करने वालों के मन में रोमांच भर दिया है। मैं देख कर हैरान होता हूं की क्रिकेट के तीनों प्रारुपों में, इतनी छोटी उम्र में कोई बल्लेबाजी में कैसे इतना संभला, परिपक्व, और मंझा हुआ हो सकता है? इतनी छोटी उम्र में कोई अपने नाम जैसा ही चरित्र कैसे हो सकता है?
यशस्वी के समकक्ष शुभमन गिल भी हैं। पर छोटी सी उम्र में यशस्वी की संघर्ष गाथा भी सभी को मोहित करती है। क्रिकेट खेलने का जुनून इतना कि बारह-तेरह साल का यशस्वी उत्तर प्रदेश के छोटे कस्बे से निकल कर दिल्ली होते हुए मुंबई पहुंचा। सपनों की राजधानी मुंबई में ही उस की प्रतिभा के प्रशंसक मिले। हर तरह का संघर्ष झेलने पर ही तपी प्रतिभा को नियति विरल आत्मविश्वास देती है। मुंबई की रंगीनियत में यशस्वी का तप रंग लाया। प्रतिभा को मुंबई ने मौका दिया और मुंबई धन्य हो गयी।
स्कूल और क्लब क्रिकेट में लगातार शतक ही जड़ते रहने के कारण यशस्वी मुंबई से उन्नीस-वर्ष से कम की टीम से खेलते हुए युवा भारतीय टीम में चुने गए। फिर घरेलू क्रिकेट में शतकों का अंबार लगाया और उत्तर प्रदेश के खिलाफ ही दोनों पारियों में शतक ठोक डाले। पिछले साल आईपीएल में शतक जड़ा। भारत के लिए अपने पहले टेस्ट मैच में भी शतक ठोक दिया। छह टेस्ट में ही शतक, दोहरा शतक व दो अर्धशतक मार कर क्रिकेट दुनिया में अपनी शानदार उपस्थिति दर्ज करा दी है। शतक शहंशाह हैं यशस्वी।
खेल आंकड़ों के कीर्तिमान से ज्यादा मन के आनंद से मजेदार, मनभावक होता है। कीर्तिमान तो बनते ही टूटने के लिए हैं। अपना सौभाग्य है जो भारतीय क्रिकेट की गौरव गाथा में लगातार कुछ न कुछ अनहोना होता देख रहा हूं।